Dattatreya Jayanti 2022: त्रिदेव और अनुसुइया के संयोग से जन्मे दत्तात्रेय, जानें संपूर्ण जानकारी

दत्तात्रेय जयंती 07 दिसंबर दिन बुधवार को है

त्रिदेव के सामुहिक रूप है भगवान दत्तात्रेय

मान्यता है कि दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से ज्ञान प्राप्त किए हैं

भगवान दत्तात्रेय को परम ब्रह्म मूर्ति सद् गुरु, दत्तात्रेय जी भगवान, भगवान दत्तात्रे जी, गुरु देव दत्त, गुरु दत्तात्रेय आदि नामों से भी जाना जाता है

दत्तात्रेय भगवान की माता अनुसुइया थी जबकि पिता ऋषि अत्रि थे

दत्तात्रेय जयंती के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर व्रत का संकल्प लेना लाभप्रद होगा।

पवित्र नदियों, तालाब, सरोवर, कुआं या घरों में गंगा जल मिलाकर स्नान करने का इस दिन विशेष महत्व है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा में स्नान करने के बाद दत्त पादुका (लकड़ी से बने खड़ाऊ) की पूजा करना शुभ और मंगलकारी माना जाता है।

स्नान आदि के बाद भगवान दत्तात्रेय जी को धुप, दीप, नैवेद्ध, फल और फूल से पूजा अर्चना करना चाहिए।

दत्तात्रेय जी के मन्त्रों और स्तोत्रों का जाप और पाठ पूजा के उपरांत करना चाहिए।

भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु के रूप में पूजन करना अत्यंत ही कल्याणकारी और शुभ होता है।

भगवान दत्तात्रेय जयंती को दत्ता जयंती या दत्त जयंती सहित अन्य नामों से भी जाना जाता है।

सनातनी पंचांग के अनुसार दत्तात्रेय जयंती मार्गशीर्ष (अगहन) माह में पूर्णिमा तिथि के दिन पड़ती है। इस बार ये तारीख 07 दिसंबर, दिन बुधवार को है। श्री दत्तात्रेय भगवान को त्रिमूर्ति अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) का संयुक्त (रूप) अवतार माना जाता है। मान्यता है कि दत्तात्रेय ने 24 गुरुओं से ज्ञान प्राप्त किए थे।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माहाऋषि अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश पृथ्वी लोक पहुंचे। तीनों देवता साधु भेष में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे। इसके बाद माता अनुसूया के सामने भोजन करने की इच्छा प्रकट की। देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना परमधर्म मानते हुए उनकी बात स्वीकार कर ली और उनके लिए प्रेम पूर्वक और श्रद्धा भाव से भोजन की थाली त्रिदेव के समक्ष परोस दी।

तीनों देवताओं ने सती अनुसूया के समक्ष एक शर्त रखी कि वह निर्वस्त्र होकर खाना खिलाएं। इस पर माता अनुसूया को शक हुआ।

उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो साधुओं के वेश में ब्रह्मा, विष्णु और शिव दिखाई दिए। अनुसूया ने अत्रि मुनि के कमंडल से जल निकालकर उन तीनों साधुओं पर छिड़ दिया।

जल छिड़कने के प्रभाव से तीनों देवता छह महीने के नौनिहाल बन गए। तब माता अनुसूया निर्वस्त्र होकर उन्हें भोजन कराया।

देवताओं को शिशु बन जाने पर मां पार्वती, माता सरस्वती और मां लक्ष्मी पृथ्वी पर पहुंच गई। इसके बाद माता अनुसूया से माफी मांगी।

फिर त्रिदेव, देवी अनुसूया से प्रसन्न हो जाते हैं। वरदान के रूप में संयुक्त रूप से दत्तात्रेय को उत्पन्न करते हैं और दत्तात्रेय को अपनी तमाम तरह की शक्तियां प्रदान कर देते हैं।

तीनों देवताओं को एक साथ बालक रूप में पुत्र दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़क देती है। इसके बाद तीनों देवताओं अपने पूर्ववत रुप में आ जाते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय जयंती के दिन जो भक्त व्रत रखकर पूजा-अर्चना करते हैं। उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता मिलती है और सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती है।

दत्तात्रेय जयंती पर कैसे करें पूजा

दत्तात्रेय जयंती के मौके पर अहले सुबह उठकर स्नानादि करके साफ-सुथरी वस्त्र धारण करें। भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा या तस्वीर पर गंगा जल के छिड़काव कर हल्दी, कुमकुम और चंदन का लेप लगाएं। इसके बाद मिठाई और फल का भोग चढ़ाएं। इस मंत्र ऊं श्री गुरुदेव दत्ता या श्री गुरु दत्तात्रेय नमः का जाप करें।

भगवान दत्तात्रेय को तीनों देवताओं का अवतार माना जाता है। कहा गया है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवों की शक्तियां भगवान दत्तात्रेय में समाहित हैं। भगवान दत्तात्रेय जी के छः भुजाएं और तीन मुंह हैं। इनके पिता ऋषि अत्रि और माता अनुसूया हैं। पौराणिक मान्यता यह है कि भगवान दत्तात्रेय भक्तों के सुमिरन करने मात्र से उनकी सहायता के लिए उपस्थित हो जाते हैं।

भगवान दत्तात्रेय की जयंती पर मंदिरों में विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में श्री दत्तात्रेय भगवान की प्रतिमा स्थापित है।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त

भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 07:51 बजे से लेकर 09:34 बजे तक अमृत काल रहेगा। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त सुबह 07:01 बजे से लेकर 08:19 बजे तक, अमृत मुहूर्त 08:19 बजे से लेकर 09:37 बजे तक, शुभ मुहूर्त 10:55 बजे से लेकर 12:12 बजे तक, विजय मुहूर्त दिन के 01:56 बजे से लेकर 02:38 बजे तक है। उसी प्रकार दोपहर 02:48 बजे से लेकर 04:06 बजे तक चर मुहूर्त, शाम 04:06 बजे से लेकर शाम 05:24 बजे तक लाभ मुहूर्त और शाम 05:14 बजे से लेकर 05:30 बजे के बीच गोधुलि मुहुर्त रहेगा। इस दौरान पूजा कर सकते हैं।

डिस्क्लेमर

दत्तात्रेय जयंती का यह आलेख धर्मशास्त्र और धर्म के जानकारों से हुई बातचीत कर लिखा गया है। शुभ मुहूर्त पंचांग से लिया गया है। पौराणिक कथा विद्वानों द्वारा कही गई है। यह लेख धार्मिक प्रचार के लिए और त्यौहार के प्रति आस्था को और सुदृढ़ बनाने के लिए लिखा गया है।



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