जगद्धात्री पूजा और अक्षय आंवला नवमी 2 नवंबर को

कार्तिक माह की शुक्‍ल पक्ष की नवमी ति‍थि अर्थात 2 नवंबर, दिन बुधवार को अक्षय नवमी या आंवला अक्षय नवमी हैं।  

2 नवंबर को जगतजननी मां जगद्धात्री पूजा का आयोजन होगा।

अक्षय नवमी के शुभ दिन महिलाएं व्रत रखती है और आंवले के पेंड़ की पूजा-अर्चना कर भोजन करती है।

पुराणों व शास्‍त्रों के अनुसार त्रेतायुग का शुभारंभ कार्तिक माह के नवमी तिथि से हुआ था।

अक्षय नवमी के दिन जो भी महिलाएं आंवले के पेड़ की पूजा विधि-विधान से करती है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

अब जानें जगद्धात्री पूजा के संबंध में

जगद्धात्री का मतलब होता है जगत् + धात्री अर्थात जगत की रक्षा करने वाली मां दुर्गा का एक रूप।

जगद्धात्री मां चतुर्भुजा और त्रिनेत्रा वाली है। साथ ही सिंह पर सवार रहती है।

शक्ति संगम तंत्र, उत्तर कामाख्या तंत्र, भविष्य पुराण, स्मृति संग्रह और दुर्गा कल्प आदि ग्रंथों में मां जगद्धात्री पूजा के संबंध में पढ़ने को मिलता है। केनो उपनिषद में मां हेमवती का वर्णन जगद्धात्री मां के रूप में किया गया है।

कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को मां जगद्धात्री की पूजा करने का विधान है। मां की पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और बिहार के मधुबनी जिले में होती है। पश्चिम बंगाल के चन्दन नगर और उसके आसपास के क्षेत्रों में मां जगद्धात्री की पूजा बड़े उत्साह और आस्था पूर्वक की जाती है। दुर्गा पूजा के ठीक एक महीने बाद जगद्धात्री पूजा मनायी जाती है।

कब और क्यों मनाई जाती है जगद्धात्री पूजा

जगद्धात्री मां भी दुर्गा मां का ही एक स्वरूप है। जगद्धात्री पूजा भी दुर्गा पूजा की तरह बड़ें धूमधाम और हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाता है। जगद्धात्री मां की पूजा चार दिनों तक चलती है। यह पूजा सप्तमी से लेकर दसवीं तक चलती है। इस दौरान मां जगद्धात्री के तेज रूप की पूजा की जाती है।

क्या है मान्यताएं

लोगों का मानना है कि जगद्धात्री पूजा का शुभांरभ रामकृष्ण परमहंस की पत्नी माता शारदा देवी ने पश्चिम बंगाल में स्थित रामकृष्ण मिशन में की थी।

मां शारदा देवी भगवन के दोबारा जन्म में विश्वास रखती थी। मां शारदा देवी के शुरूआत करने के बाद इस त्यौहार को विश्व के विभिन्न शहरों में स्थित रामकृष्ण मिशन से जुड़े भक्त मानाने लगें। इस त्यौहार को मां दुर्गा के दोबारा जन्म की ख़ुशी में मानते है।

 मान्यता है कि देवी जगद्धात्री पृथ्वी पर बुराई को नष्ट करने और अपने अन्नत भक्तों को सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करने आती है।

पूजा करने की विधि जानें

मां दुर्गा की पूजा के तरह ही मां जगद्धात्री की पूजा करने का विधान  है।

मां जगद्धात्री की पूजा करने पर मनुष्यों को खासतौर अपनी ज्ञाननेद्रियों पर नियंत्रण रखने का आधार मिलता है।

पूजा करने से मनुष्यों के अभियानों का नाश हो जाता है। इस त्यौहार का यही मकसद है।
इस त्यौहारी मौके पर जगद्धात्री देवी की बड़ी सी प्रतिमा को पंडाल में स्थापित किया जाता है। 
मां की प्रतिमा को सुन्दर लाल रंगों की साड़ी, अनेक तरह के ज़ेवर पहनाकर सजाया जाता है।
देवी जगद्धात्री की पूजा और दुर्गा पूजा दोनों का स्वरुप बिलकुल एक जैसा होता है। 

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त करने के बाद देवताओं में अहंकार आ गया था। देवताओं को लगने लगा था कि देवी दुर्गा असुरों को नाश करने के लिए उनके एकजुट शक्तियां ही कारक बने थे। सभी देवताओं को इस अज्ञानता की अनुभूति को दूर कराने के लिए ही, देवी स्वयं एक शक्ति का प्रतीक है। हर कार्य में देवी की असीम शक्तियां छिपी है। यह सभी देवतागण जानें।

देवताओं को सबक सिखाने के लिए परम ब्रह्म ने देवताओं के सामने राजा यक्ष के रूप में प्रकट हुए। यक्ष ने सबसे पहले वायु देवता से पूछा कि वे उनके लिए क्या कर सकते हैं। यक्ष को इतना कहना था कि वायु देवता ने अहंकार भरे शब्दों में कहा कि वे किसी भी चीज को हवा में पल भर में उड़ा सकते हैं। 

यक्ष ने एक छोटा सा घास का तिनका रख दिया और वायु देव से उसे उड़ाने को कहा। वायु देवता ने हर तरह के कोशिश करके देख लिया, परन्तु तिनका जस के तस पड़ा रहा और डोल नहीं पाया। वायु देवता असमर्थ रहें। 

तिनके को उड़ाने के लिए सभी देवताओं ने भी अपने-अपने ताकत दिखाये, परंतु सब व्यर्थ रहा। देवताओं को हारा हुआ देख यक्ष ने कहा कि आप सभी देवताओं की शक्ति वास्तविक है। लेकिन ये शक्तियां आपके स्वयं की नहीं है। ये शक्तियां आदि शक्ति मां जगद्धात्री जो पूरे ब्रह्मांड में सर्व शक्तिशाली हैं। वह इस संसार रूपी सरंचना की रक्षक हैं। इसलिए ही उन्हें मां जगद्धात्री कहा जाता है।

अब जानें आंवला अक्षय नवमी की संपूर्ण जानकारी 

कार्तिक मास की शुक्‍लपक्ष की नवमी तिथि का व्रत देश की सनातनी महिलाएं करती है। ज्‍यादातर महिलाएं कार्तिक माह में रोजाना नदी, सरोवर या घरों में स्नान करती है। वैसी महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष महत्‍व रखता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान कृष्‍ण मथुरा में मगध राजा कंस को मारने के लिए लोगों को इक्ट्ठा किया था। इस लिए इस दिन आंवले के पेड़ की परिक्रमा करने के साथ ही वृदांवन की परिक्रमा करने की परंपरा है।

अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षरण नही हो। जो स्‍त्री और पुरूष इस दिन श्रद्धा और भक्ति भाव से आंवले के पेड़ की पूजा करके किसी ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को यथा संभव दान-दक्षिणा देते हैं। तो उसे अक्षय पुण्य मिलने के साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि और वैभव बनी रहती है।

आंवला अक्षय नवमी कब है

हिंदू पंचाग के अनुसार आंवला नवमी हर साल कार्तिक महिने की शुक्‍ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है और इस साल यह व्रत 02 नवबंर 2022 दिन बुधवार को मनाया जाएगा।

आंवला अक्षय नवमी ति‍थि का शुभारंभ मंगलवार 01 नवबंर 2022 को रात्रि 11:04 बजे से होगा।
आंवला नवमी तिथि की समाप्‍ति दिन बुधवार 02 नवबंर 2022 रात 09:09 बजे पर होगा।

पूजा करने का शुभ मुहूर्त

आंवला अक्षय नवमी के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं। विजय मुहूर्त दोपहर 01:55 बजे से लेकर 02:39 बजे तक, अमृत मुहूर्त सुबह 07:56 बजे से लेकर 09:19 बजे तक, शुभ मुहूर्त 10:42 बजे से लेकर 12:04 बजे तक, चर मुहूर्त दोपहर 02:50 बजे से लेकर 04:13 बजे तक और लाभ मुहूर्त शाम 04:13 बजे से लेकर शाम 05:55 बजे तक रहेगा। इस दौरान व्रतधारी आंवला पूजन कर सकते हैं।

अक्षय आंवला नवमी की पूजा विधि 

आंवला नवमी का व्रत रखने वाले स्‍त्री और पुरूष सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान आदि कर नऐ वस्‍त्र धारण कर व्रत करने का संकल्प लें।

जिसके बाद सूर्य भगवान को अर्ध्य देकर पीपल और तुलसी के पौधों में जल देने का विधान है।

आंवले के वृक्ष में जल देते समय पूर्व दिशा की और मुह करके देना चाहिए। इसके बाद कुछ समय तक वृक्ष के नीचे बैठना चाहिए।

आंवले के वृक्ष को रौली, मौली, चावल, पुष्‍प, फल, अक्षत, नैवेद्य, मौसमी फल और मिठाइयो से विधिवत ढंग से पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद आंवले के वृक्ष की जड़ों में कच्‍चा दूध चढ़ाने  चाहिए।

तत्पश्चात आंवला वृक्ष के चारो ओर कच्‍चा धागा बांधना चाहिए। और अपनी मनोकामनाओं को मन ही मन दोहराना चाहिए।

इसके बाद कपूर और शुद्ध गाय के घी से आंवला वृक्ष की आरती उतारे, जिसके बाद पेड़ के चारो ओर तीन, पांच, सात, नौ और ग्यारह बार परिक्रमा करनी चाहिए।

पूजा करने के उपरांत आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर अक्षत नवमी व्रत की कथा सुनें। इसके बाद उसी वृक्ष के नीचे खुद खाएं और ब्राह्मणों को भोजन कराऐ।

भोजन कराने के उपरांत यथा शक्ति गुप्त दान करे।

आंवला अक्षय नवमी व्रत कथा

प्राचीन समय में काशी नगरी में एक नि:सनतान व धर्मात्‍मा तथा दानी वैश्‍य परिवार रहता था। वैश्य दंपति का कोई बाल बच्चा नहीं था।

एक दिन कि बात है वैश्‍य की पत्‍नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी दूसरे के बच्चे की बलि भैरवनाथ को चढ़ा दोगी, तो तुम्‍हे पुत्र की प्राप्‍ति हो जाऐगी। यह करकर वह पड़ोसन चली गई। काम धाम पुरा कर वैश्‍य शाम को घर आया। घर आने पर वैश्‍या की पत्नी ने अपने पति से कहा की आज पड़ोस की एक औरत ने हमसे कहा कि यदि हमें बच्चा चाहिए तो किसी दूसरे के बच्‍चे की बलि भैरवनाथ पर चढ़ाने से हमे अवश्‍य ही पुत्र रत्न की प्राप्‍ति हो जाऐगा।

अपनी पत्‍नी की बात सुनकर वैश्‍य को काफी गुस्सा आया और अपनी पत्नी की बात नकार दिया। पति के इस तरह की बात सुनकर उसकी पत्‍नी मौके की तलाश में लगी रही। कारण उसे एक बालक चाहिए था।

फिर एक दिन उसने एक कन्‍या को कुएं में डालकर हत्या कर दी और भैरवनाथ के नाम की बलि दे दी। कन्या की हत्या इस हत्‍या का परिणाम उल्टा पड़ा। लाभ की जगह हानि हुई और वैश्‍या की पत्नी के पूरे बदन में कोढ़ हो गया। साथ ही उस लड़की की प्रेतात्‍मा भी उसे सताने लगी।

वैश्‍य ने उसकी पत्‍नी की दशा देखकर पूछा की तुम्‍हारे शरीर पर ऐसे कोढ कैसे हो गऐ। पति के पूछने पर वैश्‍या की पत्नी ने सारी बातें सही-सही बता दी। पत्नी की बातें सुनकर वैश्‍य ने कहा कि गाैवध, ब्राह्मणवध तथा बालकवध करने वाले के लिए इस संसार में कोई जगह नही है। पाप का फल भोगना पड़ता है।

इसी लिए अब तू गंगा नदी के तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा रोज सुबह गंगा नदी में स्‍नान करके भगवान की पूजा-अर्चना कर।

यदि तुम यह काम श्रद्धा और भक्ति भाव से करोगी तो तुम्‍हारी याचना भगवान जरूर सुनेंगे। इस तरह के कष्‍ट से तुम्हें जरूर छुटकारा मिल जाऐगा ऐसा मुझे विश्वास है। वैश्‍य की पत्‍नी गंगा किनारे जाकर रहने लगी। प्रतिदिन गंगानदी में स्‍नान करके भगवान की पूजा करने लगी। ऐसे करते हुऐ उसे बहुत दिन हो गऐ। और एक दिन मां गंगा वृद्धा का रूप धारण कर उसके पास आयी और बोली कि तू मथुरा जाकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी का व्रत तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा करके। उसकी पूजा करेगी तो तुम्‍हारे सारे कष्‍ट दूर हो जाएंगे।

उस वृद्धा की बात सुनकर वैश्‍या की पत्नी अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा चली गई। मथुरा जाकर उसने कार्तिक माह की आंवला अक्षय नवमी का व्रत विधि-विधान से किया। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्‍य शरीर वाली हो गई। तथा उसे एक पुत्र प्राप्ति भी हुई। जिसे पाकर वैश्‍य पति-पत्‍नी बहुत खुश हुए। काशी में बच्चे के साथ सुखी पूर्वक जीवन व्‍यतीत करने लगे।

डिस्क्लेमर

यह लेख धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं से लिया गया है। शुभ मुहूर्त पंचांग से मिलान कर लिखा गया है। लेख धार्मिक पर्व और त्योहारों के संबंध में जानकारी देने के लिए और आपको पढ़ने के लिए भेज रहा हूं।

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