पापांकुशा एकादशी व्रत, 06 अक्टूबर दिन गुरुवार, आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जायेगा।
पापांकुशा एकादशी के दिन 11 बातों का रखें ख्याल आप और आपके सभी परिजनों को मिलेगी मुक्ति। नीचे दिए गए बातों का रखें भरोसा मिलेगा पापों से मुक्ति।
वैसे तो प्रत्येक एकादशी व्रत अपने आप में महत्वपूर्ण है, परन्तु पापांकुशा एकादशी व्रत करने से अपने और अपने परिजनों को काफी हद तक लाभ पंहुचाती है
पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरुप की पूजा करनी चाहिए।
पापांकुशा एकादशी व्रत करने वाले लोगों का मन शुद्ध होने चाहिए।
पापांकुशा एकादशी व्रत करने वाले लोगों व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित होता है
साथ ही माता, पिता और मित्र की सात पीढ़ियों को भी मुक्ति मिलती है
पापांकुशा एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की पूजा विधि-विधान से करें।
एकादशी व्रत के दिन प्रातः काल या सायं काल के दौरान श्रीहरि के पद्मनाभ स्वरुप का पूजा करनी चाहिए
व्रतधारी अपने मस्तक पर सफ़ेद चन्दन या गोपी चन्दन लगाकर पूजन करें
पद्मनाभ स्वामी को पंचामृत , पुष्प और मौसमी फल अर्पित करें
व्रतधारी चाहें तो एक वेला उपवास रखकर पूजन करें और दूसरी वेला पूर्ण सात्विक आहार ग्रहण कर सकते हैं
व्रतधारी शाम के समय भोजन ग्रहण करने से पहले पूजा और आरती जरूर कर लेना चाहिए।
एकादशी के दिन मौसमी फलों और अन्न का दान करने से विशेष लाभ मिलता है
एकादशी व्रत उपवास रखना श्रेष्ठ कर्म होगा। अगर आप व्रत नहीं करना चाहते हैं, तो एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करना भी उत्तम फल देगा।
किसी भी एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए। साथ ही भारी खाद्यान्नों का ग्रहण न करें
एकादशी की रात्रि के समय पूजा, भजन और मंत्रों का जाप करने का विशेष महत्व होता है
एकादशी व्रत करने वाले व्रतधारियों को क्रोध नहीं करना चाहिए साथ ही कम बोलना चाहिए और आचरण पर नियंत्रण रखना चाहिए
चारों पहर पूजा करने के लिए शुभ और अशुभ मुहूर्त
पापांकुशा एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:46 बजे से लेकर 12:33 बजे तक रहेगा
काशी पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त दोपहर 02:07 बजे से लेकर 02:54 बजे तक विजया मुहूर्त के रूप में है। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त शाम 05:50 बजे से लेकर 06:14 बजे तक, संध्या मुहूर्त 06:02 बजे से लेकर 7:15 बजे तक, मध्य रात्रि का निशिता मुहूर्त 11:45 बजे से लेकर 12:34 बजे तक, ब्रह्मा मुुुुहूर्त सुबह 04:39 बजे से लेकर 05:28 बजे तक और प्रातः मुहूर्त 05:04 बजे से लेकर 06:17 बजे तक है। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।
पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार राहुकाल का आगमन दिन के 01:37 बजे से लेकर 03:05 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार गुलिक काल सुबह 09:13 बजे से लेकर 10:41 बजे तक और दूमुहूर्त काल सुबह 10:12 बजे से लेकर 10:59 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है।
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार दिन शुभ समय
चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। सुबह 06:17 बजे से लेकर 07:15 बजे तक का शुभ मुहूर्त का संयोग रहेगा। चर मुहूर्त का आगमन शाम 10:41 बजे से लेकर 12:09 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार लाभ मुहूर्त दोपहर 12:09 बजे से लेकर 01:37 बजे तक और अमृत मुहूर्त दोपहर के 01:37 बजे से लेकर दोपहर 03:05 बजे तक रहेगा। एक बार फिर से संध्या बेला शुभ मुहूर्त का आगमन हो रहा है, जो 04:33 बजे से शुरू होकर 06:02 बजे तक रहेगा। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।
चौघड़िया मुहूर्त दिन का अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन अशुभ मुहूर्त सुबह 07:45 बजे से लेकर 09:13 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 09:00 बज के 13 मिनट से लेकर 10:00 बज के 41 मिनट तक उद्वेग मुहूर्त रहेगा।
उसी प्रकार दिन के 03:05 बजे से लेकर दोपहर के 04:03 बजे तक काल मुहूर्त है। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा।
रात्रि चौघड़िया शुभ मुहूर्त
रात्रि समय का चौघड़िया पंचांग के अनुसार अमृत मुहूर्त शाम 06:02 बजे से लेकर 07:33 बजे तक रहेगा। शाम 07:33 बजे से लेकर रात 09:05 बजे तक चर मुहूर्त और 12:09 बजे से लेकर 01:41 बजे तक लाभ मुहूर्त है। रात 03:13 बजे से लेकर 04:45 बजे तक शुभ मुहूर्त का संयोग है। पूजा के अंतिम पहर अर्थात अहले सुबह अमृत मुहूर्त का सुखद संयोग बन रहा है। अमृत मुहूर्त सुबह 04:45 बजे से लेकर 06:17 बजे तक रहेगा।
चौघड़िया अशुभ मुहूर्त रात का
चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार रात 09:05 बजे से लेकर रात 10:37 बजे तक रोग मुहूर्त, रात की 10:37 बजे से लेकर रात 12:09 बजे तक काल मुहूर्त और रात 01:41 बजे से लेकर 03:13 बजे तक उद्वेग मुहूर्त का संयोग है। इस दौरान भी पूजा अर्चना करना वर्जित है।
दिनमान 11 घंटा 44 मिनट का होगा जबकि रात्रिमान 12 घंटा 15 मिनट का रहेगा। आनन्दादि योग श्रीवत्स है। होमाहुति शनि, दिशा शूल दक्षिण, राहु काल वास दक्षिण, अग्निवास आकाश सुबह के 09:40 बजे तक, इसके बाद पाताल हो जाएगा। चंद्रवास दक्षिण दिशा में रहेगा सुबह के 08:00 बज के 28 मिनट तक, इसके बाद पश्चिम दिशा में हो जाएगा।
महाराज युधिष्ठिर कहने ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले एकादशी का क्या नाम है ? कृपा करके आप पूजन विधि, पौराणिक कथा तथा इसे करने से क्या फल मिलता है। कृपया करके विस्तार से हमें जानकारी दें।
महाराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे धर्मराज युधिष्ठिर, सभी तरह के पापों का नष्ट करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है।
वैसे मनुष्य जो बहुत दिनों तक कठोर तपस्या करते हैं, परंतु मन लायक़ फल नहीं मिलता है। वैसे लोगों को फल सिर्फ भगवान गरुड़ध्वज को नमस्कार करने से प्राप्त हो जाता है।
वैसे व्यक्ति जो अज्ञानवश अनेकों तरह के पाप करते हैं। वैसे लोग सिर्फ श्रीहरि को विधिवत पूजन करते हैं, वैसे मनुष्य नरक लोक कभी नहीं जाते। भगवान विष्णु के नाम को श्रवन करते हुए कीर्तन करते हैं। वैसे लोग को संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिल जाता है। जो मनुष्य धनुषधारी भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं, उन्हें कभी भी यमराज की यातना सहनी नहीं पड़ती।
वैसे व्यक्ति जो वैष्णव होकर भगवान शिव जी की और शैव होकर भगवान श्रीहरि की निंदा करते हैं। वैसे लोग जरूर ही नरक में निवास करेंगे। सहस्रों बार वाजपेय यज्ञ और अश्वमेध यज्ञों करने से जो फल की प्राप्ति होती है। वह फल एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के बराबर नहीं होता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे महात्मा युधिष्ठिर ! पापांकुशा एकादशी व्रत करने से लोगों को स्वर्ग, मोक्ष, निरोगता, सुंदर गुणवती स्त्री, अन्न, धन और वैभव की देने वाली है।
काकांकुशा एकादशी व्रत के बराबर गंगा नदी, गयाधाम, काशी विश्वनाथ, कुरुक्षेत्र मैदान और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं। एकादशी व्रत रखकर और रातभर जागरण करने से मनुष्यों को सहज ही विष्णु धाम की प्राप्ति हो जाती है।
श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से कहा कि काकांकुशा एकादशी व्रत के करने वाले लोगों को दस पीढ़ी माता पक्ष, दस पीढ़ी पिता पक्ष, दस पीढ़ी पत्नी पक्ष तथा दस पीढ़ी सगे मित्र पड़ोसी पक्ष का उद्धार कर देते हैं।
वैसे लोगों के मृतक दिव्य शरीर धारण कर चतुर्भुज रूप लेकर, पीतांबर पहनकर और हाथ में तुलसी माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुधाम को जाते हैं।
वैसे व्यक्ति जो बाल अवस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में पापांकुशा एकादशी व्रत करता है। वैसे पापी व्यक्ति भी दुर्गति को प्राप्त न होकर सद् गति को प्राप्त करता है।
आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पापांकुशा एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति मरने के बाद हरिलोक को प्राप्त करता हैं। साथ ही समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। पापांकुशा एकादशी व्रत करने के दौरान व्रतधारियों को सोना, चांदी, काला तिल, ज़मीन, गौ, अन्न, जल भरा घड़ा, छतरी तथा जूता दान करने से मनुष्य मरने के बाद यमराज को दिखाई नहीं देता।
वैसे मनुष्य जो अपने जीवन काल में किसी तरह के पुण्य कर्म नहीं किया है। बिना पुण्य किए जीवन बिता रहे हैं वैसे मनुष्य लोहार की भट्टी की तरह सांस तो ले रहे हैं, परन्तु निर्जीव के समान है। निर्धन मनुष्यों को भी अपनी शक्ति के अनुसार व्रत के अनुष्ठान कर अपने सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए।
धनवाले लोगों को तालाब, धर्मशाला, फलदार पेड़, बाग और गरीबों को मकान बनवाकर दान करना चाहिए। दान देने वाले मनुष्यों को यमराज का द्वार नहीं देखना पड़ता है तथा संसार में रहते हुए दीर्घायु होकर धनाढ्य बनकर, कुलीन, रोगरहित और सुख-शांति से जीवन जीते हैं।