करम पूजा Karm Puja 2025: तिथि, शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा और व्रत का विधान

 करम पूजा 2025: भाई-बहन के अटूट प्रेम और प्रकृति पूजन का महापर्व। जानें करम पूजा की पूरी जानकारी - 03 सितंबर, बुधवार को मनाया जाएगा यह पर्व। पौराणिक कथा, व्रत विधि, शुभ मुहूर्त और भाई-बहन के प्रेम का महत्व। झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार में विशेष।

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"करम पूजा की यह तस्वीर: भाई-बहन के अटूट प्रेम और प्रकृति पूजन का महापर्व।"

पद्म कर्मा पर्व, जिसे आमतौर पर करम पूजा के नाम से जाना जाता है, भाई-बहन के पवित्र रिश्ते, प्रकृति के सम्मान और कृषि समृद्धि का एक अनूठा और जीवंत त्योहार है। यह पर्व हर साल भाद्रपद (भादो) महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। 

वर्ष 2024 में, यह शुभ दिन 03 सितंबर, बुधवार को पड़ रहा है, जो पद्म एकादशी के साथ ही है। मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, बिहार और बंगाल के आदिवासी समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला यह त्योहार, अपनी समृद्ध परंपराओं और गहरी पौराणिक कथाओं के लिए जाना जाता है।

करम पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के साथ मानव के गहरे संबंध, कृषि के महत्व और पारिवारिक बंधनों की मजबूती का प्रतीक है। यह वह समय है जब बहने अपने भाइयों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए उपवास रखती हैं और करम देवता की पूजा करती हैं, जिन्हें फसलों और खुशहाली का अधिष्ठाता माना जाता है।

करम पूजा का महत्व: प्रकृति, प्रेम और समृद्धि का संगम

करम पूजा का महत्व कई स्तरों पर देखा जा सकता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि किस प्रकार प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके ही हम वास्तविक सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी जीविका और कल्याण सीधे तौर पर धरती माता और उसकी उपज से जुड़े हैं।

भाई-बहन का अटूट बंधन: करम पूजा का सबसे हृदयस्पर्शी पहलू भाई-बहन के रिश्ते का उत्सव है। बहनें अपने भाइयों के लिए निष्ठापूर्वक व्रत रखती हैं, उनकी सलामती और उन्नति के लिए प्रार्थना करती हैं। यह उनके बीच के निस्वार्थ प्रेम, त्याग और एक-दूसरे के प्रति समर्पण का प्रतीक है। यह सिर्फ एक दिन का उपवास नहीं, बल्कि जीवन भर के साथ का एक सुंदर संकल्प है।

हरे-भरे खेतों के बीच, करमा पूजा का पावन दृश्य: बहनों द्वारा भाइयों को आशीर्वाद और शुभकामनाएं देती हुई।"

कृषि और समृद्धि का पर्व: आदिवासी समुदाय मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, और करम पूजा उनकी कृषि प्रधान संस्कृति का अभिन्न अंग है। करम देवता को फसलों और समृद्धि का देवता माना जाता है। इस पर्व के माध्यम से, किसान अच्छी फसल के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं और आने वाले समय में खुशहाली की कामना करते हैं। यह एक तरह से प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी तरीका है, जिसने उन्हें जीवन और पोषण दिया है।

सांस्कृतिक पहचान और एकजुटता: करम पूजा आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन है। यह उन्हें अपनी परंपराओं को जीवित रखने, अपनी भाषा, संगीत और नृत्य को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का अवसर प्रदान करता है। इस पर्व के दौरान सामूहिक नृत्य, गीत और कहानियों का आदान-प्रदान होता है, जिससे समुदाय में एकता और सौहार्द की भावना मजबूत होती है। यह एक ऐसा त्योहार है जो लोगों को एक साथ लाता है, मतभेदों को भुलाकर एकजुटता का जश्न मनाता है।

पद्म कर्मा पर्व की मनमोहक पौराणिक कथा: धर्म, कर्म और प्रकृति का पाठ

करम पूजा की जड़ें एक गहरी और शिक्षाप्रद पौराणिक कथा में निहित हैं, जो हमें धर्म, कर्म और प्रकृति के सम्मान का महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। यह कथा सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक मार्गदर्शक सिद्धांत है।

प्राचीन काल में, एक हरा-भरा गांव था जहां करमा और धरमा नाम के दो भाई रहते थे। करमा बड़ा भाई था, जो व्यापार में माहिर था। उसका मानना था कि जीवन में सफलता केवल अथक परिश्रम, धन संचय और व्यापारिक चतुराई से ही प्राप्त होती है। वह अपने काम में इतना लीन रहता था कि अक्सर आध्यात्मिक या धार्मिक अनुष्ठानों को व्यर्थ मानता था।

"करमा और धरमा: दो भाई, दो राहें - करमा पर्व की पौराणिक कथा का चित्रण।"

इसके विपरीत, धरमा, छोटा भाई, अत्यंत धार्मिक और प्रकृति प्रेमी था। वह खेती-बाड़ी में संलग्न रहता था और उसका अटूट विश्वास था कि जीवन की सच्ची समृद्धि केवल धर्म, ईमानदारी और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने से ही आती है। वह हर सुबह सूर्योदय से पहले उठकर धरती माता का नमन करता, अपने खेतों की सेवा करता और नियमित रूप से पूजा-पाठ में लीन रहता था। धरमा का जीवन सादगी, भक्ति और प्रकृति के प्रति गहन सम्मान का प्रतीक था।

एक दिन, करमा ने एक बड़े व्यापारिक अभियान पर विदेश जाने का निश्चय किया। उसने धरमा को अपने व्यापार की देखभाल करने और परिवार का ध्यान रखने का जिम्मा सौंपा। वर्षों तक करमा परदेस में रहा, अथक परिश्रम किया और विपुल धन कमाकर लौटा। उसका जहाज सोने-चांदी, रेशमी वस्त्रों और दुर्लभ रत्नों से भरा हुआ था। जब वह अपने गांव के करीब पहुंचा, तो उसके मन में एक लहर उठी कि वह अपने छोटे भाई धरमा को बुलाए और उसे अपनी सफलता दिखाए।

लेकिन जब करमा अपने घर पहुंचा, तो उसने देखा कि धरमा घर के आंगन में स्थापित एक छोटे से मंडप में, परिवार और गांव के अन्य लोगों के साथ, एक पवित्र पूजा अनुष्ठान में लीन था। वे करम देवता की पूजा कर रहे थे, जिन्होंने उन्हें अच्छी फसल और समृद्धि प्रदान की थी। पूजा में इतनी तन्मयता थी कि धरमा को अपने बड़े भाई के आगमन का तत्काल आभास नहीं हुआ।

करमा पर्व की कथा का जीवंत चित्रण: जहां धर्म और अहंकार का टकराव होता है। "पूजा स्थल पर हंगामा करता करमा। यह करम पर्व की पौराणिक कथा से प्रेरित एक दृश्य।"

करमा, जिसने अपने व्यापारिक अभियानों में कठोरता और त्वरित परिणामों की अपेक्षा की थी, अपने छोटे भाई की इस 'देरी' से क्रोधित हो उठा। उसने सोचा कि उसके भाई ने उसके आगमन पर उचित सम्मान नहीं दिया। क्रोध में अंधा होकर, उसने बिना सोचे-समझे पूजा के पवित्र सामग्रियों को, जिसमें फूल, फल और अनाज शामिल थे, अपमानित करते हुए लात मारकर कूड़ेदान में फेंक दिया। उसके मन में धर्म के प्रति कोई सम्मान नहीं था, केवल अपनी व्यापारिक सफलता का अहंकार था।

इस अपमानजनक कृत्य का परिणाम तत्काल दिखाई दिया। करमा पर देवी-देवताओं का प्रकोप टूट पड़ा। उसका सारा धन, जो उसने वर्षों के परिश्रम से कमाया था, देखते ही देखते नष्ट हो गया। उसके व्यापारिक संबंध टूट गए, उसकी फसलें सूख गईं, और उसका जीवन घोर दरिद्रता और दुर्भाग्य से घिर गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है। वह अपनी धन-दौलत और समृद्धि को खोकर हताश और निराश हो गया।

धरमा, जिसने करमा के कृत्य को देखा था, अत्यंत दुखी हुआ। उसने अपने भाई को समझाया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। उसने करमा को बताया कि धर्म, प्रकृति और देवताओं का अपमान करने का परिणाम कितना भयानक हो सकता है। उसने करमा को पश्चाताप करने और क्षमा याचना करने की सलाह दी।

करमा को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने देखा कि धरमा, जिसने धर्म और प्रकृति का सम्मान किया था, अभी भी सुखी और समृद्ध था, जबकि वह, जिसने इन सभी का अपमान किया था, बर्बाद हो गया था। पश्चाताप की अग्नि में तपकर, करमा ने धरमा के साथ मिलकर देवी-देवताओं से क्षमा याचना की। उन्होंने पवित्र नदियों में स्नान किया, उपवास रखा और करम देवता की सच्चे मन से पूजा की। उन्होंने अपनी गलती स्वीकार की और प्रकृति के प्रति सम्मान का संकल्प लिया।

करमा और धरमा की भक्ति से प्रसन्न हुए भगवान विष्णु: धर्म के पालन का दिव्य प्रतिफल। "करमा पर्व की पौराणिक कथा का सार: भक्ति और पश्चाताप का फल।"

उनकी सच्ची भक्ति और पश्चाताप से देवता प्रसन्न हुए। धीरे-धीरे, करमा की किस्मत सुधरने लगी। उसका व्यापार फिर से फलने-फूलने लगा, और उसने खोई हुई संपत्ति फिर से प्राप्त कर ली। इस बार, करमा ने अपने जीवन में धर्म, ईमानदारी और प्रकृति के सम्मान को सर्वोच्च स्थान दिया। दोनों भाइयों ने साथ मिलकर जीवन को सुख और समृद्धि से जिया, यह समझते हुए कि कर्म के साथ ही धर्म का पालन करना अनिवार्य है।

यह पौराणिक कथा हमें सिखाती है कि भौतिक सफलता चाहे कितनी भी क्यों न हो, यदि वह धर्म और नैतिकता के आधार पर नहीं है, तो वह क्षणभंगुर होती है। प्रकृति और उसके तत्वों का सम्मान करना हमारे अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि अहंकार और क्रोध हमें पतन की ओर ले जाते हैं, जबकि विनम्रता, पश्चाताप और सही रास्ते पर चलना हमें जीवन में वास्तविक सुख और समृद्धि प्रदान करता है।

पद्म कर्मा पर्व व्रत का विधान: साधना, संकल्प और समर्पण

करम पूजा का व्रत विशेष रूप से अविवाहित लड़कियों द्वारा अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है। यह व्रत केवल उपवास नहीं, बल्कि गहरी आस्था, समर्पण और प्रकृति के साथ जुड़ाव का एक सुंदर अनुष्ठान है।

व्रत की शुरुआत और 'जावा' तैयार करना

करम व्रत की शुरुआत भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को होती है। व्रत की तैयारी कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक अनुष्ठानों में से एक है 'जावा' तैयार करना।

मिट्टी का चयन: व्रतधारी लड़कियां नदी, तालाब या किसी पवित्र जलस्रोत से शुद्ध बालू (मिट्टी) एकत्र करती हैं। यह मिट्टी पवित्रता और उर्वरता का प्रतीक है।

बीजों का अंकुरण: इस मिट्टी को एक बांस की टोकरी या मिट्टी के बर्तन में रखा जाता है। फिर इसमें नौ प्रकार के अनाज के बीज (जैसे जौ, चना, मक्का, मूंग, मसूर, धान, बाजरा, गेहूं, आदि) बोए जाते हैं।

"जावा की हरियाली में बहनों की भक्ति: करमा पर्व का पवित्र अनुष्ठान।"करमा पूजा की तैयारी: जावा के अंकुरित पौधे और बहनों की प्रार्थना की सुंदर तस्वीर।"

देखभाल और अंकुरण: इन बीजों को सावधानीपूर्वक पानी दिया जाता है और हर सुबह इनकी देखभाल की जाती है ताकि वे अंकुरित हो सकें। ये अंकुरित बीज 'जावा' कहलाते हैं। जावा का हरा-भरा उगना शुभ माना जाता है और यह अच्छी फसल और समृद्धि का प्रतीक है। जावा का उगना जीवन, विकास और आशा का प्रतिनिधित्व करता है।

उपवास और प्रार्थनाएं

करम व्रतधारी लड़कियां 3, 5, 7 या 9 दिनों तक उपवास रखती हैं। उपवास की अवधि व्यक्तिगत श्रद्धा और परंपरा पर निर्भर करती है।

निर्जल या फलाहार: कुछ लड़कियां निर्जल उपवास रखती हैं, जबकि अन्य फलाहार या एक समय का भोजन करती हैं, जिसमें बिना नमक का भोजन या फल शामिल होते हैं।

विशेष प्रार्थनाएं और गीत: उपवास के दौरान, वे विशेष प्रार्थनाएं करती हैं और करम देवता को समर्पित पारंपरिक गीत गाती हैं। ये गीत भाइयों की सुरक्षा, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए होते हैं। इन गीतों में प्रकृति और करम देवता की महिमा का गुणगान होता है।

शुद्धता का पालन: व्रत के दौरान शारीरिक और मानसिक शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह आत्मा को शुद्ध करने और सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने का समय होता है।

करम डाली लाना और स्थापना

पूजा के मुख्य दिन, गांव के पुरुष और महिलाएं मिलकर करम की एक पवित्र डाली (शाखा) को जंगल से काट कर लाते हैं।

उत्सवपूर्ण आगमन: करम की डाली को गांव में ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक नृत्यों के साथ लाया जाता है। यह एक उत्सव का माहौल बनाता है।

"करम डाली की स्थापना: गांव की एकता और परंपरा का प्रतीक।"करम पूजा का शुभारंभ: गांव के बीच में करम डाली लगाते ग्रामीण।"

अखाड़े में स्थापना: इस डाली को गांव के केंद्रीय स्थान पर बने 'अखाड़े' (एक विशेष पूजा स्थल) में स्थापित किया जाता है। अखाड़े को फूलों, पत्तियों, और गोबर से सजाया जाता है, जो पवित्रता और शुभता का प्रतीक है।पूजा की तैयारी: डाली स्थापित होने के बाद, पूजा की अंतिम तैयारियां की जाती हैं।

करम देवता की पूजा और कथा श्रवण

करम डाली स्थापित होने के बाद, करम देवता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है।

पूजा सामग्री: पूजा में विभिन्न प्रकार की सामग्री का उपयोग होता है, जिसमें अनाज (विशेषकर नए फसल के दाने), सिंदूर, धान, सुपारी, दूध, घी, मौसमी फल, मिठाईयां और ताजे फूल शामिल हैं। ये सभी सामग्रियां समृद्धि, उर्वरता और प्रकृति के उपहारों का प्रतीक हैं।

धूप-दीप और अगरबत्ती: वातावरण को सुगंधित और पवित्र बनाने के लिए धूप, दीप और अगरबत्ती जलाई जाती है।

कथा श्रवण: पूजा के दौरान, पुरोहित या गांव के बुजुर्ग करमा और धरमा की पौराणिक कथा सुनाते हैं। यह कथा पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह व्रत के पीछे के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को सुदृढ़ करती है। कथा सुनते समय सभी भक्त शांति और श्रद्धा से बैठे रहते हैं।

सामूहिक नृत्य और गीत

पूजा और कथा श्रवण के बाद, वातावरण उत्साह और आनंद से भर उठता है।

ढोल-नगाड़ों की थाप: महिलाएं और पुरुष ढोल, नगाड़ों, मांदर और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। यह नृत्य उनकी खुशी, एकता और त्योहार के प्रति उत्साह का प्रतीक है।

पारंपरिक गीत: करम से संबंधित पारंपरिक गीत गाए जाते हैं, जो प्रकृति, प्रेम और भाईचारे की भावना को व्यक्त करते हैं। यह देर रात तक चलने वाला एक जीवंत आयोजन होता है।

छऊ नृत्य का जीवंत प्रदर्शन: करमा पर्व के दौरान आदिवासी संस्कृति का जश्न।"लाल और सफेद रंग में सजी महिलाएं, मोरपंख से सजे पुरुष: छऊ नृत्य की अद्भुत कला।"

सामाजिक समरसता: यह समय सामाजिक मेलजोल, हंसी-मजाक और सामुदायिक बंधनों को मजबूत करने का होता है।

करम डाली का विसर्जन

पूजा के अगले दिन, करम डाली का विसर्जन किया जाता है।

जल में विसर्जन: करम की डाली को फिर से ढोल-नगाड़ों और गीतों के साथ गांव के पास की नदी या तालाब में ले जाया जाता है और पवित्र जल में विसर्जित कर दिया जाता है।

वातावरण: विसर्जन के दौरान भी वातावरण संगीत मय रहता है और लोग भावुक होते हैं, क्योंकि यह त्योहार के समापन का प्रतीक होता है।

प्रतीकात्मक महत्व: डाली का विसर्जन प्रकृति को वापस लौटाने और उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक प्रतीकात्मक कार्य है, यह दर्शाता है कि हम प्रकृति से जो कुछ लेते हैं, उसे वापस भी लौटाना चाहिए।

इस प्रकार, करम व्रत संपन्न होता है, जो भाई-बहन के प्रेम, प्रकृति के प्रति सम्मान और सामुदायिक एकजुटता का एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करता है।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त: 03 सितंबर 2025

करम पूजा मुख्य रूप से संध्या समय में की जाती है, क्योंकि यह गोधूलि बेला का समय होता है, जिसे शुभ और पवित्र माना जाता है। 03 सितंबर 2025 को करम पूजा के लिए निम्नलिखित शुभ मुहूर्त हैं:

गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:01 बजे से लेकर शाम 06:23 बजे तक। यह वह समय होता है जब दिन और रात का मिलन होता है, और इसे पूजा-पाठ के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

लाभ मुहूर्त: शाम 04:26 बजे से लेकर शाम 06:01 बजे तक। 'लाभ' का अर्थ है फायदा, और इस मुहूर्त में पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

करम त्योहार में पूजा अर्चना करने के लिए शुभ मुहूर्त का होना बहुत ही जरूरी है।

शुभ मुहूर्त: रात 07:27 बजे से लेकर रात 08:53 बजे तक। यह मुहूर्त भी पूजा और किसी भी शुभ कार्य के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है।

अमृत मुहूर्त: रात 8:53 बजे से लेकर 10:19 बजे तक रहेगा।

व्रतधारी महिलाएं और परिवार के सदस्य अपनी सुविधा और स्थानीय परंपरा के अनुसार इन शुभ मुहूर्तों में भगवान करम और धरमा की पूजा-अर्चना कर सकते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि पूजा श्रद्धा और सच्चे मन से की जाए, क्योंकि ईश्वर भक्ति भाव को देखते हैं।

करम पूजा का व्यापक प्रभाव: सनातन धर्म और आदिवासी परंपराओं का मिलन

करम पर्व केवल आदिवासी समुदाय का त्योहार नहीं है, बल्कि यह सनातन धर्म की व्यापकता और विविधता का भी एक सुंदर उदाहरण है। यह दर्शाता है कि सनातन धर्म कैसे विभिन्न सांस्कृतिक पहचानों को आत्मसात करता है और प्रकृति-पूजन तथा नैतिक मूल्यों को महत्व देता है।

यह त्योहार हमें सिखाता है कि हम सभी प्रकृति के साथ जुड़े हुए हैं, और उसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है। यह भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता को उजागर करता है और परिवारिक मूल्यों को सुदृढ़ करता है। करम पूजा एक ऐसा अवसर है जब समुदाय एक साथ आता है, अपनी जड़ों को याद करता है, और भविष्य के लिए आशा और समृद्धि की कामना करता है।

निष्कर्ष यह निकला है कि: यह एक अमूल्य विरासत है आदिवासियों का

करम पूजा 2025, 03 सितंबर को, एक बार फिर हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने का अवसर प्रदान करेगा। यह त्योहार न केवल भाई-बहन के प्रेम को दर्शाता है, बल्कि यह हमें धर्म, कर्म और प्रकृति के सम्मान का भी महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाता है। 

यह आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा है, जिसे हमें संरक्षित और प्रचारित करना चाहिए। यह एक ऐसा पर्व है जो हमें आधुनिक जीवन की भागदौड़ में भी अपनी आध्यात्मिक और प्राकृतिक जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है। करम पूजा एक त्योहार से कहीं बढ़कर है; यह जीवन जीने का एक तरीका है।

अस्वीकरण (Disclaimer)

यह लेख पद्म कर्मा पर्व से संबंधित जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें आदिवासी समुदाय के विद्वान पहनों के विचारों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों का समावेश किया गया है। पूजा के शुभ मुहूर्त पंचांग के आधार पर दिए गए हैं। इस लेख का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म के इस महत्वपूर्ण त्योहार के प्रति जागरूकता बढ़ाना और इसके सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक महत्व को उजागर करना है।


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