"क्या आप जानते हैं लंकादहन के पीछे छिपी है शिव-पार्वती की प्रतिज्ञा? जानिए शिव पुराण की रोचक कथा, कैसे रावण ने मांग लिया था सोने का महल और माता पार्वती को। हनुमानजी के रुद्रावतार होने का रहस्य"
"लंका दहन के पीछे छिपा शिव-पार्वती का रोचक प्रसंग"
"रामायण के प्रसंग में जब हनुमानजी लंका में आग लगाते हैं, तो अधिकांश लोग इसे रावण द्वारा उनकी पूंछ में आग लगाए जाने की प्रतिक्रिया मानते हैं। किंतु शिव पुराण एवं अन्य ग्रंथ एक गहन और चमत्कारिक कथा प्रस्तुत करते हैं, जो इस घटना को एक दैवीय प्रतिज्ञा और शिव-पार्वती के एक वचन से जोड़ती है। यह ब्लॉग उसी गूढ़, कम चर्चित, किंतु अत्यंत रोचक एवं ज्ञानवर्धक कथा को विस्तार से प्रस्तुत करेगा, जो हनुमानजी के रुद्रावतार होने के रहस्य से लेकर लंकादहन तक की यात्रा को समझाती है"
"हनुमान अवतार की गुप्त कथा: लंका क्यों जलाई? शिव-पार्वती और रावण का रोचक प्रसंग। नीचे दिए गए विषयों के संबंध में विस्तार से पढ़ें"। Shiv Puran Katha
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*शिव ने हनुमान को अवतार क्यों लिया
*रावण ने ब्राह्मण बनकर क्या मांगा
*विश्वकर्मा द्वारा निर्मित स्वर्ण महल
*भोलेनाथ ने पार्वती को दान में दिया
*लंका दहन की पौराणिक कहानी
*शिव पार्वती और रावण की कथा
*रामायण की अद्भुत कहानी
*हनुमान चालीसा और रहस्य
*पौराणिक कथाएं हिंदी में
*रावण के पापों का दंड
*माता सीता की खोज और हनुमान
*शिव के 11 रुद्र अवतार
*वानर रूप धारण शिव
*देवी पार्वती का अवतार
"हनुमानजी कैसे बने रुद्र का अवतार?"
*हनुमानजी को 'रुद्रावतार' या 'शिव के ग्यारहवें रुद्र का अवतार' माना जाता है। यह केवल एक संज्ञा नहीं, बल्कि एक गहन पौराणिक सत्य है, जिसकी जड़ें शिव की प्रचंड ऊर्जा और उनकी करुणा दोनों में निहित है।
*शिव, जो स्वयं संहारक और कल्याणकारी दोनों हैं, ने त्रेतायुग में धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए हनुमान के रूप में अवतार लेने का निश्चय किया। किंतु इस निश्चय के पीछे एक विशेष प्रतिज्ञा भी थी, जिसमें माता पार्वती भी सम्मिलित थीं। मान्यता है कि जब भगवान विष्णु राम के रूप में अवतरित होने का निर्णय लेते हैं, तो शिव से अनुरोध करते हैं कि वे भी उनकी सहायता के लिए किसी रूप में पृथ्वी पर जाएं।
*शिव इसके लिए तत्पर हो जाते हैं। वे अपनी दिव्य ऊर्जा को एक वानर रूप में प्रकट करने का विचार करते हैं, क्योंकि वानर बल, बुद्धि, निष्ठा और चपलता का प्रतीक है। यह रूप भक्ति और सेवा का परम आदर्श स्थापित करेगा, ऐसा उनका मानना था। कहते हैं कि शिव ने अपने रुद्र के एक अंश को वायु देवता के पास भेजा, जिससे अंजनी के गर्भ से मारुति (हनुमान) का जन्म हुआ। इसीलिए हनुमान को 'पवनपुत्र' और 'रुद्रावतार' दोनों कहा जाता है।
*लेकिन यह अवतार केवल राम की सेवा के लिए ही नहीं, बल्कि शिव द्वारा पार्वती को दिए गए एक वचन की पूर्ति के लिए भी था। एक ऐसा वचन, जो लंका के सोने के महल और एक दान की घटना से जुड़ा था। शिव के इस अवतार में पार्वती भी सहभागी थीं, और यही वह गूढ़ तथ्य है जो लंकादहन की घटना को एक नए संदर्भ में देखने पर मजबूर कर देता है।
*हनुमान के चरित्र में शिव का तप, शौर्य, ज्ञान और विनम्रता सभी दृष्टिगोचर होते हैं। वे रुद्र के ही समान क्रोधित होने पर प्रलय ला सकते थे और भक्ति करने पर अत्यंत सरल और दयालु। यह द्वैत शिव के स्वभाव का ही प्रतिबिंब है। रामभक्ति में लीन हनुमान का समग्र व्यक्तित्व शिव के उस 'भोलेपन' का प्रतीक है, जो अपने भक्त के लिए सब कुछ त्याग सकता है। इस प्रकार, हनुमान का रुद्रावतार होना केवल एक जन्म की कथा नहीं, बल्कि एक दैवीय योजना का अंग है, जिसमें प्रेम, प्रतिशोध, भक्ति और कर्तव्य का अनूठा सम्मिश्रण है।
"रावण की चाल: कैसे मांग लिया शिवजी से सोने का महल"?
*यह कथा तब की है जब भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर निवास करते थे। माता पार्वती की इच्छा हुई कि उनके रहने के लिए एक अद्भुत, भव्य महल बने। भोलेनाथ ने अपनी पत्नी की यह इच्छा तुरंत पूरी करने का निश्चय किया। उन्होंने देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को आदेश दिया कि वह स्वर्ण (सोने) से एक ऐसा अद्वितीय महल बनाएं, जो तीनों लोकों में अपनी शोभा और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हो।
*विश्वकर्मा जी ने अपना सारा कौशल लगा दिया और अंततः एक ऐसा महल तैयार किया जो वास्तव में अद्वितीय था। महल का हर स्तंभ, हर कक्ष, हर शिखर चमकते सोने से निर्मित था और दिव्य रत्नों से जड़ा हुआ था। यह महल इतना मनोहर था कि इसे देखकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं और शिवजी का आभार व्यक्त किया।
*इधर, इस महल की चर्चा तीनों लोकों में फैल गई। लंका का राजा रावण, जो विलासिता और ऐश्वर्य का प्रेमी था, ने इस स्वर्ण महल के बारे में सुना। उसकी इच्छा हुई कि वह इस महल को अपने कब्जे में ले ले। किंतु शिव से सीधे युद्ध करके या मांगकर इसे पाना असंभव था। तब उसने एक चाल चली।
*रावण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया और कैलाश पर्वत पर शिव-पार्वती के दरबार में पहुंच गया। उसने भगवान शिव की घंटों तक कठोर तपस्या और स्तुति की। शिवजी, जो भक्त के तप से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, उस ब्राह्मण-रूपी रावण पर प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।
*चतुर रावण ने कहा, "हे प्रभु, मैं एक साधारण ब्राह्मण हूं। मुझे धन-दौलत की इच्छा नहीं है। केवल इतना चाहता हूं कि आप और माता पार्वती मेरे घर पधारें और मेरे द्वारा तैयार किए गए भोजन को ग्रहण करें। इसके बाद मुझे दक्षिणा स्वरूप वह वस्तु दें, जो मैं मांगूं।"
*भोले-भंडारी शिव ने 'तथास्तु' कह दिया। शिव-पार्वती उसके साथ उसकी कुटिया में गए और भोजन ग्रहण किया। भोजन के बाद जब दक्षिणा मांगने का समय आया, तो रावण ने अपना असली रूप प्रकट किया और कहा, "हे देवाधिदेव, दक्षिणा में मुझे यह स्वर्ण महल ही प्रदान करें।"
*शिवजी ने भक्त के वचन को पूरा करने की दृढ़ प्रतिज्ञा के कारण, बिना किसी हिचकिचाहट के, "एवमस्तु" कह दिया और महल दान में दे दिया। रावण की चाल सफल हो गई। किंतु उसकी लालसा यहीं समाप्त नहीं हुई। उसके मन में एक और विचार कौंधा, जिसने पूरी घटना को एक नया मोड़ दे दिया।
"दान में मांग लिया माता पार्वती को"!
*स्वर्ण महल पाकर रावण प्रसन्न तो हुआ, किंतु उसके मन में एक शंका घर कर गई। उसने सोचा कि यह महल तो मूल रूप से माता पार्वती की इच्छा पर बना था और उनके आशीर्वाद के बिना इस महल का स्वामित्व सुखद नहीं होगा। केवल महल पाने से उसकी लालसा पूर्ण नहीं होगी। उसकी अहंकारी बुद्धि ने उसे एक और असंभव-सी मांग करने के लिए प्रेरित किया।
*रावण ने शिवजी से पुनः निवेदन किया, "हे प्रभु, एक बात और है। यह महल तो माता पार्वती के हृदय की धड़कन है। इनकी अनुमति और सानिध्य के बिना यह महल मेरे लिए वीरान ही रहेगा। अतः दक्षिणा में अब मुझे माता पार्वती भी प्रदान करें। मैं इन्हें भी अपने साथ ले जाना चाहता हूं।"
*यह सुनकर समस्त देवतागण और सेवक स्तब्ध रह गए। यह अभूतपूर्व और अशोभनीय मांग थी। किंतु भगवान शिव अपने भक्त के वचन में बंधे हुए थे। उन्होंने दानधर्म का पालन करते हुए, किसी प्रकार की रोष पूर्ण प्रतिक्रिया दिए बिना, माता पार्वती को भी दान में देने का संकेत दे दिया।
*माता पार्वती यह सब देख-सुन रही थीं। पति द्वारा इस प्रकार दान में दिए जाने का विचार ही उनके लिए आघातकारी था। वह अत्यंत दुःखी और क्रोधित हुईं। उन्होंने शिवजी को कठोर दृष्टि से देखा, किंतु शिव अपने वचन से बंधे थे। रावण अब माता पार्वती को अपने साथ ले जाने की तैयारी करने लगा।
*तभी माता पार्वती ने अपनी दिव्य शक्तियों का स्मरण किया और भगवान विष्णु को सहायता के लिए आमंत्रित किया। विष्णु जी तुरंत वहां प्रकट हुए। उन्होंने स्थिति को समझा और एक चतुर योजना बनाई। उन्होंने माता पार्वती से कहा कि वह रावण के साथ चलने के लिए तैयार हो जाएं, किंतु उन्होंने एक छल किया।
*जैसे ही रावण माता पार्वती को लेकर चलने लगा, विष्णु जी ने अपनी माया से माता पार्वती का एक छाया रूप रावण के साथ भेज दिया, जबकि वास्तविक पार्वती गायब हो गईं। रावण, अपनी अहंकारी बुद्धि के कारण, इस छल को नहीं समझ सका और छाया रूपी पार्वती को लेकर लंका की ओर चल पड़ा। रास्ते में ही विष्णु जी ने उस छाया रूप को भी लुप्त कर दिया, जिससे रावण खाली हाथ रह गया।
*कैलाश लौटकर माता पार्वती ने शिवजी से अपने क्रोध और पीड़ा को व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस तरह भक्ति का अनुचित लाभ उठाने वाले अहंकारी का अंत होना चाहिए। तब शिवजी ने माता को एक गंभीर वचन दिया, जिसने आगे चलकर रामायण की एक प्रमुख घटना को जन्म दिया।
भाग *04: "राम कथा में मां पार्वती के क्रोध का बदला"
*माता पार्वती के सम्मान को ठेस पहुंचाने और रावण की दुर्वृत्ति के कारण उनका हृदय दुःख और क्रोध से भर गया था। भगवान शिव ने उन्हें शांत करते हुए एक वचन दिया: "हे पार्वती, रावण ने तुम्हें दान में मांगकर तुम्हारा और मेरा अपमान किया है। इसका प्रतिशोध अवश्य लिया जाएगा। त्रेतायुग में मैं वानर के रूप में अवतार लूंगा और तुम मेरी पूंछ बन जाना। जब मैं माता सीता की खोज में उसी स्वर्ण महल – अर्थात लंका – में जाऊंगा, तो तुम्हारे रूप में मेरी पूंछ ही लंका को जलाकर रावण के अहंकार को भस्म कर देगी।"
*यह वचन ही आगे चलकर लंकादहन के रूप में साकार हुआ। त्रेतायुग आया। भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया और शिव ने हनुमान के रूप में। माता पार्वती भी हनुमान की पूंछ के रूप में उनके साथ थीं, अपने प्रतिशोध की प्रतीक्षा में।
*जब हनुमानजी सीता माता की खोज में लंका पहुंचे, तो उन्होंने रावण के दरबार में उपस्थित होकर उसका अहंकार चूर-चूर कर दिया। उन्होंने अशोक वाटिका उजाड़ दी, अक्षय कुमार सहित अनेक राक्षसों का वध किया। अंततः रावण के पुत्र मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर हनुमानजी को बांध लिया और रावण के सामने पेश किया।
*रावण ने हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया। यहां, शिव-पार्वती का वचन स्मरण हो आता है। हनुमानजी (शिव) ने अपनी पूंछ (पार्वती) को लंका में आग लगाने के लिए ही बढ़ाया। जब राक्षसों ने उनकी पूंछ में आग लगा दी, तो हनुमानजी ने उसी जलती पूंछ से पूरी लंका नगरी में आग लगा दी।
*वह स्वर्ण महल, जिसे रावण ने छल से प्राप्त किया था और जिसके लिए उसने माता पार्वती का अपमान किया था, वही महल इस अग्नि में जलकर राख हो गया। इस प्रकार, माता पार्वती के क्रोध ने रावण के अहंकार को भस्म कर दिया। यह घटना केवल एक युद्ध-कौशल नहीं, बल्कि एक दैवीय प्रतिज्ञा की पूर्ति थी। लंकादहन, इस दृष्टिकोण से, रावण द्वारा किए गए दुर्व्यवहार का दैवीय प्रतिफल था।
*इस प्रकार रामकथा का यह प्रसंग हमें सिखाता है कि देवी-देवताओं की भक्ति का अनुचित लाभ उठाना और अहंकार में उनका अपमान करना विनाश को आमंत्रित करता है। हनुमानजी के माध्यम से शिव-पार्वती ने धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश का यह कार्य पूर्ण किया।श
"निष्कर्ष"
*हनुमान अवतार और लंकादहन की यह गूढ़ कथा हमें पौराणिक घटनाओं के गहन आध्यात्मिक और नैतिक पहलुओं से परिचित कराती है। यह केवल एक वीर गाथा नहीं, बल्कि भक्ति के दुरुपयोग, अहंकार के परिणाम और दैवीय प्रतिज्ञा के पालन का प्रसंग है। हनुमानजी का चरित्र इस कथा में और भी विशाल हो जाता है, क्योंकि वे न केवल राम के भक्त हैं, बल्कि शिव-पार्वती की इच्छा के पूर्ण कर्ता भी हैं। ऐसे महान अवतार को बारम्बार प्रणाम।
❓ "ब्लॉग से संबंधित प्रश्नोत्तर"
*01. प्रश्न: क्या हनुमानजी वास्तव में शिव के अवतार हैं?
*उत्तर:हां, यह मान्यता हिंदू धर्म में व्यापक रूप से प्रचलित है। कथा के अनुसार, त्रेतायुग में शिव ने राम की सहायता करने और एक वचन पूरा करने के लिए हनुमान के रूप में अवतार लिया। यह अवतार उनके रुद्र स्वरूप (संहारक और उग्र ऊर्जा) का प्रतीक माना जाता है। हनुमान के बल, तप और रौद्र रूप में शिव के ही गुण दिखाई देते हैं।
*02. प्रश्न: शिव ने पार्वती को क्यों दान में दे दिया था? क्या यह उचित था?
*उत्तर:यह प्रसंग भक्ति के प्रति शिव के परम समर्पण और 'दानधर्म' की महत्ता को दर्शाता है। शिव ने अपने भक्त (रावण) के वचन को पूरा करने के लिए, बिना हिचकिचाहट के सब कुछ दान कर दिया। यहां 'उचित-अनुचित' का दृष्टिकोण सांसारिक नहीं, बल्कि दैवीय प्रतिज्ञा और धर्म के स्तर का है। इसका उद्देश्य शिव के 'भोलेपन' और अपने वचन के प्रति अटल रहने के स्वभाव को प्रदर्शित करना है।
*03. प्रश्न: लंकादहन की मुख्य रामायण कथा और इस पौराणिक कथा में क्या अंतर है?
*उत्तर:मुख्य रामायण कथा (वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस) में लंकादहन का कारण रावण द्वारा हनुमान की पूंछ में आग लगवाना और उसके बाद हनुमान की प्रतिक्रिया बताई गई है। जबकि यह पौराणिक कथा (शिव पुराण से संबंधित) इस घटना के पीछे एक गहन दैवीय कारण बताती है। यहां लंकादहन, रावण द्वारा शिव-पार्वती के अपमान का प्रतिशोध और शिव द्वारा पार्वती को दिए गए वचन की पूर्ति है।
*04. प्रश्न: क्या हनुमानजी ने अन्य अवतार भी लिए हैं?
*उत्तर:हनुमानजी को अमर माना जाता है और विभिन्न युगों में उनके अनेक रूपों या अवतारों की चर्चा मिलती है। इनमें से एक प्रसिद्ध रूप पंचमुखी हनुमान है, जो उन्होंने राम-लक्ष्मण को पाताल लोक से बचाने के लिए धारण किया था। इस रूप के पांच मुख (हनुमान, नरसिंह, गरुड़, वराह और हयग्रीव) पांच दिशाओं की रक्षा का प्रतीक हैं।
*05. प्रश्न: लंका जलाने के बाद हनुमानजी के शरीर की अग्नि की जलन कैसे शांत हुई?
*उत्तर:लोकमान्यताओं के अनुसार, लंकादहन के बाद हनुमान के शरीर में अग्नि की तीव्र जलन हुई। तब भगवान राम ने उन्हें चित्रकूट (हनुमान धारा) जाने का आदेश दिया। मान्यता है कि राम के बाण से वहां एक जलधारा उत्पन्न हुई, जो आज भी हनुमान की प्रतिमा पर गिरती है और उस अग्नि की गर्मी को शांत कर रही है।
*06. प्रश्न: इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
*उत्तर:यह कथा कई गहन शिक्षाएं देती है:
*अहंकार का विनाश: रावण का अहंकार, छल और दुर्व्यवहार उसके विनाश का कारण बना।
*वचन का मूल्य: शिव का भक्त के प्रति वचनबद्धता और फिर पार्वती को दिया गया वचन, दोनों ही पूरे हुए।
*दैवीय न्याय: अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना एक दैवीय योजना का हिस्सा हो सकती है।
*भक्ति का शुद्ध रूप: शिव ने भक्ति के नाम पर छल का प्रतिफल नहीं दिया, बल्कि अंततः उसके दुरुपयोग का न्यायोचित दंड दिया।
🔍 "कथा के कुछ अनसुलझे पहलू एवं विचार"
यह रोचक कथा कुछ ऐसे प्रश्न भी छोड़ जाती है जिनके उत्तर तर्क या शास्त्र से परे, आस्था के क्षेत्र में आते हैं:
*01. शिव का 'भोलापन' बनाम दूरदर्शिता: यह प्रश्न सर्वाधिक गहन है। शिव, सर्वज्ञ होते हुए भी, क्या वास्तव में रावण की चाल नहीं समझ पाए? या फिर यह सब एक विस्तृत दैवीय लीला का हिस्सा था, जिसमें रावण को उसकी मुक्ति के लिए एक कारण प्रदान करना और स्वयं हनुमान के रूप में अवतरित होकर राम-सीता की लीला को पूर्णता देना निहित था? कई विद्वान इसे शिव की 'लीला' मानते हैं, जहां वे जानबूझकर 'भोले' बने ताकि एक बड़ा धार्मिक उद्देश्य पूरा हो सके।
*02. विभिन्न पुराणों में कथा का स्वरूप: यह कथा मुख्यतः शिव पुराण एवं अन्य उप पुराणों से जुड़ी है। प्रमुख रामायण ग्रंथों (वाल्मीकि, तुलसीदास) में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या यह घटना रामकथा के समानांतर चलने वाली एक स्वतंत्र दैवीय प्रतिज्ञा की कथा है, या फिर समय के साथ रामायण की मुख्यधारा में जुड़ गई एक लोककथा? पौराणिक साहित्य में ऐसे अनेक स्थल हैं जहाँ अलग-अलग ग्रंथ अलग-अलग प्रसंग बताते हैं।
*03. माता पार्वती का 'पूंछ' के रूप में अवतार: यह अवधारणा रहस्यमय और प्रतीकात्मक है। क्या इसे शाब्दिक अर्थ में लिया जाए, या प्रतीक के रूप में? संभवतः यह दर्शाता है कि शिव का यह अवतार (हनुमान) केवल उनकी ही नहीं, बल्कि शिव-शक्ति (पार्वती) की संयुक्त इच्छा और ऊर्जा से प्रकट हुआ था। पूंछ, जो आग का स्रोत बनी, वह पार्वती के क्रोध और न्याय की शक्ति का प्रतीक हो सकती है।
*04. रावण का भक्ति का दुरुपयोग: क्या रावण की शिव भक्ति वास्तविक थी या फिर उसने केवल महल और पार्वती को पाने के लिए भक्ति का वेश धारण किया था? शास्त्रों में रावण को एक महान शिवभक्त बताया गया है, किंतु इस प्रसंग में उसकी भक्ति का उपयोग लोभ और अहंकार की पूर्ति के लिए हुआ। यह एक नैतिक दुविधा पैदा करता है कि भक्ति यदि निःस्वार्थ न हो तो उसका परिणाम विपरीत भी हो सकता हैइन पहलुओं के कोई एक सर्वमान्य उत्तर नहीं हैं। ये भक्त और साधक को कथा के गूढ़ अर्थों पर चिंतन करने, आस्था के साथ-साथ जिज्ञासा रखने और इन प्रतीकों से नैतिक शिक्षा ग्रहण करने का अवसर देते हैं।
"डिस्क्लेमर"
*यह ब्लॉग शिव पुराण एवं अन्य पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथाओं, मान्यताओं और लोक परंपराओं पर आधारित है। यहां प्रस्तुत सामग्री का उद्देश्य पाठकों तक हिंदू धर्म के रोचक एवं गूढ़ पहलुओं को पहुंचाना मात्र है।
*01. वैकल्पिक दृष्टिकोण: पौराणिक कथाओं के अनेक संस्करण और मत प्रचलित हैं। लंकादहन के संबंध में वाल्मीकि रामायण आदि में वर्णित प्रसंग प्रमुख है। यहां प्रस्तुत कथा उसका एक वैकल्पिक और रोचक पहलू है, जो शिव-पार्वती के संदर्भ में प्रचलित है।
*02. धार्मिक विश्वास: इस ब्लॉग की सामग्री को किसी भी व्यक्ति के धार्मिक विश्वासों को चोट पहुंचाने या उनसे ऊपर रखने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। सभी की आस्था का सम्मान किया जाता है।
*03. ऐतिहासिकता: पौराणिक कथाएं धार्मिक आस्था, दर्शन और नैतिक शिक्षा का विषय हैं। इन्हें ऐतिहासिक तथ्यों के समकक्ष नहीं रखा जाना चाहिए।
*04. साहित्यिक प्रस्तुति: ब्लॉग को पठनीय और रोचक बनाने के लिए कथा को विस्तार एवं साहित्यिक शैली में प्रस्तुत किया गया है। मूल ग्रंथों के शब्दशः अर्थ से भिन्नता हो सकती है।
*05. सलाह: कोई भी धार्मिक या आध्यात्मिक निर्णय लेनेक से पहले योग्य गुरु, विद्वान या मूल ग्रंथों का ही सहारा लेना उचित है।
*06. दायित्व: ब्लॉग लेखक या प्रकाशक इस सामग्री के पाठकों द्वारा किए गए किसी भी निर्णय या विवाद के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
*आशा है कि यह ब्लॉग आपके ज्ञान और चिंतन को विस्तार देने में सहायक रहेगा। हरि ओम् तत् सत्।

