ग्रहण के बुरे प्रभाव से बचने के लिए ज्योतिष और आचार्यों द्वारा कई तरह के उपाय और मंत्र सिद्धियां बताये गए हैं।
ग्रहण काल के दौरान किसी भी एक मंत्र को, जिसे सिद्धि करना है। साथ ही किसी विशेष कारण हेतु सिद्धि करना चाहते हैं, तो आप मंत्रों का जाप कर सकते है।
ग्रहण काल में मंत्रों को जपने के लिए माला की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन ग्रहण काल का महत्व अधिक होता है।
अगर आपके शत्रुओं की संख्या-बल अधिक है और आप खासा परेशान रहते हैं। तो वैसी स्थिति में बगुलामुखी का मंत्र जाप करें। यह मंत्र इस प्रकार है।
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:।
वाक् सिद्धि हेतु मंत्र
धन प्राप्ति हेतु तांत्रिक मंत्र जप
नौकरी पाने और व्यापार में विस्तार के लिए निम्नलिखित मंत्र का ग्रहण काल तक लगातार जप करें।
किसी भी तरह के मुकदमों में विजय पाने के लिए
कोई भी मंत्र साधना तब ही सफल होता है, जब आप में पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और आस्था हो। किसी का बुरा चाहने वाले लोग मंत्र सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते।
मंत्र जपते समय एक खुशबूदार अगरबत्ती प्रज्ज्वलित कर लें। इससे मन एकाग्र होकर जप में मन लगता रहे और ध्यान भी नहीं भटकता है।
धर्मशास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण के बारे में मत्स्य पुराण में विस्तार से जानकारी दी गई है। सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की कथा का संबंध राहु-केतु असुर से हैं। समुद्र मंथन में उनके द्वारा अमृत पान करने की कथा से प्रचलित है।
मत्स्य पुराण में वर्णित कथा के अनुसार जब मोहनी रूप धारण कर भगवान विष्णु देवताओं को अमृत और असुरों को वारुणी (एक प्रकार की शराब) बांट रहे थे।
उसी समय एक दैत्य स्वरभानु रूप बदलकर देवताओं के बीच जा बैठा। वह सूर्य और चन्द्रमा के बीच बैठा था। जैसे ही वह अमृत पीने लगा सूर्य और चन्द्रमा ने उसे पहचान लिया और विष्णु जी को सच्चाई बता दिया।
भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से तत्काल उस राक्षस का सर धड़ से अलग कर दिया। राक्षस का सर राहु कहलाया और धड़ केतू । कहा जाता है कि जैसे राहु का सर अलग हुआ वह चन्द्रमा और सूर्य को निगलने के लिए दौड़ने लगा लेकिन श्रीहरि ने ऐसा नहीं होने दिया। उस दिन से माना जाता है कि जब भी सूर्य और चन्द्रमा एक दूसरे के निकट आते हैं तब उन्हें ग्रहण लग जाता है। उसने ही चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण कहते हैं।