कार्तिक छठ 2026: पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, व्रत कथा, नियम और अचूक टोटके | संपूर्ण मार्गदर्शिका

13 से 16 नवंबर 2026 तक मनाए जाने वाले कार्तिक छठ पर्व की संपूर्ण जानकारी। जानें पूजा विधि, शाम और सुबह के अर्घ्य का सही समय, विस्तृत व्रत कथा, क्या करें-क्या न करें, और संतान प्राप्ति के अचूक टोटके। 

A woman offering arghya (water offering) to the sun god in a picture from Kartik Chhath 2026.

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कार्तिक छठ 2026: जानें विस्तार से 

आस्था और सूर्योपासना का महान पर्व, कार्तिक छठ, इस बार 13 नवंबर 2026 से शुरू होकर 16 नवंबर 2026 तक मनाया जाएगा। यह पर्व संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना को लेकर किया जाने वाला सबसे कठिन तपस्या के समान व्रत है। इस पर्व में 36 घंटे से अधिक समय तक निर्जला व्रत रखकर भगवान सूर्य और छठी मैया की आराधना की जाती है। आइए, इस ब्लॉग के माध्यम से हम कार्तिक छठ 2026 से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी प्राप्त करें।

कार्तिक छठ 2026: चार दिवसीय पर्व का शेड्यूल और शुभ मुहूर्त

1. नहाय-खाय (13 नवंबर 2026, शुक्रवार)

यह छठ पर्व का प्रथम दिन है। इस दिन व्रतधारी सुबह स्नान करके नए वस्त्र धारण करते हैं और छठ व्रत का संकल्प लेते हैं।

इस दिन केवल एक समय भोजन किया जाता है, जिसमें सात्विक भोजन जैसे कि अरवा चावल की भात, चने की दाल और लौकी की सब्जी (जिसे कद्दू-भात भी कहते हैं) ग्रहण किया जाता है।

2. खरना / लोहंडा (14 नवंबर 2026, शनिवार)

· इस दिन व्रतधारी दिन भर निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को पूजा के बाद गुड़ की खीर (रसियाव) और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

यह प्रसाद घर के अन्य सदस्यों और पड़ोसियों में भी बांटा जाता है।

महत्वपूर्ण: खड़ना के बाद जब चंद्रमा अस्त हो जाता है, तब से व्रतधारी के लिए 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है।

3. संध्या अर्घ्य / डूबते सूरज को अर्घ्य (15 नवंबर 2026, रविवार)

· यह छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन षष्ठी तिथि होती है और शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

शुभ मुहूर्त: सूर्यास्त शाम 05:58 बजे पर होगा। गोधूलि बेला का शुभ समय इसके आसपास ही रहेगा। अर्घ्य देने का सबसे शुभ समय सूर्यास्त से ठीक पहले और बाद का कुछ समय होता है।

व्रतधारी सूप में ठेकुआ, फल आदि सजाकर नदी या तालाब के घाट पर जाते हैं और डुबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।

4. सुबह का अर्घ्य / उगते सूरज को अर्घ्य (16 नवंबर 2026, सोमवार)

· पर्व के अंतिम दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

शुभ मुहूर्त: सूर्योदय सुबह 05:49 बजे पर होगा। अर्घ्य देने का शुभ समय सूर्योदय से ठीक पहले और बाद का कुछ समय होता है, जब सूर्य की पहली किरण दिखाई देती है।

अर्घ्य देने के बाद व्रतधारी छठी मैया से अपनी संतान के दीर्घायु और सुखी जीवन की कामना करते हैं और फिर व्रत का पारण (उपवास तोड़ना) करते हैं।

कार्तिक छठ पूजा विधि: स्टेप बाय स्टेप

1. घाट की तैयारी: छठ व्रत के तीसरे और चौथे दिन घाट की सफाई करके वहां मिट्टी का एक चबूतरा बनाया जाता है। उस पर पांच गन्ने लगाकर एक तरह का मंडप बनाया जाता है।

2. सूप सज्जा: बांस के सूप में अरवा चावल, ठेकुआ, केला, नारियल, सुथनी, शकरकंद, हल्दी-अदरक का पौधा आदि पूजा सामग्री सजाई जाती है।

3. अर्घ्य देना: व्रतधारी पानी में खड़े होकर सूप को हाथों में लेते हैं। फिर दूध और जल से सूर्य देवता की अराधना करते हुए अर्घ्य देते हैं। इस दौरान पूरा परिवार छठ मैया के भजन व मंत्रोच्चारण करता है।

4. प्रसाद चढ़ाना: अर्घ्य देने के बाद सूप में रखा प्रसाद छठी मैया को अर्पित किया जाता है।

5. परिक्रमा: अर्घ्य देने के बाद व्रतधारी पानी में खड़े-खड़े ही तीन या पांच बार परिक्रमा करते हैं।

कार्तिक छठ की पौराणिक व्रत कथ

प्राचीन काल में प्रियव्रत नाम के एक प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों ही धर्म-कर्म में रत और प्रजा का पालन पुत्रवत करते थे, किंतु एक बात का अभाव हमेशा उनके मन में कचोटता रहता था – वह था संतान सुख का अभाव। संतान न होने के कारण राजा-रानी हमेशा उदास रहते थे।

एक दिन महर्षि कश्यप राजा के दरबार में पधारे। राजा और रानी ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। तब महर्षि ने उनके उदास चेहरे का कारण पूछा। राजा ने अपनी समस्या बताई। महर्षि कश्यप ने दोनों को आश्वस्त करते हुए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। यज्ञ की समाप्ति पर महर्षि ने रानी मालिनी को प्रसाद रूप में खीर दी, जिसे खाकर रानी गर्भवती हो गईं।

नौ माह बीतने के बाद रानी के गर्भ से एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया। पूरे राज्य में खुशियां मनाई गईं। किंतु, यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं रही। कुछ ही दिनों बार वह शिशु अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया।

पुत्र की मृत्यु से राजा और रानी टूट गए। राजा ने प्राण त्यागने का निश्चय किया और आत्महत्या करने के लिए दौड़ पड़े। जैसे ही उन्होंने आत्महत्या के लिए हाथ उठाया, उसी समय आकाश में प्रकाश फैल गया और एक दिव्य देवी प्रकट हुईं। देवी अत्यंत तेजस्विनी और करुणा मयी थीं।

राजा ने देवी से पूछा, "हे देवी! आप कौन हैं?"

देवी ने कहा, "मैं जगत के पालनहार ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और सृष्टि के छठे अंश में निवास करने वाली देवी षष्ठी हूं। लोग मुझे छठी मैया के नाम से पुकारते हैं। मैं नवजात शिशुओं की रक्षा करती हूं और नि:संतानों को संतान का सुख प्रदान करती हूं।"

देवी की बात सुनकर राजा ने हाथ जोड़कर कहा, "हे माता! यदि आप सचमुच देवी हैं तो मेरे मृत पुत्र को जीवित कर दें।"

छठी मैया ने कहा, "राजन! मैं तुम्हारी पुत्र वियोग की पीड़ा समझती हूं। तुम मेरी विधिवत पूजा करो। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना के साथ मेरी पूजा करने से तुम्हारा पुत्र जीवित हो जाएगा।"

देवी के आदेशानुसार, राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी ने कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि के दिन विधिपूर्वक छठ व्रत रखा और सूर्य देव तथा छठी मैया की पूजा-अर्चना की। पूजा समाप्त होते ही अद्भुत चमत्कार हुआ। राजा का मृत पुत्र जीवित हो गया। राजा-रानी की खुशी का ठिकाना न रहा।

उस दिन से लेकर आज तक संतान की सलामती और दीर्घायु के लिए छठ पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि जो भी सच्चे मन और श्रद्धा से छठी मैया की पूजा करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है और संतान पर छठी मैया की विशेष कृपा बनी रहती है।

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कार्तिक छठ के दिन क्या करें और क्या न करें

क्या करें (Do's):

व्रत के दौरान सूती वस्त्र ही धारण करें।

पूजा के लिए बांस की बनी टोकरी (दउरा) और सूप का ही प्रयोग करें।

घर और पूजा स्थल की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।

पूजा में गंगाजल का प्रयोग अवश्य करें।

अर्घ्य देते समय सूर्य देव और छठी मैया का ध्यान करें और मन में ही प्रार्थना करें।

प्रसाद के रूप में बनने वाले ठेकुए और अन्य पकवान में प्याज, लहसुन का प्रयोग बिल्कुल न करें और सेंधा नमक ही इस्तेमाल करें।

व्रत पूरा होने के बाद प्रसाद सभी में वितरित करें।

क्या न करें (Don'ts):

व्रत के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मदिरा का सेवन वर्जित है।

व्रतधारी को जमीन पर सोना चाहिए, कोमल बिस्तर पर नहीं। कई लोग चटाई या दरी पर सोते हैं।

व्रत के दिनों में किसी को बुरा नहीं देखना चाहिए और न ही बुरा बोलना चाहिए।

पूजा के लिए इस्तेमाल होने वाले सामान को किसी अपवित्र स्थान पर न रखें।

व्रत की अवधि में झूठ न बोलें और किसी का दिल न दुखाएं।

कार्तिक छठ के दिन क्या खाएं और क्या ना खाएं

क्या खाएं:

नहाय-खाय: अरवा चावल की भात, चने की दाल, लौकी (कद्दू) की सब्जी।

खरना: गुड़ की बनी खीर (रसियाव), बिना हाथ लगाई रोटी।

प्रसाद: ठेकुआ (खस्ता रोटी), केला, नारियल, गन्ना, मूली, शकरकंद, और अन्य मौसमी फल।

पारण के बाद: सामान्य सात्विक भोजन।

क्या ना खाएं:

सभी चार दिनों तक प्याज, लहसुन और मसूर की दाल का सेवन वर्जित है।

मांस, मछली, अंडा और किसी भी प्रकार की मदिरा का सेवन सख्त मना है।

खड़ना के बाद व्रतधारी को 36 घंटे तक निर्जला व्रत रहना होता है, इस दौरान पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता।

कार्तिक छठ से संबंधित प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1: क्या विवाहित महिलाओं के अलावा पुरुष भी छठ व्रत रख सकते हैं?

उत्तर:हां, बिल्कुल। आजकल केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष और कुंवारी लड़कियां भी संतान की सलामती और मनोकामना पूर्ति के लिए छठ व्रत रखते हैं।

प्रश्न 2: अगर कोई व्रत नहीं रख रहा है, तो क्या वह प्रसाद ले सकता है?

उत्तर:हां, छठ का प्रसाद सभी को ग्रहण करना चाहिए। मान्यता है कि छठ का प्रसाद लेने से छठी मैया की कृपा बनी रहती है।

प्रश्न 3: क्या छठ व्रत में केवल सूर्य देव की ही पूजा होती है?

उत्तर:नहीं, छठ व्रत में मुख्य रूप से सूर्य देव (भगवान भास्कर) और छठी मैया (देवी षष्ठी) दोनों की संयुक्त रूप से पूजा-आराधना की जाती है। सूर्य देव जीवन के आधार हैं और छठी मैया संतान की रक्षिका।

कार्तिक छठ के अचूक टोटके

1. संतान प्राप्ति के लिए: नि:संतान दंपत्ति खड़ना के दिन बनने वाली गुड़ की खीर में से थोड़ी सी खीर एक पीपल के पेड़ के नीचे रख दें और छठी मैया से संतान प्राप्ति की मनोकामना करें।

2. संतान की दीर्घायु के लिए: सुबह के अर्घ्य के बाद, पूजा में इस्तेमाल हुए पांच गन्नों को अपने घर के मंदिर या पूजा स्थल के पास रख दें। इससे घर में सुख-शांति बनी रहती है और संतान पर मां की कृपा बनी रहती है।

3. वैवाहिक जीवन सुखी रहे: छठ व्रत करने वाली स्त्री को चाहिए कि वह अपने साथ अपने पति का एक वस्त्र (जैसे रुमाल) भी पूजा में अर्पित करे। इससे वैवाहिक जीवन में प्रेम और सद्भाव बढ़ता है।

कार्तिक छठ में भगवान के किस रूप की होती है पूजा?

कार्तिक छठ में मुख्य रूप से दो देवताओं की पूजा का विधान है:

1. भगवान सूर्य (सूर्य देव): इन्हें जीवनदाता और समस्त ऊर्जा के स्रोत के रूप में पूजा जाता है। अर्घ्य के माध्यम से सूर्य देव को जल अर्पित करके उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

2. छठी मैया (देवी षष्ठी): ये ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं और संतानों की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। इनकी पूजा से संतान को दीर्घायु और सुखमय जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

डिस्क्लेमर 

यह ब्लॉग पूर्ण रूप से धार्मिक ग्रंथों, पुराणों, लोक मान्यताओं और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारियों पर आधारित है। यहां दी गई सभी जानकारियां, जैसे कि पूजा विधि, मुहूर्त, नियम और टोटके, सामान्य ज्ञान और परंपराओं को ध्यान में रखकर प्रस्तुत की गई हैं। पाठकों से निवेदन है कि इन्हें केवल सूचनात्मक उद्देश्य से ही ग्रहण करें।

वर्ष 2026 के लिए दिए गए मुहूर्त और तिथियां ज्योतिषीय गणना पर आधारित हैं, जो भौगोलिक स्थिति के अनुसार थोड़े बहुत अंतर के साथ भिन्न हो सकते हैं। अधिक सटीक और व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए किसी योग्य ज्योतिषी या धर्मगुरु से परामर्श अवश्य लें।

ब्लॉग में वर्णित किसी भी टोटके या उपाय को करने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल करें। लेखक या वेबसाइट किसी भी प्रकर की धार्मिक क्रिया के परिणामों के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। छठ पर्व आस्था, श्रद्धा और पवित्रता का पर्व है, इसे सद्भाव और उत्साह के साथ मनाना चाहिए।


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