इस वर्ष पितृ पक्ष 10 सितंबर 2022, दिन शनिवार से शुरू होकर 25 सितंबर 2022, दिन रविवार तक रहेगा।
भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक चलने वाले श्राद्ध कर्म को पितृ पक्ष कहा जाता है।
पितृपक्ष के दौरान सनातनी लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैैं।
अब जानें क्यों किया जाता है गया में पिंडदान
ब्रह्म पुराण में पितृपक्ष को लेकर विस्तार से जानकारी दी गई है। ब्रह्म पुराण के अनुसार लोगों को पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण करना चाहिए।
गया शहर का नाम गयासुर नामक दैत्य के नाम पर पड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गया के पंचकोसी भूमि पर गयासुर ने यज्ञ किया था। गयासुर की यज्ञ महिमा से देवतागण भी चिंतित होने लगे थे।
देवताओं के चिंतित देखकर विष्णु ने अपने चरण से गयासुर को शांत कर उसकी अंतिम इच्छा पूछी। इस पर गयासुर ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा।
गयासुर ने कहा कि जिस स्थान पर मैं प्राण त्याग रहा हूं, उस शिला पर प्रतिदिन एक पिंडदान हुआ करे, जो यहां पिंडदान करे उसके पूर्वज तमाम पापों से मुक्त होकर स्वर्ग लोक में निवास करें। वर देने के बाद भगवान विष्णु ने शिला पर अपना पैर रखा। वह चरण चिह्न आज पूजित है।
पौराणिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने गयासुर को दिए गए वरदान के बाद से ही पितरों को मोक्ष के लिए गया धाम में पिंडदान करने की परंपरा चलती आ रही है।
सनातनी मान्यता है कि जो पुत्र अपने पूर्वजों और पितरों को तर्पण कर पिंडदान करना चाहते हैं। उनके लिए गया श्राद्ध करना जरूरी हैं।
पितर पिंडदान और तर्पण करने से तृप्त हो जाते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हुए विष्णु धाम चलें जाते हैं।
पिंडदान का शुभारंभ फल्गु नदी के जल में खड़े होकर तर्पण करने के साथ होता है। पुराणों में फल्गु नदी का उद्गम भगवान विष्णु के पैर की अंगुली से हुई है। इसे गंगा नदी के सामान पवित्र माना जाता है।
पुत्र सबसे पहले फल्गु नदी में जाकर अपने पितरों को तर्पण करते हैं। इसके बाद पिंडदान की प्रक्रिया शुरू होती है।
विष्णुपद वेदी के अतिरिक्त 54 अन्य पिंडवेदियां गया के 10 किमी के अंदर में स्थित है। इन वेदियों पर जाकर पिंडदान करने का विधान होता है।
पौराणिक काल में 365 वेदियों का जिक्र पुराणों में मिलता है। इन वेदियों पर प्रतिदिन एक पुत्र जाकर अपने पितृ को पिंडदान करता था। अर्थात सालभर पिंडदान की प्रक्रिया चलते रहती थी।
सीताकुंड के बारे में कथा है कि भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ गयाधाम अपने पिताजी महराज दशरथ जी को पिंडदान करने आए थे।
पूजन सामग्री लाने के लिए दोनों भाई गांव की ओर गए थे। इसी बीच फल्गु नदी के तट पर दोनों भाईयों का इंतजार कर रही थी सीता।
इंतजार के दौरान राजा दशरथ का हाथ बाहर आया और मां सीता से पिंड के लिए बोले। उन्होंने कहा कि बेटी मुझे बड़े कसकर भुख लगी है।
सीता जी ने फल्गु के बालू का पिंड दशरथ जी को अर्पित कर दिया। तब से फल्गु के पूर्वी तट पर सीता कुंड ने एक वेदी के रूप में प्रसिद्ध हो गई है।
अक्षयवट वृक्ष के समक्ष वेदी पिंडदान की अंतिम स्थल है। जहां पितृपक्ष के अंतिम तिथि अर्थात आमावस्या को श्रद्धालु पिंडदान कर गयवाल पंडा को दान करते हैं। यहां गयापाल तीर्थ पुरोहित श्रद्धालु पुत्रों को सुफल अर्थात आशीर्वाद देकर अक्षय होने की कामना करते हैं।
पितरों का ऋण श्राद्ध कर्म करके चुकाया जाता है।
पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न रहते हैं। पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण या पिंडदान किया जाता है
पितृपक्ष में दान और तर्पण का विशेष महत्व होता है। दान करने से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म 15 दिन तक चलते हैं और सनातनी लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार तर्पण करना चाहिए।
अपने पूर्वजों का पिंडदान या तर्पण करना चाहते हैं, तो इन बातों का रखें ख्याल। नहीं तो आपके पूर्वज आपसे रूठ कर चले जाएंगे अपने धाम।
शुभ कार्य पितृ पक्ष के दौरान नहीं करना चाहिए
श्राद्ध पक्ष में कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। इन दिनों में कोई नई चीजों भी नहीं खरीदना चाहिए।
सात्विक भोजन करें लोग
श्राद्ध कर्म के दौरान सात्विक भोजन बनाना चाहिए। तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
लोहे के बर्तन में पकाएं खाना
श्राद्ध कर्म के दौरान लोहे का बर्तन में खाना पकाने से बचना चाहिए। पितृपक्ष में पीतल, तांबा या अन्य धातु के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए।
बाल और दाढ़ी बनाना वर्जित
इसके अलावा इस दौरान बाल और दाढ़ी नहीं कटवाना चाहिए। बाल और दाढ़ी कटवाने से धन की हानि होती है।
लहसुन, प्याज का न करें उपयोग
श्राद्ध पक्ष के दौरान लहसुन, प्याज से बना भोजन करना वर्जित है।
सफेद वस्त्र धारण कर करें पिंडदान
जो व्यक्ति पिंडदान या श्राद्ध कर्म कर रहें हैं। वैसे लोग सफेद कपड़ें पहनकर ही करना चाहिए। वह भी बिना सिलाई का होना चाहिए। रंगीन कपड़ें पहनना वर्जित है।
श्राद्ध का भोजन कौवा को खिलाएं
श्राद्ध कर्म अनुष्ठान करने के बाद कौवों को श्राद्ध का अन्न जरूर खिलाने चाहिए। मान्यता है कि श्राद्ध का अन्न अगर कौवा खा लेते हैं, तो पितर को उसका अंश मिल जाता है।
मृत्यु तिथि का ना हो पाता ऐसे लोग क्या करें
जिस व्यक्ति को अपने पूर्वज की मृत्यु की तिथि नहीं है पता, वैसे लोग अमावस्या तिथि के दिन उनके नाम और गौत्र के साथ श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। ऐसा करने से उनके पुर्वज संतुष्ट होने स्वर्ग लोक में विश्राम करेंगे।