पंडित जीतेन्द्र उपाध्याय जी का कहना है कि हमेशा दीपावली अमावस्या तिथि को ही मनाई जाती है। दीपावली अमावस्या की रात में मनाने का त्योहार है। दीपोत्सव रात को ही मनाया की अध्यात्मिक परंपरा है।
31 अक्टूबर 2024 अर्थात बृहस्पतिवार को अमावस्या तिथि दिन में 2 बजकर 40 मिनट पर आ रही है। इससे पहले चतुर्दशी तिथि है। इस कारण से दीपावली 31 तारीख को ही इस वर्ष मनाई जाएगी।
दीपावली के त्योहार पर मध्यरात्रि में अमावस्या तिथि होनी ही चाहिए। इसमें उदया तिथि की मान्यता नहीं होती है । 01 नवंबर 2024 को शाम के समय अमावस्या तिथि समाप्त हो जायेगी। यह संध्या बेला समाप्त हो जाएगी। ऐसे में 01 नवंबर को दीपावली मनान शास्त्र और धर्म संवत शुभ नहीं माना जाएगा। धर्म और शास्त्रानुसार, 31 अक्टूबर को ही दीपावली मनाना शास्त्र संवत है।
सनातनी भाषा में कहें तो कोई भी पर्व प्रदोष काल वाले तिथि में ही मनाया जाता है। इसी तरह दीपोत्सव हमेशा से ही प्रदोषव्यापिनी अमावस्या तिथि में ही मनाई जाती है। ऐसे में उदया तिथि से कोई मतलब नहीं होता।
ऐसे में जिसके भी मन में दीपावली की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है, वे किसी भी तरह के भ्रम में न रहें और 31 अक्टूबर को धूमधाम और श्रद्धा भाव से दीपावली मनाएं । दीपावली, जिसे दिवाली भी कहा जाता है, सनातन धर्म में सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। इसके साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर भिन्न हो सकती हैं। प्रमुख पौराणिक कथाएँ इस प्रकार हैं।
1. भगवान राम की अयोध्या वापसी: यह कथा सबसे प्रसिद्ध है। इसके अनुसार, दीपावली उस समय की याद में मनाई जाती है जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों का वनवास समाप्त करके अयोध्या लौटे थे। राम ने रावण का वध कर धर्म और न्याय की स्थापना की थी। अयोध्या के लोगों ने उनके स्वागत के लिए अपने घरों और नगर को दीपों से सजाया था। तभी से दीपों का यह त्योहार "दीपावली" के रूप में मनाया जाता है।
2. भगवान कृष्ण और नरकासुर का वध: दूसरी कथा भगवान कृष्ण से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने दानव नरकासुर का वध करके 16,000 कन्याओं को उसके बंदीगृह से मुक्त किया था। इस दिन को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसे 'नरक चतुर्दशी' के रूप में दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है।
3. मां लक्ष्मी का अवतरण: एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए दीपावली के दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है ताकि वे परिवार में सुख, समृद्धि और वैभव प्रदान करें।
4. पांडवों की वापसी: महाभारत की कथा के अनुसार, पांडव जब अपना 12 वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास समाप्त करके हस्तिनापुर लौटे, तो उस दिन को दीप जलाकर और उत्सव मनाकर खुशी मनाई गई। इसे भी दीपावली से जोड़ा जाता है।
इन सभी कथाओं में धर्म और सत्य की विजय तथा अंधकार पर प्रकाश की जीत का संदेश निहित है। दीपावली इस प्रकार आत्मिक शुद्धि और उत्साहका प्रतीक है।
अब जान पूजा करने का शुभ मुहूर्त
31 अक्टूबर दिन गुरुवार आश्विन माह कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि शाम 03:52 बजे तक रहेगा। इसके बाद अमावस्या तिथि प्रारम्भ हो जायेगा।
31 अक्टूबर को चित्रा नक्षत्र पड़ रहा है। चित्रा नक्षत्र का स्वामी मृदु और मैत्री है। आकृति मोती के समान है। चित्रा नक्षत्र को अधिकांश शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए यह शुभ मुहूर्त में स्वीकृत है।
मां लक्ष्मी की पूजा संध्या समय अर्थात गोधूलि बेला में करने का विधान है। गोधूलि महूर्त शाम 05:08 बजे से शुरू होकर 06:24 बजे तक रहेगा। इस प्रकार अमृत मुहूर्त शाम 05:08 बजे से लेकर 06:45 बजे तक, चर मूहूर्त शाम 06:43 बजे से लेकर 08:18 बजे तक, लाभ महूर्त रात 11:29 बजे से लेकर 01:04 बजे तक और निशिता मुहूर्त रात 11:04 बजे से लेकर 11:54 बजे तक रहेगा इस दौरान अपने सुविधा अनुसार लोग मां काली और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर सकते हैं।
डिस्क्लेमर
दीपावली पर पर लिखे गए लेख हमारे विद्वानों और आचार्यों द्वारा विचार-विमर्श करने के बाद लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट से सेवाएं ली गई है। पूजा करने शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना और सनातनियों के बीच त्योहार के प्रति जागरूक करना हमारा मुख्य उद्देश्य है।