"आमलकी एकादशी 18 मार्च 2027, गुरुवार को है। जानें इस दिन का शुभ मुहूर्त, सटीक पूजा विधि, विस्तृत पौराणिक कथा, क्या करें-क्या न करें, और आंवले की पूजा से मोक्ष प्राप्ति के रहस्य। भगवान विष्णु की कृपा पाने का पर्व"।
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"आमलकी एकादशी 2027: तिथि, शुभ मुहूर्त और संपूर्ण मार्गदर्शिका"
"आमलकी एकादशी, जिसे आंवला एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र व्रतों में से एक है। यह फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है और मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करता है। वर्ष 2027 में, आमलकी एकादशी 18 मार्च, गुरुवार को मनाई जाएगी"।
"यह पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि प्रकृति (आंवले का वृक्ष) और देवता (भगवान विष्णु) के बीच एक अद्भुत संबंध का प्रतीक है। इस ब्लॉग में हम इस पावन एकादशी के हर पहलू - तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, रोचक तथ्य, विस्तृत कथा और वैज्ञानिक महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे"
"आमलकी एकादशी 2027: तिथि और शुभ मुहूर्त"
*01.एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 मार्च 2027, बुधवार रात 01:42 बजे से
*02.एकादशी तिथि समाप्त: 18 मार्च 2027, गुरुवार रात 11:51 बजे तक
*03.व्रत तिथि: 18 मार्च 2027, गुरुवार (चूंकि एकादशी तिथि सूर्योदय तक विद्यमान है)
*04.पारण समय (व्रत तोड़ने का समय): 19 मार्च 2027, सुबह 06:36 बजे से 08:57 बजे तक (द्वादशी तिथि के प्रथम एक तिहाई भाग में)
"18 मार्च 2027 का दिन कैसा रहेगा"?
· वार: गुरुवार (बृहस्पतिवार, जो भगवान विष्णु का दिन माना जाता है, अतः अत्यंत शुभ)
*सूर्य राशि: मीन
* चंद्र राशि: कर्क
नक्षत्र: पुष्प (जो भगवान विष्णु का नक्षत्र माना जाता है, विशेष शुभ फल दायक)
आमलकी एकादशी के दिन अमृत काल, गुरु पुष्प योग, सर्वार्थ सिद्ध योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग का अदभुत मिलन हो रहें हैं।
"शुभ मुहूर्त"
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:29 बजे से लेकर 12:18 बजे तक रहेगा। इस प्रकार विजय मुहूर्त 01:54 बजे से लेकर 02:42 बजे तक गोधूलि मुहूर्त शाम 05:53 बजे से लेकर 06:17 बजे तक, देर रात निशिता मुहूर्त 11:29 बजे से लेकर 12:17 बजे तक और सुबह ब्रह्म मुहूर्त 04:15 बजे से लेकर 5:04 बजे तक रहेगा ।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 05:52 बजे से लेकर 07:22 बजे तक शुभ मुहूर्त, दोपहर 11:54 बजे से लेकर 01:24 बजे तक लाभ मुहूर्त, शाम 05:55 बजे से लेकर 7:25 बजे तक अमृत मुहूर्त और रात 11:53 बजे से लेकर 01:22 बजे तक लाभ बहुत रहेगा।
19 मार्च को पारण करने के लिए सुबह चर मुहूर्त के रूप में 05:51 बजे से लेकर 07:18 बजे तक और लाभ मुहूर्त के रूप में 07:21 बजे से लेकर 08:22 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप अपने सुविधा अनुसार पारण कर सकते हैं।
"शुभ मुहूर्त के सटीक जानकारी आप स्थानीय पंडित या आचार्य से प्राप्त करें"।
"एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें" (डोज़ एंड डोंट्स)
क्या करें (Do's):
*01. ब्रह्मचर्य का पालन: व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यंत फलदायी माना गया है।
*02. सत्य बोलें: पूरे दिन सत्य भाषण करने का प्रयास करें।
*03. दान-पुण्य: इस दिन आंवला, अनाज, वस्त्र, या धन का दान विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
*04. जागरण: रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
*05. आंवले के वृक्ष की पूजा: आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करें और उसे जल चढ़ाएं।
क्या न करें (Don'ts):
*01. अन्न का सेवन न करें: एकादशी का व्रत निराहार या फलाहार से रखा जाता है। अनाज, चावल, दाल आदि का सेवन वर्जित है।
*02. पान न खाएं: तामसिक प्रवृत्ति के कारण पान, तम्बाकू आदि का सेवन न करें।
*03. झूठ न बोलें: क्रोध, ईर्ष्या, बुराई और झूठ से दूर रहें।
*04. शारीरिक संबंध न बनाएं: व्रत की पवित्रता बनाए रखने के लिए इससे परहेज करें।
*05. दूसरों की निंदा न करें: मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें।
"आमलकी एकादशी के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं"
*क्या खा सकते हैं (व्रत के अनुकूल आहार):
*फल: केला, सेब, अनार, आंवला (कच्चा या मुरब्बा)।
*ड्राई फ्रूट्स: बादाम, अखरोट, किशमिश।
*सब्जियां: आलू, शकरकंद, कच्चा केला, टमाटर।
*दूध उत्पाद: दूध, दही, पनीर, मखाना।
*अन्य: साबुदाना, समुद्र नमक, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा।
क्या न खाएं (वर्जित आहार):
*सभी प्रकार के अनाज: चावल, गेहूं, मक्का, जौ आदि।
*दालें: सभी प्रकार की दालें (मसूर, चना, अरहर आदि)।
*प्याज और लहसुन: इन्हें तामसिक माना जाता है।
*मांस-मदिरा: सभी प्रकार के नशीले पदार्थ और मांसाहार वर्जित हैं।
"भगवान विष्णु का किस रूप में होती है पूजा"?
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के "श्रीधर" रूप की पूजा का विशेष महत्व है। श्रीधर का अर्थ है 'लक्ष्मी को धारण करने वाले'। इस दिन भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करने का विधान है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आंवले में स्वयं भगवान विष्णु का निवास होता है। पूजा में आंवले के वृक्ष को ही विष्णु का स्वरूप मानकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है।
"आमलकी एकादशी की पूजा विधि" (स्टेप बाय स्टेप)
*01. स्नान एवं संकल्प: प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें।
*02. आंवले के वृक्ष की पूजा: आंवले के पेड़ के नीचे एक स्वच्छ वेदी बनाएं। वृक्ष की जड़ों में जल, दूध, गंगाजल, हल्दी, कुमकुम, अक्षत और लाल फूल चढ़ाएं।
*03. कलश स्थापना: वृक्ष के समीप एक कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर श्री विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
*04. धूप-दीप: धूप, दीप और फल-फूलों से भगवान विष्णु की पूजा करें।
*05. आरती एवं भजन: "आमलकी एकादशी व्रत कथा" का पाठ करें या सुनें। इसके बाद भगवान विष्णु की आरती उतारें और भजन-कीर्तन करें।
*06. रात्रि जागरण: रात में भजन, कीर्तन और विष्णु सहस्रनाम के पाठ के साथ जागरण करें।
*07. दान: अगले दिन ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें। आंवला, अनाज और वस्त्र का दान विशेष फलदायी होता है।
*08. पारण: अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद, शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
"अब जानें आंवला वृक्ष और भगवान विष्णु के संबंध पर गहराई से विवेचना"
"आमलकी एकादशी पर आंवला वृक्ष की पूजा विधि"
सामग्री:
*01.जल, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल (पंचामृत)
*02.लाल या पीले फूल, अक्षत (चावल)
*03.रोली या कुमकुम, हल्दी
*04.धूप, दीप, कपूर
*05.चंदन
*06.आंवला (फल), आंवले की मिठाई या मुरब्बा
*07.नए वस्त्र (एक जोड़ा सूती वस्त्र)
*08.सुपारी, लौंग, इलायची
*09.एक जल से भरा हुआ कलश (लोटा)
*02. वृक्ष के पास पहुंचना: आंवले के वृक्ष के पास पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ। वृक्ष के चारों ओर एक स्वच्छ वृत्त बना लें।
*04. वस्त्र अर्पण करना: आंवले के वृक्ष को एक जोड़ा नया सूती वस्त्र (धोती-चुनरी के रूप में) अर्पित करें। इसे वृक्ष के तने के चारों ओर लपेट दें या उसकी डाली पर रख दें। यह वस्त्र भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित माना जाता है।
*05. विधिवत पूजा:
*वृक्ष के तने पर चंदन का लेप लगाएं।
*रोली या कुमकुम से तने पर स्वस्तिक बनाएं और अक्षत चढ़ाएं।
*वृक्ष को लाल या पीले फूल अर्पित करें
*वृक्ष की जड़ों में थोड़े सिंदूर की बिंदी लगाएं, यह माता लक्ष्मी का प्रतीक है।
*आंवले के फल, मुरब्बा या मिठाई को वृक्ष के समीप रखें।
*07. प्रार्थना और कथा श्रवण: आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर निम्न मंत्र बोलें या अपनी भाषा में प्रार्थना करें:
"ॐ आमलक्यै नमः" (आंवले के वृक्ष को प्रणाम)
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" (भगवान विष्णु को प्रणाम)
*इसके बाद आमलकी एकादशी की व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
*08. परिक्रमा: अंत में वृक्ष की 108 या कम से कम 11 परिक्रमा (चक्कर) लगाएं। प्रत्येक परिक्रमा में वृक्ष की जड़ों में जल अर्पित करते रहें। परिक्रमा करते समय "ॐ नमो नारायणाय" मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।
*09. दान: पूजा के बाद ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को आंवला, फल, मिठाई और दक्षिणा का दान अवश्य करें।
"क्या आंवला वृक्ष के नीचे भोजन करने का विधान है"?
हां, बिल्कुल है। आमलकी एकादशी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर सात्विक और शुद्ध भोजन करना अत्यंत पुण्य दायी और स्वास्थ्यवर्धक माना गया है।
*02.कैसा भोजन? भोजन सात्विक होना चाहिए, यानी बिना प्याज-लहसुन का शुद्ध शाकाहारी भोजन। एकादशी के नियम के अनुसार, व्रत रखने वाले लोग अन्न ग्रहण नहीं करते, लेकिन जो लोग व्रत नहीं रख रहे, वे फलाहार या सात्विक भोजन वृक्ष के नीचे बैठकर ग्रहण कर सकते हैं।
*03.विधि: भोजन बनाने से पहले और परोसने से पहले वृक्ष को भी भोग लगाएं। वृक्ष के नीचे भूमि को स्वच्छ करके आसन बिछा लें। भोजन ग्रहण करने से पहले भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का स्मरण करें।
"भगवान विष्णु को आंवला से क्या संबंध है"?
*भगवान विष्णु और आंवले का संबंध अत्यंत गहरा और आध्यात्मिक है।
"आंवला वृक्ष में कौन-कौन से देवताओं का बसेरा रहता है"?
*आंवले के वृक्ष को एक दिव्य और देवताओं से परिपूर्ण वृक्ष माना गया है। इसमें न केवल भगवान विष्णु, बल्कि समस्त देवी-देवताओं का निवास बताया गया है।
"निष्कर्ष":
आमलकी एकादशी पर आंवले के वृक्ष की पूजा करना, भगवान विष्णु सहित समस्त देवताओं को प्रसन्न करने का एक सरल और श्रेष्ठ मार्ग है। यह व्रत और पूजा न केवल आध्यात्मिक पुण्य प्रदान करती है, बल्कि आंवले के औषधीय गुणों के कारण शारीरिक स्वास्थ्य का लाभ भी देती है।
"आमलकी एकादशी की पौराणिक कथा" (विस्तृत रूप)
*प्राचीन काल में वैदिश नगरी नामक एक सुंदर नगर था, जहाँ धर्म और न्याय का राज था। उस नगर के सभी निवासी धार्मिक प्रवृत्ति के थे और वेदों के ज्ञाता थे। वे सभी एकादशी, पूर्णिमा आदि व्रतों का पालन श्रद्धापूर्वक करते थे।
*एक बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी (आमलकी एकादशी) आई। पूरे नगर में उत्सव का माहौल था। राजा, मंत्री, प्रजा- सभी ने स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण किए और आंवले के वृक्ष की पूजा की तैयारी की। राजा ने अपने महल में ही विधि-विभाग से पूजा का आयोजन किया।
*पूजा के बाद सभी लोग रात्रि जागरण करने लगे। वे भगवान विष्णु के गुणगान करते हुए कीर्तन कर रहे थे। उसी जागरण में एक निर्धन बहेलिया भी आ टपका। वह भूख-प्यास से व्याकुल था और शिकार की तलाश में उस स्थान पर आ निकला था। उसने देखा कि लोग बड़े उत्साह से भजन गा रहे हैं। उसने सोचा, 'चलो, मैं भी यहीं रात बिता देता हूँ।'
*वह भीड़ के पीछे बैठ गया और थकान के कारण उसे नींद आ गई। प्रातःकाल जब लोगों ने कीर्तन बंद किया और अपने-अपने घर लौटने लगे, तब उसकी नींद खुली। वह उठा और अपने घर की ओर चल पड़ा।
*कुछ समय बाद उस बहेलिए की मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद जब यमदूत उसके प्राण लेने आए, तो विष्णुदूतों ने उन्हें रोक दिया। विष्णुदूतों ने कहा, "इस व्यक्ति ने आमलकी एकादशी का व्रत रखा था और रात्रि जागरण किया था। इसलिए इस पर यमराज का अधिकार नहीं है। यह अब भगवान विष्णु का परम भक्त है।"
"यमदूतों ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, "यह कैसे संभव है? यह तो एक पापी बहेलिया था।"
*विष्णुदूतों ने समझाया, "भले ही इसने अनजाने में ही सही, लेकिन आमलकी एकादशी के दिन व्रत और जागरण का पालन किया। इस पुण्य के प्रभाव से इसके सारे पाप धुल गए हैं।"
*इस प्रकार उस बहेलिए को विष्णुलोक की प्राप्ति हुई। यह कथा आमलकी एकादशी की महिमा को दर्शाती है कि जाने-अनजाने में भी इस व्रत का पालन करने वाला मनुष्य भगवान विष्णु की कृपा का पात्र बन जाता है और मोक्ष को प्राप्त करता है।
"आमलकी एकादशी का वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व"
*01.वैज्ञानिक महत्व: फाल्गुन मास का अंत और चैत्र मास का प्रारंभ (वसंत ऋतु) एक संक्रमण का समय होता है। इस दौरान व्रत रखने और हल्का, सात्विक आहार लेने से शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन होता है। आंवला विटामिन-सी और एंटी-ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है, जो इस मौसम में होने वाली बीमारियों से बचाता है।
*02.सामाजिक महत्व: यह पर्व समाज में समानता और एकता का संदेश देता है। राजा से लेकर रंक तक सभी एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं। दान-पुण्य की परंपरा से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों को सहायता मिलती है।
*03.आध्यात्मिक महत्व: आध्यात्मिक दृष्टि से, यह व्रत मनुष्य को भौतिक सुखों से ऊपर उठाकर परमात्मा से जोड़ता है। माना जाता है कि इस व्रत से पूर्वजों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्रत करने वाले के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
"आमलकी एकादशी के रोचक पहलू_
*01. त्रिदेवों का निवास: मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का निवास है।
*02. आंवला नवमी का संबंध: कार्तिक मास में आंवला नवमी का व्रत भी आंवले की महिमा को दर्शाता है, जो इसके महत्व को और बढ़ाता है।
*03. विष्णु और लक्ष्मी का प्रिय: आंवला भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों का प्रिय फल माना जाता है। इसकी पूजा से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
"पूछे जाने वाले प्रश्न" (FAQs)
प्रश्न *01: क्या गर्भवती महिलाएं आमलकी एकादशी का व्रत रख सकती हैं?
उत्तर:हां, लेकिन पूर्ण निर्जला व्रत की बजाय फलाहार व्रत रखने की सलाह दी जाती है। किसी भी प्रकार का व्रत रखने से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें।
प्रश्न *02: अगर आंवले का पेड़ न मिले तो क्या करें?
उत्तर:यदि आंवले का पेड़ उपलब्ध न हो, तो घर पर एक आंवला (फल), आंवले की लकड़ी का टुकड़ा या आंवले का पौधा लाकर उसकी पूजा कर सकते हैं।
प्रश्न *03: क्या एकादशी के दिन चाय-कॉफी पी सकते हैं?
उत्तर:व्रत के सख्त नियमों में चाय-कॉफी वर्जित है, क्योंकि इनमें कैफीन होता है। लेकिन अगर आप स्वास्थ्य कारणों से नहीं रख पा रहे हैं, तो दूध की चाय या हर्बल टी ले सकते हैं। आदर्श सात्विकता का पालन करना है।
प्रश्न *04: व्रत का पारण कब करना चाहिए?
उत्तर:व्रत का पारण एकादशी तिथि समाप्त होने के बाद, द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए। अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय के समय समाप्त हो रही हो, तो तिथि समाप्त होने के बाद ही पारण करें।
"डिस्क्लेमर"
इस ब्लॉग में प्रस्तुत की गई सभी जानकारियां, जिनमें आमलकी एकादशी 2027 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, पौराणिक कथा, नियम एवं महत्व शामिल हैं, विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, पुराणों, प्रामाणिक ज्योतिषीय स्रोतों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सामग्रियों पर आधारित हैं। इसका उद्देश्य पाठकों को एक सूचनात्मक और शैक्षणिक संसाधन प्रदान करना है, न कि किसी भी प्रकार का पेशेवर, चिकित्सकीय या धार्मिक दबाव बनाना।
तिथियां और मुहूर्त स्थानीय पंचांग एवं समय क्षेत्र के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। अतः सर्वाधिक सटीक जानकारी के लिए अपने स्थानीय पंडित या विश्वसनीय ज्योतिषीय कैलेंडर से सत्यापन अवश्य कर लें। व्रत रखने, आहार संबंधी निर्णय लेने या कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करने से पहले अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य, उम्र और शारीरिक क्षमता का विशेष रूप से ध्यान रखें। गर्भवती महिलाएं, वृद्धजन, बच्चे और किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या (जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि) से ग्रस्त व्यक्ति अपने चिकित्सक से परामर्श किए बिना कोई भी कठोर व्रत न रखें।
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