कार्तिक पूर्णिमा से शुरू होगा हरिहर छत्तर, पुष्कर मेला, गुरुनानक जयंती

पूर्णिमा के दिन से ही शुरू होगा पुष्कर का मेला

गुरु नानक जयंती आज

सोनपुर का हरिहर छत्तर मेला पूर्णिमा से

एक माह से बंद मांसाहारी भोजन पूर्णिमा के बाद फिर से शुरू।

पूर्णिमा तिथि 19 नवंबर 2021, दिन शुक्रवार को है। पूर्णिमा तिथि 18 नवंबर, दिन गुरुवार को 12:00 बजे दिन से शुरू हो जाएगा। जो 19 नवंबर दिन शुक्रवार को 2:00 बज के 26 मिनट तक रहेगा।

19 नवंबर 2021, दिन शुक्रवार को कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को त्रिपुरा दीप पूर्णिमा मनाया जाएगा।

त्रिपुरा दीप पूर्णिमा तिथि को नक्षत्र कृतिका अहले सुबह 4:29 ऊ तक रहेगा प्रथम करण बाव है जबकि द्वितीय करण बालव है।
 सूर्योदय सुबह 6:47 बजे पर और सूर्यास्त शाम 5:26 बजे पर होगा। सूर्य वृश्चिक राशि में, चंद्रमा मेष राशि में सुबह 8:00 बज के 14 मिनट तक इसके बाद वृषभ राशि में आ जायेंगे। आयन दक्षिणायन है। ऋतु हेमंत है। दिनमान 10 घंटा 39 मिनट और रात्रिमान 13 घंटा 41 मिनट का रहेगा।

आनन्दादि योग छत्र सुबह 3:00 बज के 29 मिनट तक इसके बाद मित्र हो जाएगा। होमाहुति चंद्र, दिशाशूल पश्चिम, राहुवास दक्षिण और पूर्व, अग्निवास पाताल दिन के 2:00 बज के 26 मिनट तक, इसके बाद पृथ्वी हो जायेगा। चंद्रभास पूर्व सुबह 8:00 बज के 14 मिनट तक इसके बाद दक्षिण हो जाएगा।

कार्तिक पूर्णिमा, कैसा रहेगा दिन जाने पंचांग के अनुसार

पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त

अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:45 बजे से लेकर 12:28 बजे तक है।

विजय मुहूर्त दिन के 1:30 बजे से लेकर 2:35 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 5:15 बजे से लेकर 5:39 बजे तक, सायाह्य संध्या मुहूर्त 5:00 बज के 26 मिनट से लेकर 6:46 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:40 बजे से लेकर 12:34 बजे तक, ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:01 बजे से लेकर 5:54 बजे तक और प्रातः सांध्य मुहूर्त सुबह 5:30 ऊ से लेकर 6:48 बजे तक रहेगा।

पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त

पूर्णिमा के दिन पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त का शुभारंभ सुबह 8:07 बजे से लेकर 9:27 बजे तक गुलिक काल के रूप में रहेगा। उसी प्रकार राहु काल सुबह 10:30 बजे से लेकर दिन के 12:00 बजे तक, यमगण्ड काल दिन के 2:00 बज के 46 मिनट से लेकर 4:00 बज के 6 मिनट तक, दुर्मुहूर्त काल सुबह 8:55 बजे से लेकर 9:37 बजे तक और वज्य काल दिन के 2:49 बजे से लेकर 4:43 बजे तक रहेगा।

चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन रात का शुभ और अशुभ मुहूर्त जानें

दिन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त

पूर्णिमा के दिन सुबह 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक लाभ मुहूर्त, 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक अमृत मुहूर्त और 12:00 बजे दिन से लेकर 1:30 बजे तक शुभ मुहूर्त का आगमन रहेगा। एक बार फिर से शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक चर मुहूर्त का संयोग है।

अशुभ मुहूर्त
पूर्णिमा के दिन अशुभ मुहूर्त का शुभारंभ दिन के 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक काल मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक रोग मुहूर्त और 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त है।

रात्रि का शुभ मुहूर्त
रात्रि समय का शुभ मुहूर्त रात 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार रात 12:00 बजे से लेकर 1:30 बजे तक शुभ मुहूर्त, 1:30 बजे से लेकर 3:00 बजे तक अमृत मुहूर्त और सुबह 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा।

रात्रि का शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा के दिन शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार
 7:30 बजे से लेकर 9:00 बजे तक काल मुहूर्त्त, 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त रहेगाा। एक बार फिर से सुबह 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रोग मुहूर्त का संयोग रहेगा।

गुरु नानक देवजी का जन्मोत्सव पूर्णिमा के दिन

गुरु नानक देव जी स‍िखों के प्रथम गुरु थे। उनका जन्‍म कार्त‍िक पूर्ण‍िमा के द‍िन हुआ था। उनके जन्‍म दिन को गुरु पर्व, गुरुपूरबा और प्रकाशोत्‍सव के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर गुरुद्वारों को वृहद पैमाने पर साज सज्जा किया जाता है। और यहां गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ व लंगर का आयोजन होता है।
 गुरु नानक देव जी ने ही जात−पात को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए गुरुद्वारा में लंगर की प्रथा शुरू की थी। उनकी सीख थी क‍ि ईश्वर एक है और वह सब जगह और सभी प्राणी मात्र में मौजूद है।

पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर राक्षस का शिव जी ने वध किया था

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरा दीप पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था।
 कार्तिक पूर्णिमा को अगर संभव हो तो जातक को नदी में स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और आरती करनी चाहिए। इस दिन मात्र एक समय भोजन करना चाहिए। सामर्थ्य अनुसार दान मसलन दुधारू गाय और केला, खजूर और नारियल आदि फलों का दान देना चाहिए।
 कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को दान देने का तो फल मिलता ही है साथ ही बहन, भांजे, बुआ और छोटे बच्चों को भी दान देने से पुण्य मिलता है। शाम के समय स्नान कर, नया वस्त्र धारण कर और मंत्रों का उच्चारण कर चंद्रदेव को अर्घ्य देना काफी फलदाई होगा।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदी में करें स्नान

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भक्त लोगों को नदी में स्नान करना चाहिए। भगवान शिव के लिए पूरे दिन व्रत रखना चाहिए। वैसे तो किसी भी नदी में स्नान इस दिन बहुत ही शुभ होता है किंतु बनारस में गंगा में इस दिन स्नान करने से मोक्ष मिलता है। सुबह का स्नान बहुत ही शुभ और लाभदायक माना जाता है।

पूर्णिमा दिन से ही शुरू होगा हरिहर क्षेत्र का मेला

सोनपुर मेला कार्तिक पूर्णिमा से एक माह तक चलने वाला यह भव्य और विशाल मेला है। इसमें हाथी-घोड़ा के साथ अन्य पशु-पक्षी भी विक्री के लिए लाए जाते हैं। मेले में सांस्कृतिक, साहित्यिक गतिविधियां और मनोरंजन कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। गंगा नदी और गंडक नदी के संगम स्थल पर लगने वाले इस मेले में देश के विभिन्न हिस्सों से और-विदेश से हजारों हजार की संख्या में पर्यटक और तीर्थ यात्री आते हैं।

पुष्कर मेला भी पूर्णिमा के दिन से 

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषि-मुनियों की तपस्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। रूठी हुई पत्नी मां सरस्वती के श्राप के कारण ही देशभर में ब्रह्माजी का इकलौता मंदिर पुष्कर में स्थित है। 
पुष्कर सरोवर की उत्पत्ति भी स्वयं ब्रह्माजी ने की है। जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को पुष्कर राज कहा जाता है। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता भगवान भोलेनाथ अर्थात शिव हैं।
 यह तीनों पुष्कर ब्रह्मा जी के कमल पुष्प से बने हैं। पुष्कर में ही कार्तिक मास में देश का सबसे बड़ा ऊंट मेला लगता है, जिसमें देशी-विदेशी तीर्थ यात्री बड़ी संख्या में आते हैं।

हरिहर क्षेत्र मेले का पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थान गजेंद्र मोक्ष स्थल के रूप में भी जाना जाता है। माना जाता है कि भागवान के दो भक्त हाथी अर्थात गजराज और मगरमच्छ अर्थात ग्राह के बीच में संगम तट पर लड़ाई हुई थी। संगमा घाट पर जब गज पानी पीने लगा तो उसे ग्राह ने जबड़े से जकड़ लिया। दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया। कई सप्ताह तक युद्ध चलता रहा।
युद्ध के बीच गज जब कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु को अपने प्राण की रक्षा करने के लिए पुकारने लगा। भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र को चला कर दोनों के बीच कई दिनों से चल रहा युद्ध को समाप्त कर दिया। 
दो पशुओं के बीच हुई युद्ध के कारण यहां पशु की खरीदारी को शुभ माना जाता है।
इसी स्थान पर हरिहर मंदिर बना हुआ है। हरि का मतलब भगवान विष्णु और हर मतलब भगवान शिव है। यहां प्रतिदिन सौकड़ों की संख्या में भगवान शिव और भगवान विष्णु के भक्त जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। कहा जाता है कि भगवान राम ने इस मंदिर का निर्माण माता सीता के स्वयंवर में जाते समय करवाया था।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन 365 दिए जलाएं

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भक्तों को भगवान शिव के मंदिर जाना चाहिए और वहां दीया जलाना चाहिए। आमतौर पर 365 दिए जलाए जाते हैं। भक्त लोग तुलसी के पौधे के सामने भी दीया जलाते हैं और उस पौधे के समीप राधा कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है।

सतनारायण व्रत भी रखें पूर्णिमा के दिन

कार्तिक पूर्णिमा के दिन सतनारायण व्रत रखने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है। इसका कारण यह भी है की कार्तिक पूर्णिमा भगवान विष्णु का सबसे प्रिय दिन है।
दूधाभिषेक कार्तिक पूर्णिमा के दिन सभी शिवालय में अकाशी दूधा अभिषेकम किया जाता है। इस अनुष्ठान में शिव के लिंग को दूध और जल से मिलाकर अभिषेक जाता है। एकाक्षी अभिषेकम से पहले व्यक्ति को अपने शरीर को शुद्ध जल से स्नान कर शुद्ध कर लेना चाहिए।

कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा

तारकासुर के तीन पुत्र थे। पहला तारकाक्ष,  दुसरा कमलाक्ष और तीसरा विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके पुत्रों को बहुत दुख हुआ। उन्होंने देवताओं से बदला लेने के लिए घोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया।
जब ब्रह्मा जी प्रकट हुए तो तीनों भाइयों ने अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने उन्हें उसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने के लिए कहा। तब उन तीनों भाइयों ने ब्रह्मा जी से कहा आप हमारे लिए तीन नगरों का निर्माण करवाइए। हम तीनों भाई महलों में बैठकर आकाश मार्ग से तीनों लोकों का भ्रमण करते रहेंगे। एक हजार साल बाद हम तीनों भाई एक जगह मिलेंगे।
उस समय तीनों नगर मिलकर एक हो जाए। उसके बाद कोई भी व्यक्ति या देवता एक ही बाण से तीनों नगर को एक साथ नष्ट कर देगा, वहीं हमारे मृत्यु का कारण बनेगा। ब्रह्मा जी मान गए और वरदान दे दिए।
, ब्रह्मा जी से वरदान पाकर तीनों भाई अति प्रसन्न हुए। ब्रह्मा जी के कहने पर सभी दानवों ने मिलकर तीनों भाइयों के लिए तीन अलग-अलग नगर का निर्माण किया। उसमें एक नगर सोने का, एक चांदी का और एक लोहे का नगर बनाया गया।

अपने पराक्रम से तीनों भाइयों ने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर लिया। इन तीनों भाइयों के अत्याचार को देख इन्द्र सहित सभी देवताओं ने भगवान शिव के शरण में गए। देवताओं के बात सुनकर भगवान शिव तीनों भाइयों को हत्या करने के तैयार हो गए।
विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए रथ का निर्माण किया। चन्द्रमा और सूर्य रथ के पहिए बने। इन्द्र, वरूण, यम, कुबेर और लोकपाल रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग धनुष की प्रत्यंचा का स्थान लिया। स्वयं भगवान विष्णु वाण और अग्नि देव वाण के नोक बने।
दिव्य रथ पर सवार होकर भगवान शिव तीनों भाइयों को नाश करने के लिए चल पड़े, तो दानवों में हाहाकार मचा गया। देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। अंत में भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से जैसे ही तीनों भाई एक सीधे में आए भगवान शिव ने दिव्य वाण चलाकर तीनों भाइयों की हत्या कर दी।
तीनो भाइयों की हत्या होते ही देवतागण भगवान शिव का जय-जयकार करने लगे। तीनो भाइयों की हत्या करने के बाद भगवान शिव त्रिपुरारी कहलये।

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