सूर्य षष्ठी अर्थात छठ मईया व्रत 01 अप्रैल 2025 दिन मंगलवार को नहाए-खाए, 02 अप्रैल दिन बुधवार को खड़ना, 03 अप्रैल दिन गुरुवार को संध्या अर्घ्य, और 04 अप्रैल दिन शुक्रवार को सुबह का अर्ध्य के बाद पारणा होगा।
सूर्य षष्ठी अर्थात छठ मईया व्रत: पौराणिक कथा, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और देश-विदेश में मंदिरों की जानकारी सहित तीन पौराणिक कथा भी पढ़ें।
चैत्र माह शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि 03 अप्रैल 2025, दिन गुरुवार को छठ मईया और भगवान भास्कर को संध्या अर्घ्य देने का दिन है।
छठ पूजा, जिसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार सूर्य देवता और छठी मईया की संयुक्त रूप से पूजा करने के लिए प्रसिद्ध है। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है, लेकिन अब यह भारत के अन्य राज्यों और विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया है।
छठ पूजा की पौराणिक कथा
छठ पूजा की पौराणिकता महाभारत और अन्य धार्मिक ग्रंथों से जुड़ी हुई है। इसके प्रमुख कथानक निम्नलिखित हैं:
1. द्रौपदी और पांडवों की कथा
महाभारत के अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उन्होंने सूर्य देवता की आराधना की और उनसे अपना खोया हुआ साम्राज्य वापस पाने का आशीर्वाद मांगा। सूर्य देवता की कृपा से पांडवों को अपना खोया हुआ राजपाट पुनः प्राप्त हुआ।
2. सूर्य देव और छठी मईया का संबंध
सूर्य देव की बहन छठी मईया (शष्ठी देवी) को संतान की रक्षा और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मईया ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं और कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को इनकी विशेष पूजा होती है। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मईया की संयुक्त आराधना का उद्देश्य जीवन में ऊर्जा, संतान सुख, और समृद्धि प्राप्त करना है।
3. ऋषि की तपस्या
एक अन्य कथा के अनुसार, प्राचीन काल में ऋषि और मुनियों ने सूर्य देव की आराधना करते हुए छठ व्रत का प्रारंभ किया। उन्होंने सूर्य की उर्जा को आहार के रूप में ग्रहण कर आत्मशुद्धि प्राप्त की। इसे प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक भी माना जाता है।
पूजा विधि
छठ पूजा चार दिनों का पर्व है, जिसमें विशेष नियमों और विधियों का पालन किया जाता है।
पहला दिन: नहाय-खाय
व्रती इस दिन गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी, तालाब, कुंआ, में स्नान करके शुद्ध भोजन करते हैं। भोजन में कद्दू-भात और चने की दाल का विशेष महत्व होता है।
दूसरा दिन: खड़ना
इस दिन व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को चावल, गुड़ और दूध से बनी खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
व्रती नदी या तालाब के किनारे जाकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। पूजा सामग्री में बांस की टोकरी, फल, गन्ना, ठेकुआ, नारियल, और दीपक शामिल होते हैं।
चौथा दिन: सुबह का अर्घ्य और पारण
अंतिम दिन व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पूजा के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
अर्ध्य देने का शुभ मुहूर्त
सूर्य अर्घ्य: डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के समय पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
छठ पर्व का प्रथम दिन 01 अप्रैल 2025, दिन मंगलवार को नहाए-खाए से शुरू होगा। खड़ना 02 अप्रैल 2025, दिन बुधवार को है। इस दिन व्रतधारी दिनभर निर्जला व्रत रखकर शाम को पूजा-अर्चना कर चन्द्रास्त के पहले खीर रोटी का भोग लगाकर स्वयं ग्रहण करती है। आज रात 10:30 बजे पर चन्द्रास्त होगा।
03 अप्रैल 2025, दिन गुरुवार को संध्या अर्घ्य दिया जायेगा। इस दिन सर्यास्त शाम 06:01 बजे पर होगा। अर्ध्य देने का शुभ मुहूर्त शाम 06:00 बजे से लेकर 06:30 बजे तक गोधूलि मुहूर्त और शाम 05:36 बजे से लेकर 07:09 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।
04 अप्रैल 2025 दिन शुक्रवार को सुबह का अर्ध्य दिया जाएगा। सूर्योदय सुबह 05:35 पर होगा। इस प्रकार अमृत मुहूर्त सुबह 04:08 बजे से लेकर 05:35 बजे तक और चर मुहूर्त सुबह 05:35 बजे से लेकर 07:08 बजे तक रहेगा।
मंदिर और धार्मिक स्थल
छठ पूजा के लिए किसी विशेष मंदिर की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि इसे नदी या तालाब के किनारे किया जाता है। फिर भी कुछ प्रमुख सूर्य मंदिर और छठ पूजा स्थलों का उल्लेख नीचे दिया गया है:
भारत में प्रमुख मंदिर
1. कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा)
2. मोढे़रा सूर्य मंदिर (गुजरात)
3. लोढ़ा छठ मंदिर (बिहार)
4. देव सूर्य मंदिर (औरंगाबाद, बिहार)
विदेशों में छठ पूजा स्थल
1. नेपाल: काठमांडू और तराई क्षेत्र में छठ पूजा बड़े उत्साह से मनाई जाती है।
2. मॉरीशस: यहां भारतीय प्रवासियों के माध्यम से छठ पूजा का महत्व बढ़ा।
3. फिजी, ट्रिनिडाड और टोबैगो: भारतीय समुदाय द्वारा छठ पूजा का आयोजन।
4. यूएसए और यूके: प्रवासी भारतीयों द्वारा नदी किनारे सामूहिक छठ पूजा।
सूर्य देवता और छठी मईया की संयुक्त पूजा का महत्व
सूर्य देव और छठी मईया की संयुक्त पूजा का कारण प्रकृति और मानव जीवन के बीच गहरा संबंध है। सूर्य देव: ऊर्जा, जीवन शक्ति और स्वास्थ्य के प्रतीक हैं।
छठी मईया: संतान सुख, परिवार की खुशहाली और आरोग्य प्रदान करती हैं।
इन दोनों की पूजा एक साथ करने का उद्देश्य भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के सुखों की प्राप्ति है। विज्ञान और प्रकृति के दृष्टिकोण से छठ पूजा सूर्य की किरणें स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती हैं। छठ पूजा के दौरान की जाने वाली प्रक्रियाएं, जैसे सूर्य को जल अर्पण, मानसिक और शारीरिक शुद्धि प्रदान करती हैं।
छठ पर्व में बांस का क्यों है महत्व
बांस की टोकरी, सूप और अन्य सामग्री का छठ पूजा में विशेष महत्व है।
1. बांस को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
2. यह प्रकृति और पर्यावरण के प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है।
3. बांस से बनी सामग्री का उपयोग धार्मिक कार्यों में शुभ माना जाता है।