भक्तों के हर कष्टों का निवारण और मुक्ति प्रदान करने वाला एकमात्र व्रत अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर दिन गुरुवार को है।
इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है
अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि दिन गुरुवार को मनाया जायेगा
अनंत चतुर्दशी के दिन वाहों में अनंत सूत्र बांधने का विधान है। अनंत सूत्र में 14 गांठ होते हैं। क्या होते हैं गांठ जानें विस्तार से।
अनंत धागे में 14 गांठ क्यों बांधे जाते हैं
अनंत सूत्र में बांधे जाने वाले 14 गांठ जो कि 14 लोकों का प्रतीक माना जाता है। बांधें जाने वाले अनंत सूत्र में 14 लोक समाहित है। इस पूरे ब्रह्मड में 14 लोक है। पृथ्वी से ऊपर 7 लोक और पृथ्वी के अंदर 7 लोक स्थित है। मान्यत है कि 14 लोकों का मालिक भगवान अनंत अर्थात श्री विष्णु है। इसलिए अनंत सूत्र बांधने से हमें 14 लोकों का पुण्य प्राप्त होता है।
जानें कौन-कौन से लोक है इस ब्रह्माण्ड में
पृथ्वी के ऊपर भूलोक, ब्रह्म लोक, भुव लोक, स्वर्ग लोक, जन लोक, गह लोक और तपो लोक स्थित है।
पृथ्वी के नीचे तलातल लोक, अतल लोक, महातल लोक, पाताल लोक वितल लोक, सतल लोक और रसातल लोक स्थित है।
अनंत चतुर्दशी व्रत के भी कुछ नियम होते हैं, यदि आप इन नियमों को नहीं मानते हैं तो आप इस व्रत को पूरा नहीं कर सकते हैं। जैसे, अगर आप अनंत चतुर्दशी व्रत करते हैं, तो आपको अपने हाथों में एक वर्ष तक अनंत सूत्र बांधे रखना होगा।
अधिकतर, लोग अनंत सूत्र बांधकर कुछ ही घंटों में खोल देते हैं। ऐसा करना सरासर गलत और धर्म के विरुद्ध है। यदि आप सालों भर अनंत सूत्र नहीं बांध सकते तो चतुर्दशी चौदस अर्थात 14 दिनों तक अनंत सूत्र को अपने हाथों में जरूर बांधे रखें।
जैन धर्म से जुड़े हैं तार
जैन धर्म में अनंत चतुर्दशी का महत्व
अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र दिन है। जैन धर्म के प्रमुख त्यौहार, पर्यूषण पर्व का अंतिम दिन होता है।
अनंत चतुर्दशी पूजन के दौरान नौ नियमों का पालन करें मिलेगा अपार सफलता
01.अनंत चतुर्दशी के दिन व्रतधारी स्त्री और पुरुष सबसे पहले एक लकड़ी का तखत (चौकी) ले और उसे शुद्ध जल में गंगाजल मिलाकर अच्छी तरह धो लें।
02.चौकी के ऊपर व्रतधारी सिंदूर, चन्दन या रोड़ी के चैदह लंबे टीके लगाएं।
03.चौकी पर तिलक लगाने के बाद 14 गुड़ के बने पुआ या अन्य मीठे पकवान और चैदह पूरियां सिंदूर लगाकर एक स्थान पर रख दें।
04.व्रतधारी पंचामृत (गुड़, घी, मधु, दूध और दही) बनाएं। इस पंचामृत को ‘दूध सागर’ अर्थात क्षीरसागर का प्रतीक माना जाता है।
05.अनंत सूत्र जो एक पवित्र धागा जिसमें 14 गांठें होती हैं। भगवान अनंत को पवित्र वस्तु पर बांधा कर उसे पांच बार ‘पंचामृत के महासागर’ में घुमाया जाता है।
06.व्रतधारियों को व्रत का पालन करते हुए भगवान अनंत अर्थात श्रीहरि विष्णु को विधिवत पूजन करें। इसके बाद हल्दी और कुमकुम से रंगे हुए पवित्र धागे को पूजा करें।
07.अनंत पूजन के उपरांत महिलाएं अपनी बाएं हाथों में और पुरूषों अपने दाएं हाथों में अनंत सूत्र को बांधे।
08.अनंत बांधवाते समय जातक अपने मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
09.स्त्री और पुरुष अपने वाहों में अनंत सूत्र एक वर्ष तक बांधे रखें। अगर नहीं बांध सकते हैं, तो 14 दिनों की अवधि के बाद, पवित्र धागा हटाएं।
अनंत चतुर्दशी के दिन कब करें पूजा
अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह से लेकर दोपहर तक पूजा करने का विधान है। सुबह 06:12 बजे से लेकर 07:42 बजे तक शुभ मुहूर्त है। इसके बाद दिन के 10:42 बजे से लेकर 12:12 बजे तक चार मुहूर्त, लाभ मुहूर्त 12:12 बजे से लेकर 01:42 बजे तक और अमृत मुहूर्त 01:42 बजे से लेकर 03:11 बजे तक रहेगा इसी दौरान अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:48 बजे से लेकर 12:36 बजे तक अब विजय मुहूर्त दोपहर के 02:11 बजे से लेकर 02:59 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप समय अनुसार शुभ मुहूर्त पर भाग भगवान श्री हरि विष्णु का की अनंत रूपों का पूजा कर सकते हैं जो काफी फलदाई होगा।
अनंत सूत्र बांध लेने के उपरांत किसी ब्राह्मण परिवार को भोजन कराकर स्वयं खाएं और अपने परिवार और आस-पड़ोस के बीच प्रसाद वितरण करें। पूजा के बाद पौराणिक व्रत-कथा को स्वयं पढ़ें या दूसरे को सुनाएं।
अनंत चतुर्दशी का दिन कैसा रहेगा जानें पंचांग के अनुसार
अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर 2023, दिन गुरुवार, शुक्ल पक्ष चतुर्दशी तिथि शाम 06:49 बजे तक रहेगा। इस दिन पूर्व भाद्रपद नक्षत्र रहेगा। प्रथम करण गर जो सुबह के 08:33 बजे तक रहेगा। द्वितीय करण वणिज है। योग गण्ड , जो रात 11:55 तक रहेगा। इसके बाद वृद्धि हो जाएगा।
अनंत चतुर्थी के दिन सूर्योदय 06:12 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:11 बजे पर होगा। चंद्रोदय शाम 05:42 बजे पर एवं चंद्रास्त सुबह 05:50 बजे पर होगा। सूर्य सिंह कन्या में एवं चंद्रमा कुंभ राशि में रहेगा। अयन दक्षिणायन, ऋतु शरद, दिनमान 11 घंटा 58 मिनट का होगा। रात्रिमान 12 घंटा 01 मिनट का है।
होमाहुति चंद्र, दिशाशूल दक्षिण दिशा, राहुवास दक्षिण दिशा, अग्निवास पृथ्वी शाम 06:49 बजे तक इसके बाद आकाश हो जाएगा। चंद्रवास पश्चिम दिशा में रहेगा।
अनंत चतुर्दशी के पौराणिक कथा
महाभारत काल की एक कथा है, जो कौरव और पांडवा से संबंधित है। पांडवों और कौरवों के बीच हुए जुए में पांडवों ने अपने समस्त राज पाठ हार गए। जुए में हारने के बाद पांडवों को 12 वर्षों तक वनवास और 1 वर्ष का अज्ञात वास मिला, जो वे लोग काट रहे थे। इस दौरान उन्हें अपार दुख और कष्ट का सामना करना पड़ रहा था। कष्ट निवारण करने का उपाय भगवान श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर ने पूछा।
भगवान कृष्ण ने कहा कि जुआ खेलने के कारण मां लक्ष्मी तुम लोगों से दुष्ट हो गई है। इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए अनंत चतुर्दशी के दिन तुम सभी भाई मिलकर भगवान विष्णु का व्रत करो और 14 गांठ वाले अनंत सूत्र अपने बाहों में बांधों। इससे तुम्हारा सारा कष्ट दूर हो जाएगा और तुम्हें खोया हुआ राज पाठ फिर से मिल जाएगा। भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से इस संबंध में एक कथा सुनाई जो नीचे दिया गया है।
ब्राह्मण कन्या शीला की पौराणिक कथा
अनंत चतुर्दशी की कथा सत्ययुग से जुड़ा हुआ है। सुमन्तु नाम के एक महर्षि हुआ करतें थें। उनकी पुत्री का नाम शीला थी। पत्नी का नाम दीक्षा थी। दीक्षा को शीला नाम की एक पुत्री हुईं।
शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील और सुंदर थी। महर्षि सुमन्तु ने अपनी कन्या शीला का विवाह कौण्डिन्य मुनि से कर दिया।
शीला के बड़े होते होते दीक्षा की मृत्यु हो गई। सुमंतु ने पत्नी दीक्षा की मृत्यु के बाद कर्कशा नाम की स्त्री से विवाह कर लिया। कुछ समय बाद अपनी पुत्री का विवाह ब्राम्हण सुमंत ने अपनी पुत्री सुशीला का विवाह कौण्डिन्य ऋषि से कर दिया।
विवाह के बाद सुमंतु की पत्नी कर्कशा ने अपने दामाद को पत्थर और ईट विदाई में दी।
पति पत्नी को चलते-चलते शाम हो गई। दोनों एक नदी के किनारे पहुंच गए। रात्रि विश्राम के लिए दोनों वहीं ठहर गए। ऋषि की पत्नी शीला ने देखी कुछ महिलाएं पूजा पाठ कर रही है। शीला भी जाकर महिलाओं के साथ मिलकर भगवान अनंत की पूजा-अर्चना की। पूजा के उपरांत 14 गांठ वाला अनंत सूत्र अपना पति को दिया। पति ने उस अनंत सूत्र अस्वीकार करते हुए आग के हवाले कर दिया।
एक दिन कौण्डिन्य मुनि ने देखा कि उनकी पत्नी अपने बाएं हाथ में अनन्त सूत्र बांधी हुई है। जिसे देखकर वह दिग्भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा डाला कि क्या तुमने मुझे अपने वश में करने के लिए यह रक्षा सूत्र बांधी है ?
शीला ने सहज पूर्वक और विनम्रता से उत्तर दिया नहीं तो, यह अनंत भगवान श्रीहरि विष्णु जी का पवित्र रक्षा सूत्र है। परंतु धन के धमंड में अंधे हो चुके ऋषि कौण्डिन्य ने अपनी पत्नी शीला की सही बात को भी गलत समझा लिया और अनन्त सूत्र को जादू-टोना और वशीकरण करने का साधारण रस्सी समझकर तोड़ दिया।
उसे रक्षा सूत्र को आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य अपराध का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट-भ्रष्ट हो गई। दीन-हीन की स्थिति में जीवन-यापन करने पर विवश हो गया।
कौण्डिन्य ऋषि को अपने अपराध करने का ज्ञान हो गया। उन्होंने प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान श्रीहरि विष्णु से क्षमा मांगने के लिए वन की ओर चल पड़े। उन्हें जंगल के रास्ते में जो भी व्यक्ति मिलता वे उससे भगवान अनन्त देवजी का पता पूछते रहते थे।
जंगल में काफी दिनों तक भटकने एवं बहुत खोजने के बाद भी कौण्डिन्य मुनि को जब अनन्त भगवान का दर्शन नहीं हुआ, तब वे निराश होकर अपने प्राण त्यागने को सोच रहे थे उसी समय। एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर ऋषि को आत्म हत्या करने से रोक दिया और एक गुफा में ले जाकर चतुर्भुज श्रीहरि भगवान विष्णु के अनन्त रूप का दर्शन कराएं।
भगवान अनंत ने ऋषि कौण्डिन्य से कहा-तुमने जो अनन्त सूत्र को तिरस्कार करने का अपराध किया है, वह सब उसी का परिणाम है। इसके लिए तुम्हें प्रायश्चित करना होगा। तुम्हें चौदह वर्षों तक निरंतर अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन पूरी विधि-विधान और निष्ठा पूर्वक करने होंगे।
और इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी सारी खत्म हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पहले की तरह सुखी-संपन्न और समृद्ध हो जाओगे। अनंत भगवान की आज्ञा को कौण्डिन्य ऋषि ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
भगवान अनंत ने समस्त प्राणियों से कहा कि जीव अपने जीवन में बीते समय की दुष्कर्मो का फल ही अपनी दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य अपने जन्म-जन्मांतर के पापों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत को विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा से करने और सभी नियमों को पालन पर सारे पाप नष्ट हो जाते हैं तथा घर में सुख-शांति प्राप्त होती है।
कौण्डिन्य मुनि ने चौदह वर्ष तक अनंत चतुर्दशी व्रत का विधि-विधान और निष्ठा पूर्वक नियम का पालन करके खोई हुई संपत्ति को पुन:प्राप्त कर लिया।
अनंत चतुर्दशी के दिन कब करें पारण
अनंत चतुर्दशी का व्रत दिन भर का होता है। बहुत से लोग शाम को सूर्यास्त के बाद अन्न या फल ग्रहण कर लेते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो 24 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं।
वैसे लोग शाम 06:49 बजे के बाद पारण कर सकते हैं। क्योंकि 06:49 बजे के बाद पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो जाएगा। दिन भर उपवास रखने वाले लोग शाम के 07:00 बजे सूर्यास्त के बाद फल या अन्न ले सकते हैं।
24 घंटे निर्जला व्रत रखने वाले व्रत धारी को पहले सुबह 04:42 बजे से लेकर 06:13 बजे के बीच पारण करने का शुभ मुहूर्त बन रहा है, क्योंकि इस वक्त अमृत मुहूर्त चल रहा होगा। ऐसे समय में पारण करना आपके लिए अच्छा रहेगा।
व्रत तोड़ने के पूर्व ऐसे करें संकल्प
पारण करने के पूर्व व्रतधारी स्त्री और पुरुष सबसे पहले स्नान करें। हो सके तो गंगा जल मिलाकर स्नान करना चाहिए। उसके बाद नए वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का पूजा करें।
पूजा के उपरांत हाथ जोड़कर पूजा के दौरान हुई गलती के लिए भगवान विष्णु से क्षमा मांगे। इसके बाद आरती कर घर में स्थित बड़े बुजुर्गों का चरण स्पर्श करें।
भोजन करने के पहले गाय के लिए ग्रस जरूर निकालें। भोजन के उपरांत लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।
डिस्क्लेमर
अनंत चतुर्दशी का यह लेख पूरी तरह धर्म शास्त्रों और आध्यात्मिक गुरुओं से विचार विमर्श कर लिखा गया है। लेख लिखने का मुख उद्देश्य सनातन धर्म की प्रचार प्रचार करना और व्रत के प्रति लोगों में उत्साह और विश्वास को जगाना मात्र है। लेख लिखने के लिए इंटरनेट से भी सहायता लिया गया है। शुभ मुहूर्तों का समय पंचांग से लिया गया है।
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