महर्षि वेदव्यास के जन्म की कथा बड़ा ही रोचक और ज्ञानवर्धक है। शिव पुराण में विस्तार से वेदव्यास के जन्म की कथा लिखा गया है।
वेदव्यास जन्मते ही एक सुंदर नौजवान का रूप धारण कर लिए और मां की आज्ञा से तपस्या करने चल पड़े।
सूतजी ने शौनक जी से पूछें वेदव्यास के जन्म की कथा
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक बार शौनक जी बोले हे सूत जी आप मुझे मुनि वेदव्यास की के जन्म की कथा सुनाइए। तब शौनक जी ने प्रश्नों का उत्तर देते हुए सूत जी बोले हैं कि शौनक जी एक दिन की बात है मूनि पराशर जी तीर्थ यात्रा करते हुए यमुना तट पर आ पहुंचे।
मत्स्यगंधा पर पराशर मुनि मोहित हुए
पराशर मुनि की कामवासना जाग गई
जैसे ही उन्होंने यमुनापार की पराशर मुनि ने उसका हाथ पकड़ लिया। तब मत्स्यगंधा ने ऋषि से कहा कि आप रात होने का इंतजार करें। ऋषि पराशर ने अपने योग माया से दिन को रात में बदल दिया।
मिलन के उपरांत मत्स्यगंधा ने तीन वर मांगे
दोनों का मिलन हुआ। मिलन के उपरांत मत्स्यगंधा काफी चिंतित हुईं। तब पराशर जी ने उसे वरदान मांगने को कहा।
पहला वर शरीर से गंध समाप्त
मत्स्यगंधा ने कहा कि ऋषिवर मेरे शरीर से मत्स्य का गंध आती है। लोग मुझसे विवाह करना नहीं चाहते हैं। कृपा करके कुछ उपाय कीजिए कि मेरे शरीर से गंध समाप्त हो जाए।
दूसरा वर बदनामी से बचें
दूसरी बात हम गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इस प्रकार की घटना से बदनामी होगी। मेरे इस कर्म को मेरे माता-पिता सहित कोई भी ना जान सके।
तीसरा वर तेजस्वी पुत्र हो
तीसरी बात मेरा कन्या धन भी ना जाए और मुझे आपके सामान तपस्वी और शक्तिशाली पुत्र की प्राप्ति हो। तब मत्स्यगंधा की बात सुनकर ऋषि पराशर बोले देवी जैसे आप चाहती हैं वैसा ही होगा और आज से आप मत्स्यगंधा की जगह सत्यवती नाम से प्रसिद्ध होगी।
नाम सत्यवती हो, पुत्र विष्णु अंश हो
आपके घर से भगवान श्री हरि विष्णु का अंश उत्पन्न होगा। ऋषि पराशर इस प्रकार कह कर वहां चले गए। नियत समय पर सत्यवती ने सूर्य के समान महा तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र जन्म लेते ही जवान हो गया। इसके बाद माता की आज्ञा लेकर पुत्र तपस्या करने चला गया और जाते समय उसने माता से कहा कि कोई भी कष्ट पड़ने पर मुझे अवश्य याद करना।
मन में आया विचारा शिव आराधना से मिलेगा ज्ञान
तीर्थ यात्रा के दौरान एक शिवलिंग का उन्होंने दर्शन किए। दर्शन करने के पश्चात उनके मन में विचार आया कि कोई ऐसा सिद्धिदायक लिंग हो जिसकी आराधना और भक्ति करने से सब विद्या प्राप्त हो जाए और अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो। यही सोचकर महर्षि वेदव्यास ध्यान मग्न हो गए। तभी उन्हें ज्ञात हुआ कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली अतिमुक्त महाक्षेत्र में महेश्वर लिंग स्थापित है।
वेदव्यास ने कठिन तपस्या आरंभ कर दी
वेदव्यास जी ने गंगा में स्नान करके कठिन व्रत आरंभ कर दिया। उन्होंने सबसे पहले भोजन त्याग दिया। वेदव्यास जी पहले फलाहारी कर पूजन करने लगे। फिर हवा को ग्रहण करते हुए अपना पूजन आरंभ किया। तत्पश्चात उन्होंने निराहार रहकर भगवान शिव की उत्तम तपस्या की।
शिव जी ने वेदव्यास को दर्शन दिए
उनकी इस दुस्साहसी साधना से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वेदव्यास जी को दर्शन दिए। देवाधिदेव महादेव को साक्षात अपने सामने पाकर वेदव्यास जी उनकी स्तुति करने लगें और बोल पड़े हे देवाधिदेव कल्याणकारी शिव आप मन और वाणी से अगोचर हैं। वेद भी आप की महिमा को पूर्ण रूप से नहीं जानतें।
आप ही सृष्टि के रचनाकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। हे सर्वशक्तिमान ईश्वर आप ही जन्म-मरण, देश, कुल आदि से रहित है। आप ही तीन लोक के स्वामी हैं। इस प्रकार व्यास जी ने शिवजी की स्तुति की। प्रसन्न हो भोले शिव जी बोले व्यास तुम मनचाहा वर मांगो।
शिव जी ने मनचाहा वर दिया
तब व्यास जी बोले स्वामी आप तो सर्वज्ञ सर्वेश्वर हैं। आपसे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। तब त्रिलोकीनाथ भगवान शिव भोले मुनिवार मैं तुम्हें कंठ में स्थित होकर तुम्हारी इच्छा के अनुसार इतिहास एवं महा पुराणों की रचना करूंगा।
स्तुति अष्टक के जाप से सभी कार्य होंगे पूर्ण
तुम्हारे द्वारा प्रयोग में लाए गए स्तुति अष्टक का जो भी शिवलिंग के सामने बैठकर एक वर्ष तक, तीनों काल में मेरी स्तुति करेगा। उसकी सभी तरह के मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। यह कहकर महादेव अंतर्धान हो गए।
वेदव्यास ने 18 पुराणों की रचना
भगवान शिव की कृपा से वेदव्यास जी ने ब्रह्मा, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, भविष्य, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंगवाराह, कूर्म, मत्स्य, गरूड़, बामन, ब्रह्मांड, अग्नि, लिंग आदि 18 महा पुराणों की रचना की। यह सभी पुराण यश देने वाले हैं। इनको श्रद्धा पूर्वक भक्ति भावना से पढ़ने अथवा सुनने से मुक्ति प्राप्त होती है तथा समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।