20 नवंबर 2026 को है हरि प्रबोधिनी एकादशी। जानें।देवउठनी एकादशी की 4 प्रमुख पौराणिक कथाएं, व्रत महात्म्य, तुलसी विवाह और शुभ-अशुभ मुहूर्त की सटीक जानकारी।
"हरि प्रबोधिनी एकादशी 2026 — वह पावन दिन जब श्री विष्णु योगनिद्रा से जागकर सृष्टि में धर्म, सत्य और कल्याण का पुनर्जागरण करते हैं।"
"हरि प्रबोधिनी एकादशी 2026 — वह पावन दिन जब श्री विष्णु योगनिद्रा से जागकर सृष्टि में धर्म, सत्य और कल्याण का पुनर्जागरण करते हैं।"
हरि प्रबोधिनी एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इस व्रत को 20 नवंबर 2026, दिन शुक्रवार कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाई जाएगी।
इसे भगवान विष्णु के चार महीने के योग निद्रा (चतुर्मास) के समाप्त होने और उनके जागने के पर्व के रूप में जाना जाता है। इस दिन से मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि प्रारंभ हो जाते हैं।
यह एकादशी अत्यंत शुभ मानी जाती है और इसका उल्लेख विष्णु पुराण और श्रीमद् भागवत पुराण में उल्लेख मिलता है। साथ में पढ़ें पांच पौराणिक प्रमुख कथाओं सहित व्रत महात्म्य पर विस्तार से जानकारी पाएं।
हरि प्रबोधिनी एकादशी की चार प्रमुख पौराणिक कथाएं
*01. सत्यवान और सावित्री की कथा
सत्यवान और सावित्री की कथा हरि प्रबोधिनी एकादशी के महत्व को दर्शाती है। सावित्री अपने पति सत्यवान के जीवन की रक्षा के लिए हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत रखती हैं। यमराज सत्यवान की आत्मा लेने आते हैं, लेकिन सावित्री के तप और व्रत के प्रभाव से यमराज सत्यवान को जीवनदान देने के लिए विवश हो जाते हैं। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि व्रत और भक्ति में अपार शक्ति है।
*02. राजा अम्बरीष और दुर्वासा ऋषि की कथा
राजा अम्बरीष ने हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन भगवान विष्णु का विधिवत पूजन किया। उसी समय दुर्वासा ऋषि उनके अतिथि बनकर आए। राजा ने ऋषि का सम्मान करते हुए भोजन का आग्रह किया, लेकिन व्रत के नियम के अनुसार उन्हें द्वादशी पर पारण करना आवश्यक था। उन्होंने तुलसी जल ग्रहण कर व्रत तोड़ा, जिससे दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए। भगवान विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा करते हुए दुर्वासा ऋषि के क्रोध का शमन किया।
*03. गजेंद्र मोक्ष की कथा
गजेंद्र मोक्ष की कथा भी इस एकादशी से जुड़ी हुई है। गजेंद्र, एक हाथी, अपने पिछले जन्म में राजा थे। एक दिन जब वह जल पीने गए, तब मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया। गजेंद्र ने भगवान विष्णु का स्मरण किया और उनकी शरण में जाकर “श्रीहरि” का आह्वान किया। भगवान ने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर गजेंद्र को मुक्ति प्रदान की।
*04 शंखचूड़ और तुलसी विवाह की कथा
शंखचूड़ भगवान विष्णु के परम भक्त और अत्यंत बलशाली असुर थे। उन्हें अपने पूर्व जन्म में भगवान विष्णु द्वारा यह आशीर्वाद प्राप्त था कि उनकी मृत्यु केवल तभी हो सकती है जब उनकी पत्नी की पवित्रता समाप्त हो जाए। इस कारण शंखचूड़ ने अपनी पत्नी तुलसी के साथ विवाह किया और उनकी भक्ति और तपस्या से देवता भी भयभीत हो गए।
शंखचूड़ की शक्ति और युद्ध
शंखचूड़ ने अपनी शक्ति और तप से देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। सभी देवता भगवान शिव और विष्णु के पास सहायता के लिए गए। भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का वध करने का निर्णय लिया।
भगवान विष्णु और तुलसी की भक्ति
भगवान विष्णु ने शंखचूड़ को युद्ध में हराने से पहले उनकी पत्नी तुलसी का भक्ति परीक्षण लिया। भगवान ने तुलसी के सामने शंखचूड़ का रूप धारण कर उनकी पवित्रता की परीक्षा ली। जब तुलसी ने भगवान विष्णु की सच्चाई को पहचाना, तो उन्होंने भगवान को श्राप दिया कि वे पत्थर (शालिग्राम) में बदल जाएं।
तुलसी का विवाह
तुलसी की पवित्रता और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनकी पूजा में अनिवार्य रूप से शामिल होंगी। तभी से तुलसी और शालिग्राम का विवाह हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन किया जाता है।
*05.राजा बलि और भगवान वामन की कथा
राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य के मार्गदर्शन में एक महान यज्ञ का आयोजन किया। बलि का उद्देश्य अपनी शक्ति को अमर बनाना था। देवताओं ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे बलि की इस योजना को विफल करें।
भगवान विष्णु वामन रूप धारण कर यज्ञ स्थल पर पहुंचे। वामन एक छोटे ब्राह्मण बालक के रूप में थे। उन्होंने बलि से भिक्षा मांगी। बलि ने प्रसन्न होकर पूछा, "हे वामनदेव, आप क्या चाहते हैं?" वामन ने उत्तर दिया, "मुझे केवल तीन पग भूमि चाहिए।"
बलि ने इसे स्वीकार कर लिया। लेकिन जैसे ही वामन ने अपना आकार बढ़ाया, उनका विराट रूप प्रकट हुआ। उन्होंने पहले पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश को नाप लिया। जब तीसरे पग के लिए स्थान नहीं बचा, तो बलि ने अपना सिर झुकाकर भगवान को तीसरा पग रखने के लिए कहा। भगवान ने बलि के इस समर्पण से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल लोक का अधिपति बना दिया और वरदान दिया कि वह हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन दर्शन देकर उनकी पूजा ग्रहण करेंगे।
*कथा का संदेश
यह कथा दान, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। भगवान विष्णु ने राजा बलि के दान और समर्पण को स्वीकार किया और उन्हें अमरत्व का वरदान दिया।
*कथा का महत्व
तुलसी विवाह का महत्व पवित्रता, भक्ति और समर्पण को दर्शाता है। यह विवाह पवित्रता और भगवान के प्रति प्रेम का प्रतीक है।
*कथा का सार
इन दोनों कथाओं में भगवान विष्णु का दया, भक्ति और न्याय का स्वरूप प्रकट होता है। ये कथाएं भक्तों को यह सिखाती हैं कि समर्पण, भक्ति और सत्य की राह पर चलने वाले को भगवान का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है।
शुभ और अशुभ मुहूर्त (Shubh and Ashubh Muhurat)
हरि प्रबोधिनी एकादशी, शुक्रवार, 20 नवंबर 2026 के लिए शुभ और अशुभ मुहूर्त की जानकारी:
चारों पहर पूजा करने का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ गुरुवार, 19 नवंबर 2026 को रात 11:32 बजे
एकादशी तिथि समाप्त शुक्रवार, 20 नवंबर 2026 को रात 09:07 बजे
व्रत का पारण (तोड़ने) का शुभ समय शनिवार, 21 नवंबर 2026 को सुबह 06:48 बजे से 08:56 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त (अति शुभ) शुक्रवार, 20 नवंबर 2026 को सुबह 11:47 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक
लाभ चौघड़िया (शुभ) शुक्रवार, 20 नवंबर 2026 को शाम 04:09 बजे से शाम 05:33 बजे तक
राहुकाल (अशुभ) शुक्रवार, 20 नवंबर 2026 को सुबह 10:48 बजे से दोपहर 12:12 बजे तक (इस समय शुभ कार्य वर्जित हैं)
पूजा विधि
हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा विशेष विधि से की जाती है। पूजा विधि इस प्रकार है:
*01. व्रत का संकल्प
व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी के दिन सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिए।
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
*02. भगवान विष्णु की मूर्ति का पूजन
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल) से स्नान कराएं।
पीले वस्त्र अर्पित करें और फूल, तुलसी पत्र चढ़ाएं।
दीपक जलाकर भगवान विष्णु का ध्यान करें।
*03. तुलसी पूजन
इस दिन तुलसी माता की पूजा का विशेष महत्व है।
तुलसी के पौधे को गंगाजल से स्नान कराएं और दीपक जलाकर आरती करें।
*04. मंत्र जाप और भजन
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
भगवान विष्णु की आरती करें और भजन गाएं।
*05. रात्रि जागरण
रात्रि में भगवान विष्णु के भजन और कथा का आयोजन करें।
जागरण से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।
*06. पारण (द्वादशी के दिन)फ
द्वादशी के दिन तुलसी का पत्ता और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
हरि प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य
हरि प्रबोधिनी एकादशी का माहात्म्य विभिन्न धर्मग्रंथों में वर्णित है। यह व्रत सभी पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।
*01. पुण्य की प्राप्ति
इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, गोहत्या जैसे पापों का नाश होता है। इसे करने वाला व्यक्ति वैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।
*02. मांगलिक कार्यों का प्रारंभ
चतुर्मास के बाद भगवान विष्णु के जागरण के साथ सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण आदि प्रारंभ होते हैं।
*03. धन और सुख-समृद्धि
यह व्रत करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त के जीवन में समस्त बाधाओं का नाश होता है।
*04. मोक्ष प्राप्ति का व्रत
यह व्रत मोक्ष प्राप्ति का माध्यम है। भगवान विष्णु के प्रति समर्पण और भक्ति से भक्त को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
गए थे। उनकी शक्ति से देवता भयभीत हो गए और भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।
"एकादशी के दिन क्या करें और क्या न करें"
हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धापूर्वक इन नियमों का पालन करें:
✅ क्या करें (Do's) -
*01.भक्ति और पुण्य के कार्य करें
*02.अनुष्ठान महत्व विष्णु-तुलसी विवाह इस दिन शालिग्राम (विष्णु का रूप) और तुलसी का विवाह अवश्य करें। यह सभी मांगलिक कार्यों के आरंभ का प्रतीक है।
*03.योग निद्रा से जागरण भगवान विष्णु को जगाने के लिए शंख और घंटी बजाएं, तथा "उत्तिष्ठ गोविन्द" मंत्र का जाप करें।
*04.दान और धर्म इस दिन अन्न, वस्त्र या फल का दान करना अक्षय पुण्य प्रदान करता है।
*05.पूजन सामग्री पूजा में गन्ने, सिंघाड़े और मिठाई का भोग अवश्य लगाएं, क्योंकि ये ऋतु फल हैं।
*06.व्रत कथा श्रवण सत्यवान-सावित्री, गजेंद्र मोक्ष, राजा अम्बरीष या अन्य विष्णु कथाओं का पाठ या श्रवण करें।
❌ क्या न करें (Don'ts) - इन कार्यों से बचें
*01.अन्न और चावल एकादशी पर चावल (अन्न) का सेवन बिल्कुल न करें। यह आध्यात्मिक अशुद्धि लाता है।
*02.तामसिक भोजन प्याज, लहसुन या मांसाहार का सेवन न करें। मन और शरीर की सात्विकता बनाए रखें।
*03.क्रोध और क्लेश किसी से झगड़ा न करें, कड़वे बोल न बोलें। मन को शांत और भगवान के ध्यान में लगाएं।
*04.तुलसी पत्ता तोड़ना एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। आवश्यकतानुसार पत्तों को एक दिन पहले ही तोड़कर रख लें।
*05.दिन में शयन व्रत करने वाले व्यक्ति को इस दिन दिन में नहीं सोना चाहिए। रात भर जागकर (जागरण) भगवान का कीर्तन करना उत्तम है।
हरि प्रबोधिनी एकादशी (देवउठनी एकादशी) पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
तिथि और महत्व से संबंधित प्रश्न
*01.प्रबोधिनी एकादशी को और किस नाम से जाना जाता है?
इसे देवउठनी एकादशी (देवोत्थान एकादशी) और हरि बोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान विष्णु के चार महीने की योग निद्रा (चातुर्मास) से जागने का पर्व है
*02.2026 में हरि प्रबोधिनी एकादशी किस तारीख और वार को है?
साल 2026 में, हरि प्रबोधिनी एकादशी 20 नवंबर, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी।
*03.देवउठनी एकादशी से कौन से कार्य प्रारंभ हो जाते हैं?
इस एकादशी के साथ ही चातुर्मास समाप्त हो जाता है, जिसके बाद से सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, आदि फिर से शुरू हो जाते हैं।
*04.देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह क्यों किया जाता है?
इस दिन तुलसी (वृंदा) का विवाह शालिग्राम (भगवान विष्णु का रूप) के साथ कराया जाता है। यह भगवान विष्णु के भक्तों को आशीर्वाद देने और सृजन चक्र को पुनः शुरू करने का प्रतीक है।
पूजा विधि और व्रत से संबंधित प्रश्न
*01एकादशी व्रत के दौरान क्या खाना चाहिए और क्या नहीं?
व्रत के दौरान चावल और अनाज का सेवन पूर्णतः वर्जित है। आप फल, दूध, दही, ड्राई फ्रूट्स, और कुट्टू या सिंघाड़े के आटे से बने व्यंजन खा सकते हैं। प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से बचें।
*02.हरि प्रबोधिनी एकादशी का व्रत पारण (समापन) कब करना चाहिए?
व्रत का पारण एकादशी के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त के भीतर करना चाहिए। पारण हमेशा किसी अनाज को खाकर किया जाता है।
*03.देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु को जगाने का क्या विधान है?
इस दिन रात में या ब्रह्म मुहूर्त में पूजा के दौरान, भगवान विष्णु की प्रतिमा को जगाने के लिए शंख बजाया जाता है और विशेष मंत्रों, जैसे कि "उत्तिष्ठ गोविन्द" का जाप किया जाता है।
*05.पूजा में गन्ना और सिंघाड़ा चढ़ाना क्यों जरूरी है?
गन्ना (ईख) और सिंघाड़ा इस मौसम के प्रमुख फल हैं। भगवान विष्णु को ऋतु फल अर्पित करने की परंपरा है, जिससे वह प्रसन्न होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
कथा और पौराणिक महत्व
- हरि प्रबोधिनी एकादशी की प्रमुख पौराणिक कथाएँ कौन सी हैं?
- इस एकादशी से जुड़ी प्रमुख कथाओं में सत्यवान और सावित्री की कथा, राजा अम्बरीष और दुर्वासा ऋषि की कथा, और गजेंद्र मोक्ष की कथा शामिल हैं। ये कथाएँ व्रत की शक्ति और भगवान विष्णु की महिमा बताती हैं।
- क्या गर्भवती महिलाएं देवउठनी एकादशी का व्रत रख सकती हैं?
- हां, गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह और अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार यह व्रत रख सकती हैं। वे पूर्ण निर्जला व्रत के बजाय फलाहार या जलाहार व्रत का पालन कर सकती हैं।
अस्वीकरण (Disclaimer):
धार्मिक मान्यताओं का प्रकाश: यह लेख हरि प्रबोधिनी एकादशी (देवोत्थान एकादशी) के संबंध में पौराणिक कथाओं, धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों में वर्णित परंपराओं पर आधारित है। यहां दी गई तिथियां, मुहूर्त और अनुष्ठान ज्योतिषीय गणनाओं और प्रचलित पंचांगों के अनुसार हैं। हमारा उद्देश्य आपको सटीक, रोचक और तथ्यपरक जानकारी प्रदान करना है, ताकि आप इस महापर्व के महत्व को समझ सकें। हमारा किसी अंधविश्वास को बढ़ावा देने का उद्देश्य नहीं है। किसी भी पूजा-पाठ या व्रत का संकल्प लेने से पहले, अपने क्षेत्र के मान्यता प्राप्त पंडित या धार्मिक गुरु से परामर्श अवश्य लें। श्रद्धा और विश्वास ही किसी भी व्रत का मूल आधार है।