"दीपावली 2026": पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा, पूजा सामग्री और महत्व
byRanjeet Singh-
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"08 नवंबर 2026 को दीपावली। जानें लक्ष्मी पूजा की संपूर्ण विधि, सटीक शुभ मुहूर्त, पौराणिक कथा, पूजा में क्या करें-क्या न करें, और मासिक धर्म में पूजा से जुड़े सवालों के जवाब। पढ़ें रोचक और ज्ञानवर्धक रंजीत का ब्लॉग"
*दीपावली 2026: प्रकाश, समृद्धि और आध्यात्मिकता का महापर्व
"दीपावली 08 नवंबर 2026: दिन रविवार"
*दीपावली, जिसे दिवाली के नाम से भी जाना जाता है, केवल रोशनी का त्योहार नहीं है, बल्कि यह आंतरिक प्रकाश, नई शुरुआत और समृद्धि का प्रतीक है। यह वह दिन है जब अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय होती है। 2026 में यह पावन पर्व 08 नवंबर, दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस ब्लॉग में हम दीपावली के आध्यात्मिक, पौराणिक और व्यावहारिक सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे
"नीचे दिए गए विषयों के संबंध में विस्तार से समस्त जानकारी पढ़ें रंजीत के ब्लॉग पर"
*दीपावली 8 नवंबर 2026, दिन रविवार को मनाई जाएगी
*दीपावली के पौराणिक कथा
*लक्ष्मी जी को दीपक कैसे जलाएं?
*लक्ष्मी जी को कौन सा फूल चढ़ाया जाता है?
*दिवाली में कौन सा तेल का दीया जलाना चाहिए?
*गोल बत्ती और लंबी बत्ती में क्या फर्क है? दीपावली में कौन सा बत्ती जलाना चाहिए।
*लक्ष्मी पूजा सफल होने के संकेत क्या हैं
*खड़े होकर लक्ष्मी पूजा करने से क्या होता है
*बिना नहाए लक्ष्मी जी की पूजा करने से क्या होता है?
*मासिक धर्म के वक्त लक्ष्मी जी की पूजा करना चाहिए या नहीं।
*पीरियड्स के बारे में भगवान कृष्ण क्या कहते हैं?
*जब पत्नी पीरियड में हो तो क्या पति लक्ष्मी पूजा या मंदिर जा सकता है?
*कलयुग में कौन से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं?
*लक्ष्मी पूजा की संपूर्ण जानकारी स्टेप बाय स्टेप दे
*दीपावली के दिन क्या खाएं और क्या ना खाएं
*दीपावली के दिन क्या करें और क्या न करें
*दीपावली से संबंधित प्रश्न और उत्तर जानें
*दीपावली के कुछ अनसुलझे पहलुओ जानें
*दीपावली के दिन लक्ष्मी मां की किस रूप की पूजा होती है।
*दीपावली के दिन किस समय मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए
*दीपावली पूजा करने के शुभ मुहूर्त की सटीक जानकारी दें
*दीपावली का पूजा महिलाओं करना श्रेष्ठ रहेगा या पुरुषों का
*मां लक्ष्मी की 108 नाम की मिलेगी जानकारी
*कौन से मंत्रों से होगी मां लक्ष्मी ख़ुश
*दीपावली पर जुआ खेलने क्या उचित है
*दीपावली पर पटाखा फोड़ना क्या सही है
"दीपावली की पौराणिक कथा"
*दीपावली का त्योहार कई पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा है, जो इसके महत्व को और भी गहरा बनाते हैं।
*01. भगवान राम की अयोध्या वापसी: सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान राम से जुड़ी है। 14 वर्ष के वनवास के बाद, जब राम, सीता और लक्ष्मण रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में घी के दीप जलाए। पूरी नगरी जगमगा उठी। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या थी। तब से अंधेरी अमावस्या को दीपों के प्रकाश से जगमगा कर दीपावली मनाई जाने लगी। यह अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है।
*02. लक्ष्मी जी का समुद्र मंथन से प्राकट्य: एक अन्य मान्यता के अनुसार, दीपावली के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन लक्ष्मी जी की विशेष पूजा-आराधना की जाती है ताकि वह अपने भक्तों के घरों में निवास करें।
*03. भगवान विष्णु ने बचाया था लक्ष्मी जी को: एक पौराणिक कथा के अनुसार, बलि के अहंकार को चकनाचूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और तीन पग में तीनों लोक नाप लिए। इसी दिन भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी को बलि की कैद से मुक्त कराया था।
*04. महाप्रयाण की रात: जैन धर्म के अनुसार, दीपावली के दिन ही तीर्थंकर महावीर स्वामी को मोक्ष (निर्वाण) की प्राप्ति हुई थी। इसलिए जैन समुदाय के लिए यह दिन अत्यंत पवित्र है।
*05. स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस: आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का इसी दिन निर्वाण हुआ था, इसलिए यह दिन आर्य समाज के लिए भी विशेष है।
*06. पांडवों की वापसी: महाभारत के अनुसार, जुए में हारने के बाद 12 वर्ष के वनवास और 01 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडव इसी दिन हस्तिनापुर लौटे थे, जिसकी खुशी में नगरवासियों ने दीप जलाए थे।
*इन सभी कथाओं का सार एक ही है - प्रकाश, ज्ञान, समृद्धि और अच्छाई की विजय। दीपावली हमें अपने अंदर के अंधेरे को मिटाकर आत्मिक प्रकाश फैलाने की प्रेरणा देती है।
"लक्ष्मी जी को दीपक कैसे जलाएं"?
*लक्ष्मी पूजन में दीपक जलाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां सही विधि बताई जा रही है:
*01. सामग्री: सर्वप्रथम मिट्टी या पीतल का दीपक, सरसों या तिल का तेल, कपास की बत्ती (लंबी बत्ती) और माचिस तैयार करें।
*02. दिशा: दीपक हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। यह दिशाएं ईश्वरीय ऊर्जा के प्रवाह के लिए शुभ मानी जाती हैं।
*03. स्थापना: दीपक को लाल वस्त्र पर या सीधे चौकी पर रखें। दीपक में तेल डालते समय ध्यान रखें कि वह आधे से अधिक भरा हो, परंतु लबालब न हो।
*04. बत्ती: कपास की बत्ती को अंगूठे और तर्जनी के बीच रखकर हल्के से मरोड़ें ताकि वह सीधी और मजबूत बन जाए। इसे दीपक में इस प्रकार रखें कि एक सिरा तेल में डूबा रहे और दूसरा सिरा बाहर निकला हो जलने के लिए।
*05. ज्योति प्रज्वलन: माचिस से दीपक जलाएं। मान्यता है कि माचिस की तीली को दीपक की बत्ती से स्पर्श कराते हुए जलाना चाहिए, न कि सीधे बत्ती पर माचिस से आग लगाना।
*06. मंत्र: दीपक जलाते समय इस मंत्र का उच्चारण करें - "सुख-समृद्धि दे मां, घर में रहो स्थान। दीपक का यह प्रकाश, लाए आपका आशीर्वाद विशेष।"
*07. आरती: दीपक जलाने के बाद लक्ष्मी जी की आरती करें। दीपक को पूजा स्थल पर ही रहने दें और उसे स्वयं बुझने दें। कभी भी फूंक मारकर दीपक न बुझाएं
"लक्ष्मी जी को कौन सा फूल चढ़ाया जाता है"?
*मां लक्ष्मी को सफेद, लाल और गुलाबी रंग के फूल विशेष प्रिय हैं, जो कोमलता और शुद्धता के प्रतीक हैं।
*कमल का फूल: यह लक्ष्मी जी का सबसे प्रिय और प्रमुख फूल है। कमल कीचड़ में खिलकर भी निर्मल रहता है, जो दर्शाता है कि मां लक्ष्मी भौतिक संसार (कीचड़) में रहकर भी अपने भक्तों के हृदय (निर्मलता) में निवास करती हैं। इसे चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
*गुलाब का फूल: लाल और गुलाबी गुलाब भी लक्ष्मी जी को अत्यंत प्रिय हैं। यह प्यार, सौभाग्य और कोमल भावनाओं का प्रतीक है।
*गेंदा का फूल: चमकीले पीले और नारंगी गेंदे सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह का संचार करते हैं। इन्हें चढ़ाने से घर से नकारात्मकता दूर होती है और समृद्धि के द्वार खुलते हैं।
*सफेद और लाल रंग के अन्य फूल: जुही, चमेली, डालिया आदि सफेद या लाल फूल भी चढ़ाए जा सकते हैं।
*ध्यान रखें: फूल ताजे, स्वच्छ और कीटाणु रहित होने चाहिए। कभी भी बासी या मुरझाए हुए फूल न चढ़ाएं। फूल चढ़ाते समय मन में श्रद्धा और भक्ति भाव रखें।
"दिवाली में कौन सा तेल का दीया जलाना चाहिए"?
*दीपावली पर दीपक जलाने के लिए विशेष तेलों का महत्व बताया गया है, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता लाते हैं।
*01. सरसों का तेल: यह सबसे प्रचलित और शुभ माना जाता है। सरसों का तेल अग्नि तत्व को प्रबल करता है और घर से 'बुरी नजर' तथा नकारात्मक शक्तियों को दूर रखता है। यह वातावरण को शुद्ध करने में भी सहायक है।
*02. तिल का तेल: तिल के तेल का दीपक पितृदोष शांत करने, आरोग्य प्रदान करने और घर में शांति बनाए रखने के लिए जलाया जाता है। यह भगवान शिव को भी अत्यंत प्रिय है।
*03. घी का दीपक: देशी गाय के घी का दीपक सर्वोत्तम माना जाता है। यह आध्यात्मिक और पवित्र वातावरण बनाता है, सात्विक ऊर्जा का संचार करता है और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करता है। मान्यता है कि घी का दीपक घर में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
*सलाह: यदि संभव हो तो, मुख्य पूजा के दीपक में घी या तिल का तेल प्रयोग करें और अन्य दीपक सजावट के लिए सरसों के तेल के जला सकते हैं। तेल या घी शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता का होना चाहिए।
*गोल बत्ती और लंबी बत्ती में क्या फर्क है? दीपावली में कौन सा बत्ती जलाना चाहिए?
*दीपक की बत्ती का आकार भी उसके प्रभाव को निर्धारित करता है।
*गोल बत्ती (रुई की गोल पतली बत्ती): यह आमतौर पर बाजार में मिलने वाली मशीन से बनी हुई पतली, गोल बत्ती होती है। यह जल्दी जलती है और इसकी लौ कमजोर और छोटी हो सकती है। पौराणिक दृष्टि से, इसका विशेष महत्व नहीं बताया गया है। यह सामान्य दैनिक उपयोग के लिए उपयुक्त है।
*लंबी बत्ती (कपास/रुई की हाथ से बनी बत्ती): यह हाथ से कपास को लपेटकर या मरोड़कर बनाई जाती है। इसकी लौ स्थिर, तेज और ऊर्ध्व मुखी होती है। इसे पारंपरिक और शुभ माना जाता है।
*अंतर और महत्व:
*01. आकार और लौ: गोल बत्ती की लौ छोटी और अस्थिर हो सकती है, जबकि लंबी बत्ती की लौ बड़ी, स्थिर और प्रखर होती है। स्थिर लौ घर में स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक है।
*02. पारंपरिक महत्व: शास्त्रों में कपास की हाथ से बनी बत्ती के उपयोग का ही विधान है। मान्यता है कि यह बत्ती सीधे देवी-देवताओं तक हमारी प्रार्थना पहुंचाती है।
*03. प्रतीकात्मकता: लंबी बत्ती ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। इसकी ऊपर की ओर उठती लौ मनुष्य को ईश्वर की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा देती है।
"दीपावली में क्या जलाना चाहिए"?
*दीपावली जैसे महापर्व पर हाथ से बनी कपास की लंबी बत्ती का ही उपयोग करना चाहिए, विशेषकर लक्ष्मी-गणेश पूजन के दीपक में। यह अधिक शुभ, प्रभावशाली और पारंपरिक मानी जाती है। बत्ती को इस प्रकार रखें कि उसका एक सिरा तेल या घी में डूबा रहे और दूसरा सिरा जलने के लिए स्वतंत्र हो।
"लक्ष्मी पूजा सफल होने के संकेत क्या हैं"?
*भक्ति भाव से की गई प्रत्येक पूजा सफल होती है, फिर भी कुछ संकेतों को मां लक्ष्मी की कृपा का प्रतीक माना जाता है:
*01. दीपक की लौ: पूजा के दौरान दीपक की लौ शांत, स्थिर और नीले रंग के अग्रभाग के साथ ऊपर की ओर उठती दिखाई दे, तो यह शुभ संकेत है। यह दर्शाता है कि मां लक्ष्मी प्रसन्न हैं और आपकी मनोकामना पूरी होगी।
*02. मन की शांति: पूजा करते समय या पूजा के बाद मन में अद्भुत शांति, हल्कापन और आनंद का अनुभव होना। चिंताएं दूर हो जाना।
*03. सुगंध का प्रसार: अचानक कमरे में फूलों या खुश्बू की मधुर सुगंध फैलना, जबकि आसपास कोई सुगंधित वस्तु न हो।
*04. प्रकृति के संकेत: पूजा के समय यदि कोई सफेद या भूरी गाय आपके द्वार पर आ जाए, कोई सुंदर पक्षी (जैसे तोता, मोर) दिखाई दे या हल्की वर्षा हो, तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
*05. स्वप्न या अंतर्ज्ञान: पूजा के बाद रात्रि में सुखद स्वप्न आना या मन में यह दृढ़ विश्वास होना कि अब सब ठीक हो जाएगा, समस्याएं हल होंगी।
*06. घर का वातावरण: पूजा के बाद घर का वातावरण पहले से अधिक सकारात्मक, प्रसन्नता पूर्ण और उल्लास भरा लगने लगे।
*याद रखें: ये संकेत केवल भक्त के विश्वास को दृढ़ करने के लिए हैं। इनका इंतजार करने के बजाय, निष्काम भाव से पूजा करें और अपने कर्तव्यों का पालन करें। सच्ची भक्ति ही सबसे बड़ी सफलता है।
"खड़े होकर लक्ष्मी पूजा करने से क्या होता है"?
*शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार, लक्ष्मी पूजा बैठकर ही करनी चाहिए। खड़े होकर पूजा करना उचित नहीं माना गया है।
"खड़े होकर पूजा करने के संभावित दोष":
*01. असम्मान का भाव: बैठकर पूजा करने से भक्ति में एकाग्रता और विनम्रता का भाव आता है। खड़े होकर पूजा करने को देवी-देवताओं के प्रति असम्मान या जल्दबाजी का प्रतीक माना जा सकता है।
*02. स्थिरता का अभाव: खड़े रहने की अवस्था में शरीर स्थिर नहीं रह पाता, जिससे मन भी विचलित हो सकता है। पूजा तभी फलदायी होती है जब मन एकाग्र हो।
*03. पारंपरिक मान्यता: ऐसी मान्यता है कि खड़े होकर पूजा करने से प्राप्त होने वाला फल अस्थायी होता है या पूरी तरह से प्राप्त नहीं हो पाता। मां लक्ष्मी की कृपा स्थायी रूप से बनी रहे, इसके लिए बैठकर विधिवत पूजा करने पर बल दिया गया है।
*04. शारीरिक असुविधा: लंबे समय तक खड़े रहकर पूजा करने से शारीरिक थकान हो सकती है, जो पूजा में व्यवधान डाल सकती है।
*क्या करें?
*पूजा हमेशा आसन पर बैठकर करें। चौकी के सामने जमीन पर आसन बिछाकर बैठ जाएं।
*यदि किसी शारीरिक असमर्थता के कारण बैठने में कठिनाई है, तो कुर्सी का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन खड़े रहने से बेहतर है कि आराम से बैठकर पूजा की जाए।
*बैठकर पूजा करने से मन शांत रहता है, पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से प्रयोग किया जा सकता है और मंत्रों का उच्चारण भी सही ढंग से हो पाता है।
*नोट: भावना सर्वोपरि है, लेकिन जहां तक संभव हो, परंपरा का पालन करते हुए बैठकर ही पूजा करें।
"बिना नहाए लक्ष्मी जी की पूजा करने से क्या होता है"?
*दीपावली की लक्ष्मी पूजा जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान से पहले स्नान करना अत्यंत आवश्यक माना गया है।
"महत्व":
*01. शुद्धता: स्नान करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है। पूजा के लिए आत्मा और शरीर दोनों का पवित्र होना जरूरी है। बिना नहाए शरीर पर लगी नकारात्मक ऊर्जा और मैल पूजा में बाधक हो सकते हैं।
*02. एकाग्रता: स्नान करने से मन शांत और तरोताजा होता है, जिससे पूजा में एकाग्रता बढ़ती है।
*03. सम्मान: जिस प्रकार हम किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से मिलने से पहले स्वयं को साफ-सुथरा करते हैं, उसी प्रकार देवी-देवताओं के समक्ष जाने से पहले स्नान करना उनके प्रति सम्मान का प्रतीक है।
*बिना नहाए पूजा करने पर:
*पौराणिक मान्यता के अनुसार, बिना स्नान किए की गई पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।
*माना जाता है कि मां लक्ष्मी स्वच्छता और शुद्धता पसंद करती हैं, इसलिए बिना स्नान किए उनकी पूजा करना उन्हें अप्रिय लग सकता है।
*इससे पूजा का आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक लाभ भी कम हो सकता है।
*सलाह: दीपावली के दिन सूर्योदय के बाद तेल-उबटन लगाकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करके ही पूजा में बैठें।
"मासिक धर्म के वक्त लक्ष्मी जी की पूजा करना चाहिए या नहीं"?
*यह एक संवेदनशील और व्यक्तिगत विश्वास से जुड़ा विषय है। इस पर पारंपरिक दृष्टिकोण और आधुनिक दृष्टिकोण अलग-अलग हैं।
"पारंपरिक मान्यता":
*पारंपरिक सनातन शास्त्रों के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर जाने या पूजा-पाठ में भाग लेने से मना किया गया है। इसके पीछे कारण शारीरिक अशुद्धता के साथ-साथ यह मान्यता रही है कि इस दौरान महिला की ऊर्जा शरीर के भीतर की सफाई में व्यस्त रहती है, इसलिए वह बाहरी धार्मिक क्रियाओं में पूरी तरह से एकाग्र नहीं हो पाती। कुछ मान्यताओं में इसे एक प्रकार का 'अपवित्र' दिन माना गया है।
"आधुनिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण":
*आज के समय में, अधिकांश आधुनिक विचारक और कई संत इस प्रथा को रूढ़िवादी और अनावश्यक मानते हैं। उनका कहना है कि मासिक धर्म एक पूर्णत: प्राकृतिक और स्वस्थ शारीरिक प्रक्रिया है। इसमें अशुद्ध या पाप जैसा कुछ नहीं है। भगवान सर्वव्यापी हैं और वह भक्त के हृदय की शुद्धता देखते हैं, शरीर की स्थिति को नहीं।
"निष्कर्ष और सलाह":
*01. व्यक्तिगत विश्वास और स्वास्थ्य: यह पूरी तरह से व्यक्तिगत विश्वास, परिवार की परंपरा और स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। कई महिलाएं इस दौरान थकान और दर्द का अनुभव करती हैं, ऐसे में आराम करना ही बेहतर हो सकता है।
*02. भावना महत्वपूर्ण है: यदि कोई महिला पूरी श्रद्धा से पूजा करना चाहती है और शारीरिक रूप से सक्षम है, तो वह मानसिक पूजा (मन में ही पूजा करना) या घर में बैठकर प्रार्थना कर सकती है।
*03. सम्मानजनक निर्णय: परिवार के बुजुर्गों की भावनाओं का सम्मान करते हुए, यदि वे इसका पालन चाहते हैं, तो अन्य सदस्य पूजा संपन्न कर सकते हैं और मासिक धर्म के दौरान महिला घर के अन्य दीपक जलाने, सजावट आदि के कार्यों में भाग ले सकती है।
*अन्ततः: निर्णय आपकी सुविधा, स्वास्थ्य और आस्था पर छोड़ देना चाहिए।
"पीरियड्स के बारे में भगवान कृष्ण का क्या कहना हैं"?
*श्रीमद्भागवत गीता या अन्य सनातन शास्त्रों में भगवान कृष्ण ने सीधे तौर पर मासिक धर्म के बारे में कोई उपदेश नहीं दिया है। हालांकि, उनके दर्शन और शिक्षाओं से हम इस विषय पर एक सारगर्भित दृष्टिकोण प्राप्त कर सकते हैं।
*01. शरीर और आत्मा का भेद: कृष्ण गीता में कहते हैं - "देहिनोऽस्मिन् यथा देहे..." अर्थात, जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नए शरीर को धारण करती है। इस दृष्टि से, शरीर एक वस्त्र मात्र है और उसकी प्राकृतिक प्रक्रियाएं (जैसे मासिक धर्म) आत्मा की शुद्धता को प्रभावित नहीं कर सकतीं।
*02. समदृष्टि: भगवान कृष्ण समदर्शी हैं। वह सभी प्राणियों में एक समान भाव से रहते हैं। उनकी दृष्टि में स्त्री-पुरुष, जाति, वर्ण या शारीरिक अवस्था के आधार पर कोई भेद नहीं है।
*03. भावना की शुद्धता: कृष्ण का संपूर्ण दर्शन भक्ति और भावना की शुद्धता पर केंद्रित है। वह अर्जुन से कहते हैं - "पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति..." अर्थात, जो कोई भी प्रेम पूर्वक एक पत्ता, एक फूल, एक फल या जल अर्पित करता है, मैं उसे प्रेम पूर्वक स्वीकार करता हूं। यहां महत्व उपहार का नहीं, बल्कि भक्ति के भाव का है।
*04. प्रकृति का सम्मान: कृष्ण यशोदा मां के लिए गोचारण करते थे, प्रकृति से जुड़े थे। मासिक धर्म प्रकृति द्वारा स्त्री को दिया गया वह चक्र है जो सृष्टि के निरंतर प्रवाह का आधार है। इसे अशुद्ध मानना प्रकृति के नियमों का अपमान होगा।
*निष्कर्ष: भगवान कृष्ण की शिक्षाओं से यही स्पष्ट होता है कि ईश्वर भक्त के हृदय की भावना देखते हैं, न कि उसकी शारीरिक अवस्था को। मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और इसे कलंक या अपवित्रता की दृष्टि से देखना उनके समदर्शी दर्शन के विपरीत है।
"जब पत्नी पीरियड में हो तो क्या पति लक्ष्मी पूजा या मंदिर जा सकता है"?
*हां, बिल्कुल जा सकता है। यह मान्यता पूरी तरह से गलत और निराधार है कि यदि पत्नी मासिक धर्म में है तो पति पूजा-पाठ नहीं कर सकता या मंदिर नहीं जा सकता।
"तर्क और स्पष्टीकरण":
*01. व्यक्तिगत आध्यात्मिकता: सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति की आध्यात्मिकता उसकी व्यक्तिगत है। पत्नी की शारीरिक अवस्था का पति के धार्मिक कर्मों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। पति स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा से पूजा-पाठ कर सकता है और मंदिर जा सकता है।
*02. शास्त्रीय आधार का अभाव: किसी भी प्रामाणिक सनातन शास्त्र में ऐसा कोई नियम नहीं मिलता जो यह कहता हो कि पत्नी के मासिक धर्म के दौरान पति को धार्मिक कार्यों से वंचित रहना चाहिए।
*03. पारिवारिक कर्तव्य: दीपावली एक पारिवारिक त्योहार है। यदि पत्नी किसी कारणवश (चाहे वह मासिक धर्म हो या कोई स्वास्थ्य समस्या) पूजा में सीधे भाग नहीं ले पा रही है, तो पति का यह कर्तव्य बनता है कि वह परिवार की ओर से पूजा का संपादन करे ताकि परिवार की परंपरा और उत्साह बना रहे।
*04. समर्थन और सहयोग: इस दौरान पति को पत्नी का समर्थन करना चाहिए। यदि पत्नी थकान महसूस कर रही है, तो पूजा की तैयारी और अन्य कार्यों में पति उसकी मदद कर सकता है और स्वयं पूजा संपन्न कर सकता है।
*05. तार्किक दृष्टिकोण: इस प्रकार की मान्यताएं अंधविश्वास और लैंगिक भेदभाव पर आधारित हैं। आधुनिक समय में ऐसी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।
*निष्कर्ष: पत्नी के मासिक धर्म के दौरान पति बिना किसी संकोच के लक्ष्मी पूजा कर सकता है, मंदिर जा सकता है और सभी धार्मिक कार्यों को संपन्न कर सकता है। धर्म व्यक्ति के आचरण और भावना से जुड़ा है, न कि उसके साथी की शारीरिक स्थिति से।
"कलयुग में कौन से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं"?
*शास्त्रों में कहा गया है कि कलयुग में भगवान का नाम लेना ही सबसे बड़ा उपाय है। कुछ देवता विशेष रूप से कलयुग में भक्तों पर शीघ्र कृपा करने वाले माने गए हैं:
*01. श्री हरि (विष्णु) का नाम: कलयुग में केवल 'हरि' नाम का उच्चारण करने से ही मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। विष्णु सहस्रनाम, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है।
*02. भगवान श्री कृष्ण: कृष्ण कलयुग के अधिष्ठाता देव माने जाते हैं। श्रीमद भागवत पुराण में उल्लेख है कि कलियुग में केवल कीर्तन (हरे कृष्ण, हरे राम मंत्र का जप) ही प्रभु को प्राप्त करने का सरल मार्ग है। वे भक्ति भाव से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।
*03. मां लक्ष्मी: कलयुग धन और भौतिकता का युग है। ऐसे में, धन की देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए सच्चे मन से पूजा और दान करने पर वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। 'श्री सूक्त' का पाठ विशेष रूप से कलयुग में फलदायी माना जाता है।
*04. भगवान शिव: शिव को भोलेभंडारी कहा जाता है। वे भक्त के भाव को देखते हैं, उसकी सामर्थ्य को नहीं। केवल बेलपत्र और जल से प्रसन्न होने वाले शिव कलयुग में भक्तों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जप करने से सभी कष्ट दूर होते हैं।
*05. हनुमान जी: संकटमोचन हनुमान जी की कृपा कलयुग में अतिशीघ्र प्राप्त होती है। 'हनुमान चालीसा' का नियमित पाठ करने या 'श्री राम जय राम जय जय राम' मंत्र जपने से भक्त के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
*06. दुर्गा मां: नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मां दुर्गा शीघ्र प्रसन्न होती हैं और भक्त की हर मनोकामना पूरी करती हैं।
*सार: कलयुग में सरल भक्ति, नाम जप और सच्चे मन से की गई प्रार्थना सबसे शक्तिशाली उपाय हैं। इन देवताओं की भक्ति करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
"मां लक्ष्मी के 108 नामों का करें जाप"
*क्र.सं. नाम (संस्कृत/हिंदी) अर्थ (Meaning)
*01 ॐ प्रकृत्यै नमः प्रकृति का सार, मूलभूत स्वरूप
*02 ॐ विकृत्यै नमः विविध रूपों वाली
*03 ॐ विद्यायै नमः ज्ञान, शिक्षा और बुद्धि की देवी
*04 ॐ सर्वभूत-हितप्रदायै नमः समस्त प्राणियों का कल्याण करने वाली
*13 ॐ स्वधायै नमः पितरों को दी जाने वाली आहुति रूप
*14 ॐ सुधायै नमः अमृत के समान
*15 ॐ धन्यायै नमः धन्य, समृद्धिदायक
*16 ॐ हिरण्मयै नमः स्वर्ण के समान दीप्तिमान
*17 ॐ लक्ष्म्यै नमः धन, सौभाग्य की मुख्य देवी
*18 ॐ नित्य-पुष्टायै नमः हमेशा पुष्ट (भरी-पूरी) रहने वाली
*19 ॐ विभावर्यै नमः चमक और प्रकाश से भरी हुई
*20 ॐ अदित्यै नमः अदिति के समान तेजस्वी
*21 ॐ दित्यै नमः द्वैत (भेद) को नष्ट करने वाली
*22 ॐ दीप्तायै नमः प्रकाशित, उज्ज्वल
*23 ॐ वसुधायै नमः पृथ्वी को धारण करने वाली (पृथ्वी देवी)
*24 ॐ वसुधारिण्यै नमः पृथ्वी को आश्रय देने वाली
*25 ॐ कमलायै नमः कमल से उत्पन्न
*26 ॐ कान्तायै नमः अति सुंदर, प्रियतमा
*27 ॐ कामाक्ष्यै नमः आकर्षक आँखों वाली
*28 ॐ क्रौधसंभवायै नमः (कहीं-कहीं 'क्षीरोधसंभवा' - क्षीरसागर से उत्पन्न)
*29 ॐ अनुग्रह-प्रदायै नमः कृपा और आशीर्वाद देने वाली
*30 ॐ बुद्धये नमः तीव्र बुद्धि और ज्ञान देने वाली
*31 ॐ अनघायै नमः निष्पाप, त्रुटि रहित
*32 ॐ हरिवल्लभायै नमः भगवान हरि (विष्णु) की प्रिय पत्नी
*33 ॐ अशोकायै नमः शोक (दुःख) को दूर करने वाली
*34 ॐ अमृतायै नमः अमरता और जीवन शक्ति
*35 ॐ दीप्तायै नमः प्रकाश की देवी
*36 ॐ लोकशोक-विनाशिन्यै नमः संसार के दुखों का नाश करने वाली
*37 ॐ धर्म-निलयायै नमः धर्म और न्याय का निवास स्थान
*38 ॐ करुणायै नमः दया और ममता की मूर्ति
*39 ॐ लोक-मातु नमः समस्त संसार की माता
*40 ॐ पद्म-प्रियायै नमः कमल जिन्हें प्रिय है
*41 ॐ पद्म-हस्तायै नमः जिनके हाथों में कमल है
*42 ॐ पद्माक्ष्यै नमः कमल के समान नेत्रों वाली
*43 ॐ पद्म-सुन्दर्यै नमः कमल के समान सुंदर
*44 ॐ पद्मोद्भवायै नमः कमल से उत्पन्न होने वाली
*45 ॐ पद्म-मुख्यै नमः कमल के समान मुख वाली
*46 ॐ पद्म-नाभ-प्रियायै नमः भगवान पद्मनाभ (विष्णु) की प्रियतमा
*47 ॐ रमायै नमः आनंद, सुख और प्रसन्नता की देवी
*48 ॐ पद्म-माला-धरायै नमः कमल के फूलों की माला धारण करने वाली
*49 ॐ देव्यै नमः दिव्य, अलौकिक शक्ति
*50 ॐ पद्मिन्यै नमः कमल के सरोवर में रहने वाली
*51 ॐ पद्म-गन्धिन्यै नमः कमल के जैसी सुगंध वाली
*52 ॐ पुण्य-गन्धायै नमः पवित्र और शुभ सुगंध वाली
*53 ॐ सुप्रसन्नायै नमः अत्यंत प्रसन्नचित्त रहने वाली
*54 ॐ प्रसादा-भिमुख्यै नमः वरदान देने को तत्पर रहने वाली
*55 ॐ प्रभायै नमः असाधारण चमक, तेज
*56 ॐ चन्द्र-वदनायै नमः चंद्रमा के समान मुख वाली
*57 ॐ चन्द्रायै नमः चंद्रमा के समान शीतल
*58 ॐ चन्द्र-सहोदर्यै नमः चंद्रमा की बहन (क्षीर सागर से उत्पन्न)
*59 ॐ चतुर्भुजायै नमः चार भुजाओं वाली
*60 ॐ चन्द्र-रूपायै नमः चंद्रमा के स्वरूप वाली
*61 ॐ इन्दिरायै नमः शोभायमान, सौंदर्यमयी
*62 ॐ इन्दु-शीतलायै नमः चंद्रमा की तरह शीतलता प्रदान करने वाली
*63 ॐ आह्लाद-जनिन्यै नमः आनंद और खुशी को जन्म देने वाली
*64 ॐ पुष्टयै नमः पोषण और शक्ति प्रदान करने वाली
*65 ॐ शिवायै नमः शुभ, मंगलकारी
*66 ॐ शिव-कर्यै नमः शुभ कार्य करने वाली
*67 ॐ सत्यै नमः सत्य और सच्चाई की देवी
*68 ॐ विमलायै नमः दोष रहित, निर्मल
*69 ॐ विश्व-जनन्यै नमः समस्त विश्व की जननी (माता)
*70 ॐ तुष्टयै नमः संतोष और तृप्ति की देवी
*71 ॐ दारिद्र्य-नाशिन्यै नमः दरिद्रता (गरीबी) का नाश करने वाली
*72 ॐ प्रीति-पुष्करिण्यै नमः प्रेम के पुष्कर (तालाब) में निवास करने वाली
*73 ॐ शान्तायै नमः शांति और सौम्यता की मूर्ति
*74 ॐ शुक्ल-माल्याम्बरायै नमः श्वेत (सफ़ेद) माला और वस्त्र धारण करने वाली
*75 ॐ श्रीयै नमः श्री (समृद्धि) का स्रोत
*76 ॐ भास-कर्यै नमः प्रकाश और तेज फैलाने वाली
*77 ॐ बिल्व-निलयायै नमः बिल्व वृक्ष पर निवास करने वाली
*78 ॐ वरारोहायै नमः उत्तम अंग और रूप वाली
*79 ॐ यशस्विन्यै नमः प्रसिद्धि और यश देने वाली
*80 ॐ वसुन्धरायै नमः पृथ्वी और धन की देवी
*81 ॐ उदारांगायै नमः उदार और सुंदर शरीर वाली
*82 ॐ हरिण्यै नमः स्वर्ण के समान चमकीली
*83 ॐ हेम-मालिन्यै नमः सोने की माला धारण करने वाली
*84 ॐ धन-धान्य-कर्यै नमः धन और अनाज की वर्षा करने वाली
*85 ॐ सिद्धयै नमः सिद्धि, पूर्णता और सफलता की दाता
*86 ॐ स्त्रैण-सौम्यायै नमः स्त्री-सुलभ कोमल और सौम्य
*87 ॐ शुभ-प्रदायै नमः शुभ और मंगल प्रदान करने वाली
*88 ॐ नृप-वेश्म-गतानन्दायै नमः राजाओं के महल में आनंद देने वाली
*89 ॐ वर-लक्ष्म्यै नमः श्रेष्ठ वरदान (आशीर्वाद) देने वाली लक्ष्मी
*90 ॐ वसु-प्रदायै नमः धन और संपत्ति देने वाली
*91 ॐ शुभ-प्रदायै नमः शुभ (अच्छाई) प्रदान करने वाली
*92 ॐ हिरण्य-प्राकारायै नमः सोने की दीवार से घिरी हुई
*93 ॐ समुद्र-तनयायै नमः समुद्र की पुत्री (क्षीर सागर से उत्पन्न)
*94 ॐ जयायै नमः विजय और सफलता की देवी
*95 ॐ मंगल-देव्यै नमः मंगलकारी और शुभ देवी
*96 ॐ विष्णु-वक्ष: स्थल-स्थितायै नमः भगवान विष्णु के वक्ष (हृदय) पर रहने वाली
*97 ॐ विष्णु-पत्न्यै नमः भगवान विष्णु की पत्नी
*98 ॐ प्रसन्नाक्ष्यै नमः प्रसन्न नेत्रों वाली
*99 ॐ नारायण-समाश्रितायै नमः भगवान नारायण (विष्णु) के आश्रय में रहने वाली
*100 ॐ दारिद्र्य-ध्वंसिन्यै नमः दरिद्रता को नष्ट करने वाली
*101 ॐ सर्वोपद्रव-वारिण्यै नमः सभी संकटों और बाधाओं को दूर करने वाली
*102 ॐ नव-दुर्गायै नमः नवदुर्गा का स्वरूप
*103 ॐ महा-काल्यै नमः महाकाली का स्वरूप
*104 ॐ ब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिकायै नमः ब्रह्मा, विष्णु और शिव के स्वरूप में विद्यमान
*105 ॐ त्रिकाल-ज्ञान-संपन्नायै नमः तीनों काल (भूत, वर्तमान, भविष्य) का ज्ञान रखने वाली
*106 ॐ भुवनेश्वर्यै नमः समस्त ब्रह्मांड की स्वामिनी (ईश्वरी)
*107 ॐ क्षमा-रूपायै नमः क्षमा और धैर्य का स्वरूप
*108 ॐ महा-लक्ष्मै नमः महान और सर्वोच्च लक्ष्मी
"मां लक्ष्मी के जाप के लाभ" (Benefits of Chanting)
*मां लक्ष्मी के 108 नामों का जाप करने से भक्त के जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के लाभ प्राप्त होते हैं।
*01. भौतिक लाभ (Material Benefits)
*धन और समृद्धि: इन नामों के नियमित जाप से दरिद्रता (गरीबी) दूर होती है और व्यक्ति के जीवन में स्थिर लक्ष्मी (धन जो टिकाऊ हो) का वास होता है।
*सफलता और यश: मां लक्ष्मी 'विजय लक्ष्मी' और 'यशस्विनी' के रूप में सभी कार्यों, व्यापार और प्रयासों में सफलता (सिद्धि) और प्रसिद्धि (यश) प्रदान करती हैं।
*बाधाओं का नाश: वह 'सर्वोपद्रव-वारिण्यै' (सभी बाधाओं को दूर करने वाली) हैं। यह जाप जीवन के सभी संकटों और समस्याओं को शांत करता है।
*स्वास्थ्य और पोषण: वह 'पुष्टि' (पोषण) और 'धान्य' (अनाज) की देवी हैं, जो सुनिश्चित करती हैं कि घर में कभी भोजन और अच्छी सेहत की कमी न हो।
*02. आध्यात्मिक और मानसिक लाभ (Spiritual and Mental Benefits)
*शांति और संतोष: मां 'शान्तायै' (शांति) और 'तुष्टि' (संतोष) की देवी हैं। यह जाप मन को स्थिरता और शांति देता है।
*बुद्धि और ज्ञान: 'विद्या' और 'बुद्धि' नाम से ज्ञात, वह सही निर्णय लेने की विवेक शक्ति और शिक्षा में सफलता प्रदान करती हैं।
*पवित्रता: 'शुचि' (शुद्ध) और 'विमला' (निर्मल) नाम मन और आत्मा को पवित्रता प्रदान करते हैं और नकारात्मकता को दूर करते हैं।
*ईश्वरीय कृपा: यह जाप मां लक्ष्मी और उनके पति भगवान विष्णु ('हरिवल्लभा') दोनों की असीम कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल और सीधा मार्ग है।
🔱 *मां लक्ष्मी के प्रमुख मंत्र (Main Mantras of Maa Lakshmi)
*108 नामों के अलावा, मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए निम्नलिखित मंत्रों का भी विशेष महत्व है:
*01. महालक्ष्मी मंत्र (The Principal Lakshmi Mantra)
*यह मंत्र धन, समृद्धि, भाग्य और ऐश्वर्य का दाता माना जाता है:
*ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्ष्म्यै नमः॥
*02. लक्ष्मी बीज मंत्र (Lakshmi Beej Mantra)
*बीज मंत्र सबसे शक्तिशाली और संक्षिप्त होते हैं, जो सीधे देवी की शक्ति को जागृत करते हैं:
*ॐ श्रीं नमः॥
(*यह 'श्री' बीज है, जो सीधे समृद्धि और ऐश्वर्य का प्रतीक है।)
*03. अष्टलक्ष्मी मंत्र (Ashtalakshmi Mantra)
*यह मंत्र जीवन के आठों आयामों (धन, अनाज, साहस, संतान, विजय, ज्ञान, आदि) में पूर्णता प्रदान करता है:
*सुझाव: 108 नामों का जाप आप प्रतिदिन, खासकर शुक्रवार को, कमल गट्टे की माला या स्फटिक की माला से कर सकते हैं।
"लक्ष्मी पूजा की संपूर्ण जानकारी स्टेप बाय स्टेप"
*दीपावली की लक्ष्मी-गणेश पूजा का विधिवत तरीका इस प्रकार है:
"पूर्व तैयारी":
*01. स्नान व वस्त्र: प्रात: काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूरे घर की सफाई करें।
*02. पूजा स्थल: एक चौकी या मेज को स्वच्छ वस्त्र से ढककर पूजा स्थल तैयार करें। इसे पूर्व या उत्तर दिशा में रखें।
*03. सामग्री: लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति/चित्र, रोली, मौली, चावल, पुष्प, दुर्वा घास, फल, मिठाई, पान-सुपारी, लौंग-इलायची, सिक्के, जल का कलश (जिस पर नारियल रखा हो), दीपक, धूपबत्ती, कपूर, घी/तेल, बत्ती, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी), गंगाजल आदि तैयार कर लें।
*पूजन विधि:
*01. आसन: पहले अपना आसन (आसनी) लें और पूजा स्थल के सामने बैठ जाएं। संकल्प लें कि आप अपने परिवार की ओर से लक्ष्मी-गणेश पूजन कर रहे हैं।
*02. कलश स्थापना: कलश को चौकी पर रखें। इसमें जल भरें, सिक्के डालें और आम के पत्ते लगाएं। ऊपर नारियल रख दें। कलश को सभी देवताओं का प्रतीक माना जाता है।
*03. देवताओं का आह्वान: सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। उन्हें फूल, रोली-चावल चढ़ाएं। "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र बोलें। फिर माता लक्ष्मी को आमंत्रित करें।
*04. मूर्ति/चित्र स्थापना: लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति या चित्र को कलश के पास रखें। उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं (सिंबोलिक रूप से थोड़ा सा चढ़ाएं), फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं।
*05. श्रृंगार: मूर्ति को सुगंधित जल से पोंछकर वस्त्र पहनाएं (या वस्त्र रखें)। रोली से तिलक लगाएं। चावल, फूल चढ़ाएं। गणेश जी को दुर्वा घास और लक्ष्मी जी को कमल का फूल अर्पित करें।
*06. धूप-दीप: धूपबत्ती जलाकर दिखाएं। घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं।
*07. नैवेद्य: फल, मिठाई, पान-सुपारी, लौंग-इलायची आदि भोग के रूप में अर्पित करें।
*08. आरती: "ॐ जय लक्ष्मी माता..." या अन्य लक्ष्मी आरती गाएं और दीपक से आरती करें।
*09. प्रार्थना: हाथ जोड़कर मां लक्ष्मी से घर में धन-धान्य, सुख-शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। पूरे परिवार को आशीर्वाद मांगें।
*10. पुष्पांजलि: अंत में सभी परिजन फूल चढ़ाकर प्रणाम करें।
*11. विसर्जन: पूजा के बाद कलश का जल पौधों में डाल दें। मूर्ति को अगले दिन विसर्जित करें या पूजा स्थल पर ही रख दें।"दीपावली के दिन लक्ष्मी मां की किस रूप की पूजा होती है"?
*दीपावली के दिन मां लक्ष्मी के विभिन्न रूपों की पूजा का विधान है, जो समृद्धि के विभिन्न आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं:
*01. महालक्ष्मी: यह लक्ष्मी जी का सर्वोच्च और मुख्य रूप है। इस रूप में वह आठ हाथों वाली, सिंहासन पर विराजमान और सभी प्रकार की समृद्धि (धन, वैभव, शक्ति, कीर्ति, ज्ञान, संतान, साहस, सुख) प्रदान करने वाली हैं। दीपावली पर मुख्य रूप से महालक्ष्मी की ही आराधना की जाती है।
*02. धनलक्ष्मी (धन की देवी): यह रूप विशेष रूप से धन-दौलत, सोना-चांदी, व्यापार में लाभ और आर्थिक उन्नति के लिए पूज्य है। व्यापारी वर्ग इस रूप की विशेष पूजा करता है।
*03. गजलक्ष्मी: इस रूप में मां लक्ष्मी को दो हाथियों द्वारा जल अभिषेक करते हुए दर्शाया जाता है। यह रूप शांति, समृद्धि, राजसी वैभव और स्थिरता का प्रतीक है। यह पारिवारिक सुख-शांति के लिए पूजनीय है।
*04. संतान लक्ष्मी: इस रूप में लक्ष्मी जी बालक गणेश को गोद में लिए होती हैं। यह रूप संतान सुख, सुरक्षा और परिवार की मंगलकामना के लिए पूजा जाता है।
*05. विद्यालक्ष्मी (सरस्वती का ही एक रूप): ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में। मान्यता है कि धन के साथ-साथ ज्ञान भी आवश्यक है, इसलिए कुछ परिवार इस रूप की भी पूजा करते हैं।
*नोट: दीपावली पर सबसे अधिक महालक्ष्मी के रूप की पूजा की जाती है, जो सभी प्रकार की समृद्धियों का स्रोत हैं। घर-घर में उनकी मूर्ति या चित्र इसी रूप में स्थापित किए जाते हैं।
*दीपावली पूजा के संबंध में यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है। वैदिक परंपरा और आधुनिक व्यवहार, दोनों ही दृष्टिकोणों को समझना महत्वपूर्ण है।
"दीपावली की पूजा महिला को करना या पुरुष को करना श्रेष्ठ रहेगा"
⚖️ "दो प्रमुख दृष्टिकोण"
इस प्रश्न को दो प्रमुख कोणों से समझा जा सकता है:
*01. पारंपरिक एवं शास्त्रीय दृष्टिकोण
*मुख्य भावना: परिवार के मुखिया (जो आमतौर पर पुरुष होता है) का कर्तव्य।
*तर्क: ऐतिहासिक सामाजिक संरचना के अनुरूप, घर की आर्थिक जिम्मेदारी और देवी-देवताओं का आह्वान परिवार के मुखिया का कर्तव्य माना जाता था। इसलिए पुरुष को पूजा करते हुए दिखाया जाता है।
*महिलाओं की भूमिका: पूजा की तैयारी, सजावट, भोग बनाना और पूरे घर की शुद्धता बनाए रखना, जो स्वयं में एक महत्वपूर्ण पूजा मानी जाती है।
*02. समावेशी एवं आधुनिक दृष्टिकोण
*मुख्य भावना: व्यक्तिगत भक्ति, श्रद्धा और परिवार की सामूहिक भागीदारी।
*तर्क: भगवान भक्त के भाव को देखते हैं, लिंग को नहीं। स्त्री और पुरुष दोनों ही समान रूप से भक्ति करने के अधिकारी हैं। आजकल अधिकांश परिवारों में, पति-पत्नी या पूरा परिवार मिलकर पूजा करता है।
🙏 "कौन करे पूजा? निर्णय के लिए मार्गदर्शन"
*तो, अंततः किसे पूजा करनी चाहिए? यह निर्णय आपकी परिस्थिति पर निर्भर करता है। निम्नलिखित बिंदु आपको निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं:
*यदि पारंपरिक पद्धति का पालन करना चाहते हैं: परिवार का सबसे बुजुर्ग पुरुष सदस्य या घर का मुखिया पुरुष पूजा संपन्न कर सकता है। इस स्थिति में भी, परिवार की महिलाएं और अन्य सदस्य सक्रिय रूप से सहयोग कर सकते हैं और आरती आदि में शामिल हो सकते हैं।
*यदि समकालीन एवं लचीला दृष्टिकोण अपनाना चाहते हैं: पति-पत्नी मिलकर पूजा कर सकते हैं। इससे परिवार में एकता और सहयोग का भाव मजबूत होता है।
*सबसे श्रेष्ठ कौन?: शास्त्रों के अनुसार, सच्ची भक्ति और एकाग्रता वाला व्यक्ति पूजा करने के लिए सबसे श्रेष्ठ होता है। यदि परिवार में कोई सदस्य (चाहे पुरुष हो या महिला) पूजन विधि को बेहतर जानता है और उसमें गहरी आस्था रखता है, तो वही पूजा का संचालन कर सकता है।
💎 "निष्कर्ष एवं सार"
*दीपावली पूजा का मूल उद्देश्य मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का आह्वान कर घर में सुख-समृद्धि का वरण करना है।
*पारंपरिक रीति-रिवाजों का सम्मान करते हुए भी, व्यक्तिगत भक्ति और परिवार की सामूहिक भागीदारी को सर्वोच्च महत्व दिया जाना चाहिए।
"श्रेष्ठ" व्यक्ति वह है जो शुद्ध मन, पवित्र हृदय और पूर्ण विधि-विधान से पूजा में तल्लीन हो सके।
*अंततः, दीपावली प्रकाश का त्योहार है - यह प्रकाश बाहर के दीपों से ज्यादा, हमारे अंदर के भक्ति-भाव से जगमगाना चाहिए।
"दीपावली के दिन किस समय मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए"?
*लक्ष्मी पूजन का समय अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि सही समय पर की गई पूजा से मां लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं और घर में निवास करती हैं।
"सबसे शुभ समय: प्रदोष काल"
दीपावलीकी पूजा प्रदोष काल में करने का विधान है। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद का लगभग 2 घंटे 24 मिनट का समय होता है। इस दौरान स्थिर लग्न (जैसे वृषभ, सिंह, वृश्चिक आदि) में पूजा करना अति उत्तम माना जाता है।
"मुख्यतः निम्नलिखित समय को उत्तम माना जाता है":
*01. संध्याकाल (सूर्यास्त के तुरंत बाद): ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, दीपावली की अमावस्या को लक्ष्मी जी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। सूर्यास्त के बाद ही अमावस्या तिथि का पूर्ण प्रभाव रहता है, इसलिए इसी समय पूजा की जाती है।
*02. निशीथ काल (मध्य रात्रि): कुछ परंपराओं में दीपावली पर निशीथ काल (लगभग 11:30 बजे से 12:30 बजे के बीच) में पूजा करने का भी विधान है, क्योंकि इस समय लक्ष्मी जी सबसे अधिक प्रसन्न मानी जाती हैं।
*व्यावहारिक सलाह:
*सामान्यतः सूर्यास्त के लगभग 45 मिनट से 1 घंटे बाद पूजा आरंभ करना उचित रहता है।
*पूजा से पहले घर के मुख्य द्वार, खिड़कियों और आंगन में दीपक जला लें।
*सटीक समय जानने के लिए अपने शहर के पंचांग या विश्वसनीय ज्योतिष स्रोत से दीपावली पूजा मुहूर्त 2026 देख लें।
*याद रखें: पूजा के लिए मन की शुद्धि और एकाग्रता सबसे जरूरी है। शुभ मुहूर्त में बैठकर पूरी श्रद्धा से पूजा करें।
*दीपावली पूजा करने के शुभ मुहूर्त की सटीक जानकारी दें
"दीपावली 2026: 8 नवंबर, रविवार"
*नोट: निम्नलिखित मुहूर्त सामान्य जानकारी के लिए है। सटीक मुहूर्त आपके स्थान (शहर) के अनुसार कुछ मिनटों का अंतर हो सकता है। सर्वोत्तम होगा कि आप किसी विश्वसनीय पंचांग या ज्योतिषी से अपने शहर का सटीक मुहूर्त जान लें।
*दीपावली पूजा मुहूर्त 2026 के अनुमानित समय:
*01. अमावस्या तिथि प्रारंभ: 7 नवंबर 2026, सुबह लगभग 10:47 बजे से।
*02. अमावस्या तिथि समाप्त: 8 नवंबर 2026 दिन के लगभग 11:27 बजे तक।
*चूंकि लक्ष्मी पूजा अमावस्या तिथि के दिन ही की जाती है, और वह भी सूर्यास्त के बाद, इसलिए 8 नवंबर ही पूजा का दिन है।
"प्रदोष काल" (सबसे शुभ समय):
*सूर्यास्त (अनुमानित): 8 नवंबर को शाम लगभग 05:30 बजे (स्थान के अनुसार बदल सकता है)।
"प्रदोष काल प्रारंभ: सूर्यास्त के तुरंत बाद"
*पूजा का उत्तम समय (अनुमानित): शाम 05:04 बजे से रात 09:53 बजे तक।
*इस दौरान वृषभ लग्न का समय विशेष रूप से शुभ माना जा रहा है, जो लगभग शाम 05:04 बजे से रात 09:53 बजे तक रहेगा।
"सरल सलाह":
*अधिकांश घरों में सूर्यास्त के बाद, लगभग शाम 6:00 बजे से 7:30 बजे के बीच पूजा की जाती है। इस बार यह समय वृषभ लग्न के अंतर्गत आता है, जो अत्यंत शुभ है।
,,"क्या करें":
*शाम को सूर्यास्त के बाद, लगभग 6:00 बजे के आसपास पूजा के लिए बैठ जाएं।
*पूजा आरंभ करने से पहले सभी दीपक जला लें।
*शांत मन से, विधि-विधान से पूजा संपन्न करें।
*लक्ष्मी पूजा से संबंधित डिस्क्लेमर
"दीपावली के दिन क्या खाएं और क्या ना खाएं"?
*क्या खाएं (शुभ और स्वास्थ्यवर्धक):
*01. मिठाइयां: घर की बनी मिठाइयां जैसे लड्डू, बर्फी, हलवा आदि शुभ मानी जाती हैं। मीठा खाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
*02. मौसमी फल: अनार, केला, सेब, नारियल आदि फलों का सेवन करें। ये सेहत के लिए अच्छे हैं और शुभ भी माने जाते हैं।
*03. सूखे मेवे: बादाम, अखरोट, किशमिश, काजू आदि का सेवन समृद्धि का प्रतीक है।
*04. सात्विक भोजन: पूजा के दिन हल्का और सात्विक भोजन करना चाहिए। खिचड़ी, दाल-चावल, सब्जी, दही आदि खा सकते हैं।
*05. पान: पूजा में चढ़ाया गया पान खाना शुभ माना जाता है।
"क्या न खाएं" (वर्जित या कम सेवन करें):
*01. तामसिक भोजन: मांस, मछली, अंडा, प्याज, लहसुन आदि तामसिक भोजन से इस दिन बचना चाहिए क्योंकि ये मन को भारी और चंचल बनाते हैं।
*02. बासी या अशुद्ध भोजन: बासी खाना न खाएं। ताजा और स्वच्छ भोजन ही ग्रहण करें।
*03. अत्यधिक तला-भुना: अधिक तेल-मसाले वाला या जंक फूड खाने से पाचन तंत्र खराब हो सकता है, जिससे त्योहार के उल्लास में बाधा आती है।
*04. शराब और धूम्रपान: नशीले पदार्थों का सेवन पूरी तरह वर्जित है। यह न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि पूजा की पवित्रता को भी भंग करता है।
*05. कड़वी चीजें: नीम, करेला जैसी कड़वी चीजें इस दिन नहीं खानी चाहिए।
*सलाह: संतुलित और हल्का भोजन करें ताकि पूजा और उत्सव में पूरी ऊर्जा के साथ भाग ले सकें।
"दीपावली के दिन क्या करें और क्या न करें"?
"क्या करें" (शुभ कार्य):
*01. प्रात: जल्दी उठें, स्नान करें, नए या स्वच्छ वस्त्र पहनें।
*02. घर की सफाई करें, विशेषकर पूजा स्थल और प्रवेश द्वार की।
*03. दीपक जलाएं: शाम को पूरे घर में, विशेषकर मुख्य द्वार, खिड़कियों, मंदिर और रसोई में दीपक जलाएं।
*04. लक्ष्मी-गणेश पूजा विधिवत करें।
*05. बुजुर्गों का आशीर्वाद लें और परिवार के साथ समय बिताएं।
*06. मिठाई और उपहार बांटें, गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें।
*07. सकारात्मक बातें करें, झगड़ा और नकारात्मक चर्चा से बचें।
"क्या न करें" (अशुभ माने गए कार्य):
*01. सूर्यास्त के बाद सोना वर्जित है। मान्यता है कि इससे लक्ष्मी जी घर से निकल जाती हैं।
*02. शाम के समय घर में अंधेरा न रहने दें। जितना संभव हो, दीपक जलाकर रोशनी करें।
*03. पूजा के समय गुस्सा, झगड़ा या नकारात्मक बातें न करें।
*04. दीपक को फूंक मारकर न बुझाएं। उसे स्वयं बुझने दें या हाथ से हवा करके बुझाएं।
*05. चोरी, झूठ या बेईमानी से कमाई गई वस्तुओं से पूजा न करें।
*06. पूजा के दौरान बीच में उठकर न जाएं। एक बार बैठकर पूरी पूजा संपन्न करें।
*07. त्योहार के दिन कर्ज न लें और न ही कर्ज चुकाएं। यह कार्य पहले या बाद में कर लें।
"दीपावली से संबंधित प्रश्न और उत्तर"
प्रश्न *01: दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की भी पूजा क्यों की जाती है?
उत्तर:गणेश जी विघ्नहर्ता और मंगलकारी देवता हैं। कोई भी शुभ कार्य गणेश जी की पूजा के बिना पूर्ण नहीं माना जाता। लक्ष्मी जी धन देती हैं, लेकिन उस धन को सुरक्षित रखने और उसका सदुपयोग करने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है, जो गणेश जी प्रदान करते हैं। इसलिए दोनों की संयुक्त पूजा की जाती है।
प्रश्न *02: धनतेरस और भाईदूज का दीपावली से क्या संबंध है?
उत्तर:दीपावली एक पर्व नहीं, बल्कि पांच दिवसीय उत्सव है।
*दिन 01: धनतेरस - धन के देवता धन्वंतरि और कुबेर की पूजा। नए बर्तन खरीदना शुभ।
*दिन 02: नरक चतुर्दशी/छोटी दिवाली - भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर वध की याद में।
*दिन 03: दीपावली/लक्ष्मी पूजन - मुख्य पर्व, लक्ष्मी-गणेश पूजा।
*दिन 04: गोवर्धन पूजा/अन्नकूट - भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के अहंकार को चूर कर गोवर्धन पर्वत उठाने की याद।
*दिन 05: भाईदूज - भाई-बहन के प्यार का पर्व।
प्रश्न *03: दीपावली पर जुआ खेलने की प्रथा क्यों है? क्या यह सही है?
उत्तर:पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन मां पार्वती ने भगवान शिव के साथ पासे खेले थे और उन्होंने नियम बनाया कि जो इस दिन जुआ खेलेगा, उसे वर्षभर निर्धन नहीं रहना पड़ेगा। हालांकि, आज के संदर्भ में जुआ एक सामाजिक बुराई है जो व्यक्ति और परिवार को आर्थिक और मानसिक रूप से बर्बाद कर सकती है। अतः इस प्रथा का पालन करना उचित नहीं है। इसके बजाय परिवार के साथ खेल-कूद या मनोरंजन के अन्य साधन अपनाए जा सकते हैं।
प्रश्न *04: क्या दीपावली पर पटाखे जलाना जरूरी है?
उत्तर:बिल्कुल नहीं। दीपावली का मूल भाव 'प्रकाश' फैलाना है, न कि शोर और प्रदूषण। पटाखों से वायु और ध्वनि प्रदूषण होता है, जो बीमार लोगों, बुजुर्गों, पशु-पक्षियों और पर्यावरण के लिए हानिकारक है। दीपक जलाकर, रंगोली बनाकर, घर सजाकर भी दीपावली का सही अर्थ में पालन किया जा सकता है।
प्रश्न *05: दीपावली के दिन कौन से दान करने चाहिए?
उत्तर:इस दिन अन्न दान, वस्त्र दान, गरीबों को भोजन कराना, कम्बल दान आदि अत्यंत पुण्य दायी माने गए हैं। जरूरतमंदों को मिठाई, फल या आवश्यक वस्तुएं दान कर सकते हैं।
"दीपावली के कुछ अनसुलझे पहलुओं पर फोकस करें"
*दीपावली के रोशनी और उल्लास के पीछे कुछ ऐसे पहलू भी हैं जिन पर अक्सर चर्चा नहीं होती:
*01. पर्यावरणीय प्रभाव: पटाखों और प्लास्टिक की सजावट से होने वाले प्रदूषण पर गंभीर चर्चा की आवश्यकता है। कैसे हम एक 'ग्रीन दिवाली' मना सकते हैं? क्या प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाते हुए इस त्योहार को मनाने के नए तरीके हो सकते हैं?
-02. आर्थिक दबाव: दीपावली के नाम पर महंगे उपहार, कपड़े, सजावट और दावतों का चलन कई परिवारों पर अनावश्यक आर्थिक दबाव डालता है। क्या त्योहार का असली आनंद भौतिकवाद में है या भावनात्मक जुड़ाव में? सादगी से दीपावली मनाने की संस्कृति को कैसे बढ़ावा दिया जाए?
*03. सामाजिक अलगाव: यह त्योहार कहीं न कहीं अमीर-गरीब के बीच की खाई को भी दर्शाता है। ऐसे में, क्या दीपावली सामाजिक एकता का प्रतीक बन सकती है? क्या हम इस दिन समाज के वंचित वर्गों के साथ अपनी खुशियां साझा करने पर अधिक ध्यान दे सकते हैं?
*04. धार्मिक कर्मकांड बनाम आध्यात्मिकता: क्या पूजा के सभी नियमों का पालन न कर पाने पर व्यक्ति को दोषी महसूस करना चाहिए? क्या पूजा की सफलता केवल बाहरी संकेतों से तय होती है? असल में, दीपावली का आध्यात्मिक संदेश आत्म-ज्ञान और आंतरिक प्रकाश है, उस पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
*05. पशु-पक्षियों के प्रति दया: तेज आवाज के पटाखे पालतू और आवारा जानवरों के लिए बेहद डरावने और हानिकारक होते हैं। त्योहार मनाते समय हम उनकी सुरक्षा और भलाई के बारे में कैसे सोच सकते हैं?
*इन पहलुओं पर विचार करके हम दीपावली को और अधिक सार्थक, समावेशी और सतत बना सकते हैं।
*इस ब्लॉग में दी गई सभी जानकारी हिंदू धार्मिक ग्रंथों, लोक मान्यताओं, पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विद्वानों के विचारों पर आधारित है। यह जानकारी केवल शैक्षिक और सूचनात्मक उद्देश्यों से प्रदान की जा रही है।
*01. व्यक्तिगत विश्वास: धार्मिक मान्यताएं और पूजन पद्धतियां व्यक्तिगत आस्था और परिवारिक परंपराओं पर निर्भर करती हैं। यहां बताई गई बातें सार्वभौमिक नियम नहीं हैं। आपकी परिवारिक परंपरा अलग हो सकती है, उसका पालन करना ही उचित है।
*02. ज्योतिषीय गणना: शुभ मुहूर्त की जानकारी सामान्य अनुमान पर आधारित है। सटीक मुहूर्त आपके निवास स्थान के देशांतर और अक्षांश के अनुसार भिन्न हो सकता है। किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय के लिए योग्य ज्योतिषाचार्य से परामर्श लें।
*03. स्वास्थ्य और कानून: बताई गई किसी भी सामग्री के उपयोग से पहले अपने स्वास्थ्य और एलर्जी का ध्यान रखें। धार्मिक प्रथाओं का पालन करते समय स्थानीय कानूनों और सार्वजनिक सुरक्षा नियमों की अवहेलना न करें (जैसे पटाखों के नियम)।
*04. वैज्ञानिक पुष्टि: कई मान्यताओं और संकेतों की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है। इन्हें आस्था और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में ही समझना चाहिए।
*05. वित्तीय सलाह नहीं: यह ब्लॉग किसी प्रकार की वित्तीय, चिकित्सीय या कानूनी सलाह नहीं है। धार्मिक कर्मकांड और वास्तविक जीवन के निर्णयों में संतुलन बनाए रखें।
*06. समावेशिता: हमारा प्रयास सभी पाठकों के लिए समावेशी और सम्मानजनक सामग्री प्रस्तुत करने का है। किसी भी जाति, लिंग या वर्ग के प्रति कोई भी विचार अनभिप्रेत है।
*अंत में, दीपावली का सार है आंतरिक प्रकाश, सद्भाव और खुशियां बांटना। पूजा के बाहरी नियमों से अधिक महत्वपूर्ण है मन की पवित्रता और अच्छे कर्म।
"लक्ष्मी पूजा से संबंधित डिस्क्लेमर"
*इस ब्लॉग में दी गई सभी जानकारी हिंदू धार्मिक ग्रंथों, लोक मान्यताओं, पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विद्वानों के विचारों पर आधारित है। यह जानकारी केवल शैक्षिक और सूचनात्मक उद्देश्यों से प्रदान की जा रही है।
*01. व्यक्तिगत विश्वास: धार्मिक मान्यताएं और पूजन पद्धतियां व्यक्तिगत आस्था और परिवारिक परंपराओं पर निर्भर करती हैं। यहां बताई गई बातें सार्वभौमिक नियम नहीं हैं। आपकी परिवारिक परंपरा अलग हो सकती है, उसका पालन करना ही उचित है।
*02. ज्योतिषीय गणना: शुभ मुहूर्त की जानकारी सामान्य अनुमान पर आधारित है। सटीक मुहूर्त आपके निवास स्थान के देशांतर और अक्षांश के अनुसार भिन्न हो सकता है। किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय के लिए योग्य ज्योतिषाचार्य से परामर्श लें।
*03. स्वास्थ्य और कानून: बताई गई किसी भी सामग्री के उपयोग से पहले अपने स्वास्थ्य और एलर्जी का ध्यान रखें। धार्मिक प्रथाओं का पालन करते समय स्थानीय कानूनों और सार्वजनिक सुरक्षा नियमों की अवहेलना न करें (जैसे पटाखों के नियम)।
*04. वैज्ञानिक पुष्टि: कई मान्यताओं और संकेतों की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है। इन्हें आस्था और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में ही समझना चाहिए।
*05. वित्तीय सलाह नहीं: यह ब्लॉग किसी प्रकार की वित्तीय, चिकित्सीय या कानूनी सलाह नहीं है। धार्मिक कर्मकांड और वास्तविक जीवन के निर्णयों में संतुलन बनाए रखें।
*06. समावेशिता: हमारा प्रयास सभी पाठकों के लिए समावेशी और सम्मानजनक सामग्री प्रस्तुत करने का है। किसी भी जाति, लिंग या वर्ग के प्रति कोई भी विचार अनभिप्रेत है।
*अंत में, दीपावली का सार है आंतरिक प्रकाश, सद्भाव और खुशियां बांटना। पूजा के बाहरी नियमों से अधिक महत्वपूर्ण है मन की पवित्रता और अच्छे कर्म।