नवरात्रा का विधान, जानें भगवती पुराण के अनुसार

नवरात्र के आने पर विशेष कर शारदीय और चैत्र नवरात्र में क्या करना चाहिए। इस पूजन का विधान और फल क्या है। इसमें किस विधि का पालन करना चाहिए। जानें देवी भगवती महापुराण के अनुसार। 

मनुष्य को शारदीय और बसंत ऋतु के नवरात्रा प्रेम पूर्वक और भक्ति पूर्वक व्रत का पालन करने से हर तरह का सुख प्राप्त होते हैं।

 शरद तथा बसंत नामक यह दोनों ऋतुएं संसार में प्राणियों के लिए दुर्गम है। अर्थात आत्म कल्याण के इच्छुक व्यक्तियों को बड़े यत्न के साथ यह नवरात्र व्रत करना चाहिए।

दोनों ऋतुएं रोग लेकर आती है

वसंत तथा शरद ये दोनों ही ऋतुएं बड़ी भयानक है और मनुष्य के लिए रोग उत्पन्न करने वाली है। ये सब विनाश कर देने वाली है। अतः बुद्धिमान लोगों को शुभ चैत्र और अश्वनी मास में भक्ति पूर्वक माता चंडिका देवी का पूजन करना चाहिए।



व्रत करने का संकल्प लें और खीर खाएं

अमावस्या तिथि आने पर व्रत की सभी शुभ सामग्री एकत्र कर लें और उस दिन एकभुक्त व्रत करें और खीर ग्रहण करें। व्रत करने के लिए सच्चे मन से मां दुर्गा का स्मरण करते हुए संकल्प लेना चाहिए।

कैसे करें वेदी का निर्माण

किसी समतल तथा पवित्र स्थान में 16 हाथ लंबे चौड़े और स्तंभ तथा ध्वजाओं से सुसज्जित मंडप का निर्माण करना चाहिए। मंडप के नीचे जमीन को सफेद मिट्टी और गोबर से लिपवा दें। तत्पश्चात उस मंडप के बीच में सुंदर और चौरस वेदी बनाएं।

कैसा हो वेदी

वह वेदी चार हाथ लंबी चौड़ी और चार हाथ ऊंची होनी चाहिए। पीठ के लिए उत्तम स्थान का चयन कर निर्माण करें। तथा विविध रंगों के तोरण लटकाए और ऊपर चांदनी लगा दें।

प्रतिपदा के दिन करें कलश स्थापना

रात्रि में देवी का तत्व जाने वाली सदाचारी सयंमी और वेद वेदांतों के परांगत विद्वान ब्राह्मणों को आमंत्रित करके प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के पूर्व प्रातः काल नदी, तालाब, कुआं या घर पर ही विधि पूर्वक स्नान करें। प्रात काल के समय नित्य कर्म निवृत्त होकर ब्राह्मणों का चरण स्पर्श करें।

 उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार वस्त्र अलंकृत करें। इस कार्य में कभी कंजूसी ना करें। संतुष्ट ब्राह्मण द्वारा किया हुआ कार्य सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करता है। देवी पाठ करने के लिए नौ, पांच, तीन अथवा एक ब्राम्हण को बुलाए।

चारभुजा वाली मां को करें स्थापित

देवी भगवती का पाठ करने के लिए शांत ब्राम्हण का वरण करें और शुद्ध वैदिक मंत्रों से पाठ करवाएं। वेदी पर रेशमी वस्त्र से आच्छादित सिंहासन स्थापित करें। उसके ऊपर चार भुजाओं तथा उनमें आयुधों से युक्त देवी की प्रतिमा स्थापित करें।

भगवती शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हों

देवी की प्रतिमा रत्नमय आभूषणों से युक्त, मोतियों के हार से अलंकृत, दिव्य वस्त्र से सुसज्जित, शुभ लक्षण संपन्न और सौम्य आकृति की हो। वैसी देवी की प्रतिमा स्थापित करें भगवती को प्रतिमा मोतियों से अलंकृत वस्त्रों से सुसज्जित करें वो कल्याण मयी भगवती शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए हों और सिंह पर सवार हों अथवा अठारह भुजाओं से सुशोभित सनातनी देवी की प्रतिमा स्थापित कर सकते हैं।

वेदी के पास स्थापित करें कलश

भगवती की प्रतिमा के अभाव में नवार्ण मंत्र युक्त यंत्र को पीठ पर स्थापित करें। पीठ पूजा के लिए पास में कलश स्थापित कर लें। यह कलश पंच पल्लव युक्त वैदिक मंत्रों से भलीभांति अलंकृत होना चाहिए। कलश में उत्तम तीर्थ के जल, सुवर्ण तथा पंच रत्न मय होना चाहिए।

पूजा के दौरान बजाए वाद्ययंत्र

वेदी के पास पूजा की सब सामग्रियां रख लें। उत्सव के निमित्त गीत तथा वाद्ययंत्र से ध्वणि भी करनी चाहिए। प्रतिपदा तिथि में पूजन श्रेष्ठ माना जाता है। पहले दिन विधि पूर्वक किया हुआ पूजन मनुष्य को संपूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाला होता है।

सबसे पहले उपवास व्रत एक मुक्त व्रत अथवा नक्त व्रत इसमें से किसी एक व्रत के द्वारा नियमित करने के पश्चात ही पूजन करनी चाहिए।

 पूजा के पूर्व करें प्रार्थना

पूजन करने के पहले प्रार्थना करते हुए कहे हे माता मैं सर्वश्रेष्ठ नवरात्र व्रत करूंगा। हे देवी, हे जगदंबे इस पवित्र कार्य में आप मेरी संपूर्ण सहायता करें। इस व्रत के लिए यथाशक्ति नियम रखें। इसके बाद मंत्रोच्चारण एवं विधि पूर्वक भागवत भगवती का पूजन करें।

इन पुष्पों से करें मां की पूजा

चंदन, अगरू, कपूर, मांदर, करंज, अशोक, चंपा कनैल, मालती, ब्राह्मणी आदि सुगंधित पुष्पों, सुंदर बिल्वोपत्रों, धूप, दीप से विधिवत् भगवती जगदंबा का पूजन करना चाहिए। इस अवसर पर अर्ध्य भी प्रदान करें। नारियल, बिजौरा निंबू, दांडिम, केला, नारंगी, कटहल तथा बिल्व फल आदि अनेक प्रकार के सुंदर फलों के साथ भक्ति पूर्वक पूजा करें तथा अन्न के नवैद्य तथा पवित्र बलि अर्पित करें।

होम करने के लिए त्रिकोणीय कुंड बनाएं

होम करने के लिए त्रिकोणीय कुंड बनाना चाहिए। अथवा त्रिकोण के मान के अनुरूप बनाना चाहिए। उनके अलावा विभिन्न प्रकार के सुंदर द्रव्यों से प्रति दिन माता भगवती त्रिकाल अर्थात सुबह, शाम और मध्य रात्रि पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही गायन, वादन तथा नृत्य के द्वारा महान उत्सव मनाना चाहिए।

व्रती को रोजाना भूमि पर सोना चाहिए।

व्रती को रोजाना भूमि पर सोना चाहिए। वस्त्र, आभूषण तथा अमृत के समान दिव्य भोजन आदि से कुमारी कन्याओं का पूजन करें। नित्य एक-एक कुमारी कन्या की संख्या के वृद्वि क्रम के अनुसार पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने तिगुने के वृद्धि क्रम से या तो प्रत्येक दिन 9 कुमारी कन्याओं का पूजन करें।

देवी अनुष्ठान में धन की कमी ना करें

अपने धन सामर्थ्य के अनुसार भगवती की पूजा करें। देवी के यज्ञ में धन की कमी ना करें।

कुमारी कन्या के पूजन के लिए 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष के बीच की होनी चाहिए।

बीज मंत्र से करें देवी की पूजा

श्रीरस्तु इस मंत्र से, अथवा किन्ही भी श्री युक्त देवी मंत्र से अथवा बीज मंत्र से भक्ति पूर्वक भगवती की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद व्रती को हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए कहना चाहिए कि जो भगवती कुमार के रहस्यमय तत्व और ब्रह्मा आदि देवताओं की भी लीला पूर्वक रक्षा करती है उन कुमारी का मैं पूजन करता हूं।

इस प्रकार करें प्रार्थना

जो सत्य, धर्म और काम आदि तीनों गुणों से तीन रूप धारण करती है जिसके अनेक रूप हैं तथा जो तीनों कालों में सर्वत्र व्याप्त रहती है। उन भगवती त्रिमूर्ति की मैं पूजा करता हूं। निरंतर पूजित होने पर जो भक्तों का नृत्य कल्याण करती है। सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली भगवती कल्याणी का भक्ति पूर्वक पूजन करता हूं।

 मैं मां रोहिणी की उपासना करता हूं

जो देवी संपूर्ण जीवों के जन्म के संचित कर्म रूपी बीजों का रोपण करती है उस भगवती रोहिणी की उपासना करता हूं। जो देवी काली कालांतर में कल्पान्त में चराचर सहित संपूर्ण ब्रह्मांड को अपने में विलीन कर लेती है उन भगवती कलिका की मैं पूजन करता हूं।

 भगवती चंडिका की मैं पूजन करता हूं

अत्यंत उग्र स्वभाव वाली, रूप धारण करने वाली चंड-मुंड को संहार करने वाली तथा घोर पापों को नाश करने वाली भगवती चंडिका की मैं पूजन करता हूं। वेद जिसके स्वरूप है। उन्हीं वेदों के द्वारा जिनकी उत्पत्ति अकारण बतायी गयी है उन सुखदायिनी भगवती शाम्भवी का मैं पूजन करता हूं।

संकट हरने वाली मां दुर्गा की पूजा करता हूं

जो अपने भक्तों को सर्वदा संकट से बचाती है। बड़े-बड़े विध्नों से बचाती है। सुखदाई भगवती क्षमा भी करती है जो अपने भक्तों को सदा संकट से बचाते हैं बड़े-बड़े विघ्नों तथा दुःखों को नाश करती है और सभी देवताओं के लिए दुर्ज्ञय है। उस भगवती दुर्गा को मैं पूजा करता है।

भगवती सुभद्रा की मैं पूजा करता हूं

 जो पूजित होने पर भक्तों का सदा कल्याण करती है। उस अमंगल नाशिनी भगवती सुभद्रा की मैं पूजा करता हूं। व्रती को चाहिए कि वस्त्र, आभूषण, माला और गंध आदि श्रेष्ठ उपचारों से इस मंत्र के द्वारा सर्वदा कन्याओं का पूजन करें। 

सप्तमी अष्टमी और नवमी जरूर करें पूजा

 नवरात्रि उपवास करने में असमर्थ लोगों के लिए 3 दिन का उपवास भी यथोचित फल प्रदान करने वाला बताया गया है भक्ति भाव से केवल सप्तमी अष्टमी और नवमी इन 3 तिथियों में देवी का पूजन करने से सभी फल सुलभ हो जाते हैं। पूजन, हवन कुमारी पूजन तथा तथा ब्राह्मण भोजन इसको संपन्न कराने से वह नवरात्र व्रत पूरा हो जाता है ऐसा देवी भगवती पुराण में कहा गया है।

सभी व्रतों से नवरात्र व्रत उत्तम

इस पृथ्वी लोक में जितने भी प्रकार के व्रत और दान हैं वे इस नवरात्र व्रत के तुल्य नहीं हैं क्योंकि व्रत सदा धन धन्य प्रदान करने वाला, सुख तथा संतान की वृद्धि करने वाला, आयु तथा आरोग्य प्रदान करने वाला और स्वर्ग तथा मोक्ष देने वाला है। 

व्रत का विधि पूर्वक करें अनुष्ठान मिलेगा फल

 विद्या, धन अथवा पुत्र इसमें से मनुष्य किसी की  भी कामना करता हो उसे इस सौभाग्य दायक तथा कल्याणकारी व्रत का विधि पूर्वक अनुष्ठान करना चाहिए। इस व्रत का अनुष्ठान करने से विद्या चाहने वाले मनुष्य को समस्त विद्या प्राप्त कर लेता है और अपने राज्य से वंचित राजा फिर से अपना राज प्राप्त कर लेता है।

 इस जन्म में करें व्रत पूर्व जन्म में मिलेगा फल

पूर्व जन्म में जिन लोगों द्वारा यह उत्तम व्रत नहीं किया गया है वह इस जन्म में रोग ग्रस्त तथा संतान रहित होते हैं। जो स्त्री विधवा, वान्ध्य अथवा धनहीन है। उसके विषय में यह अनुमान कर लेना चाहिए कि उसने आवश्य ही पूर्व जन्म में यह व्रत नहीं किया था।

 लाल चंदन मिश्रित बिल्वपत्रों से करें जगदंबा की पूजा

इस पृथ्वी लोक में जिस प्राणी ने नवरात्रा का व्रत अनुष्ठान नहीं किया। वह इस लोक में वैभव प्राप्त  करके स्वर्ग का आनंद कैसे प्राप्त कर सकता है।जिसने लाल चंदन मिश्रित कोमल बिल्वपत्रों से भगवती जगदंबा की पूजा की है, वह इस पृथ्वी का राजा होता है।

कष्टों और शत्रुओं पर विजय के लिए करें मां की आराधना 

जिस मनुष्य ने दुःख तथा संनताप का नाश करने वाली सिद्धियां देने वाली जगत में सर्वश्रेष्ठ शाश्वत तथा कल्याण स्वरूपनी भगवती की उपासना नहीं कि वह इस पृथ्वी तल पर सदा ही अनेक प्रकार के कष्टों से ग्रसित और शत्रुओं से पीड़ित रहता है। 

देवी चंडिका की पूजा देवता भी करते हैं

विष्णु,  इंद्र, शिव, अग्नि, ब्रह्मा, कुबेर, वरुण तथा सूर्य समस्त कामनाओं से परिपूर्ण होकर हर्ष के साथ जिस भगवती का ध्यान करते हैं उन देविका देवी चंडिका का ध्यान मनुष्य क्यों नहीं करता है। देवता गण इनके स्वाहा नाम मंत्र के प्रभाव से तथा पितृगण स्वधा मंत्रों से नाममंत्र के प्रभाव से तृप्त होते हैं। 

हर काम मां के इशारों पर होती है

इसलिए महान मुनिजन प्रसन्नता पूर्वक सभी यज्ञों तथा श्राद्ध कर्मों में मंत्रों के साथ स्वाहा तथा स्वधा  नामों का उच्चारण करते हैं। जिनके इच्छा से ब्रह्मा इस सृष्टि का सृजन करते हैं। भगवान विष्णु अवतार लेते हैं। भगवान शिव जगत को भस्मसात करते हैं। उन कल्याणकारी भगवती को मनुष्य क्यों नहीं भजता है।

सभी पापों की मुक्ति, करें नवरात्रा

यदि कोई महा पापी भी नवरात्र व्रत करें तो वह समस्त पापों से मुक्त पा लेता है। इसमें लेश मात्र भी विचार नहीं करना चाहिए।


यह संपूर्ण कथा भगवती महापुराण से लिया गया है। भगवती महापुराण में दिए गए शब्दों का ही समावेश इस लेख में किया गया है। यह आलेख आपको कैसा लगा इमेल से जरूर सूचित कीजिएगा।

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