शारदीय नवरात्र 2023, अगर आप अपने घर में कलश स्थापना करना चाहते हैं और साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहते हैं, तो यह लेख आप जरूर पढ़ें। क्योंकि इसमें कलश स्थापना के साथ ही शुभ मुहूर्त और समस्त विधि दिया गया है।
मां दुर्गा की नौ दिवसीय आराधना महोत्सव 15 अक्टूबर 2023, दिन रविवार, अश्विन माह, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा तिथि कलश स्थापना से आरंभ हो जायेगा।
मां दुर्गा को हाथी पर सवार होकर आना सुख और समृद्धि को दर्शाता है जबकि मुर्गे पर सवार हो कर जाना मार-काट और युद्ध का घोतक है।
प्रतिपदा तिथि रविवार देर रात के 03:08 बजे तक रहेगा इसके बाद द्वितीय तिथि प्रारंभ हो जाएगा। इसलिए प्रतिपदा तिथि के समय ही कलश स्थापना करना शुभ रहेगा।
कलश स्थापना के दिन कैसा रहेग
कलश स्थापना के दिन चित्रा नक्षत्र शाम 06:30 तक इसके बाद स्वाति नक्षत्र शुरू हो जाएगा। प्रथम करण किंस्तुघ्न दिन के 12:01 बजे तक एवं द्वितीय करण बव है।
उस दिन सूर्योदय सुबह 06:22 बजे पर और सूर्यास्त शाम 05:52 बजे होगा।चंद्रोदय सुबह 06:41 से लेकर चंद्रास्त शाम 06:13 बजे पर होगा।
दिनमान 11 घंटा 30 मिनट का और रात्रिमान 12 घंटा 30 मिनट का रहेगा। सूर्य कन्या राशि में और चंद्र तुला राशि में रहेगा।
आनंदादि योग पद्मा शाम 06:13 बजे तक इसके बाद लंबा हो जायेगा। होमाहुति सूर्य, दिशाशूल पश्चिम, राहु काल वास उत्तर, अग्निवास पृथ्वी और चन्द्र वास पश्चिम दिशा में रहेगा।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना अर्थात 15 अक्टूबर, दिन रविवार को दिनभर प्रतिपदा तिथि है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा तुला राशि में रहेंगे। शरद ऋतु होने के कारण सूर्य दक्षिणायन दिशा में स्थित रहेंगे।
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:00 बज के 44 मिनट से लेकर 12:30 बजे के बीच है। उसी प्रकार विजय मुहूर्त दिन के 02:02 बजे से लेकर 02:48 बजे तक रहेगा।
अमृत मुहूर्त 11:20 बजे से लेकर 01:03 बजे तक रहेगा। शुभ मुहूर्त सुबह 09:12 बजे से प्रारंभ होकर 10:42 बजे तक, चर मुहूर्त दिन के 01:42 बजे से प्रारंभ होकर 03:13 बजे तक और लाभ मुहूर्त 03:13 बजे से प्रारंभ होकर 04:43 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप कलश स्थापना कर सकते हैं।
अमृत योग में कलश स्थापना करना काफी शुभ माना जाता है वैसे अभिजीत मुहूर्त, शुभ मुहूर्त, चर मुहूर्त और लाभ मुहूर्त में भी कलश स्थापना करना फलदाई होता है।
भूलकर भी ना करें इस दौरान कलश स्थापना
प्रतिपदा के दिन भूल कर भी इस समय ना करें धार्मिक अनुष्ठान और कलश स्थापना। इस दिन काल मुहूर्त दोपहर 12:07 बजे लेकर 01:33 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा पाठ और कलश स्थापना करना वर्जित है। उसी प्रकार रोग मुहूर्त दिन के 02:59 बजे से लेकर 04:26 बजे तक, उद्वेग मुहूर्त सुबह 06:22 बजे से लेकर 07:48 बजे तक रहेगा। इस दौरान कलश स्थापना करना अशुभ माना गया है।
कलश स्थापना में लगने वाली पूजा सामग्री
शारदीय नवरात्र 15 अक्टूबर दिन रविवार को कलश स्थापना के साथ 9 दिनों का महा महोत्सव का शुभारंभ हो जाएगा। कलश स्थापना करने के लिए पूजा सामग्री की जरूरत पड़ती है। साथ ही प्रतिपदा तिथि होने के कारण मां शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है।
कलश स्थापना करने के पूर्व इन सामग्रियों का खरीदारी कर लेनी चाहिए। कलश स्थापना के लिए जटा वाला नारियल, गंगाजल, गाय का गोबर, दूध, दही, पान, सुपारी, रोली, मिट्टी का कलश, सिंदूर, लाल कपड़ा, मधु, फूल, उड़हुल फूल का माला, रूई, दूर्वा, सलाई, गुड़, हल्दी, अक्षत, हवन के लिए सूखी लकड़ी, कपूर, जौ, मेवा, अगरबत्ती, दीया, गुड़, इत्र, आम का पत्ता, मिठाई और मौसमी फल होना चाहिए।
नवरात्रि आत्मवल को प्रबल बनाता है
कहा जाता है कि नवरात्रि अपने अंदर शिवा और शक्ति को एकीकार करने का अनुष्ठान है। नवरात्रि आत्मवल प्रबल करने का अवसर प्रदान करता है। नवरात्रि में नौ रूपों में देवी भक्तों के बीच आती है। मन और तन के शोधन का महत्व समझा जाती है।
मां दुर्गा ही काली, लक्ष्मी व सरस्वती है
हमारे वेद-पुराण और ऋषि-मनियों ने शिवा और शक्ति को सृष्टि की उत्पति का कारक मानते हैं। महादेवी का नाम देकर इस जगत की आदिशक्ति, जगत का सृजन, पालन और नाश करने वाली शक्तियां कहे जाते हैं।
सर्वमान्य है कि यह शक्ति जिसे दुर्गा, काली, सरस्वती और लक्ष्मी आदि नामों से जाना जाता है। यह एक ही शक्ति के बदले हुए रूप और स्वरूप हैं। नवरात्रि के दिन मां शक्ति की नौ रूपों की पूजा प्रति दिन की जाती है।
घट ( मिट्टी कलश) स्थापना करने की संपूर्ण विधि जानें
कलश स्थापना करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। 9 दिनों तक मां की आराधना करने के लिए कलश स्थापना करनी चाहिए।
कलश की स्थापना घर में बने मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा में होनी चाहिए। मां की चौकी जो लकड़ी से बनी रहती है उसी पर कलश स्थापित करें। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़क कर और गोबर से लिपकर पवित्र कर लें। लकड़ी की बनी चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें और स्वास्तिक का चिन्ह बना कर कलश स्थापित करें।
कलश में गंगाजल और शुद्ध जल भरकर, एक सिक्का, दूर्वा, सुपारी और हल्दी की एक गांठ डाल दें। कलश और ढक्कन के बीच आम के पल्ला (पत्ता) स्थापित करें, लाल रंग के कपड़े में नारियल को लपेट कर कलश के ऊपर रखें ढक्कन पर रख दें।
चावल अर्थात अक्षत से अष्टदल बनाकर उसपर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। मां को लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ानी चाहिए। कलश स्थापना के साथ अखंड दीप प्रज्ज्वलित करें, जो 9 दिनों तक जलेगी।
मां शैलपुत्री का करें पूजन
पहला दिन होने के कारण शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके जाप करें। फूल और चावल मां शक्ति के चरणों में अर्पित करें। मां का भोग शुद्ध घी से बनाएं साथ में मौसमी फल भी प्रसाद के रूप में रखें और मां पर चढ़ाएं। इसके बाद मां आदिशक्ति को ध्यान कर दुर्गा सप्तशती पाठ करें।
कलश के चारों ओर करें जौ की बुआई
कलश स्थापना मिट्टी और बालू के ऊपर करनी चाहिए। मिट्टी और बालू में जौ मिलाकर रखें। 9 दिनों तक सुबह और शाम पूजा के उपरांत शुद्ध जल का छिड़काव उस पर करते रहे। नित्य प्रतिदिन जौ का पौधा बढ़ता जाएगा। माना जाता है कि सृष्टि में सबसे पहले अनाज के रूप में जौ उत्पन हुआ था।
जौ सृष्टि का पहला अनाज
इस अनाज को सृष्टि के उत्पत्ति के साथ देखा जाता है। मान्यता है कि जौ के पौधों को विजयादशमी के दिन उखाड़ कर अपने प्रियजनों के बीच वितरण कर देनी चाहिए।
पौधा वितरण करने से परिजनों के यहां सुख समृद्धि और शांति आती है। इसे लोग अपने दाहिने कान पर रखते हैं। जौ का पौधा अगर खिला हुआ है और स्वस्थ्य है। खिले पौधे को देखने के बाद ऐसा प्रतित होता है कि आपके घर में सुख समृद्धि और प्रियजनों को कष्ट निवारण होगा। इसे मां का संकेतिक घोतक माना जाता है।
जौ को सुखना अथाह संकट
उसी प्रकार अगर आपका बोया हुआ जौ मुरझा गया हो या ठीक से जन्म नहीं ले पाया है, तो इसका मतलब है आपका परिवार संकट में घिर सकता है। और पहाड़ के सामान दुख आपको और आपके परिवार को बर्बाद कर सकते हैं।
दुर्गा सप्तशती पाठ करने वाले लोग रहें ब्रह्मचर्य
नवरात्रा का व्रत रखकर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ करने वाले लोग 10 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें। सादा भोजन करें और नमक के जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें। रोजाना दुर्गा सप्तशती का पाठ कर लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।
शारदीय नवरात्रि 2023 तिथियां और दिन
शारदीय नवरात्र के पहला दिन रविवार, 15 अक्टूबर 2023, प्रतिपदा तिथि में मां शैलपुत्री की पूजा
शारदीय नवरात्र के दूसरा दिन सोमवार, 16 अक्टूबर, द्वितीया तिथि मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
शारदीय नवरात्र के तीसरा दिन मंगलवार, 17 अक्टूबर को तृृतीय तिथि के दिन मां चंद्रघंटा की पूजा
शारदीय नवरात्र के चौथे दिन बुधवार 18 अक्टूबर को मां कुष्मांडा की पूजा है।
शारदीय नवरात्र के पांचवे दिन गुरुवार, 19 अक्टूबर को मां स्कंदमाता की पूजा होगी।
शारदीय नवरात्र के छठे दिन शुक्रवार 20 अक्टूबर को मां कात्यायनी की पूजा की जाती है।
शारदीय नवरात्र के सातवें दिन शनिवार 21 अक्टूबर को मां कालरात्रि की पूजा है।
शारदीय नवरात्र के आठवें दिन रविवार, 22 अक्टूबर को मां महागौरी की पूजा होगी।
शारदीय नवरात्र के नौवें दिन सोमवार, 23 अक्टूबर को महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। इस दिन शारदीय नवरात्र व्रत के पारण किया जाता है।
24 अक्टूबर 2023, दिन मंगलवार को मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन और दशमी तिथि अर्थात दशहरा है।
डिसक्लेमर
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