प्रेम, प्यार और पाप

प्रेम ,प्यार और पाप। मानव जीवन का आधारभूत सत्य है। पौराणिक काल की  एक घटना ने इन तीन वाक्यों को सत्यत्ता प्रदान करता है।


जहां चाह वहां राह

पौराणिक काल की एक कथा है। एक गांव में एक गरीब किसान रहता था। वह इमानदारी से खेती-बाड़ी कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था। वह एक निष्ठावान और सच्चा शिव भक्त था। भगवान भोलेनाथ के प्रति उसकी असीम श्रद्धा थी। किसान का भरा पूरा परिवार में पत्नी एक पुत्र और एक पुत्री थी । 

पुत्र से बड़ी एक पुत्री थी। साधारण नाक नक्शे और आदर्श संस्कारी व शिक्षा प्राप्त पुत्री के विवाह के योग हुआ, तो उसके पिता ने उसकी शादी करवाने के लिए रिश्तेदारों के यहां दरवाजा खटखटाने लगे। पिता सोचते थे गुणवंती बेटी के लिए जहां चाहेंगे वहां पर वर मिल जाएगा और आसानी से शादी हो  जाएगी परंतु ऐसा हो न सका। हर घर में दहेज के लालची बैठे थे।


बेटी होना पाप है क्या

किसान के मन में अब जहां चाह वहां राह की जगह बेटी होना पाप है क्या? मन में घर कर गया। बहुत खोजबीन करने के बाद एक लड़का मिला परंतु वह काफी निर्धन था। घर के लोग शादी से नाखुश थे परंतु पुत्री संतुष्ट थी ! उसकी सोच थी ,पिता जो भी करेंगे अच्छा ही करेंगे उसने शादी के लिए हां कर दी।

 धूमधाम से शादी संपन्न हो गयी। विदाई के समय आया तो लड़की ने अपने पिता की चरण स्पर्श करते हुए कहा कि हमें खुशी-खुशी आप बिदा करें क्योंकि बेटी का सच्चा घर तो ससुराल ही होता है । आपने यही शिक्षा हमें दी है।


किस्मत बड़ा बलवान

कहां जाता है किस्मत बड़ा ही बलवान होता है। किसान की बेटी का किस्मत ऐसा बदला चंद वर्षों में वह लखपति हो गई। निष्ठावान और पिता के समान शिवभक्त बेटी ने अपने आराध्य शंकर के ऊपर छोड़ दिया, अपने परिवार की जिम्मेवारी । एक वाकया हुआ उसका पति पढ़ा लिखा था ही एक बार वह बाजार गया था ।

बाजार सेेेेे लौटने के वक्त उसने देखा कि सड़क के बीच में एक चमड़े का थैला पड़ा हुआ है। उसने थैले को खोला तो सैकड़ों की संख्या में सोने के सिक्केें मिले।

 थैला देख मन में लालच आया परंतु सोचा कि संसार को चलाने वाले भगवान भोलेनाथ तो देख रहेे होंगे। उसने थैला लेकर और भोलेनाथ के मंदिर में पहुंच गया। शिवलिंग केे समक्ष थैला रखकर कालो के काल महाकाल से निवेदन किया किया। हे भोलेनाथ यह आपका धन है ।आपही इसके स्वामी हैं।

अंतरात्मा ने पहुंचाया राजा के पास


जैसे ही शिवलिंग के समक्ष थैला रखकर चलने को हुआ उसकी अंतरात्मा ने कहा युवक यह धन राजा का है । तुम इसे राजा के दरबार में ले जाकर राजा के सुपुर्द कर दो। युवक ने अंतरात्मा की आवाज सुन राजा के दरबार में पहुंचा और पूरी घटना विस्तार से बताया । राजा ने उसकी ईमानदारी को देखकर राजदरबार में अच्छे से एक ओहदा दे दिया इसलिए कहा जाता है ईमानदारी ही सर्वोपरि है।


इस कहानी से हमें शिक्षा मिलता है कि जहां प्रेम है। वही प्यार है। अगर प्रेम और प्यार एक साथ मिल जाए तो पाप होने नहीं देता। युवक के मन में धन मिलने पर पाप उत्पन्न हो गया था परंतु सत्य कर्म के बदौलत राजा के दरबार में एक अच्छा ओहदा प्राप्त किया।


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