प्रभु श्रीराम की बहन शांता क्यों नहीं आती अयोध्या जानें प्रमुख कारण

क्या आप को पता है प्रभु श्रीराम की एक बहन थी। जिसका का नाम था "शांता" और उनके बहनोई का नाम ऋषि श्रृंग था। बहन शांता मां कौशल्या की प्रथम पुत्री थी। यह कथा वाल्मीकि रामायण और अन्य पुराणों में वर्णित है। यहां इसकी विस्तृत जानकारी दी गई है।

शांता का परिचय

शांता, राजा दशरथ और उनकी पहली पत्नी कौशल्या की पुत्री थीं। जन्म के बाद उन्हें काशी के राजा रोमपाद को गोद दे दिया गया। शांता अत्यंत रूपवती, गुणवान, और विद्या में निपुण थीं। काशी के राजघराने में पालन-पोषण होने के कारण वह वहीं रहीं और अयोध्या कम ही आती थीं।

शांता और ऋषि श्रृंग का विवाह

ऋषि श्रृंग एक महान ऋषि थे। ऋषि श्रृंग, विभांडक ऋषि के पुत्र और कश्यप ऋषि के पौत्र थे। ऋषि श्रृंग ने ही राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, जिसके बाद राजा दशरथ को चार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। 

शांता से जुड़ी कुछ और बातें, जो आपको जानना जरूरी है 

शांता, राजा दशरथ और रानी कौशल्या की पहली संतान थीं। शांता को कौशल्या की बहन वर्षिणी और उनके पति काशी देश के राजा रोमपद ने गोद लिया था। शांता बुद्धिमान थीं और कई कामों में माहिर थीं। शांता और ऋषि श्रृंग के एक पुत्र भी थे जिनका नाम लोमश था। 

मान्यता है कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में ऋषि श्रृंग का मंदिर है, जहां ऋषि श्रृंग और शांता की पूजा की जाती है। शांता और ऋषि श्रृंग का जीवन त्याग और समर्पण का प्रतीक है। जिन्हें उनके पिता, महर्षि विभांडक, ने वन में एकांत जीवन का पालन करवाया था। 

ऋषि श्रृंग ने कभी किसी स्त्री का चेहरा तक नहीं देखा था। काशी में जब भयंकर अकाल पड़ा, तो राजपुरोहितों ने बताया कि यदि ऋषि श्रृंग राज्य में प्रवेश करेंगे, तो वर्षा होगी।

राजा रोमपाद ने इस समस्या के समाधान के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने सुंदर स्त्रियों को भेजकर ऋषि श्रृंग को अपने राज्य में लाया। जैसे ही ऋषि श्रृंग ने राज्य में प्रवेश किया, वहां घनघोर वर्षा होने लगी। इससे प्रसन्न होकर राजा रोमपाद ने अपनी दत्तक पुत्री शांता का विवाह ऋषि श्रृंग से कर दिया।

शांता क्यों नहीं अयोध्या आना चाहती

शांता का विवाह अंगदेश में हुआ, और वह अपने पति ऋषि श्रृंग के साथ वहीं रहने लगीं। अयोध्या में न आना मुख्यतः उनके विवाह और पति के आश्रम जीवन से जुड़ा था। उनके पति का ध्यान अधिकतर तप और धार्मिक अनुष्ठानों में रहता था, जिससे शांता का अयोध्या आना दुर्लभ हो गया।

पुत्रकामेष्टि यज्ञ की कथा

अयोध्या में राजा दशरथ पुत्रहीन थे और वे एक योग्य उत्तराधिकारी की कामना कर रहे थे। उनके राजपुरोहित महर्षि वसिष्ठ ने सुझाव दिया कि ऋषि श्रृंग के द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया जाए। राजा दशरथ ने ऋषि श्रृंग को अयोध्या आमंत्रित किया।

भृगु ऋषि अयोध्या आये और पुत्र कामेष्ठि यज्ञ करवाएं। भृगु ऋषि के भक्ति भाव से आहुति देने पर अग्निदेव हाथ में चरू (हविष्यान्न खीर) लेकर प्रकट हुए। 

राजा दशरथ ने अपनी पहली और प्यारी पत्नी कौशल्या को खीर का पात्र दे दिया। कौशल्या ने आधा खीर रानी कैकेई के दे दी। इसके बाद कैकेई और कौशल्या ने अपने-अपने खीर का आधा हिस्सा रानी सुमित्रा को दे दी।

इस प्रकार मां कौशल्या के गर्भ सें श्री राम, कैकेई के गर्भ से भाई भरत और माता सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। खीर के बंटवारे से तीसरी रानी सुमित्रा को माता कौशल्या और देवी कैकेई के हिस्से से खीर मिला था।

इसी लिए परमात्मा ने श्रीराम प्रभु के साथ लक्ष्मण का भक्ति भाव और भरत के साथ शत्रुघ्न को त्यागी रहना लिख दिया था

पौराणिक कथा का महत्व

यह कथा आदर्श परिवार, त्याग, और कर्तव्य का संदेश देती है। शांता का त्याग, ऋषि श्रृंग का तप, और राजा दशरथ की पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा सभी भारतीय संस्कृति के गहन आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

डिस्क्लेमर 

बहन शांता पर लिखे गए लेख हमारे विद्वानों और आचार्यों द्वारा विचार-विमर्श करने के बाद लिखा गया है। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण का भी अवलोकन किया गया है। साथ ही इंटरनेट से सेवाएं ली गई है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और सनातनियों के बीच कुंभ मेला के प्रति जागरूक करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।



एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने