सीता प्राकट्य उत्सव नवमी 29 अप्रैल को, जानें मां जानकी जन्म के चार कथाएं

जानकी नवमी पर पढ़ें चार तरह की कथाएं, पूजा करने की विधि, पूजा करने का शुभ मुहूर्त और पारण करने का उचित समय। 

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष नवमी तिथि, विक्रम संवत 2080, दिन शनिवार 29 अप्रैल 2030 को जानकी प्राकट्य उत्सव नवमी मनाई जाएगी।

वैशाख शुक्लपक्ष के नौवें दिन अर्थात नवमी तिथि को सीता प्राकट्य उत्सव जयंती मनाई जाती है। इस पर्व को जानकी नवमी भी कहा जाता है। इस दिन माता सीता और प्रभु श्रीराम की पूजा करने की सनातनी विधान है।

यह पर्व 29 अप्रैल, दिन शनिवार को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन सीता माता का प्राकट्य हुआ था। श्रीराम और सीता जी का जन्म एक ही नक्षत्र पुष्य में हुआ था।

शास्त्रों के अनुसार वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र में महाराजा जनक को पृथ्वी (ज़मीन खोदने) से संतान की प्राप्ति हुई थी। 

शास्त्रों में इस दिन के महत्वों का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि इस दिन माता सीता और प्रभु श्रीराम की पूजा के साथ ही व्रत रखने से पृथ्वी दान सहित, सोलह तरह के महत्वपूर्ण दान का फल भी मिलता है।
सीता नवमी की पूजा विधि

सीता नवमी पर व्रत रखने वालों को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शुद्ध जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करने चाहिए।

स्नान करने के बाद सीता माता को प्रसन्न करने के लिए व्रत और विधि विधान से पूजा करने का संकल्प लेना चाहिए।

इसके बाद गोबर से लीपकर एक लकड़ी से बनी चौकी पर लाल या पीले रंग के कपड़े को बिछाकर माता सीता और श्रीराम प्रभु की प्रतिमा या तस्वीर रखें।

राजा जनक, माता सुनयना और हनुमान जी की पूजा के साथ पृथ्वी की भी पूजा करनी चाहिए।

पूजा के उपरांत अपनी हैसियत और श्रद्धा के अनुसार दान का संकल्प लेना चाहिए।

कई स्थानों पर मिट्‌टी के बर्तन में धान, फल, सब्जी, द्रव, जल या अन्न भरकर दान दिया जाता है।

जानकी नवमी को कैसा रहेगा दिन जानें पंचांग के अनुसार

वैशाख मास, शुक्ल पक्ष, नवमी तिथि, विक्रम संवत 2080, 29 अप्रैल, दिन शनिवार को जानकी नवमी है। 
नवमी तिथि का शुभारंभ 28 अप्रैल दिन शुक्रवार को संध्या 04:01 बजे से शुरू होकर 29 अप्रैल दिन शनिवार को शाम 06:22 बजे तक रहेगा। 

सूर्योदय सुबह 05:45 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:55 बजे पर होगा। उसी प्रकार चंद्रोदय दोपहर 01:06 बजे पर और चंद्रास्त रात 02:48 बजे पर होगा। 

नक्षत्र अश्लेषा, योग गण्ड, सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में दोपहर 12:47 बजे तक रहने के बाद सिंह राशि में प्रवेश कर जायेंगे। 

दिनमान 13 घंटा 12 मिनट का रहेगा। उसी प्रकार रात्रिमान 10 घंटे 46  मिनट का होगा।

जानकी नवमी के दिन किस मुहूर्त में करें पूजा

जानकी नवमी के दिन व्रत करने वाले स्त्री और पुरुषों को शुभ मुहूर्त में पूजा-अर्चना करने चाहिए। शुभ मुहूर्त का शुभारंभ सुबह 07:22 बजे से लेकर 09:01 बजे तक शुभ उत्तम मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार दोपहर 12:19 बजे से लेकर 01:58 बजे तक सामान्य चर मुहूर्त है। अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:52 बजे से लेकर दोपहर 12:45 बजे तक, अमृत काल मुहूर्त दिन के 11:00 बजे से लेकर 12:47 बजे तक और विजय मुहूर्त दिन के 02: 31 बजे से लेकर 03:24 बजे तक रहेगा। इस दौरान आप सुविधा के अनुसार माता सीता की आराधना और पूजा कर सकते हैं।

पारण करने का उचित समय

जानकी नवमी व्रत करने वाले स्त्री और पुरुषों को 30 अप्रैल को सुबह 04:21 बजे से लेकर 05:42 बजे के बीच पारण कर लेना चाहिए। इस दौरान लाभ उन्नति मुहूर्त रहेगा।

मां सीता की जन्म कथा प्रथम
वाल्मीकि रामायण के अनुसार महाराजा जनक का कोई संतान नहीं था। इसलिए उन्होंने संतान प्राप्ति यज्ञ करने का फैसला लिया। यज्ञ करने के लिए राजा जनक को पवित्र जमीन तैयार करनी थी।

वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक हल से पवित्र जमीन को जोत रहे थे, उसी समय जमीन में उनके हल का एक फार (सीत) फंस गया। 

उस जगह खुदाई करने पर मिट्‌टी के बर्तन में उन्हें एक कन्या मिली। जमीन जोतते समय लगने वाले हल की नोक को सीत कहा जाता है। हल के फार अर्थात सीत से जन्मने के कारण उसका नाम सीता पड़ गया।'जानकी नवमी' भी इस पर्व को कहा जाता हैं। 

सनातनी मान्यताएं के अनुसार जो स्त्री और पुरुष इस दिन व्रत रखता है और प्रभु श्रीराम और माता सीता का विधि-विधान और पूरी निष्ठा से पूजन करता है, उसे 16 महान दान करने का फल मिलता है। मसलन  भूमि, अन्न, वस्त्र, धन सहित अन्य दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। इस दिन माता सीता के कल्याण कारी नाम 'श्री सीतायै नमः' और 'श्रीसीता-रामाय नमः' मंत्र का उच्चारण करना लाभप्रद होता है।

जानकी नवमी की दूसरी कथा
सीता नवमी की पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्मानुकूल ब्राह्मण रहते थे। उनका नाम देवदत्त था। उस ब्राह्मण की बड़ी मनमोहक और सुंदर पत्नी थी। ब्राम्हण की पत्नी का नाम शोभना था। ब्राह्मण देवदत्त जीविका के लिए अपने गांव सहित दूसरे गांव में भिक्षाटन के लिए जाता था। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचारी और दूराचारी हो गई।

अब तो पूरे गांव में ब्राह्मणी की करतूतों की चर्चाएं होने लगीं। दुष्ट ब्राह्मणी ने पूरे गांव ही जलवा दिया। रती क्रिया में दिन रात सलंग्न रहने वाली वह ब्राह्मणी मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के परिवार में हुआ। 

पूरे गांव को जलाने के कारण वह भीषण कुष्ठ रोगी बन गई। पति को त्याग करने से वह चांडालिनी बन गई। साथ ही व्यभिचार-कर्म के कारण वह अंधी भी हो गई। अपने पिछले जन्म के कर्म का फल उस ब्राह्मणी को भोगना ही था।

इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से वह ब्राह्मणी दिनों दिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश-दुनिया में भटकने लगी। एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। और उस ब्राह्मणी को ऐसा अदभुत संयोग मिला कि उस दिन वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी, जो सभी तरह के पापों को नाश करने में समर्थवान तिथि मानी जाती है।

जानकी (सीता) नवमी के पवित्र अवसर पर भूख-प्यास से व्याकुल  दुखियारी ब्राह्मणी लोगों से विनती करने लगी- हे महापुरुषों मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री दान करो। मैं भूख से मेरे प्राण हलक में आ गई है। ऐसा कहती हुई वह ब्राह्मणी  कनक भवन के सामने बने एक हजार फूलों से युक्त स्तंभों से गुजरती हुई भवन के आंगन में घुस गई। उसने पुनः पुकार लगाई- भैया! कोई भी व्यक्ति मेरी मदद करो, कुछ न कुछ भोजन करने के लिए मुझे दे दो।

इतने में एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो जानकी नवमी है। भोजन करने के लिए अन्न देने वाले को महापाप लगता है। इसीलिए आज तो अन्न मिलना असम्भव है। कल पारण करते समय आना, माता की प्रसाद भरपेट खाने को मिलेगा, किंतु वह नहीं मानी। अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी एवं जल दे दिया। वह पापिनी भूख से मर गई। किंतु इसी बहाने जानें-अनजाने में उस ब्राह्मणी से सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया।

इसके बाद परम दयालु सीता मईया ने उसे पापी ब्राह्मणी को सभी पापों से मुक्त कर दिया। जानकी नवमी व्रत के प्रभाव से वह पापिनी ब्राह्मणी ठीक होकर स्वर्ग में विलासिता पूर्वक अनेक वर्षों तक रही। इसके बाद वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। उसने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई।

माता सीता जन्म की तीसरी कथा

अद्भुत रामायण में देवी सीता से संबंधित एक अन्य कथा का उल्लेख मिलता है। इस रामायण में लिखा गया है कि रावण ने कहा था कि जब उसके हृदय में अपनी पुत्री से विवाह करने की इच्छा उत्पन्न हो तो उसकी पुत्री ही उसकी मृत्यु का कारण बने। इस संबंध में धर्म शास्त्रों मिली जानकारी इस प्रकार है।
 
ऋषि गृत्समद माता लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाना चाहते थे। इसके लिए ऋषि प्रति दिन मंत्रोच्चार के साथ कुश के अगले भाग से एक कलश में दूध की बूंदें डालते थे।

एक दिन जब ऋषि आश्रम में नहीं थे तब रावण वहां पहुंचा गया और वहां उपस्थित ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया। इस कलश को रावण महल में लाकर छुपा दिया। मंदोदरी उस कलश को लेकर बहुत उत्सुक थी कि आखिर उसमें है क्या। एक दिन जब रावण महल में नहीं था तब चुपके से मंदोदरी ने उस कलश को खोलकर देखा। 
 
मंदोदरी ने रावण के रखें कलश को उठाकर सारा रक्त और दूध पी गई। रक्त और दूध पीने से मंदोदरी गर्भवती हो गई। प्रसव होने के उपरांत, यह भेद किसी को पता ना चले इसलिए मंदोदरी ने उस बालिका को लंका से बहुत दूर कलश में छुपाकर मिथिला के भूमि में गाड़ आई। इस तरह सीता को रावण की पुत्री बताया जाता है।

मां सीता जन्म की चौथी कथा

देवी सीता के जन्म की तीसरी कथा वेदवती नाम की एक ब्राह्मण कन्या से संबंधित है जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। इस कथा में बताया गया है कि एक समय वेदवती भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थीं। हिमालय पर भ्रमण करते हुए रावण की नजर वेदवती पर गई और वह कामांध हो गया। रावण ने वेदवती का हाथ पकड़ लिया और जबरन संबंध बनाना चाहा। लेकिन वेदवती ने रावण से खुद को छुड़ा लिया और पर्वत से खाई में कूद गईं और मरते-मरते वेदवती ने रावण को शाप देते कहा कि वह फिर से दूसरी जन्म लेकर उसकी मृत्यु का कारण बनेगी।

डिस्क्लेमर
जानकी नवमी लेख पूरी तरह सनातन धर्म से संबंधित है। लेख में इंगित विभिन्न पहलुओं की जानकारी धार्मिक पुस्तकों से ली गई है। साथ ही शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। इस लेख को लिखने का उद्देश्य सिर्फ लोगों तक जानकारी पहुंचाना है। 



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