पौष पुत्रदा एकादशी 2027: 19 जनवरी 2027, मंगलवार को पौष पुत्रदा एकादशी का पावन व्रत है। जानें इस व्रत की विस्तृत पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त, स्टेप बाय स्टेप पूजा विधि, क्या करें और क्या न करें, तथा संतान प्राप्ति के इस शक्तिशाली व्रत के रहस्य।
🌿 “पौष पुत्रदा एकादशी 2027 — भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से संतान सुख की प्राप्ति का शुभ अवसर।”
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पौष पुत्रदा एकादशी 2027: परिचय एवं महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व है। पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी या वैकुंठ एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत संतान प्राप्ति और पारिवारिक सुख-शांति के लिए किया जाता है। 19 जनवरी 2027, मंगलवार को यह पावन व्रत रखा जाएगा। मान्यता है कि इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। संतानहीन दंपत्तियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना गया है।
पौष पुत्रदा एकादशी 2027 का शुभ मुहूर्त
निम्नलिखित तालिका में पौष पुत्रदा एकादशी 2027 की तिथि एवं मुहूर्त की सटीक जानकारी दी गई है:
मुहूर्त का प्रकार दिनांक समय
एकादशी तिथि प्रारंभ 18 जनवरी 2027 रात 09:59 बजे
एकादशी तिथि समाप्त 19 जनवरी 2027 रात 08:17 बजे
व्रत का दिवस 19 जनवरी 2027 (संपूर्ण दिवस)
पारण (व्रत विसर्जन) का शुभ मुहूर्त 20 जनवरी 2027 सुबह 07:22 से 09:04 बजे तक
ब्रह्म मुहूर्त (पूजन हेतु) 19 जनवरी 2027 सुबह 04:42 से 05:35 बजे तक
अभिजित मुहूर्त (पूजन हेतु) 19 जनवरी 2027 दिन में 12:06 से 12:51 बजे तक
नोट: उदया तिथि के अनुसार व्रत 19 जनवरी को ही रखा जाएगा।
पौष पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा (विस्तारित रूप -
पद्म पुराण में वर्णित पुत्रदा एकादशी की कथा अत्यंत प्रसिद्ध और मनोरंजक है। यह कथा न केवल व्रत के महत्व को बताती है, बल्कि मनुष्य के जीवन में संतान सुख की अनिवार्यता को भी रेखांकित करती है।
भद्रावती नगरी और राजा सुकेतुमान
प्राचीन काल में भद्रावती नगरी नामक एक समृद्ध नगरी थी, जिस पर राजा सुकेतुमान राज्य करते थे। राजा धर्मात्मा, न्यायप्रिय और प्रजापालक थे। उनकी पत्नी, रानी शैव्या, सद्गुणों की खान थीं। राज्य में चारों ओर समृद्धि थी, राजकोष धन-धान्य से भरा हुआ था, सेना शक्तिशाली थी, और प्रजा सुखी थी। किंतु, इस सबके बीच एक बड़ा कष्ट राजा-रानी को सदैव खाए जाता था - उनके कोई संतान नहीं थी।
रानी शैव्या निपुत्री होने के कारण सदैव उदास रहने लगीं। वह बाग-बगीचों में घूमती, पक्षियों को अपने बच्चों को दाना खिलाते देखती और मन ही मन रो पड़तीं। राजा सुकेतुमान का मन भी इसी चिंता में डूबा रहता। वह सोचते, "इस विशाल राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा? मेरे स्वर्गवास के बाद पिंडदान कौन करेगा? पितृऋण और देवऋण से मुक्ति कैसे मिलेगी?" उनके पितर भी स्वप्न में आ-आकर रोते हुए दिखाई देते, यह सोचकर कि इसके बाद हमें तर्पण करने वाला कोई नहीं बचेगा।
जंगल की यात्रा और मन की व्यथा
एक दिन, यही चिंता करते-करते राजा ने अपने राजमहल से निकलकर जंगल की ओर प्रस्थान करने का निश्चय किया। वह अपने घोड़े पर सवार होकर गहन वन में चले गए। वन का प्राकृतिक सौंदर्य मनमोहक था। पक्षी चहचहा रहे थे, फूल खिले हुए थे, और हरियाली चारों ओर फैली हुई थी। किंतु राजा का मन इन सबमें नहीं लग रहा था।
उन्होंने देखा कि वन के सभी प्राणी अपने-अपने बच्चों के साथ विहार कर रहे हैं। एक हाथी अपने शावकों के साथ खेल रहा था, पक्षी अपने घोंसलों में बच्चों को दाना खिला रहे थे, यहाँ तक कि जंगली सूअर भी अपने बच्चों के झुंड के बीच खुश थे। यह सब देखकर राजा का हृदय और भी दुखी हो गया। उन्हें लगा कि इस संसार में उनके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ भी नहीं है।
दिन का आधा भाग बीत गया था। भूख-प्यास से व्याकुल राजा पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। काफी खोजबीन के बाद उन्हें एक अद्भुत सरोवर दिखाई दिया। वह सरोवर अत्यंत मनोरम था। उसके जल में कमल के फूल खिले हुए थे, और सारस, हंस, मोर आदि पक्षी उसके किनारों पर विचरण कर रहे थे। सरोवर के चारों ओर ऋषि-मुनियों के आश्रम बने हुए थे, जहाँ से वेदों के मंत्रों की ध्वनि गूंज रही थी।
विश्वदेवों से भेंट और वरदान
तभी राजा के दाहिने नेत्र और अंग फड़कने लगे, जिसे शुभ शकुन मानकर उन्होंने घोड़े से उतरकर मुनियों के समीप जाने का निश्चय किया। उन्होंने देखा कि कई मुनि एकत्रित बैठे हैं। राजा ने विनम्रतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और एक ओर बैठ गए।
मुनियों ने प्रसन्न होकर कहा, "हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। हम विश्वदेव हैं और आज पुत्रदा एकादशी के पावन अवसर पर इस पवित्र सरोवर में स्नान करने आए हैं। बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है?"
राजा ने कहा, "हे मुनिश्रेष्ठों! सर्वप्रथम आप यह बताएं कि आप कौन हैं और यहाँ किस प्रयोजन से आए हैं?"
मुनियों ने उत्तर दिया, "हे राजन! आज पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है, जिसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं। यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए अत्यंत फलदायी है। हम विश्वदेव हैं और इसी व्रत के अवसर पर यहां आए हैं।"
यह सुनकर राजा का हृदय प्रसन्नता से भर गया। उन्होंने तुरंत हाथ जोड़कर अपनी व्यथा कह सुनाई, "हे देवतुल्य मुनियों! मैं धन-धान्य से परिपूर्ण हूँ, किंतु संतान सुख से वंचित हूँ। यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो कृपा करके मुझे पुत्र रत्न का वरदान दें।"
मुनि बोले, "हे राजन! आज का दिन तुम्हारे लिए अत्यंत शुभ है। तुम इस पुत्रदा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। हमें विश्वास है कि भगवान विष्णु की कृपा से अवश्य ही तुम्हारे घर एक तेजस्वी पुत्र का जन्म होगा।"
व्रत का पालन और फलस्वरूप पुत्र प्राप्ति
मुनियों के आदेशानुसार, राजा सुकेतुमान ने उसी दिन पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा। उन्होंने पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की, रात्रि जागरण किया और अगले दिन द्वादशी को मुनियों को प्रणाम करके उचित समय पर व्रत का पारण किया। इसके बाद वह राजमहल लौट आए।
कुछ समय बीतने के बाद, रानी शैव्या ने गर्भ धारण किया। नौ माह के पश्चात उन्होंने एक सुंदर, तेजस्वी और स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। समय के साथ वह राजकुमार बड़ा हुआ और अत्यंत बलशाली, विद्वान तथा प्रजापालक राजा के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार, पुत्रदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा सुकेतुमान को संतान सुख की प्राप्ति हुई।
कथा का सारांश: यह कथा हमें सिखाती है कि श्रद्धा और विधिपूर्वक किया गया व्रत भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। वे अपने भक्तों के कष्ट अवश्य दूर करते हैं और उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।
पूजा सामग्री की सूची
पुत्रदा एकादशी की पूजा को संपन्न करने के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी:
· भगवान विष्णु या बाल गोपाल की मूर्ति या चित्र
· पूजा की मूल सामग्री: गंगाजल, लाल या पीला वस्त्र, चंदन, रोली, मोली, अक्षत, पुष्प, तुलसी दल
· नैवेद्य एवं फल: फल (विशेषकर नारियल, आम, केला, अनार, बेर), पंचमेवा, मिष्ठान (या खीर), लौंग, इलायची, बादाम
· अन्य सामग्री: धूप, दीप (घी का दीया), घंटी, शंख, पान-सुपारी, आम के पत्ते
पूजा विधि: स्टेप बाय स्टेप मार्गदर्शन
1. पूर्व तैयारी एवं संकल्प: एकादशी से एक दिन पहले (दशमी) से ही ब्रह्मचर्य का पालन करें। मांस-मदिरा, प्याज-लहसुन, मसूर की दाल आदि तामसिक पदार्थों का त्याग कर दें। व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करके वहाँ पीला या लाल कपड़ा बिछाएं। भगवान विष्णु या बाल गोपाल की मूर्ति स्थापित करें।
2. अभिषेक एवं श्रृंगार: भगवान विष्णु का गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, मध, शक्कर) से अभिषेक करें। फिर स्वच्छ जल से स्नान कराएं। भगवान को पीला वस्त्र (पीतांबर) अर्पित करें। चंदन का लेप लगाएं, अक्षत और पुष्पमाला अर्पित करें।
3. धूप-दीप एवं नैवेद्य: भगवान को धूप दें। घी का दीपक जलाएं। विशेष रूप से इस दिन दीपदान का बहुत महत्व है। इसके बाद, फल, मिठाई, पंचमेवा आदि का नैवेद्य अर्पित करें। नैवेद्य में तुलसी दल अवश्य रखें।
4. मंत्र जप एवं आरती: भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करें। सबसे सरल और शक्तिशाली मंत्र है 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय'। इसके अलावा विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा या गीता का पाठ करें। अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारें।
5. प्रसाद वितरण एवं दान: पूजा समाप्त होने के बाद भगवान को अर्पित किया गया प्रसाद सभी परिवारजनों, मित्रों में बाँटें। यथाशक्ति गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्नदान या वस्त्रदान अवश्य करें।
एकादशी व्रत में क्या करें और क्या न करें (Do's and Don'ts)
एकादशी व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है।
क्या करें (Do's):
· सात्विक आहार: व्रत के दिन फल, दूध, मेवे, साबुदाना, आलू आदि सात्विक आहार का ही सेवन करें।
· मौन एवं सदाचार: जितना possible हो सके मौन रहने का प्रयास करें। कठोर या दुःख देने वाले शब्द न बोलें। सत्य बोलें।
· रात्रि जागरण एवं कीर्तन: रात में भजन-कीर्तन करें, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या धार्मिक कथाओं का श्रवण करें। रात्रि जागरण का विशेष फल माना जाता है।
· दानधर्म: यथाशक्ति अन्न, वस्त्र या धन का दान करें।
क्या न करें (Don'ts):
· तामसिक पदार्थ: मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन, मसूर की दाल आदि का सेवन वर्जित है।
· हिंसा एवं छेदन कर्म: किसी भी प्रकार की हिंसा से बचें। पेड़ों से पत्ते या फूल न तोड़ें। जमीन पर गिरे हुए पत्तों का उपयोग करें। झाड़ू न लगाएँ क्योंकि इससे सूक्ष्म जीवों की मृत्यु हो सकती है।
· कुसंगति: दुराचारी, चोर या पाखंडी लोगों के संपर्क से बचें।
· क्रोध एवं ईर्ष्या: मन को शांत रखें। क्रोध, ईर्ष्या, वासना आदि विकारों से दूर रहें।
एकादशी व्रत के अनसुलझे पहलू
एकादशी व्रत से जुड़े कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो अक्सर लोगों के मन में उठते हैं:
1. क्या पुत्रदा एकादशी का व्रत केवल स्त्रियों को ही करना चाहिए? बिल्कुल नहीं। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले पुरुष भी यह व्रत कर सकते हैं। कथा में राजा सुकेतुमान ने स्वयं यह व्रत किया था।
2. यदि व्रत टूट जाए तो क्या करें? यदि अनजाने में कोई त्रुटि हो जाए तो घबराएँ नहीं। भगवान विष्णु से क्षमा याचना करें और अगली एकादशी से पुनः व्रत का संकल्प लें। भावना सबसे महत्वपूर्ण है।
3. क्या पहले से संतान होने पर यह व्रत किया जा सकता है? हाँ, संतान के दीर्घायु, स्वस्थ और सुखमय जीवन की कामना के लिए भी यह व्रत किया जा सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. पुत्रदा एकादशी का व्रत कौन कर सकता है?
संतान प्राप्तिकी इच्छा रखने वाला कोई भी स्त्री या पुरुष यह व्रत कर सकता है। जिनके संतान हैं, वे संतान के दीर्घायुष्य और कल्याण के लिए भी यह व्रत रख सकते हैं।
2. व्रत का पारण कब करना चाहिए?
एकादशीके अगले दिन द्वादशी तिथि पर, सूर्योदय के बाद पारण करना चाहिए। 2027 में, पारण 20 जनवरी को सुबह 07:22 से 09:04 बजे के बीच करना श्रेष्ठ रहेगा।
3. अधूरे व्रत का क्या फल मिलता है?
श्रद्धा से किया गया कोई भी व्रत अधूरा नहीं होता। यदि स्वास्थ्य समस्याओं के कारण कोई व्यक्ति पूरा व्रत नहीं कर पाता, तो फलाहार लेकर साधारण विधि से व्रत का पालन किया जा सकता है। भावना सबसे महत्वपूर्ण है।
4. व्रत में किस प्रकार का आहार लेना चाहिए?
व्रत में सात्विक आहार लेना चाहिए। फल, सिंघाड़े के आटे की पूरी, साबुदाने की खिचड़ी, दूध, दही, मेवे आदि खा सकते हैं। निर्जला व्रत न करने वाले फलाहार में नमक का प्रयोग कर सकते हैं।
निष्कर्ष
पौष पुत्रदा एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि भगवान विष्णु की कृपा पाने का एक शक्तिशाली आध्यात्मिक माध्यम है। श्रद्धा, निष्ठा और विधिपूर्वक किया गया यह व्रत भक्त के जीवन के सभी कष्टों को दूर कर संतान सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करता है। वर्ष 2027 में यह एक अद्भुत अवसर है अपने आध्यात्मिक सफर की शुरुआत करने या अपनी मनोकामना पूरी करने का।
डिस्क्लेमर
यह लेख केवल सूचनात्मक और शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथों जैसे पद्म पुराण, विभिन्न विश्वसनीय हिंदी वेबसाइट्स (जैसे जागरण, वेबदुनिया), और सनातन परंपरा के विद्वानों के विचारों पर आधारित है। तिथि और मुहूर्त संबंधी जानकारी वैदिक पंचांग के अनुसार दी गई है, जो भौगोलिक स्थिति के अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती है।
लेख में दी गई किसी भी जानकारी को अंतिम सत्य न माना जाए। किसी भी धार्मिक कृत्य या व्रत-उपवास को करने से पहले, संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिषी या धर्मगुरु) से उचित सलाह अवश्य लें। लेखक और प्रकाशक इस जानकारी के उपयोग, दुरुपयोग या गलत व्याख्या से उत्पन्न होने वाली किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हानि के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने विवेक और श्रद्धा के अनुसार कार्य करें। यह लेख धार्मिक जागरूकता फैलाने और सनातन संस्कृति के प्रसार के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी प्रकार की व्यावसायिक सलाह देने का यह उद्देश्य नहीं है।