शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, दूरागमन, नामकरण, विद्या सोपान, जनेऊ ग्रहण यज्ञ सहित अन्य सभी धार्मिक आयोजन पर लग जाएगा पूर्ण विराम।
20 जुलाई को हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चीरनिद्रा में चले जाएंगे।
चार माह विश्राम करने के उपरांत 5 नवंबर हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान जागेंगे।
हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह।
देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को है।
देवशयनी एकादशी से चातुर्मास की होती है शुरुआत।
इस व्रत को करने से सारी इच्छाओं की होती है पूर्ति।
देवशयनी एकादशी के दिन कैसा रहेगा, जानें पंचांग के अनुसार
देवशयनी एकादशी 20 जुलाई 2021, दिन मंगलवार को आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को पड़ रही है। एकादशी तिथि शाम के 5:00 बज के 17 मिनट तक रहेगा। इस दिन नक्षत्र अनुराधा है। प्रथम करण वणिज है और द्वितीय करण वृष्टि (भद्रा) है। देवशयनी एकादशी के दिन आनंदादि योग वज्र है। होमाहुति शनि है। दिशाशूल उत्तर है। राहुवास पश्चिम है। अग्निवास पृथ्वी है और चंद्र वास उत्तर है।
देवशयनी एकादशी के दिन सूर्योदय सुबह 5: 36 पर। सूर्यास्त शाम 7:19 पर। चंद्र उदय दिन के 3:42 मिनट पर। चंद्र अस्त 21 जुलाई को 2:00 बज के 24 मिनट पर। सूर्य कर्क राशि में और चंद्रमा वृश्चिक राशि में रहेगा। सूर्य दक्षिणायन दिशा में स्थित रहेंगे। दिनमान 13 घंटा 43 मिनट और रात्रिमान में 10 घंटा 17 मिनट होगा।
अब जानें पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त देवशयनी एकादशी के दिन।
अब जाने चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ और अशुभ मुहूर्त
दिन का शुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त सुबह के 9:00 बजे से शुरू होकर 10:30 बजे तक चर मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक लाभ मुहूर्त के रूप में, 12:00 से लेकर 1:30 तक अमृत मुहूर्त के रूप में और शाम 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक शुभ मुहूर्त के रूप में रहेगा।
अशुभ मुहूर्त
चौघड़िया पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त सुबह 6:00 बज के से लेकर 7:30 तक रोग मुहूर्त, 7:30 से लेकर 9:00 बजे तक उद्धेग मुहूर्त, दोपहर 1:30 से लेकर 3:00 बजे तक काल मुहूर्त और शाम 6:30 से लेकर 8:00 बजे तक रोग मुहूर्त के रूप में रहेगा।
रात का शुभ मुहूर्त चौघड़िया पंचांग के अनुसार।
देव शयनी एकादशी के दिन चौघड़िया पंचांग के अनुसार प्राप्त 7:30 से लेकर 9:00 बजे तक लाभ मुहूर्त रात 10:30 से लेकर 12:00 बजे तक शुभ मुहूर्त 12:00 बजे से लेकर 1:30 तक अमृत मुहूर्त आज 1:30 से लेकर 3:00 बजे तक चर मुहूर्त का संजोग रहेगा।
रात का अशुभ मुहूर्त
शाम 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक काल मुहूर्त, रात 9:00 बजे से लेकर 10:30 बजे तक उद्धेग मुहूर्त, रात्रि 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक रोग मुहूर्त और 4:30 बजे से लेकर सुबह 6:00 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा।
अब जाने देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा और संपूर्ण विधि।
देवशयनी एकादशी आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाते हैं। इसी दिन से चतुर्थ मास की शुरुआत हो जाती है और हर तरह के धार्मिक कार्य बंद हो जाते हैं। मानता है कि इस व्रत को करने से मनुष्य की सारी इच्छाएं पूर्ण होती है और भगवान की असीम कृपा उस पर बनी रहती है।
पूजा करने की विधि
देवशयनी एकादशी के दिन दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर सबसे पहले स्नान करें। इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें तथा पंचामृत से भगवान की प्रतिमा को स्नान कराएं। इसके बाद श्रद्धा पूर्वक भाव के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करें एवं फल, फूल, धूप और दीप से भगवान की पूजन करें।
इसके बाद एकादशी व्रत कथा सुननी चाहिए और अंत में भगवान विष्णु की आरती कर प्रसाद लोगों को बीच बांटना चाहिए। देवशयनी एकादशी व्रत के दिन नमक का सेवन वर्जित है।
व्रतधारियों को निर्जला रहकर चारों पहर पूजा करनी चाहिए। सुबह, दोपहर, मध्य रात्रि और अहले सुबह विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करने चाहिए। अब जाकर ही पूर्ण पुण्य की प्राप्ति होगी।
व्रत की पौराणिक कथा
देवशयनी एकादशी के पीछे एक पौराणिक कथा है। बहुत समय पहले की बात है सूर्यवंशी कुल में मना मान्धाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा हुआ करता था। वह बहुत ही महान प्रतापी उदार तथा प्रजा का ध्यान रखने वाला महाराजा था। उस राजा का राज्य बहुत ही खुशहाल, सुख, समृद्धि और शक्तिशाली थी। धन-धान्य भरपूर मात्रा में था। वहां की प्रजा राजा को बहुत अधिक स्नेह करती थी और खुशहाल थी। क्योंकि राजा अपनी प्रजा को बहुत ध्यान रखते थे। साथ ही धर्म के अनुसार सारे नियम करने वाला राजा था।
एक समय की बात है राजा के राज्य में बहुत लंबे समय तक वर्षा नहीं हुई जिसके फलस्वरूप उसके राज्य में अकाल पड़ गया। इस कारण राजा अत्यंत दुःखी हो गया क्योंकि उनकी प्रजा बहुत दुखी थी। राजा इस संकट से उबरना चाहते थे। राजा चिंता में डूब गए और चिंतन करने लगा कि उससे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया है।
राजा इस संकट से मुक्ति पाने के लिए कोई उपाय खोजने के लिए सैनिकों के साथ जंगल की ओर प्रस्थान कर गए। राजा वन में कई दिनों तक भटकता रहा और फिर एक दिन अचानक वे और उनके सैनिक अंगिरा ऋषि के आश्रम जा पहुंचा। उन्होंने ऋषि से व्याकुलता का कारण और अपने नगरवासियों की परेशानी का विस्तारपूर्वक वर्णन कह सुनाया। राजा ने ऋषि को बताया कि किस प्रकार राज्य में अचानक अकाल पड़ गया। राजा ने ऋषि से निवेदन किया कि हे ऋषि, मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मेरा राज्य का उधर हो सकें।
राजा ने ऋषि अंगिरा की बात नहीं मानी
ऋषि ने कहा कि जिस प्रकार हम सब ब्रह्मदेव की उपासना करते हैं परंतु सतयुग में वेद पढ़ने तथा तपस्या करने का अधिकार केवल ब्राह्मणों का है। लेकिन आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। आपके राज्य में अकाल पड़ने की दशा उसी कारण से है। यदि आप अपने राज्य को पूर्ण खुशहाल देखना चाहते हैं तो शूद्र की जीवन लीला समाप्त कर दीजिए। यह सुन कर राजा को बहुत अचंभा हुआ और राजा ने कहा कि हे ऋषि मुनि आप क्या कह रहे हैं मैं ऐसे किसी निर्दोष जीव की हत्या नहीं कर सकता। मैं एक निर्दोष की हत्या का पाप अपने सर पर नहीं ले सकता हम ऐसा अपराध नहीं कर सकते हैं और ना ही अपराध बोध के साथ जीवन भर जी सकता हूं। आप मुझ पर कृपा करें और मेरी समस्या के समाधान के लिए कोई और उपाय बताएं। ऋषि ने राजा से कहा कि यदि आप उस शूद्र की हत्या कर, उसकी जीवन लीला समाप्त नहीं कर सकते हैं तो मैं आपको दूसरा उपाय बता रहा हूं।
व्रत कर राजा ने राज्य को अकाल मुक्त किया
आप आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को पूरे विधि विधान एवं पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ करें। आप का सारा कष्ट दूर हो जायेगा। राजा ने ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए अपने नगर वापस आ गया। राजा ने एकादशी व्रत पूरे विधि-विधान से किया। जिसके फल स्वरूप राजा के राज्य में वर्षा हुई जिससे अकाल दूर हो गया। राज्य में पहले की तरह ही खुशहाली आ गई।
ऐसा माना जाता है कि जो कोई मनुष्य उत्तम कथा सुनता और सुनाता है। वह सभी तरह के पापों से मुक्ति पा जाता है।