"माघ मास की Jaya Ekadashi व्रत कथा, पूजा विधि, पारण समय और नियम जानें। यह व्रत दिलाता है ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति और प्रेत योनि से छुटकारा"
"एकादशी के दिन चंद्रमा, सूर्य की स्थिति और ग्रहों का प्रभाव। जानें व्रत का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व। पूजा में क्या करें और क्या न करें"
"जया एकादशी: मोक्ष और सद्गति का महापर्व"
*जया एकादशी, जिसे माघ शुक्ल एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। जया एकादशी 17 फरवरी 2027, दिन बुधवार को है। ।हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पुण्य दायी व्रत माना जाता है। यह व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। जया एकादशी
*मान्यता है कि यह व्रत रखने से मनुष्य को पितृदोष, ब्रह्महत्या और गौ-हत्या जैसे भयंकर पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति पिशाच, भूत और प्रेत योनि से मुक्त होकर मोक्ष तथा स्वर्ग की प्राप्ति करता है। पद्म पुराण में इस व्रत के महत्व और विधान का विस्तार से वर्णन किया गया है।
"जया एकादशी की पौराणिक कथा" (विस्तृत वर्णन)
*भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को जया एकादशी की महिमा बताते हुए पद्म पुराण में वर्णित एक प्राचीन कथा सुनाई थी।
*प्राचीन काल में देवराज इन्द्र स्वर्ग के राजा थे और सभी देवताओं के साथ सुखपूर्वक वास करते थे। एक बार इन्द्र अपनी अप्सराओं और गंधर्वों के साथ नंदन वन में विहार करने गए। इस अवसर पर वहां नृत्य और गान का कार्यक्रम आयोजित हुआ। गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत की कन्या पुष्पा वती और चित्रसेन तथा उनकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थीं। मालिनी के पुत्र माल्यवान भी वहां मौजूद था।
*नृत्य और गान के बीच, अप्सरा पुष्पावती ने माल्यवान को देखा और उस पर मोहित हो गई। काम वाण से विचलित होकर, उसने अपने रूप, लावण्य और हाव-भाव से माल्यवान को अपने वश में करने का प्रयास किया। पुष्पा वती अत्यंत सुंदर थी और उसने इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए नृत्य-गान प्रस्तुत करना शुरू किया, लेकिन माल्यवान पर मोहित होने के कारण उसका चित्त पूर्ण रूप से गान में नहीं लग पा रहा था। वह ठीक से गा और नाच नहीं पा रही थी, जिसके कारण नृत्य और संगीत में त्रुटियां आने लगीं।
*देवराज इन्द्र, जो अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि वाले थे, तुरंत ही पुष्पावती और माल्यवान के प्रेम और उनकी एकाग्रता में आई कमी को समझ गए। वे अत्यंत क्रोधित हो उठे।
*इन्द्र ने क्रोध में आकर कहा, "अरे मूर्खो! तुम दोनों ने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है और कामवासना में लिप्त होकर इस पवित्र सभा को दूषित किया है। इसलिए मैं तुम दोनों को श्राप देता हूँ कि तुम स्त्री और पुरुष के रूप में पृथ्वी लोक पर जाओ और वहां प्रेत योनि धारण कर अपने कर्मों का फल भोगो।"
*इन्द्र का ऐसा भयंकर श्राप सुनकर माल्यवान और पुष्पावती दोनों अत्यंत दुःखी हो गए और श्राप के कारण तुरंत ही प्रेत योनि में धरती पर आ गिरे। उन्होंने हिमालय पर्वत की कंदराओं में दुःख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया। वे प्रेत योनि के कारण गंध, रस और स्पर्श आदि के ज्ञान से वंचित हो गए थे। उन्हें एक पल के लिए भी चैन या निद्रा नहीं आती थी।
*हिमालय पर्वत पर होने के कारण वहां अत्यंत ठंड थी। ठंड से उनके रोएं खड़े रहते थे और उनके दांत कंपकंपाते रहते थे। एक दिन, पिशाच बने माल्यवान ने अपनी पत्नी से कहा, "पिछले जन्म में हमने ऐसा कौन सा पाप किया था, जिसके कारण हमें यह दुःख दायी पिशाच योनि मिली है? इस पिशाच योनि के दुःख से तो नर्क का जीवन भी कम दुखदायी होगा।" इस प्रकार वे दोनों अत्यंत पश्चात्ताप करते हुए दिन बिताने लगे और यह प्रतिज्ञा की कि वे भविष्य में किसी प्रकार का पाप नहीं करेंगे।
*देव योग से तभी माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई। उस दिन उन दोनों ने जानबूझकर या अज्ञानवश, न कुछ खाया और न ही पानी पीया (निर्जला उपवास)। उन्होंने उस दिन कोई पाप भी नहीं किया। वे केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किए और संध्या के समय दुखी होकर एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। रात को अत्यंत ठंड बढ़ गई। ठंड से बचने के लिए वे दोनों आपस में लिपटकर पड़े रहे, लेकिन उन्हें रात भर नींद नहीं आई। अनजाने में ही उन्होंने एकादशी का उपवास और रात्रि जागरण का पालन कर लिया।
*श्रीहरि ने कहा, "हे धर्मराज! जया एकादशी के निर्जला उपवास करने और अनजाने में ही रातभर हरि कीर्तन करने के प्रभाव से अगले दिन सूर्योदय होते ही उन दोनों को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई।"
*वे अति सुंदर गंधर्व और अप्सरा के रूप में वापस आ गए और सुंदर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलंकृत होकर स्वर्ग लोक को प्रस्थान किया। स्वर्ग पहुंचकर उन्होंने देवराज इन्द्र को प्रणाम किया। इन्द्र ने दोनों को उनके पहले रूप में देखकर आश्चर्यचकित हुए और पूछा, "तुम दोनों ने अपनी प्रेत योनि से किस तरह छुटकारा पाया? मुझे सच-सच बताओ।"
*माल्यवान ने कहा, "हे देवेन्द्र! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी व्रत के प्रभाव से ही हमें पिशाच योनि से मुक्ति मिली है।"
*इन्द्र ने तब कहा, "हे माल्यवान! भगवान श्रीहरि की कृपा और एकादशी व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, बल्कि अब तुम दोनों हम देवता गणों के लिए भी वंदनीय हो गए हो, क्योंकि भगवान विष्णु के भक्त हम लोगों के वंदनीय होते हैं। अतः तुम दोनों धन्य हो। अब तुम पुष्पावती के साथ प्रेम पूर्वक अपने जीवन का आनंद लो।"
*भगवान श्रीकृष्ण ने कथा समाप्त करते हुए युधिष्ठिर से कहा कि जया एकादशी का व्रत करने से बुरी से बुरी योनि से मुक्ति मिल जाती है। जो मनुष्य यह व्रत करता है, उसे सभी प्रकार के यज्ञ, जप और दान का फल प्राप्त होता है और वह अवश्य ही हजार वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है।
"जया एकादशी के दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु के श्रीकृष्ण स्वरूप की पूजा की जाती है"।
* मुख्य पूजा: भगवान श्रीकृष्ण (विष्णु के पूर्णावतार) की।
* व्यापक स्वरूप: भक्तगण भगवान श्रीहरि विष्णु के किसी भी
"विवरण" (Panchang Details) समय (Time)
*17 फरवरी 2027 दिन बुधवार को पड़ने वाली जया एकादशी के शुभ और अशुभ मुहूर्त के संबंध में दिल्ली के मानक समय पर आधारित है।
*हर जगह के पंचांग में कुछ अंतर हो सकते हैं स्थानीय पंडित से तिथि (Tithi) की सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
*एकादशी (शाम 05:31 बजे तक), तत्पश्चात द्वादशी
*एकादशी तिथि प्रारंभ 16 फरवरी 2027, मंगलवार, शाम 08:19 बजे
*एकादशी तिथि समाप्त 17 फरवरी 2027, बुधवार, शाम 05:31 बजे
*नक्षत्र आर्द्रा (रात 11:29 बजे तक), तत्पश्चात पुनर्वसु
*योग प्रीति (रात 02:36 बजे, 18 फरवरी तक)
*करण विष्टि/भद्रा (शाम 05:31 बजे तक)
"शुभ मुहूर्त"
शुभ मुहूर्त का नाम समय अवधि (Time Duration) महत्व
*ब्रह्म मुहूर्त सुबह 05:16 बजे से सुबह 06:07 बजे तक यह समय एकादशी के व्रत का संकल्प लेने और श्रीहरि की पूजा शुरू करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
*प्रातः पूजा समय सुबह 06:58 बजे से सुबह 08:22 बजे तक उदया तिथि में पूजा का शुभ समय।
*अभिजीत मुहूर्त कोई अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है। -
*विजय मुहूर्त दोपहर 02:28 बजे से दोपहर 03:13 बजे तक एकादशी की कथा सुनने और जप/ध्यान के लिए शुभ।
*गोधूलि मुहूर्त शाम 06:10 बजे से शाम 06:36 बजे तक संध्याकाल की पूजा और दीपक जलाने के लिए अति उत्तम।
*निशिता मुहूर्त रात 12:09 बजे से रात 01:00 बजे तक (18 फरवरी) रात्रि जागरण और कीर्तन के लिए सबसे पवित्र समय।
"अशुभ मुहूर्त"
*अशुभ मुहूर्त का नाम समय अवधि (Time Duration)
*राहुकाल दोपहर 12:35 बजे से दोपहर 02:00 बजे
*यमगण्ड सुबह 08:22 बजे से सुबह 09:47 बजे तक
*गुलिक काल सुबह 11:11 बजे से दोपहर 12:35 बजे तक
*भद्रा (विष्टि करण) सुबह 06:58 बजे से शाम 05:31 बजे तक
"पारण करने का समय"
*पारण का समय (Parana Time) समय अवधि (Time Duration)
*हरि वासर समाप्ति (द्वादशी तिथि के प्रारंभ के साथ समाप्त होता है)
*पारण का शुभ मुहूर्त सुबह 06:57 बजे से सुबह 09:12 बजे तक है। इस दौरान लाभ मुहूर्त और अमृत मुहूर्त रहेगा।
"जया एकादशी व्रत का विधान: स्टेप बाय स्टेप पूजा विधि"
जया एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस व्रत का पालन करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करना चाहिए:
*01. व्रत से एक दिन पूर्व (दशमी तिथि)
*शुद्धता: व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को केवल एक बार ही शुद्ध सात्विक (शाकाहारी) भोजन करना चाहिए।
*दशमी के नियम: दशमी के दिन बैंगन, उड़द दाल, मसूर, शहद, चना, गोभी, लहसुन और प्याज जैसी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
*ब्रह्मचर्य: दशमी तिथि की रात से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
2. "एकादशी के दिन" (व्रत का दिन)
*प्रातः स्नान और संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर (प्रातः 04:00 से 06:00 बजे के बीच) स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद हाथ में जल, फूल और चावल लेकर श्रद्धापूर्वक व्रत का संकल्प लें। संकल्प के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें।
*पूजा की तैयारी: पूजा स्थल (मंदिर/घर) को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें। एक चौकी पर पीला या लाल वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु/श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
"षोडशोपचार पूजा":
*सबसे पहले कलश की स्थापना करें।
*भगवान श्रीहरि को तांबे या पीतल के लोटे से जल, दूध (पंचामृत) से स्नान कराएं।
*उन्हें वस्त्र, आभूषण और जनेऊ अर्पित करें।
*धूप जलाएं और दीपक (घी का) प्रज्वलित करें।
*पीले फूल, चावल (अक्षत), कुमकुम (रोली), तिल, अष्टगंध और तुलसी दल अर्पित करें। तुलसी दल के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है।
*भोग: प्रसादी के लिए गेहूं के आटे की पंजीरी, मौसमी फल (केला, आम, आदि), मिठाई और नारियल का भोग लगाएं।
*कथा और पाठ: जया एकादशी की पौराणिक कथा का पाठ करें या सुनें। विष्णु सहस्त्रनाम या भागवत कथा का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
*रात्रि जागरण: एकादशी की रात को सोना नहीं चाहिए। इसके बजाय, भगवान का भजन-कीर्तन करें, मंत्र जाप करें, और पूरी रात जागकर (रात्रि जागरण) बिताएं। रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदायी होता है।
*03. व्रत पारण का दिन (द्वादशी तिथि)
*द्वादशी की पूजा: सुबह उठकर स्नान करें और पुनः भगवान श्रीकृष्ण/विष्णु की पूजा करें। उन्हें भोग लगाएं।
*प्रसाद वितरण: पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करें।
*ब्राह्मण भोजन और दान: अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा (रुपये) और दान (वस्त्र, तिल, अनाज) दें।
*व्रत खोलना (पारण): द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले और हरि वासर (हरिवासर समय व्रत खोलने से वर्जित) समाप्त होने के बाद, शुभ मुहूर्त में स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए।
*आशीर्वाद: पारण से पहले बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद जरूर लें।
"एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें"
*क्या करें (Do's) क्या न करें (Don'ts)
*भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें।
*चावल (अक्षत को छोड़कर), जौ, मसूर, बैंगन, सेम फूलगोभी का सेवन न करें।
*ब्रह्मचर्य का पालन करें।
*लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
*तुलसी के पौधे की पूजा करें और जल चढ़ाएं।
*किसी की निंदा या बुराई न करें।
*दान-पुण्य करें, विशेषकर अन्न, वस्त्र और तिल का दान।
*जुआ, चोरी या किसी प्रकार का पाप न करें।
*दिन में भजन-कीर्तन और रात में जागरण करें।
*गाली-गलौज या अपशब्दों का प्रयोग न करें।
*क्रोध और झूठ बोलने से बचें।
*दिन में सोना एकादशी के दिन वर्जित है (विशेषकर यदि व्रत रखा हो)।
*फलाहार या केवल सात्विक/व्रत का भोजन ग्रहण करें।
*व्रत के दिन पान खाना या दातुन करना वर्जित है।
"जया एकादशी के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं"
*क्या खाएं (Foods to Eat) क्या न खाएं (Foods to Avoid)
*फल: केला, सेब, अंगूर, संतरा, अनार आदि। अनाज: चावल, गेहूं, जौ, मैदा (अक्षत को छोड़कर)।
*सब्जियां: आलू, शकरकंद, अरबी, गाजर, खीरा, टमाटर (कुछ क्षेत्रों में)। दालें: उड़द दाल, मसूर, चना, मूंग दाल।
*दुग्ध उत्पाद: दूध, दही, छाछ, पनीर (शुद्धता का ध्यान रखें)। मसाले: हींग, मेथी, राई, हल्दी (कुछ लोग सफेद मिर्च का उपयोग करते हैं)।
*मेवे: बादाम, काजू, किशमिश, अखरोट। तामसिक खाद्य: लहसुन, प्याज, मांसाहार।
*अन्य: सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक। शहद और कुछ क्षेत्रों में गुड़ भी वर्जित माना जाता है।
"जया एकादशी का आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व"
*01. "आध्यात्मिक महत्व"
*जया एकादशी का आध्यात्मिक महत्व अत्यंत गहरा है:
*पाप-मुक्ति और मोक्ष: यह एकादशी ब्रह्महत्या, गौ-हत्या और पितृदोष जैसे भयंकर पापों से मुक्ति दिलाने में सक्षम मानी जाती है। इसका व्रत करने से व्यक्ति को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है और वह सीधे स्वर्ग लोक या मोक्ष को प्राप्त करता है। यह साक्षात मोक्ष का द्वार है।
*विष्णु कृपा: यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल और सीधा मार्ग है। श्रीहरि की पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
*तपस्या: एकादशी का व्रत एक प्रकार की तपस्या है जो आत्म-नियंत्रण, इंद्रिय निग्रह और वैराग्य की भावना को मजबूत करता है।
02. "वैज्ञानिक महत्व"
*एकादशी व्रत के वैज्ञानिक पहलू भी महत्वपूर्ण हैं:
*पाचन तंत्र को आराम: भारतीय कैलेंडर चंद्रमा की गति पर आधारित है। एकादशी तिथि चंद्र मास का 11वां दिन है। यह माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की स्थिति का पाचन तंत्र पर विशेष प्रभाव पड़ता है। व्रत रखने से पेट को आराम मिलता है, पाचन तंत्र शुद्ध होता है और शरीर विष मुक्त होता है।
*मानसिक एकाग्रता: उपवास से मन शांत होता है। अनाज के सेवन से शरीर में भारीपन आता है, जबकि उपवास से हल्कापन आता है जो ध्यान और मानसिक एकाग्रता में सहायक होता है। रात्रि जागरण से मस्तिष्क की क्रिया शीलता बढ़ती है।
*जैव-घड़ी: यह व्रत शरीर की जैव-घड़ी (बायोलॉजिकल क्लॉक) को चंद्रमा के चक्र के साथ संतुलित करने में सहायक होता है।
*03. "सामाजिक महत्व"
जया एकादशी सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है:
*दान और परोपकार: व्रत के पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है और परोपकार की भावना को मजबूत करता है।
*पारिवारिक एकता: एकादशी के दिन परिवार के सदस्य एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं, जो पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है और धार्मिक मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाता है।
*सांस्कृतिक विरासत: यह व्रत सनातन धर्म की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखता है, जो समाज की पहचान का आधार है।
"जया एकादशी के संबंध में पूछे गए प्रश्न और उत्तर" ("FAQs")
*प्रश्न (Question) उत्तर (Answer)
*जया एकादशी कब पड़ती है?
*जया एकादशी माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है।
*जया एकादशी व्रत किसे समर्पित है?
*यह व्रत भगवान विष्णु (श्रीकृष्ण) को समर्पित है।
*जया एकादशी व्रत का मुख्य लाभ क्या है?
*इस व्रत को करने से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को स्वर्ग/मोक्ष की प्राप्ति होती है।
*एकादशी के दिन चावल क्यों नहीं खाते?
*पौराणिक मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन चावल खाने से अगले जन्म में कीड़े की योनि मिलती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, इस दिन पाचन तंत्र को आराम देने के लिए अनाज का त्याग किया जाता है।
*एकादशी व्रत का पारण कब करना चाहिए?
*द्वादशी तिथि के दिन शुभ मुहूर्त में, हरि वासर का समय समाप्त होने के बाद पारण करना चाहिए। पारण का सही समय पंचांग के अनुसार देखना आवश्यक है।
*एकादशी के दिन तुलसी तोड़ना चाहिए या नहीं?
*एकादशी, द्वादशी, रविवार और सूर्य ग्रहण के दिन तुलसी तोड़ना वर्जित माना जाता है। पूजा के लिए तुलसी के पत्तों को एक दिन पहले ही तोड़कर रख लेना चाहिए।
"जया एकादशी के संबंध में अनसुलझे पहलू और गूढ़ ज्ञान"
*जया एकादशी का गुप्त नाम: जया एकादशी को कुछ प्राचीन ग्रंथों में 'पिचाश मोचनी' (प्रेत योनि से मुक्ति देने वाली) के रूप में भी वर्णित किया गया है। इसका महत्व इतना अधिक है कि अनजाने में भी व्रत करने से व्यक्ति को प्रेत योनि से छुटकारा मिल जाता है, जैसा कि माल्यवान और पुष्पावती की कथा में हुआ था। यह दर्शाता है कि भगवान विष्णु की कृपा असीम और सहज है।
*योग और नक्षत्र का प्रभाव: जया एकादशी के दिन चंद्रमा, नक्षत्र और योग की स्थिति विशेष ऊर्जा का निर्माण करती है। इस दिन मृगशिरा नक्षत्र और विष्काम्भ/प्रीति योग का होना आध्यात्मिक साधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह योग साधना और मंत्र जाप से प्राप्त होने वाले फल को कई गुना बढ़ा देता है।
*निर्जला या फलाहार: यद्यपि माल्यवान और पुष्पावती ने अनजाने में निर्जला व्रत किया था, स्वास्थ्य की दृष्टि से केवल तभी निर्जला व्रत करना चाहिए जब शरीर इसकी अनुमति दे। अन्यथा, फलाहार या एक समय सात्विक फलाहार करके भी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि भगवान श्रीहरि केवल भाव के भूखे हैं।
*कर्मों का बंधन: यह कथा यह भी सिखाती है कि जाने-अनजाने में किए गए सभी कर्मों का फल (श्राप/दंड) भोगना पड़ता है, लेकिन भगवान का नाम (हरि कीर्तन) और धर्म का पालन (एकादशी व्रत) सबसे भयंकर कर्म-बंधनों को भी काट सकता है।
"एकादशी के दिन किस चीज़ पर सोना चाहिए"
*एकादशी के दिन, विशेष रूप से व्रत रखने वाले जातक को जमीन पर सोना (भूमि शयन) चाहिए।
*कारण: यह नियम तपस्या और वैराग्य की भावना को बढ़ाता है। जमीन पर सोने से शरीर में सात्विक ऊर्जा का संचार होता है और भोग-विलास से दूर रहने की प्रेरणा मिलती है।
*रात्रि जागरण: यद्यपि जमीन पर सोने का विधान है, लेकिन जया एकादशी की रात को रात्रि जागरण (भगवान का भजन-कीर्तन करते हुए जागना) करने का विशेष महत्व है, इसलिए यदि संभव हो तो पूरी रात जागना चाहिए।
"डिसक्लेमर" ("Disclaimer")
यह ब्लॉग पोस्ट जया एकादशी व्रत के संबंध में धार्मिक मान्यताओं, पौराणिक कथाओं और सामान्य पूजा विधि पर आधारित है। ज्योतिषीय गणनाएं और धार्मिक विधान क्षेत्र एवं पंचांग भेद के कारण भिन्न हो सकते हैं। किसी भी व्रत या अनुष्ठान को शुरू करने से पहले, अपनी व्यक्तिगत और पारिवारिक परंपराओं का पालन करें। किसी भी विशेष स्वास्थ्य स्थिति या गंभीर बीमारी की स्थिति में, व्रत के नियम (विशेषकर उपवास और जागरण) का पालन करने से पहले डॉक्टर या वैद्य से सलाह लेना अत्यंत आवश्यक है। इस जानकारी का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना है और यह किसी भी प्रकार के व्यावसायिक या चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। हम किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं लेते हैं।
