"Vijaya Ekadashi 2027" विजय एकादशी: संपूर्ण सफलता विजय के अचूक द्वारा मुहूर्त , व्रत कथा और विधि

"विजया एकादशी 2027: 03 मार्च दिन बुधवार को है। जानिए लंका विजय की नींव रखने वाली इस एकादशी की पौराणिक कथा, स्टेप-बाय-स्टेप पूजा विधि, शुभ-अशुभ मुहूर्त और सफलता प्राप्ति के अचूक उपाय"। 

Picture of Lord Shri Ram's fierce form on Vijaya Ekadashi 2027

कैप्शन:“विजया एकादशी 2027 — वह पावन दिवस जब भगवान श्रीराम धर्म की विजय के लिए धनुष उठाए, अधर्म का नाश करने हेतु संकल्पित हुए। इस दिन का व्रत जीवन में विजय, साहस और सत्य की शक्ति प्रदान करता है।”

"विवरण समय" (भारतीय समयानुसार)

एकादशी तिथि का प्रारंभ 2 मार्च 2027, मंगलवार, भोर 04:44 बजे से

एकादशी तिथि का समापन 3 मार्च 2027, बुधवार, रात भर और 04 मार्च 07:24 बजे तक

पारण का समय (व्रत खोलने का) 4 मार्च 2027, गुरुवार, सुबह 06:44 बजे से सुबह 09:03 बजे तक

"मुहूर्त का प्रकार नाम समय सीमा"

शुभ मुहूर्त (अत्यंत श्रेष्ठ) अभिजीत मुहूर्त नहीं है।

विजय मुहूर्त दोपहर 02:29 बजे से दोपहर 03:15 बजे तक

निशिता मुहूर्त (रात्रि जागरण) रात 12:08 बजे से रात 12:58 बजे तक (4 मार्च)

अशुभ मुहूर्त (टालें) राहुकाल दोपहर 12:35 बजे से दोपहर 02:02 बजे तक

यमगण्ड सुबह 08:16 बजे से सुबह 09:43 बजे तक

गुलिक काल सुबह 11:08 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक

🙏 "व्रत का संकल्प और संपूर्ण पूजा विधि" (स्टेप-बाय-स्टेप)

*01.व्रत का संकल्प कैसे लें?

*02.दशमी की रात: दशमी की रात में केवल एक बार सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।

*03.एकादशी की सुबह: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें।

*04.संकल्प मंत्र: हाथ में जल, फूल और चावल लेकर भगवान विष्णु के सामने खड़े हों। इस मंत्र का स्मरण करें, "हे विष्णु! मैं आज विजया एकादशी का व्रत निष्ठापूर्वक करने का संकल्प लेता/लेती हूँ। यह व्रत मैं सफलता और विजय की कामना से कर रहा/रही हूँ। मेरे सभी पापों को नष्ट करें और मेरे व्रत को पूर्ण करें।"

*05.विसर्जन: जल को जमीन पर छोड़ दें और पूजा आरंभ करें।

"विजया एकादशी की संपूर्ण पूजा विधि" (स्टेप-बाय-स्टेप)

*01.कलश स्थापना: तांबे या मिट्टी का कलश जल से भरें। उस पर पंच पल्लव (आम के पत्ते) रखें और चावल या जौ से भरी कटोरी रखें।

*02.विष्णु प्रतिमा: कलश के ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

*03.शुद्धि और आसन: स्वयं को और आसन को गंगाजल से शुद्ध करें।

*04.पंचामृत स्नान: भगवान की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से स्नान कराएं।

*05.वस्त्र अर्पण: नए वस्त्र, आभूषण और जनेऊ (पुरुषों के लिए) अर्पित करें।

*06.पूजन सामग्री: धूप, दीप (घी का), कुमकुम, तिल, फूल, तुलसी दल (अनिवार्य), फल, और पंजीरी (गेहूं के आटे की) चढ़ाएं।

*07.पाठ और कीर्तन: विष्णु सहस्त्रनाम, एकादशी व्रत कथा या ओम नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें।

*08.आरती: अंत में कपूर या घी के दीपक से आरती करें।

*09.रात्रि जागरण: रात में सोना नहीं चाहिए। भजन-कीर्तन और जाप करते हुए जागरण करना चाहिए।

*10.द्वादशी (पारण) के दिन: ब्राह्मणों को भोजन कराएं, दान-दक्षिणा दें और स्वयं भोजन करके व्रत खोलें।

*05. 🛒 "विजया एकादशी: पूजा सामग्रियों की सूची"

*01.देव स्थापना भगवान विष्णु की मूर्ति/चित्र, तांबे या पीतल का लोटा, जल कलश, आसन।

*02.अभिषेक/स्नान दूध, दही, घी, शहद, गंगा जल, स्वच्छ जल।

*03.वस्त्र/श्रृंगार पीले वस्त्र, आभूषण, जनेऊ, रोली/कुमकुम, अक्षत (चावल)।

*04.नैवेद्य (भोग) गेहूं आटे की पंजीरी (व्रत में खा सकते हैं), मौसमी फल (केला, नारियल), सूखे मेवे, मिठाई, गुड़।

*05.पुष्प/अन्य पीले फूल, तुलसी दल (अनिवार्य), धूप, दीपक (घी या तिल के तेल का), अष्टगंध, पान का पत्ता।

*06.दान/दक्षिणा ब्राह्मणों को दक्षिणा देने हेतु रुपए, सात तरह के अनाज (कलश के नीचे रखने हेतु)।

*06. 🍎 "एकादशी पर क्या करें और क्या ना करें" (नियम)

✅ *क्या करें (Do's)

*01.तुलसी पूजन: तुलसी जी की पूजा करें और उन्हें जल चढ़ाएं।

*02.सात्विक भोजन: दशमी और द्वादशी को भी केवल सात्विक भोजन ही करें।

*03.दान: अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।

*04.जागरण: रात भर जागकर भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम, भजन या भगवद्गीता का पाठ करें।

*05.पारण: द्वादशी को शुभ मुहूर्त में ही व्रत खोलें।

❌ "क्या ना करें" (Don'ts)

*01.चावल और अनाज: एकादशी के दिन चावल और किसी भी प्रकार के अनाज (गेहूं, दाल) का सेवन न करें।

*02.तामसिक भोजन: प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा या किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन का सेवन न करें।

*03.निंदा और क्रोध: किसी की निंदा न करें और क्रोध से बचें।

*04.झूठ बोलना: इस दिन झूठ बोलना या किसी को धोखा देना वर्जित माना जाता है।

*05.बाल काटना: एकादशी के दिन बाल, दाढ़ी या नाखून नहीं काटने चाहिए।

*07. 🍽️ "एकादशी के दिन क्या खाएं और क्या ना खाएं"

✅ "एकादशी में खाने योग्य खाद्य पदार्थ" (Phalahar)

*01.फल: सभी प्रकार के मौसमी फल खाए जा सकते हैं।

*02.सब्जी: आलू, शकरकंद, अरबी, गाजर, पालक, लौकी, खीरा, कद्दू, और टमाटर।

*03.अनाज के विकल्प: कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, समा के चावल (व्रत के चावल), साबूदाना, और राजगिरा (अमरनाथ)।

*04.डेयरी: दूध, दही, छाछ, पनीर (सादा)।

*05.अन्य: सेंधा नमक, काली मिर्च, हरी मिर्च, अदरक, और सूखे मेवे।

❌ "एकादशी में वर्जित खाद्य पदार्थ" (Avoid)

*01.अनाज: चावल, गेहूं, दालें (चना, उड़द, मूंग), मक्का, जौ, और सूजी।

*02.नमक: सादा नमक (केवल सेंधा नमक का उपयोग करें)।

*03.मसाले: हल्दी, हींग, जीरा, सरसों, मेथी, और गरम मसाला (अधिकांश)।

*04.अन्य: बैंगन, मशरूम, और शहद।

*03. 🏰 "विजया एकादशी की पौराणिक कथा: लंका विजय का नींव"

पौराणिक कथा को और रोचक बनाने के लिए इसमें भगवान राम के मनोभावों, लक्ष्मण के तर्कों, जटायु के बलिदान, हनुमान जी की लंका यात्रा, और वकदालभ्य मुनि के आश्रम के दृश्यों का भावनात्मक और विस्तृत वर्णन शामिल किया गया है।)

"मुख्य बिंदु":

 *अपहरण: त्रेता युग में राम, लक्ष्मण और सीता का वनवास। रावण द्वारा छल से सीता हरण।

*02.जटायु से भेंट: मरणासन्न जटायु से वृत्तांत जानना।

*03.मित्रता और खोज: हनुमान और सुग्रीव से भेंट, बाली वध, मित्रता का विस्तार।

*04.समुद्र तट पर चिंता: विशाल समुद्र देखकर श्री राम की व्याकुलता और लक्ष्मण का सुझाव।

*05.वकदालभ्य ऋषि से परामर्श: ऋषि द्वारा विजया एकादशी व्रत का महत्व और विधि बताना।

*06.व्रत का संकल्प और अनुष्ठान: श्री राम द्वारा सेना सहित विधि-विधान से व्रत करना।

*07.विजय की प्राप्ति: व्रत के प्रभाव से समुद्र पार करने का मार्ग मिलना (सेतु बंधन से पहले भी मनोबल और योजना की सफलता) और राक्षसों पर विजय की नींव रखना।

"अब इस पौराणिक कथा को पढ़ें विस्तार से" 

यहां दिए गए मुख्य बिंदुओं के आधार पर एक विस्तृत पौराणिक कथा है, जो श्री राम के वनवास से लेकर विजया एकादशी व्रत तक के प्रसंग को समेटती है।

"विजया एकादशी: समुद्र पार विजय का दिवस"

प्राचीन काल की बात है, जब धरती पर धर्म की स्थापना हेतु भगवान विष्णु ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के रूप में अवतार लिया। त्रेता युग का वह समय था जब अधर्म अपने चरम पर था और राक्षसराज रावण का आतंक तीनों लोकों में व्याप्त था। यह कथा उन्हीं के वनवास, विपदाओं और अंततः विजय के मार्ग की नींव रखने वाले एक दिव्य व्रत की गाथा है।

"वनवास और सीता हरण: एक दुःसह पीड़ा

माता कैकेयी को राजा दशरथ जी से वर मांगने के कारण श्री राम को चौदह वर्षों का वनवास भोगना पड़ा। उनके साथ उनकी अर्धांगिनी माता सीता और अनुज भ्राता लक्ष्मण भी वन को चले आए। वन की शांत और सरल जीवनचर्या चल ही रही थी कि एक दुष्ट राक्षसी, सूपणरेखा ने उनके शांतिपूर्ण जीवन में विष घोल दिया। उसके मन में कामना जागी और जब श्री राम और लक्ष्मण ने उसे ठुकरा दिया, तो क्रोध में आकर उसने माता सीता पर आक्रमण करना चाहा। इस पर लक्ष्मण ने उसकी नाक-कान काट दी।

अपमानित होकर सूपणरेखा ने अपने भाई खर-दूषण को युद्ध के लिए उकसाया, परन्तु श्री राम ने उन सभी का वध कर दिया। तब सूपणरेखा ने लंकापति रावण के पास जाकर अपने अपमान का बदला लेने और माता सीता की अद्भुत सुंदरता का बखान करते हुए उन्हें हरण करने के लिए प्रेरित किया।

छल का सहारा लेते हुए रावण ने मारीच की सहायता से एक सुनहरे हिरण का रूप धारण करवाया। सीता जी ने उस हिरण को देखा और श्री राम से उसे पकड़ लाने का आग्रह किया। श्री राम उस हिरण के पीछे चले गए और उसे मार गिराया। मरते समय मारीच ने "हे लक्ष्मण! हे सीता!" की पुकार लगाई। यह आवाज सुनकर सीता जी व्याकुल हो उठीं और लक्ष्मण से श्री राम की सहायता के लिए जाने का आग्रह किया। लक्ष्मण ने उन्हें समझाने का प्रयास किया, परन्तु सीता जी के आग्रह पर विवश होकर, उन्होंने अपनी लक्ष्मण-रेखा खींचकर उन्हें उसके भीतर रहने का आदेश देकर श्री राम की खोज में निकल पड़े।

यही रावण की प्रतीक्षा का क्षण था। एक साधु का वेश धारण करके वह सीता जी के आश्रम के निकट आया और भिक्षा की याचना करने लगा। लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन करने से इनकार करने पर क्रोधित रावण ने अपना वास्तविक रूप धारण कर लिया और बलपूर्वक सीता जी को अपने रथ में बैठाकर आकाश मार्ग से लंका की ओर प्रस्थान कर गया। माता सीता की चीखें गूंज उठीं, "हे राम! हे लक्ष्मण!"

"जटायु से भेंट: एक वीर गृध्र का बलिदान"

रास्ते में, पंचवटी के निकट रहने वाले वृद्ध गृध्रराज जटायु ने सीता जी की चीखें सुनी। धर्म और मित्रता के कर्तव्य का पालन करते हुए, उन्होंने रावण का मार्ग रोका और उसे युद्ध के लिए ललकारा। वृद्धावस्था के बावजूद जटायु ने रावण से भीषण युद्ध किया और उसके रथ को क्षत-विक्षत कर दिया। परन्तु अंततः रावण ने अपने तीक्ष्ण अस्त्र से जटायु के पंख काट दिए और वे मरणासन्न अवस्था में धरती पर गिर पड़े।

जब श्री राम और लक्ष्मण सीता जी की खोज करते हुए उस स्थान पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि एक विशालकाय गृध्र प्राणों की अंतिम सांसें गिन रहा है। श्री राम ने करुणा से उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया। जटायु ने अपनी दृष्टि खोलते हुए सारा वृत्तांत सुनाया – किस प्रकार रावण ने सीता का हरण किया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ चला। सीता की सुरक्षा का प्रयास करते हुए इस वीर ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। श्री राम ने सनातन रीति-रिवाज से जटायु का अंतिम संस्कार किया और उन्हें मोक्ष प्रदान किया। इस प्रकार जटायु ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना धर्म का मार्ग दिखाया।

"मित्रता और खोज: सुग्रीव और हनुमान से मिलन"

जटायु द्वारा बताई गई दिशा का अनुसरण करते हुए, श्री राम और लक्ष्मण दक्षिण की ओर बढ़े। मार्ग में उनकी भेंट एक वानर से हुई, जो अत्यंत तेजस्वी और बुद्धिमान प्रतीत होता था। वह थे पवनपुत्र हनुमान। हनुमान ने श्री राम की दिव्यता को पहचान लिया और उन्हें ऋष्यमूक पर्वत पर ले गए, जहां उनके मित्र वानर राजा सुग्रीव निवास कर रहे थे।

सुग्रीव अपने अत्याचारी भाई बाली से भयभीत होकर पर्वत पर रह रहे थे। श्री राम ने सुग्रीव की व्यथा सुनी और उनसे मित्रता का प्रस्ताव रखा। इस मित्रता के प्रतीक स्वरूप, श्री राम ने सुग्रीव को यह आश्वासन दिया कि वे बाली का वध करके उन्हें किष्किंधा का राज्य वापस दिलाएंगे। बदले में सुग्रीव ने सीता जी की खोज में अपनी सम्पूर्ण वानर सेना को लगाने का वचन दिया।
शं
श्री राम ने अपने वचन के अनुसार, बाली का वध किया और सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया। वर्षा ऋतु बीतने के बाद, जब सुग्रीव विलास में लिप्त हो गए, तो लक्ष्मण ने जाकर उन्हें सचेत किया। तब सुग्रीव ने अपनी विशाल वानर सेना को चारों दिशाओं में सीता जी की खोज के लिए भेजा। दक्षिण दिशा में गई टोली का नेतृत्व अंगद कर रहे थे और उनके साथ थे हनुमान। 

लंका तक पहुंचने और सीता जी को खोजने का दायित्व हनुमान ने सफलतापूर्वक निभाया। अशोक वाटिका में सीता जी से भेंट करके, राम की मुद्रिका देकर और लंका को जलाकर, हनुमान वापस आए और सीता जी के सुरक्षित होने का समाचार दिया।

"समुद्र तट पर चिंता: एक अगम्य चुनौती"

सीता जी का पता चलने के बाद, श्री राम, लक्ष्मण और विशाल वानर सेना के साथ दक्षिण समुद्र के तट पर पहुंचे। वहां उनके सामने विशाल, उफनता हुआ समुद्र था, जिसे पार किए बिना लंका पर चढ़ाई करना असंभव प्रतीत हो रहा था। समुद्र की गर्जना और अथाह जलराशि को देखकर सेना में हताशा का भाव फैलने लगा।

श्री राम, जो मर्यादा के कारण अपने दिव्य शक्तियों का प्रयोग सीमित रूप से कर रहे थे, साथ ही सीता के वियोग में व्याकुल हो उठे। उन्होंने लक्ष्मण से कहा, "हे भ्राता! इस विशाल सागर को देखकर मेरा मन विचलित हो रहा है। सीता सागर के पार हैं और हम यहां खड़े हैं। इस सेना के पास न तो नौकाएं हैं और न ही उड़ने की शक्ति। इस चुनौती का समाधान कैसे निकलेगा?"

लक्ष्मण, जो सदैव श्री राम के प्रति समर्पित और व्यावहारिक थे, बोले, "प्रभु, ऐसे समय में जब मानवीय योजनाएं असफल हो जाती हैं, तब ऋषि-मुनियों का मार्गदर्शन ही एकमात्र सहारा होता है। क्यों न हम किसी तपस्वी ऋषि से इस समस्या का हल पूछें?"

"वकदालभ्य ऋषि से परामर्श: दिव्य व्रत का उपदेश"

श्री राम ने लक्ष्मण का सुझाव माना और सेना सहित आस-पास के ऋषियों की खोज करने लगे। कुछ ही दूरी पर उन्हें वकदालभ्य ऋषि का आश्रम मिला। ऋषि तपस्या में लीन थे। श्री राम ने विनम्रतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और अपनी समस्त व्यथा कह सुनाई – सीता हरण, वानरों से मित्रता और अब समुद्र रूपी अवरोध।

ऋषि वकदालभ्य ने प्रसन्न मन से श्री राम का स्वागत किया और कहा, "हे राम! आप स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं, फिर भी मर्यादा का पालन करते हुए आपने मुझ जैसे साधारण ऋषि की शरण ली है, यह आपकी महानता है। आपकी चिंता का समाधान है – विजया एकादशी का व्रत।"

ऋषि आगे बोले, "फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'विजया एकादशी' कहते हैं। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य को हर कार्य में विजय प्राप्त होती है। यह व्रत संकटों को दूर करने वाला और मनोवांछित फल देने वाला है। आपकी सेना इस व्रत के प्रभाव से न केवल समुद्र पार करने का उपाय ढूंढ लेगी, बल्कि रावण पर विजय भी अवश्यंभावी हो जाएगी।"

उन्होंने व्रत की विस्तृत विधि बताई: "एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करें। दिनभर उपवास रखें और रात्रि में जागरण करते हुए भगवान के गुणगान करें। द्वादशी के दिन सुबह पूजन के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर और दक्षिणा देकर अपना उपवास खोलें। इस व्रत के प्रभाव से आपकी सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी।"

"व्रत का संकल्प और अनुष्ठान: सेना सहित आस्था का प्रदर्शन"

श्री राम ने ऋषि के कथनानुसार विधि-विधान से विजया एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लिया। केवल श्री राम ही नहीं, बल्कि लक्ष्मण, सुग्रीव, हनुमान, अंगद, जाम्बवंत और सम्पूर्ण वानर सेना ने भी इस व्रत का पालन किया। समुद्र तट ही एक विशाल पूजा स्थल में परिवर्तित हो गया। सभी ने मन से उपवास रखा और भगवान विष्णु की स्तुति में रात्रि जागरण किया। वातावरण में दिव्य भक्ति और विजय का विश्वास व्याप्त हो गया।

उस रात, सेना का मनोबल अभूतपूर्व रूप से ऊंचा उठा। सभी के हृदय में यह दृढ़ विश्वास जागृत हुआ कि अब विजय निश्चित है। व्रत की इस दिव्य ऊर्जा ने निराशा के बादलों को छंटा दिया और एक नई आशा का संचार किया।

"विजय की प्राप्ति: व्रत का चमत्कारिक प्रभाव"

द्वादशी के दिन, व्रत का पारण करने के बाद, जैसे ही श्री राम और उनकी सेना ने समुद्र तट पर समुद्र को पार करने के उपाय पर विचार करना प्रारंभ किया, एक अद्भुत घटना घटी। व्रत के पुण्य प्रभाव से समुद्र देव स्वयं प्रकट हुए। उन्होंने श्री राम से कहा, "हे प्रभु! आपकी भक्ति और इस विजया एकादशी व्रत के प्रभाव से मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। मैं आपको आश्वासन देता हूं कि मेरे जल पर पुल का निर्माण करने में आपकी सेना को कोई बाधा नहीं आएगी। आपके सेतु के निर्माण में मैं स्वयं सहायता करूंगा।"

यह वह आधार था, जिसने 'रामसेतु' के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। नल और नील की अद्भुत क्षमता से पत्थरों पर श्री राम का नाम लिखा गया और वे जल पर तैरने लगे। सम्पूर्ण वानर सेना ने अथक परिश्रम करके एक विशाल सेतु का निर्माण किया। यह सब विजया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही संभव हो सका। इस व्रत ने न केवल समुद्र पार करने का मार्ग दिखाया, बल्कि सेना के मन में विजय का दृढ़ संकल्प भी जगाया, जो अंततः लंका पर विजय और रावण के वध का कारण बना।

इस प्रकार, विजया एकादशी का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, संकल्प और विजय का प्रतीक बन गया। यह श्री राम की उस महान सीख का प्रतीक है कि धैर्य, धर्म और सही मार्गदर्शन से कोई भी असंभव प्रतीत होने वाली चुनौती भी पार की जा सकती है। आज भी यह व्रत श्रद्धालुओं द्वारा हर कार्य में सफलता और विजय प्राप्त करने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ किया जाता है।

"विजय एकादशी को भगवान विष्णु के किस रूप की पूजा की जाती है"।

विजया एकादशी के दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु के सामान्य और सर्वव्यापी स्वरूप की पूजा की जाती है, जिन्हें अक्सर श्री हरि या श्री लक्ष्मी नारायण के रूप में जाना जाता है।

हालांकि, इस विशेष एकादशी की पौराणिक कथा और महत्व के कारण, भक्त भगवान विष्णु के उस स्वरूप पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हैं जो: श्री राम का स्वरूप: चूंकि यह एकादशी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम द्वारा लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए की गई थी, इसलिए कई भक्त भगवान विष्णु के राम अवतार की भी पूजा करते हैं। श्री राम का यह स्वरूप धर्म, विजय, और मर्यादा का प्रतीक है। और

चतुर्भुज स्वरूप (लक्षमी नारायण): विजया एकादशी पर अधिकांश घरों और मंदिरों में भगवान विष्णु की चतुर्भुज (चार भुजाओं वाले) स्वरूप की पूजा की जाती है, जो शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हुए हैं। इस स्वरूप में उनके साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है, जिससे जीवन में विजय के साथ-साथ सुख-समृद्धि भी प्राप्त होती है।

संक्षेप में, अगर कहा जाए तो विजया एकादशी पर आप भगवान श्री विष्णु, श्री लक्ष्मी नारायण, या उनके श्री राम अवतार की पूजा कर सकते हैं। पूजा का मूल भाव सफलता और विजय की कामना से श्री हरि को प्रसन्न करना होता है।

"विजया एकादशी के संबंध में पूछे गए प्रश्न और उत्तर" (FAQs)

*01.प्र: विजया एकादशी का पारण कब करना चाहिए?

*उ: 4 मार्च 2027 को सुबह 06:44 बजे से 09:03 बजे के बीच।

*02.प्र: क्या एकादशी के दिन चावल खाना चाहिए?

*उ: नहीं, एकादशी के दिन चावल खाना सख्त वर्जित है।

*03.प्र: विजया एकादशी का व्रत किसने किया था?

*उ: त्रेता युग में भगवान श्री राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया था।

✨ "विजया एकादशी: सामाजिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार"

*01.आध्यात्मिक आधार विजया एकादशी का आध्यात्मिक महत्व मोक्ष और विजय प्राप्ति से जुड़ा है। यह व्रत आत्मा को शुद्ध करता है, इंद्रियों पर नियंत्रण सिखाता है, और व्यक्ति को भगवान विष्णु के करीब ले जाता है। इसका महात्म्य बताता है कि व्रत के पाठ/श्रवण से वाजपेई यज्ञ के समान फल मिलता है।

*02.वैज्ञानिक आधार वैज्ञानिक रूप से उपवास (व्रत) शरीर के पाचन तंत्र को आराम देता है (Autophagy)। एकादशी हर 15 दिन में आती है, जो चंद्रमा की गति से जुड़ी है। उपवास से विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं, शरीर शुद्ध होता है और मानसिक एकाग्रता बढ़ती है।

*03.सामाजिक आधार यह व्रत सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है। व्रत के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना सामाजिक दायित्वों को पूरा करता है। यह लोगों को एक साथ आने और धर्म की चर्चा करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे सामुदायिक भावना मजबूत होती है।

⛔ "अस्वीकरण" ("Disclaimer") 

यह विस्तृत लेख/ब्लॉग पोस्ट विजया एकादशी (3 मार्च 2027) के संबंध में भारतीय धर्मग्रंथों, प्राचीन पौराणिक कथाओं, प्रचलित धार्मिक मान्यताओं और पारंपरिक पंचांग गणना पर आधारित है।

*सामग्री का उद्देश्य और सीमाएं

इस सामग्री का एकमात्र उद्देश्य पाठकों को सूचना, ज्ञान और आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करना है। हमारा लक्ष्य किसी भी पाठक को अंधविश्वास, ढोंग या आडंबर के लिए प्रेरित करना नहीं है। व्रत, पूजा-पाठ, मुहूर्त और अनुष्ठान से संबंधित सभी जानकारी विभिन्न स्रोतों और मान्यताओं का एक संकलन मात्र है।

हमारा विनम्र निवेदन है: धार्मिकता आस्था का विषय है। इसे विज्ञान या तर्क की कसौटी पर परखने के बजाय, अपनी शुद्ध भावना और भक्ति के साथ स्वीकार करें और जीवन में सकारात्मकता लाने का प्रयास करें।

*व्यक्तिगत निर्णय और स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी

एकादशी का व्रत एक उपवास पद्धति है, जिसमें अन्न और जल का त्याग या सीमित फलाहार किया जाता है। व्रत के नियमों का पालन करने से पहले निम्न बातों पर ध्यान देना अनिवार्य है:

*स्वास्थ्य संबंधी मामले: यदि आप गर्भवती हैं, किसी गंभीर बीमारी (जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह) से पीड़ित हैं, या आपकी कोई विशेष स्वास्थ्य स्थिति है, तो उपवास करने से पहले कृपया अपने चिकित्सक (Doctor) या योग्य स्वास्थ्य विशेषज्ञ से अनिवार्य रूप से परामर्श लें। उपवास से संबंधित किसी भी स्वास्थ्य संबंधी निर्णय के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।

*पारंपरिक प्राथमिकता: व्रत या पूजा विधि का पालन करते समय, कृपया अपने परिवार की स्थापित परंपराओं, कुल-रीति और अपने गुरुजनों द्वारा दिए गए निर्देशों को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। इस लेख में दी गई विधि केवल सामान्य मार्गदर्शन के लिए है।

*मुहूर्त की सटीकता: मुहूर्त और पंचांग की गणनाएं स्थानीय सूर्योदय/सूर्यास्त समय और भौगोलिक स्थिति के आधार पर थोड़ी भिन्न हो सकती हैं। हमने 3 मार्च 2027 के संदर्भ में सबसे सटीक और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने का प्रयास किया है, फिर भी अंतिम निर्णय से पहले स्थानीय पंचांग को सत्यापित करना उचित रहेगा।

*अंतिम चेतावनी: इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी के उपयोग से होने वाले किसी भी नुकसान या परिणाम के लिए लेखक या प्रकाशक किसी भी प्रकार से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कानूनी रूप से जिम्मेदार नहीं होंगे।



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