मां गंगा की अवतरण दिन को गंगा दशहरा कहते हैं।
30 जून 2023, दिन मंगलवार को ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जायेगा।
जेष्ठ शुक्ल पक्ष की हस्त नक्षत्र के दशमी तिथि के दिन मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थी।
पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी गंगा दशहरा के दिन हस्त नक्षत्र का अदभुत संयोग बन रहा है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है।
गंगा दशहरा के दिन मां गंगा की विधि विधान से पूजा अर्चना कर भगवान भोले शिव को जलाभिषेक करने का विधान है।
गंगा दशहरा पर उपवास कर दान देने का बड़ा महत्व होता है।
मनुष्यों के दस तरह के पापों को हरने के कारण इसका नाम पड़ा दशहरा।
इन दस तरह के पापों में चार वाचिक पाप, तीन मानसिक और तीन कायिक पाप कहलाते हैं।
गंगा दशहरा के दिन प्रत्येक सनातनी व्यक्ति को गंगा नदी या पास में स्थिति किसी पवित्र नदी, तालाब, जलाशय के जल में स्नान करने के उपरांत अर्ध्य देने और मां गंगा की पूजन करने की परंपरा है। अगर आप के पास समय नहीं है, तो ऐसी स्थिति में गंगा जल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
ऊं नम: शिवाय नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम: का जप स्नान करते समय करना फलदाई होगा।
गंगा दशहरे के दिन कैसा रहेगा जानें पंचांग से
गंगा दशहरे के दिन सूर्योदय 05:24 बजे पर और सूर्यास्त शाम 07:13 बजे पर होगा। उसी प्रकार चंद्रोदय दिन के 02:32 बजे पर और चंद्रास्त रात 02:39 बजे होगा।
दशमी तिथि का शुभारंभ 29 मई दिन सोमवार को दिन के 11:00 बज के 49 मिनट से लेकर दूसरे दिन अर्थात 30 मई दिन मंगलवार को दोपहर एक बज कर 07 मिनट तक रहेगा।
गंगा दशहरे के दिन नक्षत्र हस्त, योग सिद्धि, सूर्य वृषभ राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में रहेंगे। सूर्य का नक्षत्र रोहिणी रहेगा। आनन्दादि योग सौम्य, होमाहुति शनि, दिशाशूल उत्तर, राहुकाल वास पश्चिम, चंद्रवास दक्षिण, भद्रा वास पाताल और अग्निवास दिन के 01:07 बजे तक पाताल रहेगा इसके बाद पृथ्वी हो जाएगा।
गंगा दशहरा पर जाने शुभ मुहूर्त
गंगा दशहरा के दिन शुभ मुहूर्त में ही स्नान करने का परंपरा और विधान है। इसलिए लोगों को शुभ मुहूर्त पर ही अपने आस-पास स्थित नदी, तालाब, पोखर और अगर संभव हो तो गंगा नदी में स्नान करने चाहिए। सुबह 05:30 बजे बजे से लेकर 07:00 बजे तक स्नान करने का शुभ मुहूर्त है। इसके बाद सुबह 09:00 बजे से लेकर दिन के 02:00 बजे तक आप शुभ मुहूर्त में स्नान कर पूजा-अर्चना कर सकते हैं। अब जानें विस्तार से किस समय क्या मुहूर्त है।
गंगा दशहरा के दिन सुबह 04:03 बजे से लेकर 04:45 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त है। उसी प्रकार प्रातः संध्या मुहूर्त 04:23 बजे से लेकर 05:00 बज के 24 मिनट तक है। उसी प्रकार 05:24 बजे से लेकर सुबह 07:08 बजे तक अमृत है। इस दौरान आप पवित्र जल से स्नान कर मां गंगा सहित अपने पूर्वजों को अर्ध्य दे सकते हैं।
उसी प्रकार एक बार फिर से सुबह 8:51 बजे से लेकर 10:35 बजे तक चर मुहूर्त, 10:35 बजे से लेकर 12:19 बजे तक लाभ मुहूर्त और 12:19 बजे से लेकर 02:02 बजे तक अमृत मुहूर्त है। इस दौरान भी आप शुद्ध जल से स्नान कर सकते हैं।
गंगा दशहरा पौराणिक कथा
एक समय की बात है अयोध्या नगरी में सगर नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। उन्होंने सातों समुद्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया था। राजा के केशिनी तथा सुमति नामक दो रानियां थीं। पहली रानी के एक पुत्र अंशुमान था, जबकि दूसरी रानी सुमति के साठ हज़ार पुत्र थे। एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ के अनुष्ठान के लिए एक घोड़ा छोड़ा गया।
इंद्र ने राजा सगर को फसाया
इद्र ने उस यज्ञ को भंग करने के लिए छोड़े गए घोड़ा का अपहरण कर लिया। उसे घोड़े को इन्द्र ने कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर ने उसे घोड़े को खोजने के लिए अपने साठ हज़ार पुत्रों को भेज दिया।
कपिल मुनि के आश्रम में मिला घोड़ा
सगर के पुत्रों ने सारा भूमण्डल छान मारा फिर भी घोड़ा नहीं मिला। घोड़े को खोजते-खोजते राजा सगर के पुत्रों ने जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो वहां उन लोगों ने देखा कि महर्षि कपिल तपस्या कर रहे हैं और उन्हीं के पास महाराज सगर का घोड़ा बंधा हुआ था।
सागर के साठ हजार पुत्रों को भस्म किए मुनि कपिल
सगर के पुत्र उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ शब्द कहकर चिल्लाने लगे। इससे महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने नेत्र खोले त्यों ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र जलकर भस्म हो गए। अपने पूज्य चाचा को खोजता हुआ राजा सगर का पौत्र अंशुमान जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचा तो महात्मा गरुड़ ने अंशुमान को उनके भस्म होने का कहानी सुनाया।
गरुड़ जी ने बताया मुक्ति का उपाय
गरुड़ जी ने यह भी बताया कि यदि अपने पूर्वजों की मुक्ति चाहते हो तो मां गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाना पड़ेगा। इस समय घोड़े को ले जाकर अपने पितामह के यज्ञ को पूर्ण कराओ, उसके बाद मुक्ति का कार्य करना।
भागीरथ ने गंगा को लाएं पृथ्वी पर
अंशुमान ने घोड़े लेकर यज्ञ स्थल पर पहुंचकर सगर से सारी बातें कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के बाद अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप जीवन भर तपस्या करके भी मां गंगा को धरती पर न ला सके। अंत में महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने मां गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी लोक में लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ स्थल में जाकर कठोर तपस्या की। राजा भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने वरदान मांगने को कहा, तो भागीरथ ने गंगा मां को धरती पर लाने की वरदान मांग ली।
ब्रम्हा जी ने कहा की पृथ्वी गंगा का वेग नहीं संभल सकता। इसे केवल शिव जी सम्भाल सकते हैं| इस पर भागीरथ ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। तपस्या से खुश होकर भोलेनाथ में गंगा मां को पृथ्वी पर अवतरित होने का आशीर्वाद दे दिए। मां गंगा स्वर्ग से निकलने के बाद भगवान भोलेनाथ की जटा में समा गई। मां गंगा शंकर जी की जटाओं में कई वर्षों तक भ्रमण करती रहीं लेकिन निकलने का कहीं मार्ग ही न मिला। इस तरह की घटना सुनकर राजा भागीरथ को अत्यधिक चिंता हुई।
पेच में फंसे भगीरथ को भोलेनाथ ने निकाला
राजा भागीरथ ने एक बार फिर भगवान भोले शिव की प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या शुरू कर दिया। काफी दिनों तक तपस्या करने पर भोलेनाथ प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा। भागीरथ ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान भोले शिव से मांग लिया। वरदान देने के बाद शिवजी की जटाओं से छूटकर मां गंगा हिमालय में आकर गिरी और वहां से उनकी अनेक धाराएं निकली और मां गंगा के रूप में अवतरित हुई।
गंगा को आते ही लोगों में हर्ष
धरती पर गंगा मां के आते ही लोगों के बीच ख़ुशी का माहौल कायम हो गया। जिस रास्ते से मां गंगा जा रही थीं, उसी रास्ते में ऋषि जाह्नवी का आश्रम और तपस्या स्थल पड़ता था। तपस्या में बाधा समझकर ऋषि जाह्नवी गंगाजी को पी गए।
ऋषि जाह्नवी ने गंगाजी को पी गए
राजा भागीरथ और देवताओं के प्रार्थना करने पर ऋषि जाह्नवी ने पुन: जांघ को फाड़कर गंगा मां को निकाल दिए। तभी से ये जाह्नवी ऋषि कहलाने लगे। फिर मां गंगा तमाम लोगों को तारते हुए मुनि के आश्रम में पहुंचकर सगर के साठ हज़ार पुत्रों को मुक्त किया।
उसी समय भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और राजा भागीरथ के कठिन तप करने के लिए प्रशंसा किए और सगर के साठ हज़ार पुत्रों के अमर होने का वर दिए। इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि राजन तुम्हारे ही नाम पर गंगा का नाम भागीरथी गंगा कहलायेगा।
भगीरथ पृथ्वी पर गंगा को लाकर अपने पूर्वजों का ही नहीं बल्कि युगों-युगों तक कई आत्माओं का उद्धार करने का काम किया। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। जन्म जन्मांतर तक बहने वाली मां गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा गाती रहती है। गंगा मनुष्य मात्र को जीवन दान ही नहीं देती बल्कि मुक्ति भी प्रदान करती है। इसी कारण हिन्दुस्तान सहित विश्व स्तर पर गंगा मां की महिमा गाई जाती है।
गंगा दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को दशहरा कहते हैं। इसमें स्नान, दान, रूपात्मक व्रत होता है। जानें गंगा दशहरा के संबंध में हमारे पुराणों में क्या लिखा है।
स्कन्दपुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान तो विशेष रूप से करें। देश विदेश के किसी भी नदी पर जाकर करके पहले नदी का पूजन करें इसके बाद अपने पूर्वजों को जल से तर्पण दें।
स्कंद पुराण में गंगा दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र और उसके पढ़ने की विधि के अलावा मां गंगा की रूप का वर्णन किया गया है। मां गंगा अति सुंदर, तीन नेत्रों वाली और चार भुजाओं वाली है। चारों भुजाओं में रत्नकुंभ, श्वेतकमल, वरद और अभय धारण किए हैं। मां गंगा सफेद वस्त्र पहने हुई है।
वराह पुराण
लिखा हुआ है कि, हैं। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दिन बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या राशि में चंद्र, वृषभ राशि में सूर्य हो तो इस अदभुत दस संयोग में मनुष्य स्नान करके सभी तरह के पापों से छूटकारा मिल जाता है।
भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि, जो मनुष्य इस दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार गंंंगाग स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो वह भी प्रयत्नपूर्वक गंगा की पूजा कर उस फल को पा सकता है।
डिस्क्लेमर
यह कथा पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों और पंचांग पर आधारित है। हमारा उद्देश्य सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के बीच त्योहार के जोत को जलाना और हमारी वेद-पुराणों में लिखे पौराणिक कथाओं से अवगत कराना ही मुख्य उद्देश्य है। आपको यह लेख पढ़ने में आपको कैसा लगा, हमें ईमेल पर जरूर सूचित कीजिएगा।
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गंगा दशहरा पर जानें संपूर्ण जानकारी। पौराणिक कथा
शुभ मुहूर्त और पुराणों में क्या लिखा है गंगा दशहरा के संबंध में। विस्तार से जानें।