"योगिनी एकादशी सह देवरहा बाबा जयंती 2026: जानिए पूजन विधि, मुहूर्त व दो दुर्लभ पौराणिक कथाएं"

"आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि, दिन शुक्रवार, 10 जुलाई 2026 को योगिनी एकादशी और देवरहा बाबा का जयंती है"। 

Picture of Yogini Ekadashi

🌸 "योगिनी एकादशी 2026 – मोक्षदायिनी व्रत पर भगवान विष्णु का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें" 🌸

"मेरे ब्लॉग में पढ़ें नीचे दिए गए विषयों के संबंध में विस्तृत जानकारी" 

*01. योगिनी एकादशी 2026: तिथि और शुभ मुहूर्त

*02. योगिनी एकादशी का धार्मिक महत्व और फल

*03. विधि-विधान से योगिनी एकादशी व्रत पूजन विधि

*04. योगिनी एकादशी व्रत में क्या करें और क्या न करें

*05. पौराणिक कथा 1: हेम माली और राजा कुबेर का उद्धार

*06. पौराणिक कथा 2: धर्मराज युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण का संवाद

*07. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

*08. देवरहा बाबा के बारे में संक्षिप्त विवरण 

*09. डिस्क्लेमर

"हर वर्ष आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले एकादशी को योगिनी एकादशी या योगशयनी एकादशी भी कहते हैं। योगिनी एकादशी व्रत कथा के वक्ता अर्थात कथाकार भगवान श्रीकृष्ण और ऋषि मार्कण्डेय थे जबकि धर्मराज युधिष्ठिर और हेम माली श्रोता थे। जानकारी के अनुसार मेघदूत की रचना करते समय कालिदास ने एक शापित यक्ष के संबंध में वर्णन किया है। योगिनी एकादशी व्रतकथा के संबंध में पद्मपुराण में वर्णन मिलता है"।

"मेघदूत में वह यक्ष मेघ माली जिसे उन्होंने एक दूत बनकर अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजता है। माना जाता है कालिदास जी की मेघदूत की कथा कामिनी एकादशी कथा से प्रेरित है। सनातन धर्म में हर एकादशी व्रत का अपना विशेष स्थान है। हर वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं"।

<h2 id="शुभ-मुहूर्त">योगिनी एकादशी 2026: तिथि, शुभ मुहूर्त और पारण समय</h2>

2026 में, योगिनी एकादशी गुरुवार, 10 जुलाई 2026 को मनाई जाएगी।

*एकादशी तिथि प्रारंभ: 09 जुलाई 2026, दिन गुरुवार को सुबह 10:37 बजे

*एकादशी तिथि समाप्त: 10 जुलाई 2026, दिन शुक्रवार को सुबह 08:16 बजे

*पारण करने का समय: 11 जुलाई 2026 दिन शनिवार सुबह 06:48 बजे से लेकर 08:29 बजे तक शुभ मुहूर्त में करें।

· व्रत तिथि: 10 जुलाई 2026 (शुक्रवार)

· पारण का शुभ मुहूर्त (11 जुलाई 2026): सुबह 05:22 बजे से 08:13 बजे तक

25 जून 2026 के शुभ मुहूर्त:

· ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 03:43 बजे से 04:25 बजे तक

· अभिजित मुहूर्त: दोपहर 11:24 बजे से 12:18 बजे तक (पूजन के लिए अति शुभ)

· गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:33 बजे से 06:54 बजे तक

निशिता मुहूर्त: रात 11:30 बजे से लेकर 12:12 बजे तक

<h2 id="महत्व">योगिनी एकादशी का धार्मिक महत्व और फल</h2>

10 जुलाई 2026 दिन शुक्रवार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी नाम से जाना जाता है। यह व्रत मनुष्यों का सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार, इस एकादशी का व्रत रखने से 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

"इस व्रत के प्रभाव से":

· जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है।

· घोर से घोर दुःख और कष्ट दूर होते हैं।

· सांसारिक सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

· अंततः भगवान विष्णु का सान्निध्य प्राप्त होता है।

<h2 id="पूजन-विधि">विधि-विधान से योगिनी एकादशी व्रत पूजन विधि</h2>

*01. दशमी की तैयारी: व्रत से एक दिन पहले (दशमी तिथि) से ही ब्रह्मचर्य का पालन करें, सात्विक भोजन ग्रहण करें और रात्रि में भोग-विलास का त्याग करें।

*02. संकल्प: एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने जल, अक्षत, फूल लेकर "हे विष्णुप्रिय! मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए योगिनी एकादशी का व्रत रखने का संकल्प लेता/लेती हूं" कहकर संकल्प लें।

*03. वेदी सज्जा: एक चौकी पर पीले या लाल वस्त्र बिछाएं। उस पर सात प्रकार के अन्न (गेहूं, चावल, जौ, चना, मूंग, उड़द, बाजरा) से भरा कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखें और एक नारियल स्थापित करें।

*04. भगवान की प्रतिमा स्थापना: इस कलश के पास भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।

*05. पूजन: भगवान को पीले फूल, तुलसी दल, फल, और मौसमी फल अर्पित करें। धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान का पूजन करें।

*06. कथा श्रवण: योगिनी एकादशी की पूर्ण कथा का पाठ या श्रवण अवश्य करें।

*07. रात्रि जागरण: रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करना अत्यंत फलदायी होता है।

*08. दान-पुण्य: इस दिन गरीबों, ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथा शक्ति दान-दक्षिणा दें। पीपल के वृक्ष की पूजा और जल अर्पण अवश्य करें।

*09. पारण: अगले दिन द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद पारण (व्रत तोड़ना) करें। पारण के समय ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करें।

<h2 id="क्या-करें-क्या-न-करें">योगिनी एकादशी व्रत में क्या करें और क्या न करें</h2>

क्या करें (Do's) क्या न करें (Don'ts)

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। चावल (धान) का सेवन किसी भी रूप में न करें।

तुलसी, केला और पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करें। क्रोध, ईर्ष्या, चुगली जैसे नकारात्मक व्यवहार से बचें।

'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। सोना, तेल लगाना, और बाल धोना वर्जित है।

गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान दें। किसी भी प्रकार का नशा या मांसाहार ग्रहण न करें।

रात्रि में भजन-कीर्तन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। झूठ बोलने से और किसी का दिल दुखाने से परहेज करें।

दिन भर सात्विक और सरल व्यवहार रखें। बिस्तर पर सोने के बजाय भूमि पर शयन करें।

<h2 id="कथा-1">पौराणिक कथा 1: हेम माली, राजा कुबेर और ऋषि मार्कंडेय की कथा</h2>

प्राचीन काल में स्वर्ग की अलकापुरी नगरी में धनपति कुबेर राज करते थे। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और प्रतिदिन नियमित रूप से उनकी पूजा किया करते थे। कुबेर के यहाँ हेम नाम का एक सुंदर और कुशल माली कार्य करता था, जिसका काम था प्रतिदिन मानसरोवर से नवीन, सुगंधित पुष्प लाकर भगवान शिव की पूजा के लिए राजा कुबेर को देना।

हेम माली की एक अत्यंत रूपवती पत्नी थी, जिसका नाम विशालाक्षी था। एक दिन की बात है, हेम माली पुष्प लेने मानसरोवर गया और सुंदर पुष्पों को लेकर लौट आया। किंतु उस दिन किसी दैवीय प्रेरणा से वह अपनी पत्नी के असीम सौंदर्य पर इतना मुग्ध हो गया कि वह कामवासना में डूब गया। वह पुष्पों की सुगंध और अपनी पत्नी के मोह में इतना खो गया कि उसे राजा कुबेर की पूजा और अपने कर्तव्य का स्मरण ही न रहा। वह दिनभर अपनी पत्नी के साथ हास-परिहास और प्रेमालाप में व्यतीत करने लगा।

दूसरी ओर, राजा कुबेर पूजन का समय बीत जाने पर भी जब तक माली नहीं आया, तो वे अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने अपने सेवकों को आदेश दिया कि तुरंत हेम माली को ढूंढकर उनके सामने प्रस्तुत किया जाए। सेवकों ने जाकर देखा कि हेम माली अपनी पत्नी के साथ विलास में लिप्त है। सेवकों ने लौटकर राजा को सारी स्थिति से अवगत कराया।

क्रोध से आगबबूला कुबेर ने तुरंत हेम माली को बुलवाया। भय से कांपता हुआ हेम माली राजा के समक्ष उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने गुस्से में डांटते हुए कहा, "अरे नीच, कामी पापी! तूने मेरे आराध्य देव भोलेनाथ का अपमान किया है। तू अपने कर्तव्य को भूल गया। इसलिए, मैं तुझे शाप देता हूं कि तू तत्काल मृत्युलोक में जाकर एक कोढ़ी के रूप में जन्म ले और अपनी पत्नी से वियोग के कारण अत्यंत दुख भोग!"

राजा कुबेर के शाप के प्रभाव से हेम माली का तत्काल स्वर्ग से पतन हो गया और वह पृथ्वी पर आ गिरा। उसका शरीर श्वेत कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गया और उसकी पत्नी भी उससे बिछड़ गई। वह एक भयानक जंगल में भटकने लगा, जहाँ उसे न तो भोजन मिलता था और न ही शांति। वह दिन-रात अपने पाप और दुर्दशा के बारे में सोचकर पश्चाताप करता रहता। भगवान शिव की कृपा से उसे अपने पिछले जन्म का स्मरण था।

घूमते-घूमते वह एक दिन महान तपस्वी ऋषि मार्कंडेय के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि मार्कंडेय की तेजस्विता और करुणा से प्रभावित होकर हेम माली उनके चरणों में गिर पड़ा और अपनी समस्त कहानी कह सुनाई। उसने अपने पाप और वर्तमान दुर्दशा का वृत्तांत विस्तार से बताया।

मुनि मार्कंडेय दयालु थे। उन्होंने हेम माली को उठाया और कहा, "हे पुत्र, तूने जो पाप किया है, उसका फल तुझे भुगतना पड़ रहा है। किंतु, मैं तुझे एक ऐसा उपाय बताता हूं, जिससे तेरे सारे पाप धुल जाएंगे और तुझे इस कष्ट से मुक्ति मिलेगी। तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक कर। इस व्रत के प्रभाव से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।"

हेम माली ने ऋषि की आज्ञा का पालन किया और पूरी श्रद्धा एवं विधि-विधान से योगिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से उसका कुष्ठ रोग समाप्त हो गया, उसका शरीर पुनः स्वस्थ और दिव्य हो गया। उसे उसकी पत्नी विशालाक्षी भी पुनः प्राप्त हो गई और वह अपने पुराने स्वरूप में लौटकर सुखपूर्वक रहने लगा। इस प्रकार, योगिनी एकादशी के पुण्य प्रताप से हेम माली को शाप से मुक्ति मिली और उसका जीवन धन्य हो गया।

<h2 id="कथा-2">पौराणिक कथा 2: धर्मराज युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण का संवाद</h2>

महाभारत के युद्ध के पश्चात, जब धर्मराज युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजसिंहासन पर आसीन हुए, तो एक दिन उनके मन में एक गहरा प्रश्न उठा। वे भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और विनम्रतापूर्वक पूछने लगे।

"हे केशव! हे जगदीश्वर! आपकी कृपा से हमने इस विशाल राज्य को प्राप्त किया है, किंतु मन में यह जिज्ञासा है कि मनुष्य अपने जन्म-जन्मांतर के पापों को किस प्रकार धो सकता है? क्या कोई ऐसा उपाय है जो सरल हो और सभी के लिए सुलभ भी? कृपया मुझे ऐसे व्रत के बारे में बताएं जो सभी पापों को नष्ट कर दे और मनुष्य को भवसागर से पार करा दे।"

भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले, "हे राजन! तुमने अत्यंत उत्तम प्रश्न पूछा है। मनुष्य के लिए पापों से मुक्ति पाने का एक सरल और अचूक उपाय है - एकादशी व्रत। विशेष रूप से, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली योगिनी एकादशी का व्रत समस्त पापों का विनाश करने में सक्षम है।"

श्रीकृष्ण आगे कहने लगे, "हे पांडुपुत्र! इस एकादशी का महत्व इतना vast है कि इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को 88,000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है। यह व्रत इहलोक में सुख-समृद्धि प्रदान करता है और परलोक में मोक्ष का द्वार खोलता है। इस व्रत की कथा स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाई थी और आज मैं तुम्हें सुनाता हूं।"

भगवान कृष्ण ने फिर धर्मराज युधिष्ठिर को हेम माली और कुबेर की पूरी कथा विस्तार से सुनाई। उन्होंने बताया कि किस प्रकार एक शाप के कारण दुखी जीवन व्यतीत कर रहे हेम माली ने इस व्रत के प्रभाव से न केवल अपना शरीर स्वस्थ किया, बल्कि खोया हुआ स्वर्ग और सुख भी पुनः प्राप्त किया।

श्रीकृष्ण ने कहा, "इसलिए, हे राजन! जो मनुष्य श्रद्धा और विश्वास के साथ योगिनी एकादशी का व्रत रखता है और इसकी कथा का श्रवण या पाठ करता है, उसके सभी पाप उसी प्रक्षालित हो जाते हैं, जिस प्रकार चंदन के वन की अग्नि समस्त वन को शुद्ध कर देती है। वह दिव्य लोकों को प्राप्त करता है और अंततः भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त होता है।"

धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण की बातों को गंभीरता से सुना और तभी से प्रतिज्ञा की कि वे स्वयं भी और अपनी प्रजा को भी इस पावन व्रत के लिए प्रेरित करेंगे। इस प्रकार, योगिनी एकादशी का व्रत पृथ्वी लोक पर प्रसिद्ध हुआ।

<h2 id="faq">अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)</h2>

Q1: "क्या योगिनी एकादशी का व्रत बिना अन्न के ही रखा जाता है"? 

A:जी हां, यह एकादशी व्रत निर्जला रखा जाता है। इसमें अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता। केवल फलाहार ही किया जा सकता है, लेकिन कई श्रद्धालु निराहार रहकर ही व्रत पूरा करते हैं।

Q2: "क्या बुजुर्ग और रोगी भी यह व्रत रख सकते हैं"? 

A:हां, लेकिन स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए। बुजुर्ग और रोगी फलाहार या दूध-फल लेकर व्रत रख सकते हैं। व्रत का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की भक्ति और मन की शुद्धि है।

Q3: "क्या योगिनी एकादशी व्रत रखने से पहले संकल्प लेना जरूरी है"? 

A:हां, संकल्प लेना अत्यंत आवश्यक है। संकल्प से व्रत की शुरुआत होती है और मन को दृढ़ता मिलती है। संकल्प मंत्र में भगवान विष्णु का स्मरण करके व्रत रखने का प्रण लिया जाता है।

Q4: "अगर एकादशी का व्रत टूट जाए तो क्या करें"? 

A:अगर अनजाने में व्रत टूट जाए, तो घबराएं नहीं। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु से क्षमा याचना करें। अगले दिन पारण करें और अगली एकादशी से पुनः व्रत रखने का संकल्प लें।

Q5: "क्या इस दिन दान देने का विशेष महत्व है"? 

A:हां, इस दान का विशेष महत्व है। अनाज, वस्त्र, फल, और दक्षिणा का दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे व्रत का पुण्यफल और भी बढ़ जाता है।

"अब पढ़े देवरहा बाबा के बारे में संक्षिप्त विवरण"

Picture of Devaraha Baba

यह है देवरहा बाबा की तस्वीर, जो उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में एक प्रसिद्ध योगी, सिद्ध संत और रहस्यमयी महापुरुष थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए 12 फीट ऊँचे मचान पर निवास किया और वे अष्टांग योग में पारंगत थे।

देवरहा बाबा (Devaraha Baba) भारत के एक प्रसिद्ध और रहस्यमयी आध्यात्मिक साधक एवं संत थे, जिन्हें 20 वीं सदी के सबसे प्रभावशाली योगियों में से एक माना जाता है। उनका जीवन और कार्य चमत्कारों, रहस्यों और आध्यात्मिक गहनता से भरे हुए थे।

"जन्म और प्रारंभिक जीवन:"

देवरहा बाबा के जन्म के बारे में कोई निश्चित ऐतिहासिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन मान्यता है कि उनका जन्म लगभग 1900 ईस्वी के आस-पास हुआ था। कुछ अनुमानों के अनुसार, उनकी आयु 250 वर्ष से भी अधिक बताई जाती है, परंतु यह एक विवादास्पद और अतिशयोक्तिपूर्ण दावा है। उनका जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के देवरिया जिले (कुछ स्रोतों के अनुसार) में हुआ था, और उनके बचपन का नाम देवराम या देवरहा था। उनके गांव के बारे में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन उन्होंने अधिकांश समय गंगा नदी के किनारे बने एक ऊंचे मंच (बांस से बने) पर बिताया, जिसके कारण उन्हें "देवरहा बाबा" के नाम से जाना जाने लगा।

"आध्यात्मिक साधना और पूजा:"

देवरहा बाबा भगवान शिव के उपासक थे और उनकी साधना शैव परंपरा से जुड़ी हुई थी। वे अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों में विश्वास रखते थे और ईश्वर की सर्वव्यापकता पर बल देते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है और सभी धर्म उसी एक सत्य तक पहुंचने के अलग-अलग मार्ग हैं। वे निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना करते थे, लेकिन साथ ही भक्ति भाव से युक्त थे।

"अनसुलझे पहलू और रहस्य:"

01. असाधारण दीर्घायु: देवरहा बाबा की आयु को लेकर विवाद है। कुछ लोग दावा करते हैं कि वे 250 साल तक जीवित रहे, लेकिन इसका कोई प्रमाणिक दस्तावेजी सबूत नहीं है।

02. चमत्कारिक शक्तियां: उनके बारे में कहा जाता है कि वे दूर बैठे हुए लोगों के मन की बात जान लेते थे, भविष्यवाणियां करते थे और किसी को भी दूर से ही आशीर्वाद दे सकते थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने कई रोगियों को केवल स्पर्श या आशीर्वाद से ठीक किया।

03. शारीरिक रहस्य: कहा जाता है कि वे बिना भोजन ग्रहण किए लंबे समय तक रह सकते थे और उनका शरीर सामान्य मनुष्यों से भिन्न था। उनके शरीर से एक विशेष प्रकार की दिव्य सुगंध आती थी।

04. समाधि: उन्होंने 19 जून 1990 को समाधि ले ली, लेकिन उनके अंतिम दिनों और समाधि के तरीके को लेकर भी रहस्य बना हुआ है।

"प्रसिद्धि और प्रभाव":

देवरहा बाबा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। भारत के कई प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और बड़े नेता उनके दर्शनों के लिए आते थे। उनके भक्तों में देश-विदेश के लोग शामिल थे। उनका आशीर्वाद लेने के लिए हज़ारों लोग प्रतिदिन इकट्ठा होते थे।

"निष्कर्ष:"

देवरहा बाबा का जीवन आध्यात्मिक रहस्यों और चमत्कारों से भरा हुआ था। उनके बारे में कई बातें आज भी अनसुलझी हैं, जो उन्हें एक रहस्यमयी व्यक्तित्व बनाती हैं। वे सदियों पुरानी भारतीय साधना परंपरा के एक जीवंत प्रतीक थे, जिन्होंने लोगों के बीच आस्था और विश्वास का संचार किया।

<h2 id="डिस्क्लेमर"></h2>

यह लेख विभिन्न पौराणिक ग्रंथों जैसे पद्म पुराण, भविष्य पुराण और अन्य धार्मिक स्रोतों, साथ ही विद्वान आचार्यों के प्रवचनों एवं उपदेशों पर आधारित है। यहाँ प्रस्तुत की गई जानकारी, तिथियाँ, और मुहूर्त 2026 के हिंदू पंचांग के अनुसार हैं, जो विभिन्न स्थानों के स्थानीय पंचांगों में भिन्न हो सकते हैं। शुभ मुहूर्त की गणना ज्योतिषीय सिद्धांतों पर आधारित है।

इस लेख का प्राथमिक उद्देश्य सनातन धर्म के प्रति लोगों की आस्था और ज्ञान को बढ़ाना, साथ ही धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण एवं प्रचार करना है। यह लेख किसी भी प्रकार की व्यावसायिक सलाह या चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है। पाठकों से अनुरोध है कि व्रत या कोई भी धार्मिक अनुष्ठान अपनी शारीरिक क्षमता, स्वास्थ्य और विश्वास के अनुसार ही करें। किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। लेख में दी गई जानकारी के प्रयोग से होने वाले किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम के लिए लेखक या प्रकाशक जिम्मेदार नहीं होंगे। धर्म का मूल उद्देश्य मानव कल्याण और आत्मिक शांति है, इसे केवल कर्मकांड तक सीमित न रखें।

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