दीपावली 2025: प्रकाश का महापर्व - तिथि, विस्तृत पौराणिक कथाएं और शुभ मुहूर्त

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दीपावली 2025: जानिए इस प्रकाश पर्व की गहराई! पढ़ें भगवान राम की अयोध्या वापसी, कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध, मां लक्ष्मी का अवतरण और पांडवों की वापसी की विस्तृत पौराणिक कथाएं। जानें 20 अक्टूबर को दीपावली पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त और इस त्योहार का आध्यात्मिक महत्व।

पंडित जीतेन्द्र उपाध्याय जी के ज्योतिषीय विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2025 में दीपावली का पावन पर्व 20 अक्टूबर, दिन सोमवार को मनाया जाएगा। सनातन धर्म में दीपावली का विशेष महत्व है, जो अमावस्या की अंधकारमयी रात में दीपों के प्रकाश से नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह पर्व न केवल घरों और नगरों को रोशन करता है, बल्कि यह हमारी आत्माओं को भी ज्ञान और भक्ति के प्रकाश से आलोकित करने का संदेश देता है।

शास्त्रों के अनुसार, दीपावली हमेशा अमावस्या तिथि को ही मनाई जाती है, जब रात्रि का अंधकार अपने चरम पर होता है। इस वर्ष, 20 अक्टूबर 2025, सोमवार को अमावस्या तिथि दिन में 03 बजकर 44 मिनट पर प्रारंभ हो रही है। सनातन परंपरा में प्रदोष काल का विशेष महत्व है, और दीपावली प्रदोष व्यापिनी अमावस्या तिथि में मनाई जाती है। इसलिए, सभी भ्रमों को दूर करते हुए, यह स्पष्ट है कि दीपावली 20 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी।

दीपावली मात्र एक त्योहार नहीं, बल्कि यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। इसके साथ कई महत्वपूर्ण पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो इस पर्व के महत्व और गहराई को और बढ़ाती हैं। आइए, इन कथाओं का विस्तार से अध्ययन करें:

01. भगवान राम की अयोध्या वापसी: धर्म और न्याय की विजय गाथा

दीपावली से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से प्रचलित कथा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की है। यह कथा न केवल ऐतिहासिक महत्व रखती है, बल्कि यह धर्म, न्याय और सत्य की शाश्वत विजय का भी प्रतीक है।

पौराणिक कथा का विस्तार:

त्रेता युग में, अयोध्या के धर्मात्मा राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम को अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। यह वनवास कैकेई द्वारा किए गए वरदानों के कारण हुआ था। वनवास के दौरान, रावण नामक एक शक्तिशाली और अहंकारी राक्षस ने छल से सीता का हरण कर लिया और उन्हें अपनी लंका नगरी ले गया।

भगवान राम ने वानर सेना और हनुमान जैसे पराक्रमी योद्धाओं की सहायता से लंका पर चढ़ाई की। एक भीषण युद्ध हुआ, जिसमें राम ने रावण और उसकी शक्तिशाली सेना को पराजित किया। इस युद्ध में बुराई पर अच्छाई की विजय हुई, और धर्म की स्थापना हुई।

वनवास की अवधि पूर्ण होने के बाद, भगवान राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौटे। उनके आगमन की खबर सुनकर अयोध्यावासी खुशी से झूम उठे। उन्होंने अपने प्रिय राजा और माता सीता के स्वागत के लिए पूरे नगर को दीपों से सजाया। घरों, गलियों और मंदिरों को तेल के दीयों और फूलों से अद्भुत रूप से सजाया गया। अमावस्या की काली रात दीपों की रोशनी से जगमगा उठी, और पूरे नगर में उत्सव का माहौल छा गया।

माना जाता है कि तभी से दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा। यह दिन भगवान राम की विजय और उनके अयोध्या लौटने की स्मृति में प्रकाश और उल्लास का प्रतीक बन गया। यह कथा हमें सिखाती है कि सत्य और धर्म की राह पर चलने वाले अंततः विजयी होते हैं, और अंधकार चाहे कितना भी गहरा हो, प्रकाश की एक किरण उसे दूर कर सकती है।

02. भगवान कृष्ण और नरकासुर का वध: बुराई पर सत्य की प्रचंड विजय

दीपावली से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण कथा भगवान कृष्ण और नरकासुर नामक एक दुष्ट दानव के वध की है। यह कथा विशेष रूप से 'नरक चतुर्दशी' के दिन मनाई जाती है, जो दीपावली से एक दिन पहले आता है।

कथा का विस्तार:

प्राचीन काल में, भौमा सुर नामक एक शक्तिशाली असुर था, जिसे नरकासुर के नाम से भी जाना जाता था। उसने अपनी आसुरी शक्तियों से स्वर्ग और पृथ्वी दोनों लोकों में आतंक मचा रखा था। उसने 16,000 राजकुमारियों को बंदी बनाकर अपने कारागार में डाल दिया था। देवताओं और मनुष्यों ने उसके अत्याचारों से त्रस्त होकर भगवान कृष्ण से प्रार्थना की।

भगवान कृष्ण ने सत्यभामा (जो पृथ्वी देवी का अवतार थीं) को सारथी बनाकर नरकासुर की नगरी पर आक्रमण किया। एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से नरकासुर का वध कर दिया। इस प्रकार, उन्होंने न केवल पृथ्वी को एक बड़े संकट से बचाया, बल्कि 16,000 बंदी राजकुमारियों को भी मुक्त कराया।

नरकासुर के वध के बाद, उन राजकुमारियों को समाज में वापस सम्मान दिलाने की चुनौती थी। भगवान कृष्ण ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करके समाज में उन्हें प्रतिष्ठा दिलाई। इस घटना के उपलक्ष्य में लोगों ने दीप जलाकर और उत्सव मनाकर खुशी व्यक्त की। यह दिन बुराई पर सत्य की विजय और अन्याय के अंत का प्रतीक बन गया।

नरक चतुर्दशी इसलिए मनाई जाती है ताकि हम बुराई और नकारात्मकता पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा लें। यह हमें सिखाता है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और अत्याचार का अंत निश्चित है।

03. मां लक्ष्मी का अवतरण: धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी का आशीर्वाद

दीपावली का एक और महत्वपूर्ण पहलू मां लक्ष्मी की पूजा है। माना जाता है कि इस दिन समुद्र मंथन के दौरान धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। इसलिए, दीपावली के दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है ताकि वे अपने भक्तों को सुख, समृद्धि और वैभव प्रदान करें।

कथा का विस्तार:

प्राचीन काल में, देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीर सागर का मंथन किया ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके। इस मंथन के दौरान, कई दिव्य वस्तुएं और देवियां प्रकट हुईं। कार्तिक अमावस्या के दिन, मां लक्ष्मी भी क्षीर सागर से प्रकट हुईं। वह सौंदर्य, धन और समृद्धि की देवी हैं।

मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को अपने पति के रूप में चुना और उनके साथ वैकुंठ धाम में निवास करने लगीं। दीपावली के दिन, मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। भक्त अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं, रंगोली बनाते हैं और दीप जलाकर उनका स्वागत करते हैं। यह माना जाता है कि जो घर स्वच्छ और प्रकाशित होते हैं, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है और उन्हें धन, धान्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

दीपावली की रात को मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। लोग भक्ति भाव से उनकी आराधना करते हैं, उन्हें फल, फूल, मिठाई और अन्य प्रिय वस्तुएं अर्पित करते हैं। इस पूजा का उद्देश्य मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करना और अपने जीवन में सुख-समृद्धि को आकर्षित करना है।

04. पांडवों की वापसी: न्याय और अधिकार की पुनर्स्थापना

महाभारत की कथा के अनुसार, पांडवों को कौरवों के छल के कारण अपना राज्य छोड़कर बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना पड़ा था। जब वे इस अवधि को पूरा करके हस्तिनापुर लौटे, तो उस दिन को भी दीप जलाकर और उत्सव मनाकर खुशी मनाई गई।

कथा का विस्तार:

पांडव, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव, धर्म और न्याय के प्रतीक थे। कौरवों ने छल से उनका राज्य छीन लिया और उन्हें वनवास में भेज दिया। वनवास की कठिन परिस्थितियों में भी पांडवों ने धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा। जब वे तेरह वर्ष बाद वापस लौटे, तो उनके समर्थकों और शुभचिंतकों ने उनका भव्य स्वागत किया।

माना जाता है कि पांडवों की वापसी की खुशी में लोगों ने अपने घरों को दीपों से सजाया और उत्सव मनाया। यह दिन अन्याय पर न्याय की विजय और अपने अधिकारों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है।

इन सभी पौराणिक कथाओं का सार यही है कि दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय, बुराई पर अच्छाई की जीत और सत्य की स्थापना का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयां आएं, हमें हमेशा आशा और सकारात्मकता बनाए रखनी चाहिए।

सनातन धर्म में किसी भी पूजा या शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा के लिए भी शुभ मुहूर्त निर्धारित हैं:

 * तिथि: गुरुवार, 20 अक्टूबर 2025

 * आश्विन माह कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि: शाम 03:44 बजे तक

 * अमावस्या तिथि प्रारंभ सोमवार: शाम 03:44 बजे से

 * नक्षत्र: चित्रा (स्वामी: विश्वकर्मा, स्वभाव  मृदु और मैत्री, आकृति: मोती) - यह नक्षत्र अधिकांश शुभ कार्यों के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। इसका स्वामी ग्रह मंगल है, जो ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक है। चित्रा नक्षत्र रचनात्मकता और संतुलन का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो दीपावली के उत्सव के लिए अत्यंत शुभ है।

 * मां लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त (गोधूलि बेला): शाम 05:16 बजे से 05:41 बजे तक। गोधूलि बेला वह पवित्र समय होता है जब दिन और रात मिलते हैं। यह मुहूर्त आध्यात्मिक कार्यों और देवी-देवताओं की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

 * चर मुहूर्त: शाम 05:16 बजे से 06:49 बजे तक। अमृत मुहूर्त को सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए अत्यंत उत्तम माना जाता है। इस समय में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है।

 * लाभ मुहूर्त: शाम 09:56 बजे से 11:30 बजे तक। चर मुहूर्त सामान्य रूप से शुभ होता है और यात्रा आदि के लिए अच्छा माना जाता है।

 * शुभ मुहूर्त: रात 01:04 बजे से 02:37 बजे तक। लाभ मुहूर्त धन और समृद्धि से संबंधित कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।

 * निशिता मुहूर्त (मां काली पूजा): रात 11:05 बजे से 11:55 बजे तक। निशिता मुहूर्त तांत्रिक पूजाओं और विशेष आध्यात्मिक साधनाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समय मां काली की पूजा का विशेष विधान है।

भक्त अपनी श्रद्धा और सुविधा के अनुसार इन शुभ मुहूर्तों में मां लक्ष्मी, मां काली और अन्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

कथा का सार इस प्रकार है:

दीपावली मात्र दीपों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और पौराणिक गाथाओं का जीवंत प्रतीक है। यह हमें धर्म, न्याय, सत्य और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। 2025 में 31 अक्टूबर को, आइए हम सब मिलकर इस प्रकाश के महापर्व को पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाएं और अपने जीवन को ज्ञान और समृद्धि के प्रकाश से आलोकित करें।

अस्वीकरण: (डिस्क्लेमर)

दीपावली पर लिखा गया यह लेख हमारे विद्वानों और आचार्यों द्वारा गहन विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इसमें विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और इंटरनेट स्रोतों से भी सहायता ली गई है। पूजा के शुभ मुहूर्त पंचांग के आधार पर दिए गए हैं। इस लेख का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म की महिमा का प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्योहारों के महत्व के प्रति जागरूक करना है। यह लेख हमने पूरी आस्था के साथ लिखा हूं। लेख में दी गई जानकारी सिर्फ सूचना प्रद है। इसकी सत्यता की गारंटी हम नहीं लेते हैं।

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