"परमात्मा कहां है"? बालसेन, कबीर और भक्ति का रहस्य | आध्यात्मिक ब्लॉग

"जानिए संत बालसेन का अद्भुत उत्तर - 'परमात्मा वहां है जहा आदमी उसे घुसने दे।' कबीर, पलटू और भक्ति के मार्ग पर गहरा चिंतन। ओशो प्रवचन से प्रेरित ज्ञानवर्धक लेख"

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"परमात्मा कहां है? भक्ति के हृदय में ही तो बसता है भगवान"

*एक साधारण से कमरे में कुछ हसीद फकीर इकट्ठा थे। चर्चा चल निकली — परमात्मा कहां है? किसी ने कहा पूरब में, क्योंकि वहीं से जीवनदायी सूरज उगता है। किसी ने दावा किया यरूसलेम में, क्योंकि वह पवित्र भूमि है। कुछ दार्शनिक मन वालों ने कहा — "सर्वव्यापी है, हर जगह है।" सब अपनी-अपनी बुद्धि का प्रदर्शन कर रहे थे, मगर एक फकीर चुप थे — बालसेन। जब उनसे पूछा गया, तो उनका उत्तर सबसे सरल, किंतु गहराई से भरपूर था: "परमात्मा वहां होता है जहां आदमी उसे घुसने देता है।"

*यह वाक्य सारी खोज का सार है। भगवान को खोजने के लिए बाहर भटकने की ज़रूरत नहीं, बस अपने भीतर के द्वार खोलने की ज़रूरत है। परमात्मा दरवाज़ा खटखटाता रहता है, मगर हम उसके लिए अपना हृदय बंद रखते हैं, और फिर पूछते हैं — "तुम हो कहां?"

"भक्ति: वह पुल जो मनुष्य को परमात्मा से जोड़ता है"

*ओशो इस प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं — "भक्ति जहां है, वहां भगवान है।" लोग अक्सर उलटा सोचते हैं: पहले भगवान का पता लगाओ, फिर भक्ति करेंगे। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कोई अंधा व्यक्ति कहे — पहले प्रकाश दिखाओ, फिर मैं आंखें खोलूंगा। या कोई लंगड़ा कहे — पहले ओलंपिक का मैडल दो, फिर मैं दौड़ लगाऊंगा।

*सत्य यह है कि भक्ति ही वह आंख है जो परमात्मा को देख सकती है। भक्ति ही वह कान है जो उनकी फुसफुसाहट सुन सकता है। बिना भक्ति के, हम उसे ढूंढ़ते हुए भी उससे चूक जाते हैं।

"बालसेन: वह फकीर जिसने सरलता में गहराई पाई"

*बालसेन एक ऐसे ही साधारण में असाधारण फकीर थे। उनकी विशेषता यह थी कि उन्होंने जटिल दार्शनिक बहसों में न पड़कर, सीधे हृदय की बात कही। उनके लिए ईश्वर की खोज बाहर के तीर्थों में नहीं, बल्कि अंतर्मन की शुद्धता में थी। उनका जीवन इस बात का प्रमाण था कि जब भक्ति सच्ची होती है, तो परमात्मा स्वयं उस हृदय में विराजमान हो जाता है। बालसेन ने सिखाया कि ईश्वर किसी स्थान-विशेष का मोहताज नहीं, वह तो हर उस जगह मौजूद है जहां उसे प्रवेश करने दिया जाता है।

"पलटू: अहं के अभिमान को तोड़ने वाला संत"

*पलटू (या पलटू साहिब) एक और ऐसे ही प्रखर संत थे, जिन्होंने भक्ति के मार्ग को सामाजिक आडंबरों से मुक्त किया। उनका नाम ही 'पलटने' की प्रक्रिया को दर्शाता है — अहंकार को पलटकर, अंदर के दिव्य सत्य को उजागर करना। पलटू मानते थे कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए बाहरी रीति-रिवाजों या ज्ञान के घमंड की नहीं, बल्कि निश्छल प्रेम और समर्पण की आवश्यकता होती है। उनकी वाणी में विरोधाभासी कथन (परदॉक्स) होते थे, जो साधक को उसके मन की जटिलता से मुक्त करते थे और सीधे हृदय के द्वार तक ले जाते थे।

"कबीर: जुलाहे से जगत-गुरु बने युगपुरुष"

*कबीरदास तो हिन्दी साहित्य और भक्ति आंदोलन के स्तंभ हैं। एक साधारण जुलाहे के घर पले-बढ़े कबीर ने हिंदू-मुस्लिम, ब्राह्मण-शूद्र, पंडित-मूर्ख सभी के बीच की कृत्रिम दीवारों को ढहा दिया। उन्होंने 'राम' का नाम लिया, मगर उसे किसी मंदिर-मस्जिद या मूर्ति तक सीमित नहीं किया। कबीर के लिए परमात्मा 'सबमें व्यापक' था। उनकी साखियों और दोहों में व्यंग्य और सीधा स्पर्श था, जो ढोंगी पंडितों और मुल्लाओं की पोल खोल देता था।

*कबीर ने भक्ति को जीवन का सहज अंग बना दिया। उनके लिए ईश्वर की खोज चरखा चलाते हुए, कपड़ा बुनते हुए भी की जा सकती थी। उन्होंने बताया कि भगवान काशी में नहीं, बल्कि उस हृदय में है जो प्रेम और निर्मलता से भरा है। कबीर, बालसेन और पलटू — तीनों ने एक ही सत्य को अलग-अलग शब्दों में कहा: भगवान बाहर नहीं, भीतर है; और वह भीतर तभी प्रकट होता है, जब भक्ति का दीया जलता है।

"निष्कर्ष: खोज बाहर की नहीं, भीतर की यात्रा है"

*आज हम भी उसी प्रश्न से जूझते हैं — परमात्मा कहां है? हम मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर खोजते हैं, तीर्थयात्राएं करते हैं, ग्रंथ पढ़ते हैं। यह सब अच्छा है, मगर बालसेन का सूत्र हमें याद दिलाता है — सब कुछ व्यर्थ है, अगर हमने अपने हृदय का द्वार उसके लिए नहीं खोला।

*भक्ति शुरू कर दो, परमात्मा स्वयं को प्रकट कर लेगा। यही इन सभी संतों का संदेश है। वे कहते हैं — प्रेम करो, समर्पित हो जाओ, ईमानदारी से अपने भीतर झांको। जिस दिन तुम्हारा हृदय शुद्ध प्रेम से लबालब होगा, उस दिन तुम्हें कहीं ढूंढ़ने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। परमात्मा तुम्हारे होने की अनुभूति बनकर तुम्हारे साथ होगा।

"डिस्क्लेमर"

*यह ब्लॉग पोस्ट आध्यात्मिक चिंतन एवं ज्ञान-वर्धन के उद्देश्य से लिखी गई है। इसमें प्रस्तुत विचार ओशो के प्रवचनों, तथा संत बालसेन, पलटू एवं कबीर के दर्शन से प्रेरित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि इसे किसी धार्मिक कट्टरता या पंथ विशेष के प्रचार के रूप में न लें।

*यहां उल्लिखित सभी विचार, व्याख्याएं एवं दृष्टांत सामान्य ज्ञान, ऐतिहासिक संदर्भों एवं आध्यात्मिक साहित्य पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य पाठक को आत्म-चिंतन के लिए प्रेरित करना मात्र है। किसी भी विशिष्ट धार्मिक मान्यता या व्यक्ति के प्रति असम्मान का इरादा नहीं है।

*आध्यात्मिक मार्ग व्यक्तिगत अनुभव का विषय है। यह लेख किसी भी प्रकार की धार्मिक अथवा आध्यात्मिक सलाह, मार्गदर्शन या निर्देश नहीं है। गहन आध्यात्मिक साधना या जीवन में बड़े परिवर्तन के लिए किसी योग्य गुरु या विशेषज्ञ का मार्गदर्शन आवश्यक है।

*लेख में प्रयुक्त सभी नाम एवं शब्द सामान्य बोध हेतु हैं। तथ्यात्मक सटीकता के लिए मूल ग्रंथों एवं प्रामाणिक स्रोतों का अध्ययन करने की सलाह दी जाती है। लेखक एवं प्रकाशक किसी भी प्रकार की मानसिक, शारीरिक या आध्यात्मिक क्षति के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।


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