"परमा एकादशी 2026: शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, पौराणिक कथा और महत्व"|

 "परमा एकादशी 2026 की तारीख 11 जून, दिन गुरुवार, जेष्ठ माह, कृष्ण पक्ष अधिमास में मनेगा। जानें शुभ मुहूर्त, व्रत की विधि, क्या करें-न करें, पौराणिक कथा और विश्लेषण। 

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✨ "भगवान विष्णु शेषनाग पर विराजमान – परम एकादशी 2026 ✨"

परिचय: परमा एकादशी का रहस्यमयी महत्व

नमस्कार पाठकों! हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों का विशेष स्थान है, लेकिन जब बात परमा एकादशी की आती है, तो यह सामान्य एकादशी से कहीं अधिक पवित्र और दुर्लभ मानी जाती है। परमा एकादशी को वर्ष के लीप माह या 'मलमास' (अधिक मास) में मनाया जाता है, जो हर 03 साल में एक बार आता है। यह चंद्र पंचांग के अनुसार तेरहवें महीने में पड़ती है और कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में समृद्धि, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

2026 में परमा एकादशी 11 जून, गुरुवार को मनाई जाएगी। यह दिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत शुभ है। इस ब्लॉग में हम आपको परमा एकादशी के शुभ मुहूर्त, पंचांग विवरण, व्रत की विधि, क्या करें-क्या न करें, पौराणिक कथा (विस्तार से), पांच दिनों की दैनिक पूजा-अर्चना, सामाजिक-वैज्ञानिक-पौराणिक विश्लेषण और बहुत कुछ बताएंगे। यदि आप इस दुर्लभ व्रत को रखने की सोच रहे हैं, तो यह ब्लॉग आपके लिए मार्गदर्शक साबित होगा।

 "2026 के 11 जून का पंचांग और चौरड़िया पंचांग: शुभ मुहूर्त और दिन का व्याख्या" 

2026 का परमा एकादशी का दिन 11 जून, गुरुवार को है। सनातन (हिंदू) पंचांग के अनुसार, यह अधिक मास (मलमास) के कृष्ण पक्ष में पड़ता है। आइए विस्तार से जानें:

तिथि: एकादशी (कृष्ण पक्ष)

वार: गुरुवार (जो बृहस्पति का दिन है, ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक)

नक्षत्र: संभावित रूप से रेवती के बाद अश्विनी (पंचांग स्रोतों के आधार पर, लेकिन मुख्य रूप से शुभ)

योग: शोभन योग (कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला)

करण: बव (शुभ कार्यों के लिए उत्तम)

एकादशी तिथि का समय:

एकादशी तिथि प्रारंभ: 10 जून 2026 को 12:58 बजे (रात्रि में)

एकादशी तिथि की समाप्त: 11 जून 2026 को 10:36 बजे (रात्रि में)

पारण मुहूर्त (व्रत तोड़ने का समय):

12 जून 2026 को सुबह 05:00 बजे से 010:04 बजे तक। (ध्यान दें: पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। इस दौरान सुबह 5:00 बजे से लेकर 6:41 तक चर मुहूर्त, सुबह 6:41 से लेकर 8:22 तक लाभ मुहूर्त और 8:22 से लेकर 10:04 तक अमृत मुहूर्त रहेगा। जो शाम 07:36 बजे तक है। यदि सुबह न कर सकें, तो दोपहर से पहले तोड़ें।)

अब जानें चारों पहर पूजा करने की शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:18 बजे से लेकर 12:12 बजे तक, विजय मुहूर्त दिन के 02:00 बजे से लेकर के 02:54 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:24 बजे से लेकर 12:06 बजे तक और ब्रह्म मुहूर्त सुबह 03:36 बजे से लेकर 04:18 बजे तक रहेगा।

चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह 05:00 बजे से लेकर 06:45 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 10:04 बजे से लेकर 11:45 बजे तक चर मुहूर्त, 11:45 बजे से लेकर 01:26 बजे तक लाभ मुहूर्त, 01:26 बजे से लेकर 03:08 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा।

शाम 04:49 बजे से लेकर 06:30 बजे तक शुभ मुहूर्त, शाम 06:30 बजे से लेकर 07:39 बजे तक अमृत मुहूर्त और देर रात 11:45 बजे से लेकर 01:04 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। इस दौरान व्रतधारी अपने सुविधा के अनुसार शुभ मुहूर्त में पूजा-अर्चना कर सकते हैं।

इस दिन का स्वरूप अत्यंत शुभ रहेगा। गुरुवार होने से बृहस्पति की कृपा प्राप्त होगी, जो धन-धान्य और ज्ञान की वृद्धि करेगा। साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत काल भी रहेगा।

मौसम की दृष्टि से जून का महीना गर्मी का होगा, लेकिन सुबह की पूजा के लिए ठंडक रहेगी। सूर्योदय सुबह लगभग 05:00 बजे और सूर्यास्त शाम 06:30 बजे होगा। चंद्रमा कृष्ण पक्ष में होने से रात्रि में ध्यान और जप के लिए आदर्श समय।

यदि आप दिल्ली या उत्तर भारत में हैं, तो स्थानीय पंचांग से मुहूर्त की पुष्टि करें, क्योंकि क्षेत्रीय अंतर हो सकता है। इस दिन ग्रहों की स्थिति मजबूत रहेगी – गुरु अपनी राशि में बलवान, जो व्रत के फल को दोगुना करेगा।

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2026 के लिए आपका विस्तृत पंचांग कैलेंडर, जिसमें सभी शुभ तिथियां और मुहूर्त हाइलाइट किए गए हैं।

परमा एकादशी व्रत की विधि: चरणबद्ध तरीके से समझें

परमा एकादशी का व्रत सामान्य एकादशी से भिन्न है, क्योंकि यह पांच दिनों तक चलता है। यह एकादशी से शुरू होकर अमावस्या तक जाता है। व्रत का पालन कठिन है, लेकिन फल असीमित। आइए विधि जानें:

संकल्प और तैयारी: एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-5 बजे) उठें। स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल, फूल और फल लेकर भगवान विष्णु से संकल्प लें: "हे विष्णु भगवान, मैं परमा एकादशी व्रत का पालन करूंगा/करूंगी। मुझे शक्ति प्रदान करें।"

उपवास नियम: पांच दिनों तक निर्जला या फलाहार। पानी नहीं पी सकते, केवल चरणामृत। अनाज, फलियां, नमक, दही, छाछ वर्जित। यदि कमजोरी हो, तो फल और दूध लें।

पूजा-अर्चना: घर में विष्णु मंदिर या पूजा स्थल पर दीपक जलाएं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। आरती करें।

दैनिक दिनचर्या: दिन भर विष्णु मंत्र जपें ("ओम नमो भगवते वासुदेवाय")। रात्रि में जागरण।

पारण: पांचवें दिन (अमावस्या) ब्राह्मण को भोजन कराएं, दक्षिणा दें। फिर स्वयं फलाहार से व्रत तोड़ें।

यह व्रत महिलाएं और पुरुष दोनों रख सकते हैं, लेकिन स्वास्थ्य जांचें।

परमा एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें, जानें विस्तार से 

क्या करें:

*सुबह जल्दी उठकर स्नान और संकल्प।

*विष्णु पूजा, सहस्रनाम पाठ।

*फलाहार यदि जरूरी, अन्यथा निर्जला।

*दान-पुण्य, ब्राह्मण भोजन।

*ध्यान, योग और मंत्र जप।

*परिवार के साथ कथा सुनें।

क्या न करें:

*अनाज, फलियां, नमक का सेवन।

*पानी पीना (केवल चरणामृत)।

*बैंगन, गोभी, टमाटर जैसी वर्जित सब्जियां।

*क्रोध, झूठ, निंदा।

*शारीरिक श्रम या यात्रा न करें।

*रात्रि में सोना मना है– जागरण रखें।

ये नियम पालन से व्रत फलदायी होता है।

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यह चार्ट बताता है कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं, जिससे आप अपने लक्ष्यों को बेहतर तरीक़े से प्राप्त कर सकें।

परमा एकादशी की कथा महाभारत काल से जुड़ी है, जहां युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से इस व्रत के महत्व के बारे में पूछा। कृष्ण ने उन्हें एक प्राचीन कथा सुनाई, जो कांपिल्य नगर के एक ब्राह्मण दंपत्ति सुमेधा और पवित्रा की है। यह कथा न केवल पौराणिक है, बल्कि जीवन के गहन सबक सिखाती है। आइए विस्तार से सुनें एवं पढ़ें।

एक समय की बात है, प्राचीन भारत में कांपिल्य नामक एक समृद्ध नगर था। यह नगर गंगा नदी के किनारे बसा था, जहां हरियाली और समृद्धि की कोई कमी नहीं थी। नगर के राजा धर्मपरायण थे, और प्रजा सुखी जीवन जी रही थी। लेकिन इसी नगर में एक ब्राह्मण दंपत्ति रहता था – सुमेधा और उसकी पत्नी पवित्रा। सुमेधा एक विद्वान ब्राह्मण था, जो वेदों का गहन अध्ययन करता था। वह दैनिक यज्ञ करता, लेकिन पिछले जन्म के पापों के कारण उसकी आर्थिक स्थिति दयनीय थी। घर में अनाज की कमी, कपड़ों की फटकार, और सुख-सुविधाओं का अभाव था। सुमेधा दिन-रात मेहनत करता, लेकिन कमाई इतनी कम कि परिवार का पालन-पोषण मुश्किल हो जाता।

पवित्रा एक धर्मनिष्ठ और समर्पित पत्नी थी। वह घर के कार्यों में निपुण थी और हमेशा मेहमानों का आदर करती। जब भी कोई अतिथि आता, पवित्रा अपना भोजन छोड़कर उन्हें परोसती। एक बार ऐसा हुआ कि घर में केवल दो रोटियां थीं, और एक भूखा यात्री आ गया। पवित्रा ने दोनों रोटियां उसे दे दीं, और खुद भूखी रह गई। सुमेधा देखकर दुखी होता, लेकिन पवित्रा कहती, "धर्म का पालन ही हमारा धन है।"

समय बीतता गया, और सुमेधा की निराशा बढ़ती गई। एक शाम, जब सूरज डूब रहा था और पक्षी अपने घोंसलों में लौट रहे थे, सुमेधा ने पवित्रा से कहा, "प्रिय, हमारी यह गरीबी असहनीय हो गई है। मैं अमीरों से भीख मांगने लगा हूं, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं। मुझे अनुमति दो कि मैं दूर देश जाकर धन कमाऊं। शायद वहां कोई अवसर मिले, और हम सुखी जीवन जी सकें।"

पवित्रा की आंखें नम हो गईं। वह बोली, "स्वामी, इस जन्म की गरीबी पिछले जन्म के कर्मों का फल है। यदि हमने पूर्व जन्म में दान-पुण्य नहीं किया, तो धन की कमी स्वाभाविक है। यदि आप मेरे कल्याण की सोचते हैं, तो कृपया मेरे साथ यहां रहें। हम साथ मिलकर इस दुख को सहेंगे। अलगाव से बड़ा दुख क्या होगा?"

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सुमेधा पवित्रा की बात मान गया। वह समझ गया कि सच्चा सुख साथ में है, न कि धन में। लेकिन गरीबी का बोझ कम नहीं हुआ। दिन गुजरते गए, और एक दिन आया जब कांपिल्य नगर में वर्षा ऋतु शुरू हुई। बारिश की बूंदें धरती को भिगो रही थीं, और हवा में मिट्टी की सुगंध फैल रही थी। उसी दिन, एक महान ऋषि कौंडिन्य उनकी कुटिया में पहुंचे। ऋषि कौंडिन्य तपस्वी थे, जिन्होंने हिमालय में वर्षों तप किया था। बाल सफेद, आंखें तेजस्वी, और शरीर योग से मजबूत।

सुमेधा और पवित्रा ने ऋषि का स्वागत किया। उन्होंने पैर धोए, आसन दिया, और उपलब्ध फल-फूल से पूजा की। भोजन के रूप में केवल कुछ जंगली फल थे, लेकिन पवित्रा ने उन्हें प्रेम से परोसा। ऋषि प्रसन्न हुए और बोले, "तुम्हारा आतिथ्य सत्यनिष्ठ है। मैं तुम्हारी सेवा से प्रभावित हूं।"

भोजन के बाद, पवित्रा ने हाथ जोड़कर पूछा, "हे ऋषिवर, हमारी गरीबी और दुख से छुटकारा पाने का कोई उपाय बताएं। हम धर्म का पालन करते हैं, फिर भी सुख नहीं मिलता।"

ऋषि कौंडिन्य ने आंखें बंद कीं और ध्यान लगाया। कुछ क्षण बाद बोले, "पुत्री, एक ऐसा व्रत है जो सभी पापों का नाश करता है। यह व्रत अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है, जिसे परमा एकादशी कहते हैं। इस व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, और पिछले जन्मों के पाप मिट जाते हैं।"

ऋषि ने विस्तार से बताया: "परमा एकादशी हर 32 महीनों में एक बार आती है। यह लीप माह में पड़ती है, जब चंद्रमा का एक अतिरिक्त मास जुड़ता है। व्रत पांच दिनों का होता है – एकादशी से अमावस्या तक। निर्जला उपवास, विष्णु पूजा, और जागरण। इस व्रत से धन, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त होता है।"

सुमेधा और पवित्रा ने उत्सुकता से सुना। ऋषि ने आगे कहा, "यह व्रत स्वयं भगवान कुबेर ने रखा था। कुबेर गरीब थे, लेकिन व्रत के बाद वे धन के देवता बने। उन्होंने भगवान वेंकटेश्वर को ऋण दिया, और दुनिया के सबसे धनी देव बने।"

दंपत्ति ने निर्णय लिया कि वे यह व्रत रखेंगे। अधिक मास आया, और परमा एकादशी का दिन आ गया। सुमेधा ने सुबह उठकर स्नान किया, संकल्प लिया। पवित्रा ने घर सजाया, विष्णु की मूर्ति स्थापित की। पांच दिनों तक वे निर्जला रहे, केवल चरणामृत पिया। दिन-रात विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया। रात्रि में जागकर भजन गाए। उनके मन में शांति छा गई, और शरीर में नई ऊर्जा आई।

पांचवें दिन, अमावस्या को, वे ब्राह्मण को भोज कराने की सोच रहे थे, लेकिन घर में कुछ नहीं था। अचानक, एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर आया। वह बोला, "मैं राजा का दूत हूं। राजा ने सपने में देखा कि आपको सहायता दें। यहां एक महल, धन और संसाधन हैं।" दंपत्ति आश्चर्यचकित हो गए। राजकुमार ने उन्हें एक विशाल भवन दिया, जहां सुख-सुविधाएं थीं। सुमेधा और पवित्रा समझ गए कि यह परमा एकादशी का फल है।

वे अमीर हो गए, लेकिन धर्म का पालन जारी रखा। वर्षों बाद, वे मोक्ष प्राप्त कर स्वर्ग गए।

भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को यह कथा सुनाकर कहा, "हे युधिष्ठिर, परमा एकादशी सभी एकादशियों में श्रेष्ठ है। इसका पालन करने से जीवन सुखमय होता है, और मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है।" युधिष्ठिर ने भी यह व्रत रखा और जीवन का आनंद लिया।

यह कथा हमें सिखाती है कि धैर्य, धर्म और व्रत से असंभव संभव होता है। Parma Ekadashi

5 दिनों के व्रत में प्रतिदिन पूजा-अर्चना की विधि

परमा एकादशी व्रत पांच दिनों का है: एकादशी, दशमी नहीं, एकादशी से अमावस्या तक – एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या)। प्रतिदिन विधि:

दिन 1 (एकादशी): सुबह संकल्प। विष्णु पूजा में तुलसी पत्र, फूल, धूप। सहस्रनाम पाठ। शाम आरती।

दिन 2 (द्वादशी): विष्णु कथा पढ़ें। लक्ष्मी-नारायण पूजा। फल दान।

दिन 3 (त्रयोदशी): गरुड़ पूजा। विष्णु मंत्र जप 108 बार और ध्यान।

दिन 4 (चतुर्दशी): शंख, चक्र, गदा पूजा। भजन कीर्तन।

दिन 5 (अमावस्या): ब्राह्मण भोज, दक्षिणा। पारण।

प्रतिदिन जागरण और चरणामृत का भोजन।

सामाजिक, वैज्ञानिक और पौराणिक विश्लेषण

पौराणिक विश्लेषण: कथा से पता चलता कि व्रत पाप नाशक है। विष्णु की आराधना से मोक्ष। कुबेर की कहानी धन प्राप्ति दर्शाती।

सामाजिक विश्लेषण: समाज में यह व्रत एकता बढ़ाता है। परिवार साथ रखते हैं, दान से गरीबों की मदद। महिलाओं को सशक्त बनाता।

वैज्ञानिक विश्लेषण: 5 दिनों का उपवास डिटॉक्स करता है। ध्यान से मेंटल हेल्थ सुधरती। निर्जला से बॉडी रीसेट। योग और जप से स्ट्रेस कम।

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तस्वीर में सामाजिक विश्लेषण: "सामाजिक प्रभाव और संस्कृति-व्यवहार का अन्वेषण" वैज्ञानिक विश्लेषण: और "अनुसंधान के माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों का उद्घाटन"पौराणिक विश्लेषण: "प्राचीन मिथकों और उनकी शाश्वत बुद्धिमत्ता का विश्लेषण को दर्शाया गया है"

डिस्क्लेमर 

प्रिय पाठकों, यह ब्लॉग परमा एकादशी के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जो पौराणिक ग्रंथों और सामान्य ज्ञान पर आधारित है। हमारा उद्देश्य धार्मिक जागरूकता बढ़ाना है, न कि चिकित्सा या कानूनी सलाह देना। व्रत रखने से पहले डॉक्टर से सलाह लें, खासकर यदि स्वास्थ्य समस्या हो। तिथियां पंचांग पर निर्भर, स्थानीय विविधता हो सकती है। हम कोई गारंटी नहीं देते कि व्रत से चमत्कार होगा – यह विश्वास पर आधारित है। ब्लॉग में व्यक्त विचार लेखक के हैं, और किसी धर्म का अपमान नहीं। यदि कोई त्रुटि हो, तो क्षमा करें। पढ़ने के लिए धन्यवाद! 

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