"02 फरवरी 2027, मंगलवार को षट्तिला एकादशी। जानें इसका पौराणिक महत्व, स्टेप बाय स्टेप पूजा विधि, क्या खाएं-क्या न खाएं, शुभ मुहूर्त और व्रत के अनसुने पहलू। सभी जानकारी एक ही स्थान पर"।
"भगवान श्रीविष्णु के श्रीधर रूप की दिव्य छवि — षट्तिला एकादशी 2027 पर, जब भक्त तिल, दान और उपवास से जीवन में पवित्रता, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं।"
"षट्तिला एकादशी 2027: तिल के छह प्रयोग से पाप मिटाएं, अन्न का भंडार भरें"
पर्व तिथि: 2 फरवरी 2027, मंगलवार
एकादशी तिथि प्रारंभ:1 फरवरी 2027 सुबह 08:14 बजे
एकादशी तिथि समाप्त:2 फरवरी 2027 सुबह 10:43 बजे
व्रत पारण का समय:3 फरवरी 2027, सुबह 06:24 से 09:20 बजे तक। किस दौरान लाभ मुहूर्त, अमृत महोत्सव का सुखद संयोग रहेगा।
माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को षट्तिला एकादशी कहा जाता है। 'षट' का अर्थ है 'छह' और 'तिल' यानी तिल। इस व्रत में तिल के छह अलग-अलग प्रकार से उपयोग (स्नान, उबटन, तिलक, भोजन, हवन और दान) का विशेष महत्व है, इसीलिए इसका नाम षट्तिला एकादशी पड़ा। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और मान्यता है कि इसे करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट होते हैं, घर में धन-धान्य और अन्न का भंडार भर जाता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
"षट्तिला एकादशी 2027 का शुभ मुहूर्त और विशेष योग"
2 फरवरी 2027, मंगलवार के दिन षट्तिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। पंचांग के अनुसार इस दिन की कुछ प्रमुख खगोलीय स्थितियां इस प्रकार होंगी:
· सूर्य: मकर राशि में
· चंद्रमा: वृश्चिक राशि से निकलकर धनु राशि में प्रवेश करेंगे।
· नक्षत्र: ज्येष्ठा नक्षत्र
· योग: सिद्धि योग (अति शुभ)
"पूजा के लिए शुभ मुहूर्त" (2 फरवरी 2027)
*अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:10 से 12:54 बजे तक (सर्वाधिक शुभ)
*विजया मुहूर्त: दोपहर 02:22 से 03:06 बजे तक
*गोधूलि मुहूर्त: सायं 05:54 से 06:18 बजे तक
*निशिता मुहूर्त: रात्रि 12:05 से 12:57 बजे तक (जागरण के लिए शुभ)
*ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 04:42 से 05:33 बजे तक (पूजा के लिए उत्तम)
"चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार शुभ समय" (2 फरवरी 2027)
*चर मुहूर्त: सुबह 09:00 से 10:30 बजे तक
*लाभ मुहूर्त: सुबह 10:30 से 12:00 बजे तक
*अमृत मुहूर्त: दोपहर 01:30 से 03:00 बजे तक
"पूजा के लिए वर्जित समय" (इन समय में पूजा न करें)
*यमगंड काल: दोपहर 10:35 से 11:59 बजे तक
*गुलिक काल: दोपहर 01:22 से 02:46 बजे तक
*राहु काल: सुबह 07:48 से 09:12 बजे तक
*व्रतधारियों के लिए अशुभ चौघड़िया:
· : *रोग सुबह 06:00 से 07:30 बजे तक एवं सायं 04:30 से 06:00 बजे तक
· : *उद्वेग दोपहर 12:00 से 01:30 बजे तक
*काल: दोपहर 03:00 से 04:30 बजे तक
"षट्तिला एकादशी की पौराणिक कथा"
प्राचीन काल की बात है। धर्मतीर्थ नामक एक स्थान पर दाल्भ्य नाम के एक महान ऋषि रहते थे। एक बार पुलस्त्य मुनि उनके आश्रम में पधारे। दाल्भ्य ऋषि ने उनका खूब आदर-सत्कार किया और फिर हाथ जोड़कर एक प्रश्न किया।
दाल्भ्य ऋषि बोले, "हे महर्षि पुलस्त्य! आप समस्त वेदों और शास्त्रों के ज्ञाता हैं। मेरे मन में एक शंका है, कृपया इसका समाधान करें। इस पृथ्वी लोक पर मनुष्य अनेक प्रकार के पाप करते हैं। कोई ब्रह्महत्या का दोषी बनता है, कोई गौ हत्या करता है, कोई परस्त्री गमन करता है, तो कोई पराये धन को हड़प लेता है।
दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या और द्वेष की अग्नि में जलते रहते हैं। ऐसे असंख्य पापों में लिप्त होने के बाद भी कई लोगों को नर्क की प्राप्ति नहीं होती। क्या कारण है? क्या वे कोई ऐसा गुप्त दान या पुण्य करते हैं जिससे उनके सारे पाप धुल जाते हैं? हे मुनिवर, कृपया मुझे इस रहस्य से अवगत कराएं।"
पुलस्त्य मुनि मुस्कुराए और बोले, "हे दाल्भ्य! तुमने अत्यंत गंभीर और हितकारी प्रश्न पूछा है। यह रहस्य ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इंद्र आदि देवताओं को भी पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं है, किंतु तुम्हारी जिज्ञासा शांत करने के लिए मैं तुम्हें यह गुप्त रहस्य बताता हूं।"
"माघ मास के आगमन के साथ ही मनुष्य को प्रातःकाल स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में करके काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईर्ष्या का त्याग करके सदैव भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास और तिल मिलाकर उनके कंडे (उपले) बनाने चाहिए और उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए। यदि उस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र और एकादशी तिथि का संयोग हो तो अत्यंत पुण्य दायी होता है।"
"उस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर सभी देवताओं के आराध्य श्रीहरि विष्णु का पूजन करके एकादशी का व्रत धारण करना चाहिए। रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण अवश्य करना चाहिए। अगले दिन धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगाएं।
इसके पश्चात नारियल, केला, सीताफल और सुपारी आदि से अर्घ्य देकर स्तुति करनी चाहिए - 'हे भगवान! आप दीनों के दीनबंधु और संसार सागर से तारने वाले हैं। हे श्रीकृष्ण, हे श्रीहरि, हे विष्णु, हे जगत पिता! आप लक्ष्मीजी सहित मेरे इस अर्घ्य को स्वीकार करें।'"
"इसके बाद जल से भरा एक घड़ा, काली गाय और तिल से भरा पात्र ब्राह्मण को दान में देना चाहिए। तिल स्नान और भोजन दोनों ही दृष्टि से श्रेष्ठ हैं। जो मनुष्य जितने अधिक तिलों का दान करता है, वह उतने हजारों वर्षों तक स्वर्ग में वास करता है।
"इस व्रत में तिल के छह प्रकार के उपयोग का विधान है, इसीलिए इसका नाम षट्तिला एकादशी है"। ये छह प्रयोग इस प्रकार हैं:
*01. तिल मिश्रित जल से स्नान करना।
*02. तिल को पीसकर शरीर पर उबटन लगाना।
*03. तिलक लगाने के लिए तिल का प्रयोग करना।
*04. तिल मिश्रित जल का सेवन करना।
*05. तिल युक्त भोजन करना।
*06. तिल का हवन और दान करना।
"इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के अनेकों जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।"
इतना कहकर पुलस्त्य मुनि ने दाल्भ्य ऋषि से कहा, "अब मैं तुम्हें इस एकादशी की पावन कथा सुनाता हूँ, जो स्वयं भगवान श्रीहरि ने देवर्षि नारद को सुनाई थी।"
एक बार देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु से भी यही प्रश्न किया था। भगवान विष्णु बोले, "हे नारद! मैं तुम्हें एक सत्य घटना सुनाता हूं।"
"पृथ्वी लोक पर एक ब्राह्मणी रहती थी। वह अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति की थी और नियमित रूप से व्रत-उपवास करती थी। एक बार उसने लगातार एक महीने तक व्रत रखा, जिससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह बुद्धिमान थी, किंतु उसने कभी भी देवताओं या ब्राह्मणों के लिए अन्न या धन का दान नहीं किया था।"
"मैंने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपने शरीर को तो शुद्ध कर लिया है और उसे विष्णुलोक प्राप्त होगा, परंतु अन्न दान न करने के कारण उसकी तृप्ति नहीं हो पाएगी। इसलिए, मैं एक भिखारी का वेश धारण करके उसके पास पहुंचा और भिक्षा मांगी।"
"ब्राह्मणी ने पूछा, 'महाराज, आप क्या चाहते हैं?' मैंने कहा, 'मुझे भिक्षा चाहिए।' उसने मेरे भिक्षापात्र में एक मिट्टी का पिंड डाल दिया। मैं उसे लेकर वैकुंठ लौट आया। कुछ समय बाद वह ब्राह्मणी स्वर्ग लोक में आई। मिट्टी दान करने के पुण्य के कारण उसे स्वर्ग में एक सुंदर महल तो मिला, किंतु उसने देखा कि उसका घर अन्न, धन और सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से रिक्त है।"
"वह घबराकर मेरे पास आई और बोली, 'हे प्रभु! मैंने अनेक कठिन व्रत रखे और आपकी पूजा की, फिर भी मेरा घर सभी वस्तुओं से शून्य क्यों है?'"
"मैंने कहा, 'हे ब्राह्मणी! पहले तुम अपने घर लौट जाओ। कुछ देर बाद देव स्त्रियां तुम्हें देखने आएंगी। तुम द्वार बंद कर लेना और जब वे तुमसे द्वार खोलने के लिए कहें, तो तुम उनसे षट्तिला एकादशी का माहात्म्य और व्रत विधि सुनने की इच्छा प्रकट करना। जब वे तुम्हें यह ज्ञान दे दें, तभी द्वार खोलना।'"
"ब्राह्मणी ने ऐसा ही किया। जब देवांगनाएं आईं और द्वार खोलने को कहा, तो ब्राह्मणी ने कहा, 'यदि आप लोग मुझे षट्तिला एकादशी का माहात्म्य सुनाएंगी, तभी मैं द्वार खोलूंगी।'"
"देव स्त्रियों में से एक ने कहा, 'ठीक है, मैं तुम्हें बताती हूं।' और उसने ब्राह्मणी को षट्तिला एकादशी के व्रत का सम्पूर्ण विधान बता दिया। इसके बाद ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया। देवस्त्रियों ने देखा कि वह पहले जैसी साधारण मानवी ही है।"
"ब्राह्मणी ने देव स्त्रियों से सीखी हुई विधि के अनुसार षट्तिला एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से वह अत्यंत सुंदर और रूपवती हो गई और उसका स्वर्गिक महल अन्न, धन और ऐश्वर्य से परिपूर्ण हो गया।"
"इस प्रकार, हे नारद, षट्तिला एकादशी का व्रत संसार के सभी दुःखों को दूर करने वाला और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।"
"षट्तिला एकादशी की स्टेप बाय स्टेप पूजा विधि"
"षट्तिला एकादशी का व्रत रखने और पूजन करने की विस्तृत विधि इस प्रकार है":
*चरण 01: "पूर्व तैयारी" (एकादशी से एक दिन पहले -स्नान करें इसके बाद पूजा करने का संकल्प लें।
*01.दशमी के दिन संयमित रहें, ब्रह्मचर्य का पालन करें।
*02.रात्रि में सात्विक भोजन करें और मन को भगवान विष्णु में लगाएं।
चरण 02: "एकादशी के दिन प्रातः क्रिया" (2 फरवरी 2027)
*01.ब्रह्म मुहूर्त (सुबह लगभग 5:30 बजे) में उठें।
*02.स्नान करने से पहले तिल को पानी में मिलाकर उससे स्नान करें (पहला प्रयोग)।
*03.स्नान के बाद तिल को पीसकर उबटन के रूप में शरीर पर लगाएं (दूसरा प्रयोग)।
*04.स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
चरण 03: "संकल्प और आसन"
*01.पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहां आसन बिछाएं।
*02.एक कलश में जल भरकर, उस पर रोली-चावल से स्वस्तिक बनाएं और उसे पूजा स्थल पर रखें।
*03.भगवान विष्णु या शालिग्राम की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
*04.हाथ में जल, फूल और चावल लेकर संकल्प लें: "मैं अमुक (अपना नाम) भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए षट्तिला एकादशी का व्रत एवं पूजन करता/करती हूँ। मेरे इस व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न हों और मुझे सभी सुखों की प्राप्ति हो।"
चरण 04: "भगवान विष्णु का षोडशोपचार पूजन"
*01.आवाहन: भगवान विष्णु को अपने हृदय में धारण करते हुए मूर्ति/चित्र में आमंत्रित करें।
*02.आसन: भगवान को आसन अर्पित करें।
*03.पाद्य: चरणों को धोने के लिए जल अर्पित करें।
*04.अर्घ्य: तिल, चावल, फूल और जल से अर्घ्य दें।
*05.आचमनीय: शुद्ध जल से आचमन कराएं।
*06.स्नान: पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से और फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं।
*07.वस्त्र: पीले वस्त्र अर्पित करें।
*08.यज्ञोपवीत (जनेऊ): जनेऊ अर्पित करें।
*09.गंध: चंदन का लेप लगाएं।
*10.पुष्प: तुलसी दल सहित फूल अर्पित करें। (विशेष: भगवान विष्णु के पूजन में चावल के स्थान पर तिल का प्रयोग करें)।
*12.धूप: घी की बत्ती या तिल के तेल का दीपक जलाएं और धूपबत्ती दिखाएं।
*13.नैवेद्य: फल, मिठाई और तिल से बने पकवान (जैसे तिल के लड्डू) भोग लगाएं। खिचड़ी का भोग विशेष रूप से लगाएं।
*14.ताम्बूल: पान का बीड़ा अर्पित करें।
*15.आरती: भगवान विष्णु की आरती करें ("ॐ जय जगदीश हरे")।
*16.परिक्रमा: आरती के बाद 5 या 7 परिक्रमा करें।
*17.प्रार्थना: हाथ जोड़कर भगवान से अपनी श्रद्धानुसार प्रार्थना करें।
*18.विसर्जन: भगवान को विदा करते हुए, उनसे अगले दिन पारण तक पूजा स्थल पर विराजमान रहने का अनुरोध करें।
चरण 05: "तिल के शेष प्रयोग और दान"
*01.दोपहर में तिल मिश्रित जल का सेवन करें (चौथा प्रयोग)।
*02.सायंकाल के समय तिल से बना सात्विक भोजन ग्रहण करें (पांचवां प्रयोग)।
*03.ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को तिल, अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान करें (छठा प्रयोग)।
*04.यदि संभव हो तो तिल का हवन भी करें।
चरण 06: "रात्रि जागरण"
*01.रात्रि में भजन-कीर्तन, विष्णु सहस्रनाम का पाठ या धार्मिक कथाओं का श्रवण करते हुए जागरण करें।
चरण 07: द्वादशी को पारण (व्रत खोलना)
*01.अगले दिन (3 फरवरी 2027) द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद, शुभ मुहूर्त (सुबह 07:13 से 09:20 बजे तक) में पारण करें।
*02.पहले भगवान विष्णु का पूजन करें, फिर ब्राह्मण या किसी बुजुर्ग को भोजन कराएं, उसके बाद स्वयं सात्विक भोजन ग्रहण करें।
"षट्तिला एकादशी के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं" (व्रत नियम)
"क्या खाएं" (सात्विक आहार):
*01.फल: सभी प्रकार के फल।
*02.दूध及उसके उत्पाद: दूध, दही, घी, पनीर।
*03.मेवे: बादाम, अखरोट, किशमिश।
*04.व्रत के अन्न: सिंघाड़े का आटा, समा के चावल, कुट्टू का आटा, साबुदाना।
*05.मिठाई: तिल के लड्डू, मखाने की खीर, फलाहारी हलवा।
*06.विशेष: तिल से बने पदार्थों का सेवन अवश्य करें। खिचड़ी (समा के चावल और सिंघाड़े के आटे की) का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।
"क्या न खाएं" (वर्जित आहार):
*01.अनाज: चावल, गेहूं, जौ आदि सभी अनाज वर्जित हैं।
*02.मसाले: हिंग (असफोएटिडा), हल्दी, जीरा, धनिया आदि सामान्य मसाले न डालें। सेंधा नमक का प्रयोग करें।
*03.प्याज-लहसुन: इनका सेवन पूर्णतः वर्जित है।
*04.मांस-मदिरा: सभी प्रकार के मांसाहार और मदिरा का त्याग करें।
*05.तामसिक भोजन: बासी या फास्ट फूड आदि न खाएं।
"षट्तिला एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें"
"क्या करें":
*01. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
*02. सत्य बोलें और दीन-दुखियों की मदद करें।
*03. "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
*04. क्रोध, ईर्ष्या और लोभ से दूर रहें।
*05. तिल के छह प्रयोग अवश्य करें।
*06. रात्रि जागरण करें।
*07. अन्न और तिल का दान अवश्य करें।
"क्या न करें":
*01. किसी का अपमान या बुराई न करें।
*02. झूठ न बोलें।
*03. दिन में सोएं नहीं।
*04. तेल की मालिश न करें (तिल के उबटन को छोड़कर)।
*05. किसी भी प्रकार का नशा न करें।
*06. व्रत को बिना संकल्प लिए न रखें।
"षट्तिला एकादशी के अनसुने पहलू"
*01. मकर संक्रांति का विस्तार: मकर संक्रांति पर तिल दान का महत्व सभी जानते हैं, लेकिन षट्तिला एकादशी मकर संक्रांति के पुण्य प्रभाव को और बढ़ाने वाली तिथि मानी जाती है। यह तिल के पुण्य को स्थायी रूप से जीवन में स्थापित करती है।
*02. कृषि से जुड़ाव: यह एकादशी माघ माह में आती है, जो रबी की फसल के पकने का समय होता है। इस दिन अन्न दान का विधान इस बात का प्रतीक है कि ईश्वर की कृपा से प्राप्त अन्न का एक हिस्सा समाज के कल्याण के लिए अवश्य देना चाहिए।
*03. छह प्रयोगों का रहस्य: तिल के छह प्रयोग शरीर, मन और आत्मा के शुद्धिकरण की एक समग्र प्रक्रिया है। स्नान और उबटन से बाहरी शुद्धि, भोजन और जल से आंतरिक शुद्धि, और हवन व दान से आध्यात्मिक शुद्धि होती है।
*04. मिट्टी के दान का महत्व: कथा में मिट्टी के पिंड दान का उल्लेख है। यह इस बात का द्योतक है कि ईश्वर भक्त की भावना को महत्व देता है, चाहे दान में दी गई वस्तु का बाह्य मूल्य कुछ भी हो। साथ ही, यह पृथ्वी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी एक तरीका है।
"षट्तिला एकादशी से संबंधित प्रश्नोत्तर" (FAQs)
प्रश्न 1: क्या षट्तिला एकादशी का व्रत बिना तिल के प्रयोग के रख सकते हैं?
उत्तर:व्रत रखा जा सकता है, लेकिन इसका पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब तिल के छह प्रयोग किए जाएं। तिल इस व्रत की आत्मा हैं।
प्रश्न 2: अगर मैं पूरा दिन व्रत नहीं रख सकता, तो क्या करूं?
उत्तर:आप फलाहारी व्रत रख सकते हैं। कोशिश करें कि अनाज और प्याज-लहसुन का सेवन न करें। तिल से बनी एक वस्तु (जैसे लड्डू) अवश्य ग्रहण करें और थोड़े से तिल का दान अवश्य कर दें।
प्रश्न 3: क्या गर्भवती महिलाएं या बीमार व्यक्ति यह व्रत रख सकते हैं?
उत्तर:हाँ, लेकिन स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए। वे फलाहार कर सकती हैं/सकते हैं। व्रत के नियमों का पालन करने की इच्छा शक्ति ही मुख्य है। किसी भी तरह की स्वास्थ्य समस्या हो तो डॉक्टर की सलाह लें।
प्रश्न 4: तिल का दान किसे करना चाहिए?
उत्तर:किसी योग्य ब्राह्मण, धार्मिक संस्थान, या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान दिया जा सकता है। महत्व भावना का है।
प्रश्न 5: क्या इस दिन चावल (Rice) वर्जित हैं?
उत्तर:जी हां, सामान्यतः सभी एकादशियों पर चावल खाना वर्जित माना गया है। षट्तिला एकादशी पर तो विशेष रूप से चावल के स्थान पर तिल का प्रयोग करने पर जोर दिया गया है।
"डिस्क्लेमर"
यह लेख केवल सूचनात्मक और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, पुराणों और पंचांगों पर आधारित है। पूजा-विधि और मुहूर्त समय अलग-अलग स्थानों और मान्यताओं के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या व्रत को करने से पहले अपने कुल परंपरा, गुरु या किसी योग्य पंडित से सलाह अवश्य लें। लेखक और प्रकाशक इस जानकारी के उपयोग या दुरुपयोग से होने वाले किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। व्रत रखते समय अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें, विशेषकर यदि आप गर्भवती हैं, मधुमेह, उच्च रक्तचाप या कोई अन्य गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। धार्मिक मान्यताएं व्यक्तिगत होती हैं।
