10 दिनों की जगह 9 दिनों की होगी नवरात्रा।
शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 17 अक्टूबर अश्वनी माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ प्रारंभ हो जाएगा। दिन शनिवार है, जो माता का दिन है। बड़ा ही शुभ है। शनिवार माता का दिन होने के बाद भी इस बार का दुर्गा पूजा का शुभारंभ अशुभ रहेगा कारण माता का आगमन घोड़ेेे पर हो रहा है। घोड़े पर आगमन युद्ध और मारकाट का प्रतीक है। देश में राजनीतिक उथल-पुथल और पड़ोसी देशोंं से लड़ााई होने की संभावना प्रबल है। 10 दिनों तक चलने वाले नवरात्रा इस बार 9 दिनों का रहेगा। महाअष्टमी और महानवमी 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा। 24 अक्टूबर सुबह 6:00 बज के 48 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगा इसके बाद नवमी तिथि आरंभ हो जाएगी। अर्थात नवमी और अष्टमी तिथि की पूजा 24 अक्टूबर को ही होगा। कहा जाता है नवरात्रि अपने भीतर शिवा और शक्ति को एकीकार करने का अनुष्ठान है। नवरात्रि आत्बल को प्रबल करने का अवसर है। नवरात्रि में नौ रूपों में देवी भक्तों के बीच आती है। मन और तन के शोधन का महत्व समझा जाती है।
अष्टमी और नवमी की पूजा 24 अक्टूबर को।
मां को घोड़े पर सवार होकर आना भी अशुभ और भैंसें पर सवार हो कर जाना भी अशुभ
शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 17 अक्टूबर अश्वनी माह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ प्रारंभ हो जाएगा। दिन शनिवार है, जो माता का दिन है। बड़ा ही शुभ है। शनिवार माता का दिन होने के बाद भी इस बार का दुर्गा पूजा का शुभारंभ अशुभ रहेगा कारण माता का आगमन घोड़ेेे पर हो रहा है। घोड़े पर आगमन युद्ध और मारकाट का प्रतीक है। देश में राजनीतिक उथल-पुथल और पड़ोसी देशोंं से लड़ााई होने की संभावना प्रबल है। 10 दिनों तक चलने वाले नवरात्रा इस बार 9 दिनों का रहेगा। महाअष्टमी और महानवमी 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा। 24 अक्टूबर सुबह 6:00 बज के 48 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगा इसके बाद नवमी तिथि आरंभ हो जाएगी। अर्थात नवमी और अष्टमी तिथि की पूजा 24 अक्टूबर को ही होगा। कहा जाता है नवरात्रि अपने भीतर शिवा और शक्ति को एकीकार करने का अनुष्ठान है। नवरात्रि आत्बल को प्रबल करने का अवसर है। नवरात्रि में नौ रूपों में देवी भक्तों के बीच आती है। मन और तन के शोधन का महत्व समझा जाती है।
हमारे वेद पुराण और ऋषि-मनियों ने शिवा और शक्ति को सृष्टि की उत्पति का अनुष्ठान मानते हैं। महादेवी का नाम देकर इस जगत की आदिशक्ति, जगत का सृजन, पालन और नाश करने वाली शक्ति कहा है। सर्वमान्य है कि यह शक्ति जिसे दुर्गा, काली, सरस्वती और लक्ष्मी आदि नामों से जाना जाता है। यह एक ही शक्ति के बदले हुए रूप और स्वरूप हैं। नवरात्रि के दिन मां शक्ति की नौ रूपों की पूजा प्रत्येक दिन की जाती है।
घट स्थापना क्यों करें करने की विधि
कलश स्थापना करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। 9 दिनों तक मां की आराधना करने के लिए कलश स्थापना करनी चाहिए। कलश की स्थापना घर में बने मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा में करनी चाहिए। मां की चौकी जो लकड़ी से बनी हुई है उसी पर कलश स्थापित करें। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़ाकर और गोबर से लिपकर पवित्र कर लें। लकड़ी की बनी चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें और स्वास्तिक का चिन्ह बना कर कलश स्थापित करें।
कलश में गंगाजल भरकर, एक सिक्का, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ डाल दें। कलश और ढक्कन के बीच आम के पल्ला स्थापित कर, लाल वस्त्र में नारियल को लपेट कर उस पर रख दें। चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। मां को लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ानी चाहिए। कलश स्थापना के साथ अखंड दीप प्रज्ज्वलित करें, जो 9 दिनों तक जलेगी। पहला दिन होने के कारण शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके जाप करें। फूल और चावल मां शक्ति के चरणों में अर्पित करें। मां का भोग शुद्ध घी से बनाएं साथ में मौसमी फल भी प्रसाद के रूप में रखें और मां पर चढ़ाएं। इसके बाद मां आदिशक्ति को ध्यान कर दुर्गा पाठ करें।
कलश स्थापना मिट्टी और बालू के ऊपर करनी चाहिए। मिट्टी और बालू में जौव मिलाकर रखें। 9 दिनों तक सुबह और शाम पूजा के उपरांत शुद्ध जल का छिड़काव उस पर करें। नित्य प्रतिदिन जौव का पौधा बढ़ता जाएगा। माना जाता है कि सृष्टि में सबसे पहले अनाज के रूप में जौव का उत्पति हुआ था। इस अनाज को सृष्टि के उत्पत्ति के साथ देखा जाता है। मान्यता है कि जौव के पौधों को विजयादशमी के दिन उखाड़ कर अपने प्रियजनों के बीच बांट देनी चाहिए। पौधा वितरण करने से परिजनों के यहां सुख समृद्धि और शांति आती है। इसे लोग अपने दाहिने कान पर रखते हैं। जौव का पौधा अगर खिला हुआ है और स्वस्थ्य है। तो उससे आपके घर में सुख समृद्धि और प्रिय जनों को कष्ट ना होने का घोतक माना जाता है। उसी प्रकार अगर आपका बोया हुआ जौव मुरझा गया हो या ठीक से हो नहीं पाया है, तो इसका मतलब है आपका परिवार संकट में घिर सकता है। और पहाड़ों का दुख आपके और आपके परिवार को बर्बाद कर सकता है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना अर्थात 17 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा तुला राशि में स्थित है। शरद ऋतु होने के कारण सूर्य दक्षिणायन दिशा में अवस्थित है। अधिक मास खत्म हो जाने के बाद पड़ने वाले इस नवरात्रि के दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:00 बज के 50 मिनट से लेकर 12:36 के बीच है। उसी प्रकार अमृत योग दिन के 3:00 बज के 6 मिनट से प्रारंभ होकर 4:30 तक रहेगा। शुभ मुहूर्त सुबह 7:52 से प्रारंभ होकर 9:19 तक, चर मुहूर्त दिन के 12:13 से प्रारंभ होकर 1:39 तक और लाभ मुहूर्त 1:39 से प्रारंभ होकर 3:06 तक रहेगा। इस दौरान आप कलश स्थापना कर सकते हैं। अमृत योग में कलश स्थापना करना काफी शुभ माना जाता है वैसे अभिजीत मुहूर्त, शुभ मुहूर्त, चर मुहूर्त और लाभ मुहूर्त में भी कलश स्थापना करना फलदाई होता है।
भूलकर भी ना करें इस दौरान कलश स्थापना
प्रतिपदा के दिन भूल कर भी इस समय ना करें धार्मिक अनुष्ठान और कलश स्थापना। इस दिन काल योग सुबह 6:00 बज के 25 मिनट से लेकर 9:19 तक रहेगा। इस दौरान पूजा पाठ और कलश स्थापना करना वर्जित है। उसी प्रकार रोग मुहूर्त सुबह 9:19 से लेकर 10:40 तक, उद्गेग मुहूर्त सुबह 10:00 बज के 40 मिनट से लेकर 12:13 तक और काल योग 4:30 से लेकर शाम 6:00 बजे तक रहेगा इस दौरान कलश स्थापना करना अशुभ माना गया है। नवरात्रा का व्रत रखकर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ करने वाले लोग 10 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें। सादा भोजन करें और नमक के जगह सेंधा नमक का प्रयोग करें। रोजाना दुर्गा सप्तशती का पाठ कर लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।
कलश स्थापना में लगने वाली पूजा सामग्री
शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर दिन शुक्रवार को कलश स्थापना के साथ 9 दिनों का महा महोत्सव का शुभारंभ हो जाएगा। कलश स्थापना करने के लिए पूजा सामग्री की जरूरत पड़ती है। साथ ही प्रतिपदा तिथि होने के कारण मां शैलपुत्री की पूजा भी की जाती है। कलश स्थापना करने के पूर्व इन सामग्रियों का खरीदारी कर लेनी चाहिए। कलश स्थापना के लिए जटा वाला नारियल, गाय का गोबर, दूध, दही, पान, सुपारी, रोली, सिंधु लाल सिंदूर, लाल कपड़ा, फूल, उड़हुल फूल का माला, अक्षत, हवन के लिए सूखी लकड़ी, कपूर, जौ, मेवा, मधु, गंगाजल, अगरबत्ती, कलश, आम का पत्ता, रूई, दूर्वा, सलाई, गुड़, हल्दी, मिठाई और मौसमी फल होना जरूरी है।