वरुथिनी एकादशी 2026 की संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें। जानें व्रत की विधि, पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त और व्रत से जुड़े नियम। 13 अप्रैल 2026, दिन सोमवार,वैशाख कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली इस एकादशी का महत्व और पूजा सामग्री की सूची यहां देखें।
"भगवान विष्णु के चरणों में अर्पित — वरूथिनी एकादशी 2026 की शुभकामनाएं"
क्या आप वरुथिनी एकादशी का व्रत रखना चाहते हैं? तो यह लेख आपके लिए ही है। इस लेख में आपको वरुथिनी एकादशी से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी मिलेगी, जिसमें इसकी कथा, पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त और पालन किए जाने वाले नियम शामिल हैं। यह लेख आपको 13 अप्रैल 2026 को पड़ने वाली वरुथिनी एकादशी के लिए पूरी तरह से आपके लिए तैयार किया गया है।
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वरुथिनी एकादशी 13 अप्रैल 2026 को: जानें संपूर्ण विधि और महत्व
वरुथिनी एकादशी: एक परिचय
सनातन धर्म में एकादशी का व्रत एक विशेष स्थान रखता है। हर एकादशी का अपना एक अलग महत्व है और प्रत्येक व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। ‘वरुथिनी’ शब्द का अर्थ है ‘सुरक्षा देने वाली’।
यह व्रत अपने नाम के अनुसार ही भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों और पापों से मुक्ति दिलाकर जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य लाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जीवन-मरण के चक्र से बाहर निकल लेता है।
पुराणों में इस व्रत के महत्व को बताते हुए कहा गया है कि इसका पुण्यफल दस हजार वर्ष तक की गई तपस्या के बराबर होता है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को कन्यादान और अन्नदान करने जितना पुण्य प्राप्त होता है, जिसे सभी दानों में सबसे बड़ा माना गया है।
यह लेख आपको वरुथिनी एकादशी के महत्व, उसकी पूजा विधि, व्रत के नियम और एक विस्तृत पौराणिक कथा से परिचित कराएगा।
वरुथिनी एकादशी 2026: तिथि, मुहूर्त और पंचांग
वरुथिनी एकादशी का व्रत 2026 में 13 अप्रैल, दिन सोमवार को पड़ेगा। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाएगी। आइए, जानते हैं इस दिन का पंचांग और शुभ-अशुभ मुहूर्त।
पंचांग के अनुसार वरुथिनी एकादशी (13 अप्रैल 2026):
* एकादशी तिथि का प्रारंभ: 12 अप्रैल 2026, शनिवार, रात 01:16 बजे से
* एकादशी तिथि का समापन: 13 अप्रैल 2026, रविवार, रात 01:08 बजे तक
* सूर्योदय: सुबह 05:27 बजे
* सूर्यास्त: शाम 06:05 बजे
* नक्षत्र: धनिष्ठा शाम 04:03 बजे तक, उसके बाद शतभिषा
* योग: शुभ योग शाम 05:17 बजे तक, उसके बाद शुक्ल योग
* करण: बव सुबह 01:18 बजे तक, उसके बाद बालव
*सूर्य: मीन राशि
* चंद्रमा: कुंभ राशि में
* व्रत पारण का समय: 14 अप्रैल 2026, मंगलवार, सुबह 05:58 बजे से 08:26 बजे तक
पूजा के लिए शुभ और अशुभ मुहूर्त
किसी भी धार्मिक कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि पूजा का फल अधिक से अधिक मिले।
शुभ मुहूर्त (पंचांग के अनुसार):
* अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:21 बजे से 12:11 बजे तक
*विजय मुहूर्त 1:52 से लेकर 2:43 तक
*गोधूलि मुहूर्त संध्या 6:04 से लेकर 6:27 तक
* ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:22 बजे से 05:10 बजे तक
*निशिता मुहूर्त रात 11:30 से लेकर 12:08 तक
*ब्रह्म मुहूर्त सुबह 3:56 से लेकर 4:41 तक
* प्रातः संध्या मुहूर्त: सुबह 04:46 बजे से 05:58 बजे तक
तस्वीर में सनातन पंचांग की एक झलक देखें
अशुभ मुहूर्त:
* राहुकाल: सुबह 07:34 बजे से 09:10 बजे तक
* यमगण्ड काल: सुबह 10:46 बजे से 12:22 बजे तक
पंप* गुलिक काल: दोपहर 01:58 बजे से 03:34 बजे तक
वरुथिनी एकादशी की पूजा विधि
वरुथिनी एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है। इसका पालन सही तरीके से करने पर ही पूर्ण फल मिलता है।
दशमी तिथि (12 अप्रैल 2026) के दिन:
* व्रत रखने वाले व्यक्ति को दशमी तिथि की शाम को सिर्फ एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए।
* भोजन में कांसे के बर्तन का प्रयोग, मांस, मसूर की दाल, शहद, और चने का साग जैसी चीजों का सेवन वर्जित है।
* व्रत का संकल्प लें और मन को शांत रखें।
एकादशी तिथि (13 अप्रैल 2026) के दिन:
* प्रातः स्नान और संकल्प: सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा स्थल को साफ करें। हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
* गौरी-गणेश का पूजन: सबसे पहले गौरी और गणेश का पूजन करें। उन्हें स्नान कराएं, फिर पुष्प, अक्षत और गंध से उनकी पूजा करें।
* भगवान विष्णु की पूजा:
* एक चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
* भगवान का आवाहन करें और उन्हें आसन पर विराजमान होने का निवेदन करें।
* गंगाजल से स्नान कराएं। फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण) से स्नान कराकर फिर से शुद्ध जल से स्नान कराएं।
* अब भगवान को नए वस्त्र, आभूषण और जनेऊ पहनाएं।
* सुगंधित इत्र, पुष्प माला और तुलसी दल अर्पित करें। ध्यान रहे, भगवान विष्णु को तुलसी दल अति प्रिय है।
* तिलक के रूप में चंदन या अष्टगंध का प्रयोग करें
* धूप, दीप और आरती करें। आरती के बाद परिक्रमा करें।
* नैवेद्य: भगवान को तिल, फल और घर में बने सात्विक पकवानों का भोग लगाएं। चावल का प्रयोग वर्जित है, इसलिए प्रसाद में तिल का इस्तेमाल करें।
* व्रत कथा का पाठ: पूजा के बाद वरुथिनी एकादशी की पौराणिक कथा का पाठ जरूर करें। कथा सुनने से व्रत का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।
* रात्रि जागरण: एकादशी की रात को जागरण कर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें और उनका ध्यान करें।
"वरुथिनी एकादशी 2026 पूजा सामग्री – तांबे का लोटा, पंचामृत, तुलसी दल, फूल, फल, धूप-दीप और नैवेद्य सहित पूर्ण थाल"
पूजा सामग्री की सूची
वरुथिनी एकादशी की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है।
* भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर
* तांबे का लोटा और जल कलश
* गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर (पंचामृत के लिए)
* तुलसी दल
* फूल, पुष्प माला
* चंदन या अष्टगंध
* धूप और घी या तेल का दीपक
* वस्त्र, आभूषण, जनेऊ
* मौसमी फल और तिल से बने पकवान (नैवेद्य के लिए)
* पान का पत्ता, सुपारी, लौंग, इलायची
* गंगाजल
* आम के पत्ते
* दक्षिणा (पैसे)
राजा अपनी तपस्या में लीन थे, जब एक भयंकर भालू ने उन पर हमला कर दिया। उसी पल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र उनकी रक्षा के लिए प्रकट हुआ।
वरुथिनी एकादशी की पौराणिक कथा (विस्तार से)
यह कथा महाभारत काल में युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण के बीच हुए संवाद पर आधारित है।
भाग 1: युधिष्ठिर का प्रश्न
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “हे जनार्दन! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप कृपा करके मुझे वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम और उसकी महिमा विस्तारपूर्वक बताएं। इसके व्रत को करने की विधि और इसका फल क्या है?”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज! आपने बहुत ही उत्तम प्रश्न किया है। वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी सौभाग्य प्रदान करने वाली, सभी पापों को नष्ट करने वाली और अंत में मोक्ष देने वाली है। इस व्रत का पालन करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगता है और परलोक में स्वर्ग का अधिकारी बनता है।”
श्रीकृष्ण आगे बताते हैं, “हे कुंती पुत्र! इस एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। इसी एकादशी के प्रताप से अनेक राजाओं ने अपने पापों का नाश करके मोक्ष प्राप्त किया। इस व्रत का फल दस हजार वर्षों की तपस्या के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय एक मन स्वर्ण दान करने से जो पुण्य मिलता है, वह पुण्य अकेले इस एकादशी के व्रत से मिल जाता है।”
भाग 2: राजा मान्धाता की कहानी
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर एक प्रतापी राजा राज्य करते थे, जिनका नाम मान्धाता था। वह अत्यंत दानशील और धर्मपरायण थे। एक बार राजा मान्धाता जंगल में तपस्या कर रहे थे। वे एक शांत स्थान पर ध्यान में लीन थे। तभी अचानक एक भयंकर जंगली भालू वहां आया और उसने राजा के पैर पर हमला कर दिया। भालू राजा को घसीटकर ले जाने लगा।
राजा को बहुत कष्ट हुआ, लेकिन उन्होंने अपनी तपस्या भंग नहीं होने दी। वे भगवान विष्णु को पुकारने लगे, “हे कमलनयन! हे जगदीश्वर! मेरी रक्षा करो! मेरी रक्षा करो!”
भगवान विष्णु ने राजा की पुकार सुनी। उन्होंने तुरंत अपना सुदर्शन चक्र भेजा। सुदर्शन चक्र ने एक ही पल में उस भालू के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। लेकिन तब तक भालू राजा के पैर का कुछ हिस्सा खा चुका था। राजा का पैर कट गया था और उन्हें बहुत पीड़ा हो रही थी।
राजा ने भगवान से प्रार्थना की, “हे प्रभु! मैंने तो कोई पाप नहीं किया, फिर मुझे यह दंड क्यों मिला? मैंने तो हमेशा धर्म का पालन किया है।”
राजा मान्धाता की गहन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र के साथ प्रकट हुए, एक हरे-भरे जंगल और शांत नदी के किनारे।
भगवान विष्णु ने राजा को दर्शन दिए और कहा, “हे वत्स! तुम अपने पूर्व जन्म में एक शिकारी थे। तुमने एक निर्दोष हिरण का शिकार करते समय उसके पैर को बुरी तरह से घायल कर दिया था। उसी पाप के कारण तुम्हें इस जन्म में यह कष्ट भुगतना पड़ा है।”
राजा मान्धाता ने विनम्रतापूर्वक पूछा, “हे प्रभु! क्या इस पाप से मुक्ति का कोई उपाय है?”
भगवान ने मुस्कुराते हुए कहा, “हे राजन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। तुम इसका विधि-विधान से व्रत करो। मेरे प्रभाव से तुम्हारा पैर पुनः ठीक हो जाएगा और तुम्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। इस व्रत के प्रभाव से तुम्हारी सभी कामनाएं पूर्ण होंगी और तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।”
भगवान के वचन सुनकर राजा मान्धाता बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसी समय भगवान के बताए अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनका पैर ठीक हो गया और वे फिर से स्वस्थ हो गए। इस व्रत के प्रताप से उन्हें अंत में स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई।
भाग 3: दान का महत्व और व्रत का फल
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को आगे बताया, “हे धर्मराज! वरुथिनी एकादशी के व्रत का फल अनेक बड़े-बड़े दानों के बराबर है। शास्त्रों में दान का महत्व बताया गया है। हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि का दान श्रेष्ठ है। भूमि के दान से तिलों का दान श्रेष्ठ है। तिलों के दान से स्वर्ण का दान श्रेष्ठ है। लेकिन इन सबमें अन्न का दान सबसे श्रेष्ठ है।”
“अन्न दान के समान कोई दान नहीं है। अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त होते हैं। इसलिए अन्नदान को महादान कहा गया है। शास्त्रों में इसे कन्यादान के समान पुण्यदायी माना गया है।”
“हे धर्मराज! वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अन्नदान और कन्यादान दोनों का फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश में होकर अपनी बेटी का धन लेता है, वह प्रलय काल तक नरक भोगता है। लेकिन जो व्यक्ति अपनी सामर्थ्य के अनुसार कन्यादान करता है, उसके पुण्य को स्वयं चित्रगुप्त भी लिख नहीं पाते। ऐसे व्यक्ति को अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।”
“इसलिए, हे राजन्! मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए और वरुथिनी एकादशी का व्रत विधि-विधान से करना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को सुनने या पढ़ने मात्र से एक हजार गोदान का फल मिलता है और गंगा स्नान से भी अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।”
"राजा मान्धाता की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर सुदर्शन चक्रधारी भगवान विष्णु का दिव्य प्रकट होना"
व्रत के नियम: क्या करें और क्या न करें?
वरुथिनी एकादशी का व्रत करते समय कुछ नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। ये नियम व्रत की शुद्धता और पूर्णता सुनिश्चित करते हैं।
व्रत के दिन भूलकर भी न करें ये 09 काम
* कांसे के बर्तन में भोजन: कांसे के बर्तन में भोजन और पानी का सेवन वर्जित है।
* मांस का सेवन: मांस-मदिरा का सेवन बिल्कुल न करें।
* मसूर की दाल: मसूर की दाल और चने का साग न खाएं।
* शहद का सेवन: मधु (शहद) का सेवन भी इस दिन वर्जित है।
* दूसरे का अन्न: किसी दूसरे व्यक्ति का दिया हुआ अन्न या भोजन न खाएं।
* दोबारा भोजन: दिन में एक बार से ज्यादा भोजन न करें।
* स्त्री प्रसंग: ब्रह्मचर्य का पालन करें और स्त्री प्रसंग से दूर रहें।
* जुआ खेलना: किसी भी तरह का जुआ या अनैतिक कार्य न करें।
* दातुन करना: दातुन का प्रयोग भी इस दिन नहीं करना चाहिए।
व्रत के दिन इन बातों का रखें ध्यान
* नमक और तेल का त्याग: व्रत के दिन नमक और तेल का सेवन बिल्कुल न करें।
* क्रोध और निंदा: किसी की निंदा न करें, न ही किसी पर क्रोध करें।
* मीठा बोलें: मीठे और सत्य वचन बोलें, झूठ बोलने से बचें।
* पापी लोगों से दूरी: दुष्ट और पापी लोगों की संगति और बातचीत से बचें।
* रात्रि जागरण: रात में जागरण कर भगवान का भजन-कीर्तन करें।
व्रत का पारण: कैसे खोलें व्रत?
एकादशी का व्रत द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद ही खोला जाता है। व्रत का पारण सही समय पर करना बहुत महत्वपूर्ण है।
* पारण का समय: 14 अप्रैल 2026, मंगलवार, सुबह 05:58 बजे से 08:26 बजे तक।
* पारण की विधि:
* सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करें।
* किसी ब्राह्मण या गरीब को भोजन कराकर दक्षिणा दें।
* इसके बाद व्रत का पारण करें।
* पारण के भोजन में सात्विक चीजें जैसे फल, मिठाई और शुद्ध पकवान शामिल करें।
निष्कर्ष
वरुथिनी एकादशी का व्रत न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह व्यक्ति को आत्मशुद्धि और संयम का पाठ भी सिखाता है। यह व्रत हमें दान के महत्व और सद्कर्मों के फल की याद दिलाता है। राजा मान्धाता की कथा हमें बताती है कि सच्चे मन से किया गया व्रत हमारे सभी पापों का नाश कर हमें मोक्ष की ओर ले जाता है। 13 अप्रैल 2026 को इस व्रत का पालन कर आप भी भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर सकते हैं
क्या आप भी इस साल वरुथिनी एकादशी का व्रत करने की योजना बना रहे हैं? हमें बताएं कि आप किस तरह से इस व्रत की तैयारी करते हैं!
Disclaimer
यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य वरुथिनी एकादशी से संबंधित जानकारी प्रदान करना है। इसमें दी गई तिथि, मुहूर्त और विधियां पंचांगों के गहन अध्ययन पर आधारित हैं। हम किसी भी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। किसी भी पूजा या अनुष्ठान को करने से पहले आप अपने घर के बड़े-बुजुर्गों या विद्वान पंडित से सलाह ले सकते हैं। इस लेख का एकमात्र उद्देश्य आपको धार्मिक और सांस्कृतिक ज्ञान से अवगत कराना है।