हर क्षेत्र में अगर चाहिए विजय, तो करें विजया एकादशी

विजय एकादशी व्रत कर श्रीराम प्रभु ने लंका विजय का नींव रखे थे।

16 फरवरी 2023, दिन गुरुवार, फाल्गुन मास, कृष्ण पक्ष, एकादशी तिथि को विजया एकादशी पर्व मनाई जाएगी।

15 फरवरी दिन बुधवार को सुबह 05:00 बज कर 32 मिनट से लेकर 16 फरवरी देर रात 02:49 बजे तक एकादशी तिथि रहेगी।

विजया एकादशी के दिन कैसा रहेगा जानें पंचांग के अनुसार

विजया एकादशी के दिन ऋतु शिशिर, आयन उत्तरायण, तिथि एकादशी, नक्षत्र मूल सुबह 10:53 बजे तक, योग हर्षण सुबह के 07:53 बजे तक रहेगा।

सूर्योदय सुबह 06:49 बजे पर और सूर्यास्त शाम 06:12 बजे तक होगा। चंद्रोदय अहले सुबह 04:30 बजे पर और चंद्रास्त दिन के 01:39 बजे पर होगा। सूर्य कुंभ राशि में और चंद्रमा धनु राशि में है। दिनमान 11 घंटा 12 मिनट का रहेगा जबकि रात्रिमान 12 घंटा 46 मिनट का होगा।

आनंददि योग धुम्र, रात के 10:53 बजे तक इसके बाद धाता/ प्रजापति योग हो जायेगा। होमाहुति राहु, रात 10:43 बजे तक इसके बाद केतु का आगमन होगा। दिशा शूल दक्षिण, राहूवास दक्षिण, अग्निवास पृथ्वी देर रात तक, इसके बाद आकाश, चन्द्र वास पूर्व दिशा में रहेगा।

जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त दिन के 12:13 बजे से लेकर दोपहर 12:58 बजे तक है।

विजया मुहूर्त 02:27 बजे से लेकर 3:12 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त 06:00 बजे से लेकर 06:24 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त 06:12 बजे से लेकर 07:28 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 12:09 बजे से लेकर 01:00 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 05:16 बजे से लेकर 06:07 बजे तक और प्रातः संध्या मुहूर्त सुबह 05:42 बजे से लेकर 06:48 बजे तक रहेगा। इस दौरान चारों पहर की पूजा अर्चना करना शुभ होगा।

पंचांग के अनुसार अशुभ महूर्त

पंचांग के अनुसार सुबह 09:47 बजे से लेकर 11:11 बजे तक गुलिक काल, सुबह के 06:59 बजे से लेकर 08:23 बजे तक यमगण्ड काल, दिन के 01:59 बजे से लेकर 03:24 बजे तक राहु काल, 10:43 बजे से लेकर 11:28 बजे तक दुर्मुहूर्त काल और वज्र्य काल सुबह 08:08 बजे से लेकर 09:37 बजे तक रहेगा। इसके बाद शाम 7:27 बजे से लेकर रात 8:56 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करने से लोगों को बचना चाहिए।


अब जानें शुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार चारों पहर के लिए

एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को चारों पहर की पूजा करना अनिवार्य होता है। तभी व्रत करने से आपको सभी तरह के फल प्राप्त होते हैं। जानें चौघड़िया पंचांग के अनुसार चारों पहर का शुभ मुहूर्त का समय।

चौघड़िया पंचांग के अनुसार सुबह की पूजा करने का शुभ मुहूर्त। सुबह 06:59 बजे से लेकर 08:23 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा।

दोपहर 11:11 बजे से लेकर 12:35 बजे तक चर मुहूर्त, दिन के 12:35 बजे से लेकर 01:59 बजे तक लाभ मुहूर्त एवं 01:59 बजे से लेकर 03:34 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा। इस दौरान दो पहर की पूजा लोग कर सकते हैं।

शाम और रात के समय का शुभ मुहूर्त

संध्या के समय चौघड़िया मुहूर्त का आगमन शाम 06:12 बजे से लेकर 07:48 बजे तक अमृत मुहूर्त के रूप में रहेगा।

उसी प्रकार रात 12:35 बजे से लेकर 02:11 बजे तक लाभ मुहूर्त रहेगा। सुबह के समय का मुहूर्त पर सुबह 05:22 बजे से लेकर 06:58 बजे तक अमृत मुहूर्त है। इस दौरान आप तीनों पहर का पूजा अर्चना कर सकते हैं।

कैसे करें व्रत

विजया एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। जो व्यक्ति विजया एकादशी व्रत करना चाहता है उसे व्रत के एक दिन पहले यानी दशमी के दिन एक बार ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना चाहिए।

विजया एकादशी के दिन लें संकल्प

विजया एकादशी के दिन सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। इसके बाद धूप, मौसमी फल, घी एवं पंचामृत आदि से भगवान भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

विजया एकादशी की रात जग्गा करना अर्थात रातभर सोना नहीं चाहिए। सिर्फ भगवान का भजन कीर्तन एवं सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। रात्रि जागरण करना काफी शुभ और फलदाई होता है।

द्वादशी अर्थात पारण के दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर लोगों के बीच प्रसाद वितरण करना चाहिए। प्रसाद वितरण के बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। अपने क्षमता के अनुसार दान-दक्षिणा देना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन कर उपवास खोलना चाहिए।

पूजा सामग्रियों की सूची जानें

पूजा सामग्री के रूप में भगवान विष्णु के स्नान कराने के लिए तांबे और पीतल का लोटा या पात्र तांबे या पीतल का लोटा, जल का कलश, दूध, भगवान विष्णु को पहनाने के लिए वस्त्र और आभूषण चाहिए, अरवा चावल, कुमकुम, दीपक, जनेऊ, तिल, फूल, अष्टगंध, तुलसीदाल, प्रसाद के लिए सभी तरह के लिए गेंहू के आटा पंजीरी के लिए, 

फल, धूप, मिठाई नारियल, मधु, गंगा जल, सूखे मेवे, गुड़ और पान के पत्ते ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के लिए रुपए रख लें।

विजय एकादशी की पौराणिक कथा

एक दिन धर्मराज युधिष्‍ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा - हे श्रीहरि! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाले एकादशी व्रत का क्या नाम है। व्रत करने की क्या है विधि ? कृपा करके आप मुझे विस्तार से बताइए।

श्रीहरि ने कहा कि हे धर्मराज - फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का नाम विजया एकादशी व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को हर काम में सफलता और विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत कहलाता है।

इस विजया एकादशी के महात्म्य श्रवण करने और पठन-पाठन से सभी तरह के पाप नाश हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने ब्रह्माजी से कहा हे पिताश्री ! आप मुझसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी व्रत कथा और पूरे विधान विस्तार से बताइए।

ब्रह्माजी ने कहा हे पुत्र नारद! विजया एकादशी का व्रत सभी तरह के पापों को नाश करने वाला है। विजया एकादशी व्रत करने की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं बताया है। 

यह समस्त सनातनी जातकों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। 

वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण बहुत ज्यादा व्याकुल हुए और माता सीताजी की खोज में चल पड़े।

श्री राम और लक्ष्मण वन में घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी को रावण द्वारा हरण करने की वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। इसके बाद श्री राम और लक्ष्मण का सुग्रीव और हनुमान जी से मिलने के बाद मित्रता हुई।

 तत्पश्चात श्री राम ने बाली का वध कर दिए। 

हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की‍ मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।

श्री रामजी ने वानरों की सेना सहित, हनुमान, लक्ष्मन और सुग्रीव की सारी सेना को लेकर से लंका जाने के लिए प्रस्थान किया। जब श्री राम समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ सहित भयानक जीव-जंतुओं से भरा उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी चिंतित होकर कहा कि हे भ्राताश्री इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।

लक्ष्मण जी ने उपाय बताते हुए श्री राम प्रभु से कहा कि हे पुरुषोत्तम, आप श्रृष्टि निर्माता और आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। आप से कुछ छिपा नहीं है। यहां से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के ऋषि रहते हैं। उन्होंने अनेकों ब्रह्मा को देखे हैं, आप उनके पास जाकर समुद्र पार करने का उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामजी वकदालभ्य ऋषि के आश्रम में जाकर उनको श्राद्ध पूर्वक प्रणाम करके बैठ गए।

मुनि वकदालभ्य ने उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए मर्यादा पुरुषोत्तम समझकर श्री राम से पूछा कि हे राम! आपका यहां आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहा कि हे ऋषि वकदालभ्य ! मैं अपनी सेना ‍सहित आप के आश्रम आया हूं और रामण सहित राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूं। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई रास्ता या उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके आश्रम में आया हूं।

वकदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का उत्तम व्रत विधि विधान से करने पर निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप और आपकी पूरीत सेना समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।

इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्‍टी का एक बड़ा घड़ा बनाएं। उस घड़े को जल से भरकर तथा पांच आम का पल्लव रख, वेदी पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सात तरह के अनाज और घड़े के ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीहरि भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। विजया एका‍दशी के दिन स्नानादि कर नूतन वस्त्र धारण कर, सभी कार्यों से निवृत्त होकर नैवेद्य, नारियल, धूप, दीप, अक्षत, फल आदि से भगवान की पूजा करें। तो उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

इसके बाद व्रत रखकर घड़े के समक्ष बैठकर दिन भर व्रत का पालन करें ‍और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठेकर श्रीहरि के नामों का जाप कर जागरण करें।

द्वादशी तिथि के दिन विधि विधान और नियम से पूजन कर उस घड़े को ब्राह्मण को दान दे दें। ऋषि वकदालभ्य ने कहा कि हे राम! यदि तुम भी इस विजया एकादशी व्रत को सेनापतियों ओर प्रिय जनों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय निश्चित होगी। श्री राम ने ऋषि वकदालभ्य के कहे अनुसार इस व्रत को श्रीराम अपने इस वंधुओ के साथ पूरे विधि विधान किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।

ऋषि ने कहा कि हे राम ! जो कोई व्यक्ति इस व्रत को विधिपूर्वक करेगा, उसे तीनों लोकों में अवश्य विजय होगी। 

 नारदजी से ब्रह्माजी ने कहा था कि हे पुत्र नारद! जो कोई जातक इस विजया एकादशी व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, वैसे प्राणियों को वाजपेय यज्ञ करने जैसा फल प्राप्त होता है।

डिस्क्लेमर

यह लेख पूरी तरह धार्मिक ग्रंथों और वेद पुराणों पर आधारित है। विद्वानों आचार्यों द्वारा विजया एकादशी के संबंध में जो कहा गया है वहीं इस लेख में लिखा गया है। यह लेख सिर्फ आपको धार्मिक सूचना पहुंचाने का काम करेगा।

लेख पढ़कर आपको कैसा लगा ? इसमें क्या है कमी और आप क्या चाहते हैं। कृपा हमारे ईमेल पर जरूर सूचित करें। 

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