मकर संक्रांति 2026: उत्तरायण का पावन पर्व, महत्व, कथाएं और संपूर्ण पूजा विधि

"14 जनवरी 2026, बुधवार को मनाई जाने वाली मकर संक्रांति की सम्पूर्ण जानकारी। जानें पौराणिक कथा, पूजा विधि, क्या करें-क्या न करें, शुभ मुहूर्त और देशभर में मनाने के तरीके"

A picture of devotees gathered on the riverbank on the occasion of Makar Sankranti.

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"मकर संक्रांति 2026: परिचय और खगोलीय महत्व"

*14 जनवरी 2026, बुधवार का दिन भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहार मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे खगोलीय भाषा में मकर संक्रांति कहा जाता है। इस वर्ष यह संयोग दिन के 03:13 बजे होगा। 

"सूर्योदय सुबह 06:26 बजे होगा और इस समय तक धनु राशि लगभग 99.6% समाप्त हो चुकी होगी। यह दिन सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर अग्रसर होने का प्रतीक है, जिसे आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ और मोक्ष दायी माना गया है। इस दिन पुण्यकाल में किए गए स्नान, दान, जप-तप और पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है।

"मकर संक्रांति की विस्तृत पौराणिक कथा"

*मकर संक्रांति केवल एक खगोलीय घटना या फसल पर्व नहीं, बल्कि सनातन धर्म ग्रंथों में वर्णित कई गहन आध्यात्मिक और पौराणिक घटनाओं का साक्षी है। इस दिन की महिमा को समझने के लिए तीन प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं, जो इस पर्व के महत्व को बहुआयामी बनाती हैं।

*01. भगवान विष्णु द्वारा असुरों का अंत:

प्राचीन काल में दो शक्तिशाली असुर भाइयों, हयग्रीव और हिरण्यकश्यप, ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया। इस वरदान के बल पर उन्होंने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। देवतागण उनके अत्याचारों से व्याकुल होकर भगवान विष्णु की शरण में गए। भगवान विष्णु ने असुरों का वध करने की योजना बनाई। मकर संक्रांति के दिन, भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया और असुर हयग्रीव का वध किया। कुछ अन्य पुराणों के अनुसार, इसी दिन भगवान ने असुरों के सिरों को मंदराचल पर्वत के नीचे दबा दिया था। यह दिन दैत्यों पर देवताओं की विजय, धर्म पर अधर्म की जीत और प्रकाश पर अंधकार की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा। इसीलिए इस दिन सूर्य (प्रकाश के देवता) की उपासना का विशेष विधान है।

*02. राजा भागीरथ का तप और गंगा का धरती पर अवतरण:

सूर्य वंशी राजा सगर के साठ हज़ार पुत्रों ने अपने पिता के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की खोज करते हुए, ऋषि कपिल के क्रोध का शिकार होकर भस्म हो गए। उनकी आत्माएं मुक्त नहीं हो पा रही थीं। 

*राजा सगर के वंशज राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आने को तैयार हुईं, लेकिन उनके वेग को संभालने के लिए भगवान शिव की आवश्यकता थी। 

*भागीरथ ने फिर शिव की आराधना की और शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया। फिर धीरे-धीरे गंगा धरती पर अवतरित हुईं और भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर, समुद्र तक पहुंचते हुए, सगर पुत्रों की राख को स्पर्श कर उन्हें मोक्ष प्रदान किया। 

*मान्यता है कि गंगा का धरती पर अवतरण मकर संक्रांति के दिन ही हुआ था। इसीलिए इस दिन गंगा सागर जैसे तीर्थों पर स्नान का अतुलनीय महत्व है और इसे "गंगा अवतरण दिवस" भी कहा जाता है।

*03. महाभारत काल और पितामह भीष्म का स्वेच्छित देह त्याग:

*महाभारत के युद्ध में बाणों की शय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। वे अपने शरीर का त्याग तब तक नहीं करना चाहते थे, जब तक सूर्य दक्षिणायन में रहे। उनका मानना था कि उत्तरायण के दौरान शरीर छोड़ने वाले की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि इस काल में देवयान मार्ग खुला होता है। 

*सूर्य के उत्तरायण होते ही, मकर संक्रांति के पावन दिन पर, भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग किया और ब्रह्मलीन हो गए। इस घटना ने उत्तरायण के आध्यात्मिक महत्व को और पुष्ट किया। तब से यह मान्यता प्रबल हुई कि इस काल में मृत्यु प्राप्त करना या पुण्य कर्म करना अत्यंत फलदायी होता है।

*इन तीनों कथाओं का सार यह है कि मकर संक्रांति विजय, मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति का पर्व है। यह हमें बुराइयों पर अच्छाई की जीत, पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सही समय पर सही निर्णय लेने की प्रेरणा देता है।

"मकर संक्रांति के दिन क्या खाएं और क्या न खाएं" 

*क्या खाएं:

*मकर संक्रांति के दिन सात्विक, गर्म और पौष्टिक खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि यह शीत ऋतु का समय होता है।

*तिल और गुड़: काले तिल और गुड़ से बने लड्डू, चिक्की, रेवड़ी या तिल-गुड़ का प्रसाद अवश्य खाएं। तिल में कैल्शियम, आयरन और स्वस्थ वसा प्रचुर मात्रा में होता है, जो शरीर को गर्मी देता है।

*खिचड़ी: उत्तर भारत में दाल-चावल की खिचड़ी बनाने और खिलाने की परंपरा है। यह हल्की, सुपाच्य और संपूर्ण आहार होती है।

*सब्जियां: पालक, मेथी, गाजर, मूली जैसी सीजनल सब्जियों का सेवन करें।

*दही-चूड़ा (चिवड़ा): बिहार-झारखंड क्षेत्र में दही और चूड़ा (पोहा/चावल के लावा) खाने का विशेष चलन है। दही शरीर के लिए प्रोबायोटिक्स का काम करता है।

*दाल-चावल की पूड़ी-पकौड़ी: कई क्षेत्रों में उड़द की दाल और चावल के आटे से बनी पूड़ी या पकौड़ी बनाई जाती है।

"क्या न खाएं":

*तामसिक भोजन: लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि तामसिक पदार्थों का सेवन इस पवित्र दिन पर वर्जित माना गया है।

*बासी या अशुद्ध भोजन: ताज़ा और सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।

*अधिक मिर्च-मसाले वाला भोजन: संतुलित और सादा भोजन करें।

*किसी का अपमान करके या छल से प्राप्त भोजन: इस दिन दान देना और साझा करना शुभ है, लेहन कभी भी अनैतिक तरीके से प्राप्त भोजन न करें।

"मकर संक्रांति के दिन क्या करें और क्या न करें" 

*क्या करें (Do's):

*01. पवित्र स्नान: सुबह जल्दी उठकर गंगा, यमुना या किसी नदी/सरोवर में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर पर ही पानी में तिल डालकर स्नान करें।

*02. दान-पुण्य: तिल, गुड़, कंबल, अनाज, गर्म वस्त्र और दक्षिणा सहित धन का दान गरीबों और ब्राह्मणों को करें। "तिल-गुड़ खाओ, बात मीठी बोलो" का पालन करें।

*03. सूर्य उपासना: सूर्योदय के समय जल अर्पित करते हुए सूर्यदेव की आराधना करें। "ॐ घृणि सूर्याय नमः" मंत्र का जाप करें।

*04. पितरों का तर्पण: अपने पूर्वजों के निमित्त जल, तिल और फूल अर्पित करें।

*05. पारिवारिक सद्भाव: परिवार और समाज में मिठाई और तिल-गुड़ बांटकर प्रेम और एकता बढ़ाएं।

*क्या न करें (Don'ts):

*01. बुरा बोलना या सोचना: इस दिन क्रोध, ईर्ष्या या बुरे विचार न लाएं।

*02. शुभ कार्य में देरी: पुण्यकाल (सूर्योदय से दोपहर तक) में ही मुख्य कार्य संपन्न कर लें।

*03. दान में कंजूसी: दान देते समय किसी प्रकार की लालच या कमी की भावना न रखें।

*04. अन्न का अपमान: भोजन की बर्बादी न करें। जो बने, उसे प्रसाद रूप में वितरित करें।

*05. नकारात्मक गतिविधियां: झूठ, छल, कपट या किसी प्रकार का अनैतिक कार्य इस दिन न करें।

"मकर संक्रांति से संबंधित प्रश्न और उत्तर" 

प्रश्न *01: मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को ही क्यों मनाई जाती है? कभी-कभी तिथि बदल क्यों जाती है?

उत्तर:मकर संक्रांति एक सौर त्योहार है, जो सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है, चंद्र मास या तिथि पर नहीं। सूर्य प्रति वर्ष लगभग 21-22 दिसंबर को मकर रेखा पर लंबवत चमकता है (दक्षिणायन का अंत), लेकिन पृथ्वी की गति में आने वाले अंतर (Leap Year) के कारण, सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 14-15 जनवरी के आसपास होता है। इसीलिए यह तिथि स्थिर रहती है। दुर्लभ खगोलीय संयोगों में यह एक दिन आगे-पीछे भी हो सकती है।

प्रश्न *02: क्या मकर संक्रांति और पोंगल एक ही त्योहार हैं?

उत्तर:मूल अवधारणा में दोनों एक ही खगोलीय घटना (सूर्य का उत्तरायण) पर आधारित हैं, लेकिन मकर संक्रांति एक व्यापक हिंदू धार्मिक पर्व है, जबकि पोंगल तमिलनाडु का प्रमुख फसल उत्सव है। पोंगल चार दिनों तक चलता है और इसमें गाय-बैल की पूजा, नई फसल के चावल से खीर बनाना (पोंगल) जैसी विशेष परंपराएं हैं।

प्रश्न *03: मकर संक्रांति पर स्नान का इतना महत्व क्यों है?

उत्तर:पौराणिक मान्यता है कि इस दिन सभी तीर्थों का निवास पवित्र नदियों में होता है। गंगा अवतरण भी इसी दिन हुआ था। अतः इस दिन नदी में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन और स्नान का पुण्य एक साथ मिल जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से, शीतकाल में ठंडे पानी से स्नान करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर स्फूर्तिवान बनता है।

प्रश्न *04: उत्तरायण और दक्षिणायन में क्या अंतर है?

उत्तर:उत्तरायण वह छह-मासीय काल है जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ता है (मकर से कर्क राशि तक)। इसे देवताओं का दिन माना जाता है, जो शुभ, प्रकाश और उन्नति का प्रतीक है। दक्षिणायन वह काल है जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध की ओर बढ़ता है (कर्क से मकर राशि तक)। इसे देवताओं की रात्रि माना जाता है। मकर संक्रांति उत्तरायण की शुरुआत है।

प्रश्न *05: घर पर अगर नदी स्नान संभव न हो तो क्या करें?

उत्तर:घर पर ही सुबह स्नान करते समय पानी में काले तिल डालकर स्नान करें। इसके बाद सूर्य को जल अर्पित करें, दान करें और पूजा-पाठ करें। आपके श्रद्धा और नियम का समान महत्व है।

"मकर संक्रांति के अचूक टोटके" 

*मकर संक्रांति के दिन कुछ सरल और शुभ टोटके करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि आती है। ये टोटके शास्त्रों और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं।

*01. धन प्राप्ति का टोटका: सुबह स्नान के बाद, लाल कपड़े में साबुत काले तिल, थोड़ा सा गुड़ और एक सुपारी बांधकर अपनी तिजोरी या लॉकर में रख दें। मान्यता है कि इससे घर में धन की कभी कमी नहीं होती।

*02. कर्ज से मुक्ति: अपने सिर से लेकर पैर तक काले तिल छुआते हुए जल में प्रवाहित कर दें। ऐसा करते समय मन ही मन यह प्रार्थना करें कि आपके सारे कर्ज और दोष इस जल के साथ बह जाएं।

*03. सौहार्द बढ़ाने का उपाय: इस दिन तिल और गुड़ का प्रसाद अपने परिवार, पड़ोसियों और शत्रुता रखने वाले व्यक्ति को भी दें और मीठा बोलें। इससे रिश्तों में मधुरता आती है।

*04. नौकरी/व्यवसाय में सफलता: व्यवसायियों को इस दिन अपने बही-खाते या कैश बॉक्स के पास हल्दी और केसर से स्वस्तिक बनाना चाहिए। कर्मचारियों को अपने कार्यस्थल की मेज पर तिल-गुड़ रखकर साझा करना चाहिए।

*05. वैवाहिक जीवन सुधार: नवविवाहित जोड़ों को चाहिए कि वे इस दिन मिलकर सूर्य को जल चढ़ाएं और तिल के तेल का दीपक गाय के घी में मिलाकर जलाएं। इससे पारिवारिक सुख-शांति बनी रहती है।

*सभी टोटके श्रद्धा और सकारात्मक विश्वास के साथ करने चाहिए।

"मकर संक्रांति में किस भगवान के किस रूप की होती है पूजा"? 

*मकर संक्रांति के दिन मुख्य रूप से सूर्य देवता की पूजा का विधान है। चूंकि यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है, अतः सूर्य को इसका केंद्रीय देवता माना गया है। सूर्य को जगत की आत्मा, प्रकाश, ऊर्जा और स्वास्थ्य के दाता के रूप में पूजा जाता है। इस दिन सूर्य को अर्घ्य देना सर्वाधिक महत्वपूर्ण कर्म है।

*इसके अतिरिक्त, इस दिन मां गंगा की पूजा-आराधना भी की जाती है, क्योंकि इसी दिन उनका धरती पर अवतरण हुआ था। गंगा स्नान और गंगा जल का पूजन विशेष फलदायी माना गया है।

*कुछ क्षेत्रों में विष्णु भगवान के मत्स्य अवतार की भी पूजा की जाती है, जिन्होंने इसी दिन असुरों का वध किया था। साथ ही, कृषि प्रधान क्षेत्रों में धरती माता (भूदेवी) और बैलों की पूजा भी की जाती है, क्योंकि यह फसल कटाई का समय होता है।

"मकर संक्रांति देश-विदेश में कहां-कहां मनाई जाती है"? 

*मकर संक्रांति केवल भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के कई देशों में अलग-अलग नामों और रीति-रिवाजों से मनाई जाती है, जो इसकी सांस्कृतिक विविधता और गहराई को दर्शाता है।

"भारत में":

*01. उत्तर भारत (उ.प्र., बिहार, झारखंड): "मकर संक्रांति" या "खिचड़ी पर्व" के नाम से। गंगा-यमुना के तटों पर विशाल मेले लगते हैं। दही-चूड़ा और तिलकुट खाने की परंपरा है।

*02. पंजाब: "माघी" के नाम से। लोहड़ी के अगले दिन, लोग नदियों में स्नान करते हैं और कराह प्रसाद (तिल-गुड़ से बना) वितरित करते हैं। भांगड़ा-गिद्दा का आयोजन होता है।

*03. गुजरात और राजस्थान: "उत्तरायण" कहलाता है। पतंगबाजी का यह सबसे बड़ा त्योहार है। आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। तिल-गुड़ के लड्डू और उंधियु (मिश्रित सब्जी) खाई जाती है।

*04. महाराष्ट्र: यहांं तिल-गुड़ के लड्डू बांटे जाते हैं और "तिल गुड़ घ्या आणि गोड-गोड बोला" (तिल-गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो) कहने की परंपरा है। नवविवाहिताएं पहली संक्रांति पर हल्दी-कुमकुम का कार्यक्रम करती हैं।

*05. तमिलनाडु: "पोंगल" नाम से चार दिनों का यह फसल उत्सव मनाया जाता है। नई फसल के चावल और दूध से 'पोंगल' नामक खीर बनाकर सूर्य देव को चढ़ाई जाती है। गाय-बैलों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है।

*06. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना: "पेद्दा पंडुगा" (बड़ा त्योहार) या संक्रांति। तीन दिनों तक मनाया जाता है। हरिवल्लु (पशु पूजन) और भोगी (पुराने सामान जलाने) की परंपरा है।

*07. असम: "भोगाली बिहू" या 'माघ बिहू'। यह आनंद और भोज का बिहू है। रात्रि में युवा मेजी (अलाव) जलाते हैं, सामूहिक भोज करते हैं और बिहू नृत्य गाते हैं।

*08. केरल: "मकर विलक्कू" नाम से। सबरीमला मंदिर में मकर ज्योति दर्शन का विशेष महत्व है।

*भारत के बाहर:

*01. नेपाल: "माघे संक्रांति" या "ठेरो" के नाम से। यहां भी पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। तिल की बनी मिठाइयां जैसे तिलकोठ और तिलुवा खाई जाती हैं।

*02. बांग्लादेश: "पौष संक्रांति" या "माघी"। गंगासागर मेला (भारत के पश्चिम बंगाल में) बांग्लादेश से आए लाखों श्रद्धालुओं को भी आकर्षित करता है।

*03. श्रीलंका: तमिल समुदाय द्वारा "पोंगल" उत्साह के साथ मनाया जाता है।

*04. थाईलैंड: "सोंगक्रान" नाम से अप्रैल में मनाया जाने वाला यह जल उत्सव मकर संक्रांति से प्रेरित है, हालांकि तिथि भिन्न है। इसमें पानी से खेलना और बुद्ध की मूर्तियों को स्नान कराना शामिल है।

*05. म्यांमार: "थिंग्यान" त्योहार भी अप्रैल में मनाया जाता है और जल उत्सव का हिस्सा है।

*06. कंबोडिया और लाओस: "मोहा संगक्रान" नए साल के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

*इस प्रकार, मकर संक्रांति एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक पर्व है जो कृषि, खगोल और आध्यात्मिकता के मेल का प्रतीक है।

"मकर संक्रांति के दिन किस पर सोना चाहिए"? 

*मकर संक्रांति सूर्य संक्रांति है, जो हर महीने नहीं, साल में एक बार आती है। यदि कभी ऐसा दुर्लभ संयोग बने, तो उस दिन के व्रत और नियम अत्यंत कठोर और विशिष्ट होंगे, जिसका निर्धारण वैदिक ज्योतिषी कर सकते हैं।

*सामान्यतः, मकर संक्रांति के दिन सोने के संदर्भ में कोई विशेष नियम नहीं है। हां, यह एक उत्सव और पुण्यकर्म का दिन है, इसलिए देर रात तक जागरण या अशुभ गतिविधियों में शामिल होने से बचना चाहिए।

"मकर संक्रांति की संपूर्ण पूजा विधि" (स्टेप बाय स्टेप) 

*मकर संक्रांति की पूजा सूर्योदय के समय शुरू करनी चाहिए। यहां सरल और पूर्ण पूजा विधि बताई जा रही है:

*सामग्री: गंगाजल या शुद्ध जल, लाल फूल, अक्षत (चावल), रोली, तिल, गुड़, दीपक, घी, कपूर, लाल कपड़ा, सूर्य यंत्र या तांबे का लोटा, नैवेद्य (तिल-गुड़ के लड्डू या खिचड़ी)।

"विधि"

स्टेप *01: स्नान और शुद्धि

*सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर, काले तिल को पानी में मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

स्टेप *02: पूजा स्थल की तैयारी

*घर के मंदिर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। लाल कपड़ा बिछाएं।

*सूर्य यंत्र या तांबे के लोटे (जिसमें जल, लाल चंदन, लाल फूल, अक्षत और तिल डालें) को उस पर स्थापित करें।

स्टेप *03: संकल्प

*जल, फूल और अक्षत हाथ में लेकर संकल्प लें: "मम उपस्थित... (अपना नाम, गोत्र बोलें)... द्वारा शुभ मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर सूर्य देवता की पूजा-अर्चना एवं दान कर्म का यह शुभ संकल्प किया जाता है।"

स्टेप *04: सूर्यदेव को अर्घ्य

*तांबे के लोटे में लाल चंदन, लाल फूल, तिल और अक्षत डालकर जल भरें।

*घर की छत, आंगन या किसी खुले स्थान पर सूर्य की ओर मुख करके खड़े हों।

*दोनों हाथों से लोटा पकड़कर, सूर्यदेव को धीरे-धीरे जल चढ़ाएं। जल धारा टूटनी नहीं चाहिए।

*अर्घ्य देते समय इस मंत्र का जाप करें: "ॐ घृणि सूर्याय नमः" या "ॐ सूर्याय नमः"।

स्टेप *05: पूजन

*पूजा स्थल पर लौटकर, सूर्य यंत्र या लोटे को रोली-चावल से तिलक लगाएं।

*फूल अर्पित करें।

*घी का दीपक जलाएं।

*कपूर से आरती करें।

*स्टेप 6: मंत्र जाप

*सूर्य के बीज मंत्र "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः" का 108 या 11 बार जाप करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ भी अत्यंत शुभ माना जाता है।

स्टेप *07: नैवेद्य अर्पण और आरती

* तिल-गुड़ के लड्डू, खिचड़ी या मिठाई को प्रसाद के रूप में सूर्यदेव को अर्पित करें।

*फिर सूर्यदेव की आरती करें। (या जय जय जय रवि भास्कर... आरती गाएं)

स्टेप *08: दान और प्रसाद वितरण

*पूजा के बाद, तिल, गुड़, अनाज, कंबल, वस्त्र आदि का दान निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को करें।

*घर में बना प्रसाद सभी परिवारजनों और पड़ोसियों में बांटें।

*इस दिन पितरों को तर्पण (जल, तिल, कुशा अर्पित करना) भी करें।

स्टेप *09: भोजन

*स्वयं सात्विक और शाकाहारी भोजन (खिचड़ी, तिल-गुड़ आदि) ग्रहण करें।

*शुभ मुहूर्त और दिन का फल 

*मकर संक्रांति 2026 शुभ मुहूर्त:

*तिथि: 14 जनवरी 2026, बुधवार

*संक्रांति क्षण: सुबह 03:13 बजे

*सूर्योदय: सुबह 06:26 बजे

*पुण्यकाल: सूर्योदय से लेकर दोपहर तक (लगभग 06:26 बजे से 12:00 बजे तक)। यह समय स्नान, दान और पूजा के लिए सर्वोत्तम है।

*महा पुण्यकाल: संक्रांति क्षण के आसपास का समय (लगभग 02:38 से 05:21 बजे) अत्यंत शुभ माना जाता है।

"दिन कैसा रहेगा"?

*बुधवार का दिन बुध ग्रह से प्रभावित होता है, जो बुद्धि, संचार और वाणी का कारक है। 14 जनवरी 2026 का बुधवार मकर संक्रांति के साथ युक्त होने से अत्यंत शुभ फलदायी प्रतीत हो रहा है।

*सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन: यह दिन पारिवारिक सद्भाव, नए रिश्तों और मित्रता को बढ़ावा देगा। पुराने मतभेद दूर होंगे।

*आर्थिक पक्ष: व्यवसाय और नौकरी में स्थिरता आएगी। नए अनुबंध या सौदे फायदेमंद साबित हो सकते हैं। दान देने से आर्थिक सुरक्षा बढ़ेगी।

*शैक्षणिक एवं बौद्धिक क्षेत्र: छात्रों के लिए यह दिन अनुकूल है। नई योजनाएं बनाने और ज्ञानार्जन का शुभ समय है।

*स्वास्थ्य: सूर्य उपासना और तिल-गुड़ के सेवन से शारीरिक ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी।

*सावधानी: बुधवार होने के कारण, बोलचाल में संयम बरतें। जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें।

*कुल मिलाकर, यह दिन सकारात्मकता, उन्नति और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने वाला रहेगा।

"मकर संक्रांति पर तिल-गुड़, चूड़ा-दही खाने का वैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आधार" 

*मकर संक्रांति पर विशेष खाद्य पदार्थों का सेवन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक समझ, सामाजिक सद्भाव और आध्यात्मिक चिंतन का अद्भुत समन्वय है। आइए प्रत्येक पहलू को विस्तार से समझते हैं।

"वैज्ञानिक आधार "(Scientific Basis):

·* ऋतु और शरीर विज्ञान: मकर संक्रांति शीत ऋतु के चरम पर होती है। इस समय वातावरण में ठंडक और आर्द्रता अधिक होती है, जिससे शरीर का मेटाबॉलिज्म धीमा पड़ सकता है और जोड़ों में दर्द, त्वचा रूखी होना जैसी समस्याएं होती हैं।

*तिल (Sesame): तिल एक 'वात-शामक' आहार है। इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, फाइबर और स्वस्थ वसा (सेसमिन) होता है। ये सभी तत्व शरीर को अंदर से गर्मी प्रदान करते हैं, हड्डियों को मजबूत करते हैं, त्वचा को नमी देते हैं और पाचन क्रिया को दुरुस्त रखते हैं। काले तिल में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण अधिक होते हैं।

@*गुड़ (Jaggery): गुड़ आयरन का अच्छा स्रोत है और रक्त शुद्ध करता है। यह शरीर में गर्मी पैदा करता है और सर्दी-खांसी से बचाता है। चीनी के विपरीत, यह धीरे-धीरे पचता है, जिससे ऊर्जा स्थिर रहती है।

*तिल + गुड़: यह संयोजन एक पूर्ण 'विंटर सुपरफूड' है। गुड़, तिल में मौजूद आयरन के अवशोषण में सहायक होता है। साथ ही, यह शरीर को तुरंत और स्थायी ऊर्जा प्रदान करता है।

*दही-चूड़ा (Curd with Flattened Rice): दही में प्रोबायोटिक्स होते हैं जो सर्दी में धीमी पड़ने वाली पाचन क्रिया को मजबूत करते हैं। चूड़ा (पोहा/चिवड़ा) हल्का और सुपाच्य होता है। यह संयोजन शरीर को ऊर्जा देते हुए पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है।

*खिचड़ी (Khichdi): दाल और चावल का संयोजन एक 'कॉम्प्लीट प्रोटीन' प्रदान करता है। यह पौष्टिक होने के साथ-साथ आसानी से पच जाती है, जिससे शरीर का ऊर्जा पाचन क्रिया में व्यर्थ नहीं जाती और ठंड से लड़ने के लिए मिलती है। इसमें घी डालने से शरीर को और गर्मी मिलती है।

"सामाजिक आधार" (Social Basis):

*समानता और साझेदारी का संदेश: इस दिन अमीर-गरीब सभी एक ही प्रकार का सरल भोजन (तिल-गुड़, खिचड़ी) बनाते और खाते हैं। यह सामाजिक विषमता को कम करने का एक सूक्ष्म प्रयास है। जब सब एक जैसा खाएंगे, तो भेदभाव की भावना कम होगी।

*सामुदायिक भावना का विकास: पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच तिल-गुड़ और प्रसाद बांटने की प्रथा लोगों को एक-दूसरे के करीब लाती है। यह सामाजिक एकजुटता को मजबूत करता है।

*कृषक समुदाय का सम्मान: यह फसल कटाई का समय है। नई फसल के अन्न से बने पकवानों को समाज के सभी वर्गों में बांटना, किसानों के परिश्रम का सामूहिक रूप से आदर करना है। गुड़ (गन्ने से) और तिल दोनों ही किसानों द्वारा उगाई जाने वाली फसलें हैं।

 *दान की संस्कृति: इस दिन गरीबों को अन्न और वस्त्र दान देने की परंपरा सामाजिक सुरक्षा के एक अनौपचारिक तंत्र का काम करती है। यह सुनिश्चित करती है कि समाज का हर सदस्य ठंड के मौसम में कम से कम एक दिन पौष्टिक भोजन और गर्म कपड़ा प्राप्त करे।

"आध्यात्मिक आधार" (Spiritual Basis):

*तिल का महत्व: हिंदू धर्म में तिल को पवित्र और पापनाशक माना गया है। मान्यता है कि तिल में लक्ष्मी जी का वास होता है और यह यम देवता को प्रिय है। श्राद्ध और तर्पण में तिल का उपयोग होता है, जो पितरों को तृप्त करता है। मकर संक्रांति पर तिल खाने और दान करने से पापों का नाश और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

*गुड़ का महत्व: गुड़ की मिठास मधुर वाणी और मीठे व्यवहार का प्रतीक है। इस दिन "मीठा बोलो" का नियम इसीसे जुड़ा है। आध्यात्मिक रूप से, मीठा बोलना मन की शुद्धि की ओर पहला कदम है।

*तिल-गुड़ का संगम: तिल काले (अंधकार, अज्ञान का प्रतीक) और गुड़ सफेद/भूरा (प्रकाश, ज्ञान का प्रतीक) होता है। दोनों को मिलाकर खाना अज्ञान के ऊपर ज्ञान की विजय, अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीकात्मक कार्य है। यह सूर्य के उत्तरायण होने के दर्शन को दैनिक आहार में उतारना है।

*अग्नि तत्व की प्राप्ति: सूर्य अग्नि तत्व के देवता हैं। तिल और गुड़ दोनों ही शरीर में अग्नि (पाचन अग्नि और उष्णता) बढ़ाते हैं। इनका सेवन सूर्य की किरणों के गुणों को आत्मसात करने जैसा है।

*व्रत और संयम: सात्विक आहार ग्रहण करना मन को नियंत्रित करने और इंद्रियों को वश में करने में सहायक होता है, जो आध्यात्मिक प्रगति का आधार है।

"निष्कर्ष": 

*इस प्रकार, मकर संक्रांति का भोजन केवल पेट भरने के लिए नहीं, बल्कि शरीर को स्वस्थ, समाज को जोड़ने और आत्मा को शुद्ध करने के लिए है। यह हमारे ऋषि-मुनियों की गहन समझ का परिचायक है, जिन्होंने एक साधारण परंपरा में गहन विज्ञान, समाजशास्त्र और दर्शन को समाहित कर दिया।

"मकर संक्रांति के सामाजिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलू" 

*मकर संक्रांति एक ऐसा बहुआयामी त्योहार है जो सामाजिक एकजुटता, वैज्ञानिक चेतना और आध्यात्मिक गहराई को एक सूत्र में पिरोता है।

"सामाजिक पहलू" (Social Aspect):

*समरसता का प्रसार: यह पर्व जाति, धर्म और वर्ग के भेद को भुलाकर सामूहिक उत्सव की भावना को जन्म देता है। सभी एक ही नदी में स्नान करते हैं, एक जैसा भोजन बांटते हैं। दान की परंपरा समाज के कमजोर वर्गों तक संसाधन पहुंचाती है।

*कृषि समाज का केंद्र: यह किसानों का त्योहार है, जो पूरे समाज का पोषण करते हैं। इस दिन उनके श्रम का आदर किया जाता है। गाय-बैलों की पूजा पशुधन के प्रति कृतज्ञता दर्शाती है।

*सांस्कृतिक आदान-प्रदान: देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग रीति-रिवाजों से मनाना सांस्कृतिक विविधता के साथ-साथ एकता को भी दर्शाता है। पतंगबाजी, भांगड़ा, बिहू नृत्य जैसी गतिविधियां सामाजिक मेलजोल बढ़ाती हैं।

2. वैज्ञानिक पहलू (Scientific Aspect):

*खगोलीय सटीकता: यह खगोलीय घटना (सूर्य का मकर राशि में प्रवेश) पर आधारित है, जो पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने की गति पर निर्भर करती है। यह प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान की उन्नत समझ को दर्शाता है।

*ऋतु चक्र का संकेत: उत्तरायण का प्रारंभ ठंड के कम होने और दिन बड़े होने की शुरुआत है। यह किसानों को फसल चक्र की योजना बनाने और सामान्य जन को मौसमी बदलाव के लिए तैयार होने का संकेत देता है।

*आहार विज्ञान: इस दिन खाए जाने वाले विशेष पदार्थ (तिल, गुड़ आदि) का चयन पूर्णतः मौसम और स्वास्थ्य की वैज्ञानिक आवश्यकताओं के अनुरूप है, जैसा कि पिछले खंड में विस्तार से बताया गया है।

*आध्यात्मिक पहलू (Spiritual Aspect):

*प्रकाश की ओर यात्रा: उत्तरायण आध्यात्मिक प्रगति का प्रतीक है। यह अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर, भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर बढ़ने का समय है। मकर संक्रांति इस यात्रा का प्रारंभ बिंदु है।

*मोक्ष का मार्ग: इस काल को देवयान मार्ग खुलना माना जाता है। भीष्म पितामह की कथा इसी महत्व को रेखांकित करती है। इसलिए इस दिन किए गए पुण्य कर्म (स्नान, दान, जप) मोक्ष प्राप्ति में सहायक माने जाते हैं।

*प्रकृति और देवता से जुड़ाव: सूर्य, जो समस्त ऊर्जा का स्रोत है, की उपासना प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का तरीका है। गंगा स्नान प्रकृति के तत्व (जल) को पवित्र मानकर उससे एकात्म स्थापित करना है।

*पुरुषार्थ चतुष्टय का समन्वय: यह पर्व मनुष्य के चारों पुरुषार्थों - धर्म (पूजा-दान), अर्थ (नई फसल, दान), काम (सामाजिक उत्सव, पारिवारिक मेलजोल) और मोक्ष (आध्यात्मिक लाभ) - का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करता है।

*इन तीनों पहलुओं का सम्मिलित रूप ही मकर संक्रांति को केवल एक 'त्योहार' नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन दर्शन बना देता है, जो मनुष्य को स्वस्थ, जुड़ा हुआ और आत्मिक रूप से समृद्ध बनने का मार्ग दिखाता है।

"मकर संक्रांति से संबंधित डिस्क्लेमर"

*डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):

*इस ब्लॉग लेख में प्रस्तुत की गई मकर संक्रांति से संबंधित सभी जानकारियां विभिन्न स्रोतों से एकत्रित की गई हैं, जिनमें हिंदू धर्म ग्रंथ, पौराणिक कथाएं, लोक मान्यताएं, ज्योतिषीय गणनाएं और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री शामिल है। इस लेख का उद्देश्य पाठकों को इस पावन पर्व के बारे में ज्ञानवर्धक और रोचक जानकारी प्रदान करना है।

*01. धार्मिक मान्यताएं: लेख में वर्णित पौराणिक कथाएं, पूजा विधियां, टोटके और मान्यताएं विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और लोक परंपराओं पर आधारित हैं। इनका संबंध व्यक्तिगत आस्था और श्रद्धा से है। इन्हें सार्वभौमिक सत्य या वैज्ञानिक तथ्य नहीं माना जाना चाहिए।

*02. ज्योतिषीय गणना: लेख में दिए गए शुभ मुहूर्त, संक्रांति क्षण आदि की जानकारी सामान्य ज्योतिषीय गणना के आधार पर है। व्यक्तिगत स्तर पर किसी विशेष कार्य के लिए शुभ मुहूर्त निकालने हेतु किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।

*03. स्वास्थ्य संबंधी सलाह: तिल, गुड़ आदि के सेवन से संबंधित वैज्ञानिक आधार सामान्य जानकारी है। यदि आपको कोई विशेष स्वास्थ्य समस्या (जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, एलर्जी आदि) है, तो किसी भी नए आहार को शामिल करने से पहले अपने चिकित्सक या आहार विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें।

*04. व्यक्तिगत विवेक: लेख में दिए गए सुझाव (क्या करें/न करें, टोटके आदि) पूर्णतः सूचनात्मक हैं। इन पर अमल करना या न करना पाठक के व्यक्तिगत विवेक और विश्वास पर निर्भर है। लेखक या प्रकाशक इसके किसी भी परिणाम के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।

*05. सांस्कृतिक भिन्नता: भारत एक विविधतापूर्ण देश है। मकर संक्रांति को मनाने के तरीके क्षेत्रानुसार भिन्न हो सकते हैं। लेख में दी गई जानकारी सामान्य और प्रचलित परंपराओं पर आधारित है, हो सकता है आपके क्षेत्र की कुछ विशिष्ट परंपराएं इसमें शामिल न हों।

*इस लेख का प्राथमिक उद्देश्य सनातन धर्म के इस महत्वपूर्ण पर्व का प्रचार-प्रसार करना और लोगों को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने के लिए प्रेरित करना है। किसी भी प्रकार की धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को आहत करना इसका उद्देश्य नहीं है।

*लेखक/प्रकाशक की ओर से: हम सभी पाठकों को मकर संक्रांति 2026 की हार्दिक शुभकामनाए देते हैं। आपका दिन मंगलमय हो।

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