क्षेम और लाभ गणेश जी के पुत्र
भगवान गणेश का विवाह प्रजापति विश्वरूपा के दो कन्या सिद्धि और बुद्धि से हुआ। सिद्धि के गर्भ से झेम का जन्म हुआ जबकि बुद्धि के गर्भ से लाभ का जन्म हुआ।
भगवान गणेश की विवाह की कथा बड़ा ही रोचक है। कथा का विस्तार शिव पुराण में मिलता है। भगवान गणेश ने अपनी बुद्धि और विवेक से शास्त्रों और वेदों के अनुसार अपने माता पिता को निरुत्तर कर विवाह कर लिया।
एक दिन शिव और पार्वती दोनों प्रेम पूर्वक एकांत में बैठकर यह विचार करने लगे कि हमारे यह दोनों पुत्र विवाह के योग हो गए हैं। अब इन दोनों का शुभ विवाह कैसे संपन्न हो, माता पिता का विचार को जानकर उन दोनों पुत्रों के मन में विवाह की इच्छा जग उठीं। पहले मैं विवाह करूंगा यो बारंबार कहते हुए परस्पर विवाद करने लगे। विवाह को लेकर पुत्रों के बीच हुए विवाद से माता पिता दुखी हो गए और एक विचार मन में आया।
जो पहले करेगा पृथ्वी की परिक्रमा उसी का होगा पहला विवाह
कुछ समय के बाद माता पार्वती और भोलेनाथ ने दोनों पुत्रों को बुलाया और उनसे कहा। सुनो पुत्र हम लोगों ने पहले से ही एक ऐसा नियम बना रखा है, जो तुम दोनों के लिए सुखदायक होगा। अब हम यथार्थ रूप से वर्णन करते हैं। तुम लोग प्रेम पूर्वक सुनो ? शर्त यह है कि जो सारी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले लौट आएगा, उसी का शुभ विवाह पहले किया जाएगा। यह जानकर महाबली कार्तिकेय तुरंत अपने स्थान से पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए चल दिए।
दूसरी ओर आगाध बुद्धि संपन्न गणेश जी वही पर खड़े रह गए। वह अपनी उत्तम बुद्धि का आश्रय ले बारंबार मन में विचार करने लगे की अब मैं क्या करूं कहां जाऊं। परिक्रमा तो मुझसे हो नहीं सकेगा क्योंकि कोस भर चलने के बाद आगे चला नहीं जाएगा। फिर सारी पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करेंगे। काफी सोच विचार करने के बाद गणेश जी ने मन में विचार कर, अपने घर लौटकर विधिपूर्वक स्नान किया। इसके बाद वे अपने माता पिता से कहा कि हे माता और पिता मैंने आप लोगों की पूजा करने के लिए यहां दो आसन स्थापित किए हैं। आप दोनों इसपर विराजिए और मेरा मनोरथ पूर्ण कीजिए। गणेश जी की बात सुनकर पर्वती और परमेश्वर उनकी पूजा ग्रहण करने के लिए आसन पर विराजमान हो गए।
तीर्थ से बढ़कर माता और पिता
भगवान गणेश ने माता पर्वती और पिता भोलेनाथ की विधिपूर्वक पूूजा की और बारंबार प्रणाम करते हुए उनकी सात बार पदक्षिणा की। गणेश जी ने कहा आप दोनों की परिक्रमा कर हमने आपके द्वारा निर्धारित शर्त हो पूरा कर लिया है। गणेश जी की बात सुनकर माता पर्वती और भोलेनाथ ने कहा पहलेे तुम सारी पृथ्व की परिक्रमा करके आ। तुम्हारा भाई कुमार पृथ्वी की परिक्रमा करने गया हुआ है। तू भी जा और पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटके आ। तब तुम्हारी विवाह सबसेेे पहले करवा देंगे।
गणेश की सिद्धि और बुद्धि से हुई शादी
गणेश जी ने कहा हे माता और हे पिता आप दोनों सर्वश्रेष्ठ, धर्मरूप और महाबुद्धिमान है। अतः धर्मानुसार मेरी बात सुनिए मैंने सात बार पृथ्वी की परिक्रमा की है। फिर आप लोग ऐसी बात क्यों कह रहे हैं। दोनोंं ने कहा पुत्र तुमने पृथ्वी की परिक्रमा कब कर ली। गणेश जी ने कहा मैंने अपनी बुद्धि से आप दोनों की पूजा करके प्रदक्षिणा कर ली है अतः मेरी समुद्र पर्यंत पृथ्वी की परिक्रमा पूरी हो गई है। धर्म के अनुसार वेदोंं और शास्त्रों मैं जो ऐसा वचन मिलता है वह सत्य है अथवा असत्य है। धर्मानुसार जो पुत्र अपने माता पिता की पूजा करके उसकी प्रदक्षिणा करता है उसे पृथ्वी परिक्रमा जनित फल सुलभ हो जाता है। दूसरी ओर जो माता-पिता को घर पर छोड़ कर तीर्थ यात्रा के लिए जाता है, वह माता पिता की हत्या से मिल वाले पाप का भागी होता है। क्योंकि पुत्र के लिए माता पिता का चरण सरोज ही महान तीर्थ है।
भगवान गणेश की बात सुनकर माता पार्वती और पिता भोले शंकर ने अपने पुत्र की शादी करने का निश्चय कर लिया। उन्होंने प्रजापति विश्वरूपा के दो कन्या सिद्धि और बुद्धि से भगवान गणेश का विवाह संपन्न कराएं। सिद्धि के गर्भ से पुत्र क्षेम का जन्म हुआ जबकि बुद्धि के गर्भ से लाभ पुत्र का जन्म हुआ।