जानिए मोहिनी एकादशी 2025 की तिथि, व्रत विधि, शुभ मुहूर्त, धार्मिक महत्त्व, व्रत की तीन पौराणिक कथाएं और इस दिन क्या करें और क्या न करें – सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में।
01. प्रस्तावना: एकादशी व्रत का आध्यात्मिक महत्व
सनातन (हिंदू) धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे मास के शुक्ल व कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को रखा जाता है। मोहिनी एकादशी, वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है, और इसे भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की स्मृति में मनाया जाता है।
* भगवान विष्णु के दिव्य आशीर्वाद से, आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे। मोहिनी एकादशी 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं।
02. मोहिनी एकादशी 2025 की तिथि
तिथि: गुरुवार, 08 मई 2025
एकादशी तिथि प्रारंभ: 07 मई 2025 को सुबह 10:19 बजे से प्रारंभ होकर
एकादशी तिथि समाप्त: 08 मई 2025 को प्रातः 12:29 बजे तक रहेगा
पारण का समय: 09 मई 2025 को प्रातः 05:08 बजे से लेकर 06:47 बजे तक रहेगा।
विशेष: मोहिनी एकादशी व्रत वैष्णव और स्मार्त समुदाय के अनुसार भिन्न दिन पारण हो सकता है।
03. मोहिनी एकादशी का नाम और उसका रहस्य
'मोहिनी' शब्द का अर्थ होता है—मोह या आकर्षण में डालने वाली। यह वही रूप है जिसमें भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय देवताओं को अमृत दिलाने हेतु मोहिनी अवतार लिया था। यह व्रत जीवन की नकारात्मक शक्तियों पर विजय पाने और आध्यात्मिक उन्नति हेतु अत्यंत फलदायक माना गया है।
04. मोहिनी एकादशी की पौराणिक कथाएं (पदम पुराण व व्रतार्क एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार)
पौराणिक कथा:
प्राचीन समय में एक सुंदर नगरी में ‘धृतिमान’ नामक एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। एक दिन वह अपने राज्य के जंगल में भ्रमण कर रहा था, तभी उसने एक तपस्वी ऋषि को ध्यान में लीन देखा। पूछने पर ऋषि ने उन्हें मोहिनी एकादशी के व्रत का महात्म्य बताया।
उन्होंने बताया कि एक बार ब्रह्माजी ने वशिष्ठ ऋषि को यह व्रत बताया था, जिससे उन्होंने जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति पाई। यही व्रत स्वर्ग, मोक्ष, यश, और पुण्य का सुलभ द्वार है।
समुद्र मंथन से जुड़ी कथा:
जब देवता और असुर अमृत के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर असुरों को मोहित कर दिया और अमृत देवताओं को दिलाया। उस दिन एकादशी तिथि थी और तभी से इसे मोहिनी एकादशी कहा गया।
पांच पुत्रों की पारंपरिक और पौराणिक कथा
एक समय की बात है सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में चंद्रवंशी राजा द्युतिमान राज करता था। उस नगरी में धन-धान्य से संपन्न व पुण्य करने वाला धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु, कृपालु और श्रीहरि भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, तालाब, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, पीपल, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके पांच पुत्र हुए। जिसके नाम इस प्रकार है सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि।
छोटा बेटा निकला अधर्मी और दुराचारी
इनमें से पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी और अधर्मी था। वह पितर, बड़े बुजुर्ग आदि को नहीं मानता था। वह वेश्यागामी, दुराचारी व्यक्तियों की संगति में रहकर जुआ खेलता, शराब पीता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता था तथा मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।
दुराचारी पुत्र को पिता ने घर से निकाला
इन्हीं सभी कारणों से दुखी होकर पिता ने उसे घर और जमीन-जायदाद से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने साथ लेकर आए हुए गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ खत्म होने के बाद वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से मरने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया।
चोरी करने पर मिला कारागार
एक बार वह चोरी करते पकड़ा गया तो राजा ने वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगर से निकल जाने का आदेश दे दिया।
कारागार से निकल बहेलिया बना
वह उस नगरी से निकलकर धने वन में चला गया। वन में पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय बाद वह बहेलिया का रूप धारण कर लिया। उक्त बहेलिया धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मारने लगा और आग में पकाकर खाने लगा।
* गंगा के तट पर, ऋषि ने बहेलिया को मोहिनी व्रत के महत्व और उसे करने की विधि समझाई। ज्ञान और भक्ति का अद्भुत संगम को दर्शाता यह तस्वीर।
ऋषि के प्रभाव से से आया सद्बुद्धि
एक दिन बहेलिया भूख-प्यास से व्याकुल होकर वह खाने की तलाश में घूमते-फिरते हुआ कौंडिल्य ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उस समय वैशाख मास चल रहा था और ऋषि गंगा स्नान करके आ रहे थे। ऋषि कौंडिल्य के भीगे वस्त्रों के छींटे उस पापी बहेलिया पर पड़ने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई।
बहेलिया ने किया मोहिनी एकादशी व्रत
बहेलिया ने कौंडिल्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुनि श्रेष्ठ ! हमने जीवन में बहुत ज्यादा पाप किए हैं। आप इन सभी पापों से छूटकारा पाने का कोई सरल उपाय बताए, जो बिना धन से किया जाता है। बहेलिया के दीन और हीन वचन सुनकर मुनि को प्रसन्नता हुई। उन्होंने कहा कि तुम वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इस व्रत करने से तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।
व्रत का प्रभाव बलिया को मिली मुक्ति
हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत को करने से मोह-माया, सभी तरह के पाप सहित सब कुछ नष्ट हो जाते हैं। इस धरा पर इस व्रत से श्रेष्ठ कोई दूसरा व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्रणियों को प्राप्त होता है।
05. मोहिनी एकादशी व्रत विधि (पूजन विधि चरणबद्ध)
व्रत की पूर्व संध्या (दशमी):
सात्विक भोजन करें।
संकल्प लें कि अगले दिन एकादशी का व्रत करेंगे।
रात्रि में भगवान विष्णु का नाम-स्मरण करते हुए सोएं।
एकादशी व्रत दिनचर्या:
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।
भगवान विष्णु का विधिवत पूजन करें –
पीले पुष्प, तुलसी दल, पीले वस्त्र, चंदन, दीप, धूप, नैवेद्य आदि से पूजा करें।
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का 108 बार जाप करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
पूरे दिन उपवास रखें। निर्जल या फलाहार विकल्प चुनें।
रात्रि जागरण करें और हरि नाम संकीर्तन करें।
द्वादशी पारण:
अगले दिन द्वादशी को सूर्योदय के बाद व पारण मुहूर्त में व्रत खोलें।
ब्राह्मणों को भोजन व दान दें।
06. मोहिनी एकादशी का महत्त्व (आध्यात्मिक व सामाजिक)
जीवन के कष्टों से मुक्ति का मार्ग
पुण्य अर्जन व मोक्ष प्राप्ति
पितृ दोष व ग्रह बाधा से राहत
ध्यान, साधना व आत्मविकास का उत्तम अवसर
07. क्या करें मोहिनी एकादशी के दिन?
एकादशी के दिन क्या न करें:
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान
पीले वस्त्र पहनना
तुलसी दल अर्पण
विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ
संकीर्तन व ध्यान
न करें न करें एकादशी के दिन:
अन्न, चावल व लहसुन-प्याज का सेवन
क्रोध, असत्य, निंदा
हिंसा, आलस्य
बाल काटना या दाढ़ी बनवाना
08. मोहिनी एकादशी के लाभ (धार्मिक ग्रंथों के अनुसार)
पद्म पुराण: इस व्रत से सौ अश्वमेध यज्ञ और हजारों तीर्थ यात्राओं का फल मिलता है।
विष्णु पुराण: यह व्रत पापों का नाश करता है और पुण्य का संचय करता है।
स्कंद पुराण: व्रती को चंद्रलोक की प्राप्ति होती है और अंत में वैकुंठ की प्राप्ति होती है।
09. वैश्विक महत्व और उत्सव की झलकियाँ
भारत के कई तीर्थ क्षेत्रों में मोहिनी एकादशी पर विशेष आयोजन होते हैं, जैसे –
उज्जैन महाकालेश्वर मंदिर: विशेष विष्णु पूजा
मथुरा-वृंदावन: हरि नाम संकीर्तन
जगन्नाथ पुरी: रात्रि जागरण व विशेष भोग
नेपाल और बांग्लादेश में भी: विष्णु मंदिरों में दर्शन हेतु विशेष भीड़
10. संतों और महापुरुषों की दृष्टि से एकादशी
संत तुलसीदास: “एकादशी मदन दोष हर, पातक हरे अघ भारी।”
स्वामी विवेकानंद: एकादशी व्रत संयम, मनन और आंतरिक शुद्धि का साधन है।
स्वामी रामानुजाचार्य: विष्णुभक्ति का उत्कृष्ट माध्यम।
11. मोहिनी एकादशी पर भक्तों के अनुभव
कई भक्तों का मानना है कि इस दिन व्रत रखने से –
संतान प्राप्ति होती है
विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं
रोगों से मुक्ति मिलती है
मानसिक शांति व ध्यान में सफलता मिलती है
12. निष्कर्ष: आत्मकल्याण का पर्व
मोहिनी एकादशी व्रत आत्मा की शुद्धि, मन की स्थिरता, और ईश्वर के प्रति समर्पण का पर्व है। यह व्रत कर्म, ज्ञान और भक्ति तीनों मार्गों को जोड़ता है। जो भी श्रद्धापूर्वक इस दिन व्रत करता है, उसे न केवल सांसारिक लाभ मिलते हैं, बल्कि ईश्वरीय कृपा से जीवन के उच्चतम लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
अस्वीकरण (Disclaimer):
कृपया ध्यान दें कि इस ब्लॉग में दी गई मोहिनी एकादशी व्रत से संबंधित सभी जानकारी, जैसे कि विधि, महत्व, और कथाएँ, पारंपरिक मान्यताओं और सामान्य ज्ञान पर आधारित हैं। यह जानकारी किसी भी चिकित्सा या वैज्ञानिक सलाह का विकल्प नहीं है।
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