श्रावण पुत्रदा एकादशी क्या वंश बढ़ाने में सहायक है: पढ़ें संपूर्ण जानकारी विस्तार से

05 अगस्त 2025 दिन मंगलवार श्रावण मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी मनेगा।

पुत्रदा एकादशी क्यों करनी चाहिए, जानें पौराणिक कथाएं और उसका महत्व।

संतान की प्राप्ति के लिए लोग पुत्रदा एकादशी व्रत करते हैं। साल में दो बार पुत्रदा एकादशी आती है। अंग्रेजी कैलेंडर के प्रथम महीना जनवरी में पड़ने वाले एकादशी को ही पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं। 
हिंदी कैलेंडर के अनुसार पौष मास, शुक्ल पक्ष, दिन शुक्रवार को पौष पुत्रदा एकादशी और दूसरा सावन माह के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाले को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहलाती है। निसंतान दंपतियों के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत रामबाण की तरह है। इस पुत्रदा एकादशी व्रत को विधि विधान से करने पर संतान की प्राप्ति होती है।

पद्म पुराण के अनुसार सांसारिक सुखों की प्राप्ति और पुत्र इच्छुक भक्तों के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत को फलदायक माना जाता है। संतानहीन या पुत्रहीन जातकों के लिए इस व्रत को बेहद अहम माना गया है।

साल में 24 एकादशी व्रत आती हैं

साल में 24 एकादशी पड़ती हैं

वर्ष भर में 24 एकादशी आती है तथा अधिक मास में दो एकादशी तिथि और बढ़ जाती है। इस प्रकार कुल 26 एकादशी होती है। एकादशी के नाम इस प्रकार है। उत्पन्ना एकादशी, मोक्षदा एकादशी, सफला एकादशी, पुत्रदा एकादशी, जया एकादशी, विजया एकादशी, पापमोषनी एकादशी, कामदा एकादशी, मोनिका एकादशी, योगिनी एकादशी, पवित्रा एकादशी, पुत्रदा एकादशी, अजा एकादशी, इंदिरा एकादशी, रमा एकादशी, पापांकुश एकादशी, देवशयनी एकादशी, निर्जला एकादशी, आमतकी एकादशी, परियसिनी एकादशी, देवात्यानी एकादशी और वरुचिनी एकादशी है। वर्ष भर में कामदा और सफला एकादशी दो बार आती है। 

इस प्रकार कुल मिलाकर साल भर में 24 एकादशी पड़ती है। अधिक मास होने पर पद्मिनी एकादशी और पदमा एकादशी बढ़ जाती है। इस प्रकार को 26 एकादशी हो जाती है।

पुत्र प्राप्ति के लिए क्यों करनी चाहिए पुत्रदा एकादशी का व्रत, जानें महत्व

व्रत एवं उपवास का महत्व हर धर्म में है। प्रत्येक धर्म व्रत करने के लिए आज्ञा देता है, क्योंकि इसका पालन करने से आत्मा और मन की शुद्धि होती है। व्रत या उपवास करने से ज्ञान शक्ति में वृद्धि होती है। 

व्रत एवं उपवास में निषेध आहार का त्याग एवं सात्विक आहार करने का विधान है। इसलिए व्रत एवं उपवास आरोग्य, दीर्घायु की प्राप्ति के लिए उत्तम साधन है, जो मनुष्य निमित्त व्रत करते हैं उन्हें उत्तम स्वास्थ्य तथा दीर्घायु की प्राप्ति के साथ-साथ इस लोक में परम सुख तथा इश्वर के चरण में स्थान मिलता है।

नारद पुराण में व्रतों का महत्व बताते हुए लिखा गया है कि गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, मां के समान कोई गुरु नहीं, भगवान विष्णु जैसा कोई देवता नहीं। व्रतों में एकादशी व्रत को सर्वोपरि माना गया है। 

अपने नाम के अनुरूप फल देने वाली है। जिसका कथा तथा विधि विधान से सुनने पर सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। एकादशी में दो भेद है। पहला नित्य और दूसरा काम्या। एकादशी व्रत बिना किसी फल की इच्छा से किया जाए, तो वह नित्य कहलाती है और यदि किसी प्रकार के फल और धन की प्राप्ति अथवा रोग दोष से मुक्ति के लिए किया हुआ एकादशी व्रत काम्या कहलाती है।

पुत्रदा एकादशी व्रत करने का विधान और क्या मिलता है फल 

पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले स्त्री और पुरुषों को दसवीं वाले दिन मांस, मदिरा, प्याज तथा मसूर की दाल का सेवन करना वर्जित है। पुत्रदा एकादशी वाले दिन सुबह पेड़ से तोड़ी हुई लकड़ी की दातुन नहीं करनी चाहिए। 

इसके स्थान पर नींबू, जामुन तथा आम के पत्तों को चबाकर मुख शुद्धि कर लेना चाहिए। मुंह में उंगली डालकर कंठ शुद्ध करना चाहिए। इस दिन ध्यान रखें पेड़ से पत्तें तोड़ना मना है, अतः पेड़ से गिरे हुए पत्तें का ही प्रयोग करें। पत्तें उपलब्ध नहीं होने पर 12 बार शुद्ध जल लेकर मुख शुद्धि करनी चाहिए। 

फिर स्नान कर मंदिर में जाकर गीता का पाठ करना चाहिए। भगवान विष्णु के सामने खड़े होकर इस प्रकार प्रण करना चाहिए। आज मैं दुराचारी, चोर और पाखंडी मनुष्यों से बात व्यवहार नहीं करूंगा। किसी से कड़वी बात कर उसका दिल नहीं दुखाऊंगा। 

गाय और ब्राह्मणों को फल तथा अन्न देकर प्रसन्न करूंगा। रात्रि जागरण कर कीर्तन करूंगा। ऊं नमो भगवते वासुदेवाय जाप करूंगा। इस प्रकार प्रण लेने के बाद भगवान विष्णु स्मरण कर प्रार्थना करनी चाहिए। तीनों लोकों के स्वामी मेरे प्रण की रक्षा करना। मेरी लाज आपके हाथ में हैै। अतः इस प्रण को पूरा कर सकु ऐसी शक्ति मुझे देना।

पुत्रदा एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगानी चाहिए। कारण झाड़ू करने से सूक्ष्म जीव और चींटियों की मृत्यु हो सकती है। पुत्रदा एकादशी के दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए और ना ही ज्यादा बोलना चाहिए। 

मौन व्रत रखना उत्तम रहेगा। एकादशी वाले दिन यथाशक्ति अन्नदान करना चाहिए, परंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न ग्रहण न करें। असत्य वचन और कुकर्म से दूर रहना चाहिए। एकादशी का व्रत करें और त्रयोदशी को पारण कर लेें। 

फलाहारी व्यक्ति को गोभी, गाजर, शलगम और पालक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए बल्कि आम, अंगूर, केला, सेव, बादाम एवं पिस्ता आदि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए। जो भी फल ले उसमें तुलसी का पत्ता डालकर सबसे पहले भगवान विष्णु का भोग लगा लें इसके बाद ही भोजन करें। इस विधि से व्रत करने वाले मनुष्य को दिव्य फलों की प्राप्ति होती है।


🌸 श्रावण पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा

यह कथा भविष्य पुराण तथा स्कंद पुराण के अनुसार वर्णित है। कथा इस प्रकार है—

👑 भद्रावती नगरी और राजा महिजित की कथा

प्राचीन काल में भद्रावती नामक नगरी थी जो कि चंपक वन में स्थित थी। उस नगरी में महिजित नामक एक राजा राज्य करता था। राजा धर्मपरायण, दयालु, प्रजा का हितकारी और न्यायप्रिय था। उसका राजकार्य उत्तम और व्यवस्था सुदृढ़ थी। लेकिन राजा को एक ही दुःख था—उसे संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी।

राजा और रानी दोनों ही ईश्वर के भक्त थे। उन्होंने अनेक बार ब्राह्मणों को दान, तीर्थ यात्रा, पवित्र स्नान, व्रत उपवास इत्यादि किए, लेकिन फिर भी उन्हें संतान सुख नहीं मिला। उम्र भी धीरे-धीरे बढ़ रही थी, जिससे राजा अत्यंत चिंतित और दुखी रहने लगा।

🧘‍♂️ ऋषि लोमेश से मार्गदर्शन

एक दिन राजा महिजित ने अपने मंत्रियों और पुरोहितों को बुलाकर कहा—

> "हे ब्राह्मणों! हे विद्वानों! मैंने अपने जीवन में कभी पाप नहीं किया। फिर भी मुझे संतान क्यों नहीं प्राप्त हो रही? कृपया मुझे इसका समाधान बताइए।"

राजा के प्रश्न से दुखी होकर सभी ब्राह्मण, पुरोहित और राजपुरोहित जंगल की ओर निकल पड़े और तपस्वी ऋषि लोमेश के आश्रम में पहुंचे। ऋषि लोमेश दीर्घकाल से तपस्या में लीन थे और उन्हें अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों का ज्ञान था।

जब ब्राह्मणों ने ऋषि को राजा की समस्या सुनाई, तो उन्होंने ध्यान लगाकर राजा के पूर्व जन्म को देखा। ध्यान समाप्त कर उन्होंने बताया—

🌀 पूर्वजन्म की कथा

> "राजा महिजित ने अपने पूर्वजन्म में एक वैश्य के रूप में जन्म लिया था। वह व्यवसाय के लिए जलाशयों और सरोवरों के किनारे जाया करता था। एक बार उसने अत्यंत प्यास लगने पर एक जलाशय से पानी पिया, जबकि उस दिन एकादशी तिथि थी और उस समय उसने उपवास नहीं किया था। जल पीने से उसका व्रत टूट गया और वह एकादशी का अपराधी बन गया। इसी पाप के कारण उसे इस जन्म में संतान सुख से वंचित रहना पड़ रहा है।"

🔔 समाधान: श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत के संबंध में ऋषि लोमेश ने आगे बताया—

> "अब उस पाप से मुक्ति पाने के लिए राजा को श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं, का व्रत करना चाहिए। इस व्रत को पूरी श्रद्धा, नियम और विधि से करना चाहिए और ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। ऐसा करने से राजा को निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी।"

ब्राह्मणों ने लौटकर राजा को सब बताया। राजा ने बड़ी श्रद्धा से पुत्रदा एकादशी का व्रत किया। व्रत के दिन प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा, स्तुति, भजन, और धूप-दीप से अर्चना की। रातभर जागरण और भजन संकीर्तन भी किया गया।

अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण कर राजा ने ब्राह्मणों को गाय, भूमि, वस्त्र, स्वर्ण, अन्न और दक्षिणा का दान दिया।

👶 वरदान का फल

कुछ ही महीनों में रानी ने गर्भ धारण किया और समय आने पर एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जो अत्यंत बुद्धिमान, पराक्रमी और धर्मपरायण हुआ। राजा ने पुत्र प्राप्त कर परम आनंद की अनुभूति की और इस व्रत की महिमा को सारे राज्य में प्रचारित किया।

🌼 श्रावण पुत्रदा एकादशी की विशेषताएं 

यह व्रत विशेष रूप से संतान प्राप्ति के इच्छुक दंपत्तियों द्वारा किया जाता है।

स्त्रियां विशेष श्रद्धा से इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करती हैं और अपनी संतान की लंबी उम्र व उत्तम स्वास्थ्य की कामना करती हैं।

व्रत करने से न केवल संतान सुख प्राप्त होता है, बल्कि पूर्व जन्मों के पाप भी क्षीण हो जाते हैं।

जो लोग संतानहीन हैं, उनके लिए यह व्रत वरदान स्वरूप माना गया है।

🙏 श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत विधि संक्षेप में

1. व्रत की पूर्व रात्रि को सात्विक भोजन करें और व्रत का संकल्प लें।

2. व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।

3. भगवान विष्णु की पूजा करें—तुलसी पत्र, पीले पुष्प, पंचामृत से अर्चना करें।

4. दिनभर निर्जल या फलाहार व्रत रखें।

5. शाम को पुनः पूजा करें और श्री विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तुति पढ़ें।

6. रात्रि जागरण करें—भजन, कीर्तन करें।

7. द्वादशी के दिन पारण करें—अर्थात व्रत खोलें।

8. ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र, दान दक्षिणा दें।

🪔 धार्मिक दृष्टिकोण से इसका महत्व

शास्त्रों के अनुसार

> "एकादश्यां तु यो भक्त्या, पुत्रार्थं संप्रयत्नतः। उपवासं करोत्येष, पुत्रपौत्रसमृद्धिमान्॥"

अर्थात—"जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की इच्छा से भक्तिभाव से इस एकादशी व्रत को करता है, वह निश्चित ही पुत्र, पौत्र और वंश वृद्धि में समृद्ध होता है।"

📚 अन्य ग्रंथों में उल्लेख

स्कंद पुराण, भविष्य पुराण, नारद पुराण और पद्म पुराण में इस व्रत की महिमा विशेष रूप से वर्णित है।

भागवत पुराण में कहा गया है कि भगवान विष्णु स्वयं इस दिन भक्तों के व्रत से प्रसन्न होकर उनके पाप नष्ट करते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

🌟 श्रावण पुत्रदा एकादशी: आधुनिक सन्दर्भ में

आज के समय में जब संतान प्राप्ति में अनेक बाधाएं आ रही हैं—आहार, पर्यावरण, जीवनशैली की गड़बड़ियां, मानसिक तनाव आदि—ऐसे में श्रद्धा, विश्वास, और धर्म के सहारे व्रत करना मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास प्रदान करता है। साथ ही पारिवारिक जीवन में शांति, धैर्य और सकारात्मकता लाता है।

🔚 निष्कर्ष

श्रावण पुत्रदा एकादशी केवल व्रत का दिन नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास का वह पर्व है जहां ईश्वर की शरण में जाकर मनुष्य अपने कर्मों के प्रभाव को सुधारने का प्रयास करता है। यह कथा राजा महिजीत के जीवन की तरह हम सभी को यही संदेश देती है कि—

> "पूर्व जन्म के पापों से भी मुक्ति मिल सकती है, यदि हम सच्चे मन से भगवान विष्णु की शरण में जाएं और उनके नाम का स्मरण करें।"

पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त

श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन चारों पहर पूजा करने का विधान है।

सुबह क समय चर मुहूर्त 08:35 बजे से लेकर 10:13 बजे तक, लाभ मुहूर्त 10:13 बजे से लेकर 11:51 बजे तक और अमृत मुहूर्त 11:51 बजे से लेकर 01:29 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार अभिजीत मुहूर्त 11:25 बजे से लेकर 12:17 बजे बजे तक और विजय मुहूर्त 02:02 बजे से लेकर 02:55 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सुबह और दोपहर की पूजा कर सकते हैं। संध्या समय गोधूलि मुहूर्त 06:24 बजे से लेकर 06:40 बजे तक रहेगा इस प्रकार मध्य रात्रि में अमृत मुहूर्त 11:51 बजे से लेकर 1:13 बजे तक और निशिता मुहूर्त 11:30 बजे से लेकर 12:13 बजे तक रहेगा। इस दौरान संध्या और मध्यरात्रि की पूजा अर्चना कर सकते हैं।

पारण 06 अगस्त दिन बुधवार को सुबह लाभ मुहूर्त 05:18 बजे से लेकर 06:57 बजे तक और अमृत मुहूर्त 06:57 बजे से लेकर 08:35 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप पारण कर सकते हैं।

🔖 डिस्क्लेमर (अस्वीकरण)

> इस लेख में प्रस्तुत श्रावण पुत्रदा एकादशी की कथा एवं व्रत विधि पौराणिक ग्रंथों, धार्मिक मान्यताओं और जनश्रुतियों पर आधारित है। यह जानकारी केवल धार्मिक एवं सांस्कृतिक जागरूकता के उद्देश्य से दी गई है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करने से पहले योग्य पंडित या धर्मगुरु से परामर्श अवश्य करें। इस लेख का उद्देश्य किसी भी आस्था या समुदाय की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है।



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