शिव का सर्वदेवमय रथ का निर्माण कथा

शिव पुराण में भगवान भोलेनाथ की रथ सर्वदेवमय का विवरण मिलती है।

 अद्भुत और अलौकिक रथ का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था।




विश्वकर्मा ने बनाया भगवान भोलेनाथ का रथ

भगवान भोलेनाथ जिस रथ पर सवार होकर चलते थे उस रथ की चर्चा शिव पुराण में विस्तार से लिखा गया। भगवान भोलेनाथ की रथ का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था।
शिव पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार सूत जी ने सर्वदेवमय रथ की कथा सनत कुमार को सुनाया था। उन्होंने विस्तार से रथ की बनावट और उसकी सजावट का वर्णन किया है। सर्वसम्मत तथा सर्वभूतमय रथ स्वर्ण का बना हुआ था।
 रथ के दाहिने चक्र में सूर्य और वाम चक्र में चंद्रमा विराजमान थे। दाहिने चक्र में बारह आरे लगे हुए थे। जिसमें बारहों सूर्य प्रतिष्ठित थे और बाया पहिया सोलह आरों से युक्त था, जिसमें चंद्रमा की सोलहों कलाएं विराजमान थी। उत्तम व्रत का पालन करने वाले विपेंद्र थे । नौ अश्वनी आदि सभी 27 नक्षत्र भी उस बाम चक्र की शोभा बढ़ा रहे थे। छहों ऋतुएं उन दोनों पहियों की नेभि बनी। अंतरिक्ष रथ का अग्र भाग हुआ और मंदराचल पर्वत ने स्वर्णमय उत्तम सोपान का काम संभाला।

रथ की बनावट अद्भुत

लोकालोक पर्वत उसके चारों ओर का उपसोपान और मानस आदि सरोवर उसके सुंदर बाहरी विषम स्थान हुए। सारे वर्षाचल उसके चारों ओर के पासा बने और नीचे के लोकों के निवासी उस रथतल भाग हुए। भगवान ब्रह्मा लगाम पकड़ने वाले सारथी हुए। और ब्रह्मदेव चाबुक हुए। आकाश ने विशाल छत्र का रूप धारण किया। शैलराज हिमालय धनुष और स्वयं नागराज शेष उसकी प्रत्यक्षा बने। माता सरस्वती उस धनुष की घंटा हुई और विष्णु भगवान वाण तथा अग्नि देव उस वाण के नोक बने। चारों वेद उस राथ में जुतने वाले चार घोड़े कहे गए हैं। उसके बाद शेष बची हुई ज्योतियां उन घोड़ों की आभूषण बनी।
ऐसे अद्भुत बने रथ को देख भोले नाथ अत्यंत प्रसन्न हुए और विश्वकर्मा जी को धन्यवाद दिया। सर्वगुण संपन्न हजारों में श्रेष्ठ यह रथ भगवान भोलेनाथ की पहली पसंद बन गई। यह शिव रथ चंद सेकेंडों में ही समस्त ब्रह्मांड की परिक्रमा करने की शक्ति रखता है।





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