Mokshada Ekadashi 14 December 2021, Day on Tuesday?
मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था ?
इस दिन गीता जयंती के रूप में मनाने की परंपरा है ?
मोक्षदा एकादशी के दिन चार पहर पूजा करने का विधान है अर्थात चार्ट टाइम।
मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा (एकादशी) कहते है ?
मोक्षदा एकादशी 14 दिसंबर 2021, दिन मंगलवार को ?
इस एकादशी करने का क्या है विधियां ?
पूजा के दौरान कौन से देवता की करनी पड़ती है पूजा जानें विस्तार से ?
जानें ग्रहों की स्थिति ?
जाने पूजा करने का शुभ मुहूर्त और समय ?
जानें पूजा करने का अशुभ मुहूर्त और समय ?
जानें कौन सी राशि में रहेंगे सूर्य ?
जानें कौन से राशि में रहेगा चन्द्रमा ?
जानें दिशा शूल कब से है ?
जानें कौन सा ऋतु है उस दिन ?
जानें पंचांग के अनुसार मोक्षदा एकादशी का महत्व ?
जानें चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ और अशुभ मुहूर्त ?
14 दिसंबर 2021 दिन मंगलवार को मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष है। ऋतु हेमंत है। सूर्य दक्षिणायन दिशा में स्थित है। एकादशी तिथि रात्रि 11:35 बजे तक रहेगा। नक्षत्र अश्वनी है जो सुबह 4:40 बजे पर समाप्त हो जाएगा।
सूर्योदय सुबह 7:06 बजे पर होगा जबकि सूर्यास्त शाम 5:26 बजे। चंद्रोदय दोपहर 2:25 बजे और चन्द्रास्त सुबह 3:33 बजे पर होगा। वृश्चिक राशि में सूर्य और चंद्रमा मेष राशि में रहेंगे। दिन 10 घंटा 20 मिनट का होगा जबकि रात 13 घंटा 40 मिनट का होगा। विक्रम संवत 2070 है।
आनंदादि योग अमृत है, जो सुबह 4:40 तक रहेगा दिशाशूल उत्तर है राहुल वास पश्चिम है। अग्निवास पृथ्वी है और चंद्रमा वास पूर्व दिशा में है।
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:55 बजे से लेकर 12:37 बजे तक रहेगा।
पंचांग के अनुसार शुभ और अशुभ समय
पूजा करने का शुभ मुहूर्त (समय)
पंचांग के अनुसार मोक्षदा एकादशी के दिन विजया मुहूर्त दोपहर 1:49 से लेकर के 2:48 तक रहेगा। गोधूलि मुहूर्त शाम 5:14 से लेकर 5:40 तक, सांध्य मुहूर्त 5:26 से लेकर 6:00 बज के 48 मिनट तक।
निशिता मुहूर्त मध्य रात्रि 11:49 से लेकर 12:43 तक, ब्रह्म मुहूर्त 5:17 से लेकर 6:12 तक और प्रातः संध्या 6:44 से लेकर 7:06 तक रहेगा।
पूजा करने का अशुभ मुहूर्त (समय)
पंचांग के अनुसार पूजा नहीं करने का अशुभ मुहूर्त इस प्रकार है। राहु काल का आगमन दिन के 3:00 बजे से लेकर 4:30 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार गुलिक काल दोपहर 12:16 बजे से लेकर 1:33 बजे तक रहेगा।
यमगण्ड काल सुबह 9:41 बजे से लेकर 10:58 बजे तक। दुर्मुहूर्त सुबह 9:10 बजे से लेकर 9:51 तक और रात्रि 10:54 से लेकर 11:00 बज के 49 मिनट तक रहेगा। वज्य काल रात 12:15 से लेकर 2:17 तक है।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार जानें शुभ अशुभ मुहूर्त
किसी प्रकार के पूजा में शुभ मुहूर्त का काफी महत्व होता है। मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह 9:00 बजे से ही शुभ मुहूर्त का आगमन हो रहा है। सुबह 9:00 से लेकर 10:30 तक चर मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 10:30 से लेकर 12:00 तक लाभ मुहूर्त और सुबह के 12:00 से लेकर दोपहर के 1:30 तक अमृत मुहूर्त का संयोग है। शुभ मुहूर्त दोपहर के 3:00 से लेकर 4:30 तक रहेगा। इस दौरान जातक विधि पूर्वक पूजा अर्चना कर सकते हैं।
रात में पूजा करने के समय
रात का शुभ मुहूर्त रात्रि 7:30 से 9:00 तक लाभ मुहूर्त के रूप में रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त रात 10:00 से लेकर देर रात 12:00 तक और अमृत मुहूर्त रात 12:00 से लेकर 1:30 तक रहेगा।
चर मुहूर्त रात रात 1:30 से लेकर सुबह के 3:00 तक रहेगा इस दौरान भी आप विधि विधान से पूजा अर्चना कर सकते हैं।
भूलकर भी ना करें इस दौरान पूजा
दिन और रात कुछ समय ऐसा होता है, जब पूजा अर्चना करना वर्जित है। अब हम विस्तार से जाने सुबह के समय कौन सा मुहूर्त या समय है जब हम पूजा अर्चना नहीं कर सकते हैं।
दिन के अशुभ मुहूर्त
सुबह के 6:00 बजे से लेकर 7:30 बजे तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 7:30 से लेकर 9:00 तक उद्धेग मुहूर्त और 1:30 से लेकर शाम 3:00 तक काल मुहूर्त रहेगा। शाम 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक एक बार फिर से लोग बहुत का आगमन हो रहा है।
रात का अशुभ मुहूर्त
शाम 6:00 से लेकर रात 7:30 तक काल मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार 9:00 से लेकर रात 10:30 तक उद्धेग मुहूर्त और रात 3:00 से लेकर रात 4:30 तक रोग मुहूर्त है। सुबह के समय एक बार फिर से काल मुहूर्त का आगमन हो रहा है 4:30 बजे से लेकर 6:00 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा।
युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से क्या पूछा, मोक्षदा एकादशी के संबंध में ?
महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा हे पार्थ, हमारे मृत सगे संबंधियों को नरक का कष्ट न झेलना पड़े, इसके लिए हमें कौन सा व्रत करनी चाहिए। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की मोक्षदा एकादशी का वर्णन कर बताया कि इसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ करने जैसा फल मिलता है।
मोक्षदा एकादशी के दिन यत्नपूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। सबसे पहले विधि पूर्वक दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना होगा। मोक्षदा एकादशी बड़े बड़े पापों का नाश करने वाली है ।
मोक्षदा एकादशी के दिन पंचांग के अनुसार
25 दिसंबर दिन शुक्रवार मार्गशीर्ष माह, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि को शिशिर ऋतु में सूर्य उत्तरायण दिशा में रहेंगे। उस दिन नक्षत्र अश्विनी, योग शिव, सूर्य धनु राशि में और चंद्रमा मेष राशि में स्थित है।
जाने मोक्षदा एकादशी करने का विधान
मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को ना केवल स्वयं को मोक्ष की प्राप्ति होती है बल्कि उनके पितरों को जीवन चक्र से मुक्ति मिल जाती है और उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखने से गंगा स्नान के समान ही फल की प्राप्ति होती है।
भगवान दामोदर की होती है पूजा
मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान दामोदर और श्रीकृष्ण को पीले वस्त्र, पीले फूल, तुलसी का माला, तुलसी पत्ता, नवैद्ध और मौसमी फलों से विधि पूर्वक पूजा करनी चाहिए।
उस दिन रात्रि में श्रीकृष्ण की प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति करके जागरण करना लाभप्रद रहेगा।
पूर्वजों को मुक्ति के लिए करें पुण्य दान
मोक्षदा एकादशी करने से आपके पितर जो पाप वश नीच योनि में पड़े हुए हैं। इस एकादशी का व्रत करके अपने पुण्य दान करने से पितरों को जीवन चक्र से मुक्ति मिल जाती है और पितर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है, ऐसा पुराणों में कहा गया है।
मोक्षदा एकादशी का पौराणिक कथा
पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चंपक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे। वे अपनी प्रजा को पुत्र की भांति पालन करते थे ।
इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नरक लोक में पड़ा हुआ देखा । उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा दुःख हुआ और प्रातः काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया।
वैखानस राजा बोले, ब्रह्माण देवता मैने अपने पितरों को नरक में पड़ा हुआ देखा है। वे बारंबार रोते हुए मुझसे कह रहे थे कि तुम हमारे पुत्र हो, इसलिए इस नरक से हम लोगों को बाहर निकालों।
इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं है, क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय बैठा जा रहा है। ब्राह्मण श्रेष्ठ हमें आप लोग वह व्रत, वह तप और वह योग बताएं जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा सके। वैसी व्रत बताने की कृपा करें ।
मेरे जैसे बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं। अत: ऐसे पुत्र होने से क्या लाभ है ?
ब्राह्मणों ने राजा को पर्वत मुनि के आश्रम में भेजा
ब्राह्मण बोले राजा वैखानस आप यहां से निकट ही पर्वत मुनि का आश्रम है। मूनि भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं । राजन आप उनके पास चले जाइये । ब्राह्मणों की बात सुनकर राजा वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और मुनिश्रेष्ठ पर्वत को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया ।
पर्वत मुनि ने बताया राजा को उपाए
राजा ने मुनिश्रेष्ठ को बोले, मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं । अतः आप बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से छुटकारा मिलेगा।
राजा की यह बात सुनकर मुनि पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानमग्न रहे । इसके बाद मुनि ने राजा से बोले, महाराज वैखानस मार्गशीर्ष माह के शुक्लपक्ष में जो 'मोक्षदा' नाम की एकादशी आती है।
तुम उस व्रत का विधि-विधान से पालन करो और उसका पुण्य पितरों को दे डालो। उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से मुक्ति मिल जायेगा।
महाराजा वैखानस ने मोक्षदा एकादशी कर पितरों को भेजा स्वर्ग
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि सुनो युधिष्ठिर, मुनि पर्वत की यह बात सुनकर राजा पुनः अपने राज्य लौट आये । जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी' का व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरों सहित माता और पिता को दे दिया।
इसलिए जो कल्याणमयी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । यह मोक्ष देनेवाली 'मोक्षदा एकादशी' मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है ।
इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से जातकों को वाजपेय यज्ञ करने का फल मिलता है ।
पारण करने के उचित समय
मोक्षदा एकादशी व्रत का पारण दसवीं तिथि को करनी चाहिए। 23 मई की सुबह 4:40 बजे से द्वादशी तिथि का प्रारंभ हो जाएगा। चौथे प्रहर की पूजा करने के उपरांत पारण कर सकते हैं।