सप्तमी की पूजा शुक्रवार अष्टमी की पूजा शनिवार और नवमी की पूजा रविवार को होगा
सोमवार को लक्ष्मी पूजा और दशहरा एक साथ
नवरात्रा में मां की नौ रूपों की 9 दिनों तक विधि विधान से पूजा अर्चना किया जाता है। अगर कोई जातक 9 दिनों तक व्रत रखने में कठिनाई महसूस करता है, तो उसे सिर्फ महासप्तमी, महाष्टमी और महानवमी की व्रत विधि विधान से करने पर, 9 दिनों तक चलने वाले व्रत का फल उसे प्राप्त हो जाता है। भगवती पुराण में कहा गया है कि मां के तीन दिनों के रूप कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजन भक्ति पूर्वक करने से उसे सभी तरह का फल प्राप्त हो जाता है।मां भगवती की पूजन क्यों करनी चाहिए
पृथ्वी लोक में जितने भी प्रकार के व्रत एवं दान हैं। वे इस नवरात्र व्रत के तुल्य नहीं है क्योंकि यह व्रत सदा धन-धान्य प्रदान करने वाला, सुख तथा संतान की वृद्धि करने वाला, आयु तथा आरोग्य प्रदान करने वाला और स्वच्छ देने वाला है। जिस मनुष्य ने दुख तथा संताप का नाश करने वाली सिद्धियां देने वाली जगत में सर्वश्रेष्ठ शाश्वत तथा कल्याण स्वरूपिणी मां भगवती की उपासना नहीं की है वह इस पृथ्वी लोक पर सदा ही अनेक प्रकार के कष्टों से ग्रस्त दरिद्र तथा शत्रुओं से पीड़ित है। ऐसे लोगों को जरूर नवरात्रि पर्व करनी चाहिए। भगवान विष्णु, इन्द्र, शिव, ब्रह्मा, अग्नि कुबेर, वरुण तथा समस्त कामनाओं से परिपूर्ण होकर हर्ष के साथ जिन भगवती का ध्यान करते हैं, उस चंडिका का हमें भी ध्यान करना चाहिए। जिन की इच्छा से ब्रह्मा द्वारा विश्व का श्रृजन करते हैं। भगवान विष्णु अनेक विधि अवतार लेते हैं और शंकर भगवान जगत को भस्मसात करते हैं। भगवती को भजने से चारों प्रकार के पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति मनुष्यों को भगवती का अनुष्ठान करने से मिलते हैं।
महाष्टमी को कैसे करें विशेष पूजा
नवरात्रा के दौरान महाष्टमी को महागौरी की आराधना और पूजा की जाती है। अष्टमी तिथि की रात संधी पूजा (निशा पूजा) होती है। 12 बजे के बाद संधि पूजा करने का विधान है। संधी पूजा के दौरान बलि देने की प्रथा है परंतु बदले माहौल में मां के भक्त गन्ना और चालकुमरा की बलि देते हैं संधी पूजा में भाग लेने वाले लोग अकाल मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। 3 से 5 घंटे तक चलने वाली पूजा में प्रसाद के रूप में सुगंध वाला चंदन, पुष्प की माला, खीर और मौसमी फल चढ़ाएं। इस दिन कुमारी कन्याओं को पूजन के साथ भोजन कर यथाशक्ति दान देना चाहिए। अष्टमी तिथि को व्रत रखें और मां से निरोग रहने की कामना करें।
अष्टमी का दिन मां गौरी का दिन है, जिनके बारे में कहा जाता है कि अष्टमी के दिन अगर दिल से मां को पुकारा जाता है, तो तुरंत अपने भक्त की पीड़ा दूर करती हैं।
निर्णय सिंधु पुराण के तिथि का मिलन नहीं
आदिशक्ति का महापर्व नवरात्रि का पर्व इस वक्त पूरे देश में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जा रहा है। लेकिन आज अष्टमी और नवमी की तिथि को लेकर भक्तों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई हैं। मां दुर्गा के भक्तगण दुविधा में हैं कि व्रत आखिर किस दिन रखें, जो लोग नौ दिन का व्रत रखते हैं, उन्हें तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन समस्या उनके सामने हैं, जो कि नवरात्रि का पहला और आखिरी व्रत रखते हैं, तो ऐसे लोगों की दुविधा हम दूर कर देते हैं।
असल में 17 अक्टूबर से शुरू हुए नवरात्र का शुक्रवार सातवां दिन हैं। 23 अक्टूबर सुबह 06 बजकर 57 मिनट से अष्टमी लग गई है जो कि 24 अक्टूबर सुबह 6 बजकर 57 मिनट रहेगी तो वहीं
शनिवार अर्थात 24 अक्टूबर को सुबह 6:58 पर ही महानवमी लग जाएगी। इसलिए निर्णय सिंधु पुराण के अनुसार जो अष्टमी की व्रत करते हैं। वैसे लोग शनिवार को पूजा, व्रत और कुमारी कन्याओं की पूजन करेंगे। महानवमी का व्रत रखते हैं और हवन करते हैं वैसे जातक 25 अक्टूबर को करना चाहिए। महादशमी और दशहरा 26 अक्टूबर को मनाया जायेगा।
सिद्धिदात्री मां को शतावरी और नारायणी कहते हैं
महानवमी का दिन मां सिद्धिदात्री का होता है, मां दुर्गा के इस रूप को शतावरी और नारायणी भी कहा जाता है, वो शक्ति का पर्याय हैं, मां के इन दोनों रूप की पूजा करने वाले को कभी भी कोई कष्ट नहीं होता हैं। वैसे जातक हमेशा खुश, सुखी और संपन्न रहते है। मां भगवती अपने भक्त के हर कष्ट को दूर करती हैं और उन्हें निरोग रखती हैं, वो भय से दूर जीवन के हर सुख को प्राप्त करता है।