Mohini Ekadashi 2027 मोहिनी एकादशी: मोह-माया से मुक्ति का दिव्य पर्व – तिथि, व्रत विधि, कथाएं और सम्पूर्ण जानकारी
byRanjeet Singh-
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"Mohini Ekadashi Date, Paran Time, Puja Vidhi & Vrat Katha in Hindi. जानिए मोहिनी एकादशी 16 मई 2027 का महत्व, क्या करें और क्या न करें, अचूक टोटके और मोक्ष प्राप्ति का उपाय"।
"मोहिनी एकादशी 2027 की हार्दिक शुभकामनाएं! भगवान विष्णु आप सभी पर अपनी कृपा बनाए रखें, आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आए। इस पावन दिन पर भगवान के दिव्य रूप का स्मरण कर अपने जीवन को धन्य करें।"
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🌟 01." प्रस्तावना: एकादशी व्रत का आध्यात्मिक महत्व"
सनातन धर्म में, सभी व्रतों में एकादशी व्रत को 'व्रतराज' (व्रतों का राजा) कहा गया है। यह पवित्र तिथि सीधे जगत के पालनहार, भगवान विष्णु को समर्पित है। हर माह में दो बार, शुक्ल और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को यह व्रत रखा जाता है, जो मन, वचन और कर्म की शुद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है।
मोहिनी एकादशी विशेष रूप से वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी है। इसका नाम भगवान विष्णु के उस दिव्य और आकर्षक रूप पर पड़ा, जिसे उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान देवताओं को अमृत दिलाने के लिए धारण किया था। यह व्रत मोह-माया के बंधन को काटकर, साधक को आध्यात्मिक उन्नति और अंततः मोक्ष की ओर ले जाता है।
भगवान विष्णु के दिव्य आशीर्वाद से, आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे। मोहिनी एकादशी 2027 की हार्दिक शुभकामनाएं।"
🗓️ 02. "मोहिनी एकादशी 2027: तिथि और मुहूर्त"
*विवरण तिथि और समय (नई दिल्ली के अनुसार)
*मोहिनी एकादशी रविवार, 16 मई 2027
*एकादशी तिथि प्रारंभ 15 मई 2027 को सायं 06:17 बजे से
*एकादशी तिथि समाप्त 16 मई 2027 को सायं 05:13 बजे तक
*पारण (व्रत खोलने) का समय 17 मई 2027 को प्रातः 05:04 बजे से 06:43 बजे तक अमृत मुहूर्त रहेगा।
*पारण की अवधि 01
घंटे 44 मिनट
*द्वादशी तिथि समाप्त 17 मई 2027 को सायं 04:28 बजे
शुभ और अशुभ मुहूर्त
मोहिनी एकादशी के दिन पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त इस प्रकार है।
अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:15 बजे से लेकर 12:08 बजे तक, गोधूलि मुहूर्त संध्या 06:18 बजे से लेकर 06:40 बजे तक, निशिता मुहूर्त रात 11:20 बजे से लेकर 12:03 बजे तक और ब्रह्म मुहूर्त सुबह 03:38 बजे से लेकर 04:21 बजे तक रहेगा।
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त
सुबह 05:04 बजे से लेकर 06:45 बजे तक अमृत मुहूर्त, सुबह 08:30 बजे से लेकर 10:02 बजे तक शुभ मुहूर्त, दोपहर 01:21 बजे से लेकर 03:01 बजे तक चर मुहूर्त, संध्या 07:40 बजे से लेकर 06:20 बजे तक अमृत मुहूर्त और शाम 06:20 बजे से लेकर 07:40 बजे तक चर मुहूर्त रहेगा।
अशुभ मुहूर्त
सुबह 06:45 बजे से लेकर 08:30 बजे तक राहु काल, सुबह 10:20 बजे से लेकर 11:42 बजे तक यमगण्ड काल और दोपहर 01:21 बजे से लेकर 03:01 बजे तक गुलिक काल रहेगा।
☀️ "दिन का हाल" (16 मई 2027, रविवार)
मोहिनी एकादशी का व्रत रविवार के दिन पड़ने से इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि रविवार सूर्य देव (जिन्हें भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है) को समर्पित है। साथ ही अमृत सिद्धि योग, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का संगम है। इसलिए इस दिन व्रत-पूजन से भगवान विष्णु और सूर्य देव दोनों की कृपा प्राप्त होगी, जिससे यश, मान-सम्मान और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
🎭 03. "मोहिनी एकादशी का नाम और भगवान विष्णु का स्वरूप"
'मोहिनी' शब्द का अर्थ है 'मोहने वाली' या 'आकर्षण में डालने वाली'। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के 'मोहिनी अवतार' की पूजा होती है। यह रूप भगवान के परम शक्ति और लीला का प्रतीक है, जिसमें उन्होंने अत्यंत सुंदर स्त्री का रूप धारण करके, अपनी माया से असुरों को भ्रमित किया और अमृत का वितरण देवताओं में किया।
मोहिनी एकादशी का व्रत हमें यह शिक्षा देता है कि जीवन में भौतिक आकर्षण (मोह) क्षणभंगुर है, और केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही स्थायी सुख प्रदान कर सकता है। यह व्रत जीवन की नकारात्मक शक्तियों पर विजय पाने और आत्म-कल्याण हेतु अत्यंत फलदायक है।
📜 04. "मोहिनी एकादशी की पौराणिक कथाएं" (विस्तृत रूप )
मोहिनी एकादशी के महात्म्य को दर्शाने वाली तीन प्रमुख कथाएं हैं, जिनमें से एक कथा विस्तृत रूप में यहाँ प्रस्तुत है, जैसा कि आपने अनुरोध किया है।
*01. "धृष्ट बुद्धि की कथा" (पद्म पुराण के अनुसार)
प्राचीनकाल में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नामक एक सुंदर और धन-धान्य से संपन्न नगरी थी, जिस पर चंद्रवंशी राजा द्युतिमान का राज था। इसी नगरी में धनपाल नाम का एक धनी वैश्य रहता था, जो अत्यंत धर्मात्मा, कृपालु और श्रीहरि का परम भक्त था। धनपाल ने अपने जीवनकाल में अनेकों पुण्य कार्य किए थे; उसने नगर में भोजनालय, प्याऊ, कुएं, तालाब और यात्रियों के लिए धर्मशालाएं बनवाई थीं। सड़कों पर आम, जामुन, पीपल जैसे अनेक छायादार वृक्ष लगवाए थे।
"धनपाल के पांच पुत्र थे: सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति, और धृष्ट बुद्धि"।
अधर्मी पुत्र का पतन
इन सब में, पांचवां पुत्र धृष्ट बुद्धि अपने नाम के विपरीत, अत्यंत दुराचारी, महा पापी और अधर्मी था। वह अपने पिता और बड़े-बुजुर्गों का सम्मान नहीं करता था। उसकी संगति बुरी थी—वह वेश्यागामी, जुआरी और शराबी था। वह पिता के कमाए धन को मांस-मदिरा और भोग-विलास में नष्ट करता रहता था।
अपने पुत्र के ऐसे कुकर्मों से दुखी और लज्जित होकर, धनपाल ने उसे बहुत समझाया, किंतु धृष्ट बुद्धि पर कोई असर नहीं हुआ। अंततः, वैश्य ने कठोर हृदय करके उसे घर और अपनी जमीन-जायदाद से बेदखल कर दिया।
"दर-दर की ठोकरें"
घर से निकाले जाने के बाद, धृष्ट बुद्धि ने कुछ समय तक अपने साथ लाए हुए गहने और कपड़े बेचकर गुज़ारा किया। लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ खत्म हो गया। जब धन समाप्त हुआ, तो उसकी वेश्याओं और दुराचारी मित्रों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर नगर में दर-दर भटकने लगा। कोई सहारा न देख, पेट भरने के लिए उसने चोरी करना शुरू कर दिया।
एक बार चोरी करते हुए वह पकड़ा गया। राजा ने वैश्य का पुत्र जानकर, पहली बार चेतावनी देकर छोड़ दिया। किंतु, दूसरी बार फिर पकड़ा जाने पर, राजाज्ञा से उसे कारागार में डाल दिया गया, जहां उसे बहुत कष्ट दिए गए। बाद में, राजा ने उसे नगर से बाहर निकाल देने का आदेश दिया।
"वन में बहेलिया का जीवन"
नगर से निकाले जाने के बाद, धृष्ट बुद्धि घने वन में चला गया। अब उसका जीवन और भी नीच हो गया; उसने पशु-पक्षियों को मारकर खाना शुरू कर दिया और समय के साथ वह एक क्रूर बहेलिया बन गया। धनुष-बाण लेकर वह दिन भर शिकार करता और उसी मांस को आग में पकाकर अपनी भूख मिटाता।
कई दिन और रातें इसी प्रकार व्यतीत हुईं, उसके पापों का घड़ा भरता गया, और दुख-तकलीफें बढ़ती गईं।
"महर्षि कौंडिल्य का आश्रम और सद्बुद्धि
एक दिन, धृष्ट बुद्धि भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल होकर शिकार की तलाश में घूम रहा था। भटकते-भटकते वह उस वन के एक पवित्र स्थान पर पहुंचा, जहाँ महर्षि कौंडिल्य का आश्रम था।
यह वैशाख मास का समय था। जब धृष्ट बुद्धि आश्रम के पास पहुंचा, तो महर्षि कौंडिल्य गंगा स्नान करके आ रहे थे। ऋषि के भीगे हुए वस्त्रों से पानी के कुछ छींटे उस पापी बहेलिए के शरीर पर पड़ गए। इन पवित्र जल बिंदुओं के स्पर्श मात्र से, उसके अंदर कुछ सद्बुद्धि का उदय हुआ और उसके हृदय की क्रूरता क्षण भर के लिए शांत हो गई।
पीड़ा और पश्चाताप से भरे हृदय से, धृष्ट बुद्धि ने महर्षि कौंडिल्य के चरणों में हाथ जोड़कर प्रार्थना की, "हे मुनि श्रेष्ठ! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। मेरे पापों का बोझ इतना बढ़ गया है कि अब मुझे शांति नहीं मिलती। कृपया मुझे कोई ऐसा सरल उपाय बताइए, जिससे मैं इन सभी पापों से मुक्ति पा सकूं, और जिसके लिए मुझे धन खर्च न करना पड़े।"
"मोहिनी एकादशी व्रत का उपदेश"
बहेलिया के दीन-हीन और पश्चाताप भरे वचन सुनकर मुनि को उस पर दया आई। कौंडिल्य मुनि ने कहा, "तुमने अच्छे समय में मुझसे यह प्रश्न किया है। इस वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में 'मोहिनी' नामक एकादशी का व्रत आता है। तुम अत्यंत श्रद्धा और विधि-विधान से यह व्रत करो। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें मुक्ति मिलेगी।"
मुनि के वचनों को सुनकर धृष्ट बुद्धि अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने मुनि के चरणों में प्रणाम किया और उनके द्वारा बताई गई संपूर्ण विधि के अनुसार, श्रद्धापूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया।
"व्रत का प्रभाव और वैकुंठ की प्राप्ति"
हे राम! इस व्रत के प्रभाव से बहेलिया के सभी पाप तुरंत नष्ट हो गए। कुछ ही समय में उसका मन निर्मल हो गया और उसका शरीर दिव्य तेज से चमकने लगा। जब उसका अंतिम समय आया, तो वह अपने पापी शरीर को छोड़कर, दिव्य देह धारण करके, गरुड़ पर सवार होकर श्री विष्णुलोक को चला गया।
मुनि कौंडिल्य ने बताया कि इस व्रत को करने से मनुष्य मोह-माया के जाल, सभी प्रकार के पापों, और जीवन के कष्टों से मुक्त हो जाता है। इस धरा पर इस व्रत से श्रेष्ठ कोई दूसरा व्रत नहीं है।
2. "समुद्र मंथन की कथा"
यह कथा इस एकादशी के नाम के रहस्य को बताती है। जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया और अंत में अमृत कलश निकला, तो असुरों ने उसे छीन लिया। अमृत के लिए देवताओं और असुरों में भयंकर संघर्ष छिड़ गया। देवता शक्ति में असुरों से कमज़ोर पड़ रहे थे। तब, देवताओं के कल्याण के लिए, भगवान विष्णु ने अत्यंत सुंदर, आकर्षक और मोहक स्त्री का रूप धारण किया, जिसे मोहिनी कहा गया।
मोहिनी रूप ने अपनी मायावी छवि से सभी असुरों को मोहित कर दिया। असुरों ने मोहिनी के कहने पर अमृत का कलश उन्हें सौंप दिया, ताकि वह न्यायपूर्वक अमृत का वितरण कर सकें। मोहिनी ने अपनी चतुराई से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया और असुर देखते ही रह गए। जिस दिन भगवान विष्णु ने यह मोहिनी रूप धारण किया था, वह वैशाख शुक्ल एकादशी की तिथि थी, इसलिए यह दिन मोहिनी एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
3. "वशिष्ठ ऋषि की कथा"
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्माजी ने वशिष्ठ ऋषि को इस व्रत का महात्म्य बताया था। वशिष्ठ ऋषि ने यह व्रत किया, जिससे उन्हें जन्म-जन्मांतर के सभी पापों से मुक्ति मिली। इसलिए इस व्रत को स्वर्ग, मोक्ष, यश, और पुण्य का सुलभ द्वार माना गया है।
*ब्रह्म मुहूर्त में स्नान: सूर्योदय से पहले (प्रातः 04:15 से 05:00 बजे के बीच) उठकर, पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें।
*संकल्प: पूजा स्थल पर भगवान विष्णु (या उनके मोहिनी रूप) की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें। हाथ में जल, पुष्प और अक्षत लेकर व्रत का विधिवत संकल्प लें।
*पूजन: भगवान विष्णु का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें:
*आसन दें और उन्हें पीले वस्त्र (या पीला कपड़ा) अर्पित करें।
*तिलक (चंदन, रोली) लगाएं।
*पीले पुष्प (गेंदा, चंपा) और तुलसी दल (तुलसी की पत्तियां) अर्पित करें।
*धूप, दीप (घी का दीपक) प्रज्वलित करें।
*नैवेद्य (भोग) में फल, पंचामृत, मेवा और मिश्री का भोग लगाएं मंत्र जाप: रुद्राक्ष या तुलसी की माला से "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
*कथा पाठ: मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ करें या सुनें।
*पूरे दिन उपवास: अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार निर्जल (पानी भी नहीं), फलाहार (फल और दूध), या एक समय फलाहार का विकल्प चुनें।
*रात्रि जागरण: रात्रि में हरि नाम संकीर्तन करें, भजन गाएँ और भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों (विशेषकर मोहिनी अवतार) की कथाएं सुनें।
चरण 03: "द्वादशी पारण" (17 मई 2027, सोमवार)
*पारण मुहूर्त: अगले दिन (द्वादशी) को सूर्योदय के बाद और पारण मुहूर्त (05:29 AM से 08:13 AM) के भीतर ही व्रत खोलें।
*तुलसी सेवन: पारण से पहले भगवान विष्णु को भोग लगाएं। तुलसी दल का सेवन करके व्रत खोलना अत्यंत शुभ माना जाता है।
*अन्न दान: किसी गरीब, साधु, या ब्राह्मण को श्रद्धापूर्वक भोजन कराएं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें।
*व्रत खोलना: चावल (भात) का सेवन करके व्रत खोलना अनिवार्य माना जाता है, क्योंकि चावल के बिना एकादशी व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता।
✅ 06. "मोहिनी एकादशी: क्या करें और क्या न करें"
✨ क्या करें (What To Do
क्रिया महत्व
*ब्रह्म मुहूर्त में स्नान शारीरिक और मानसिक शुद्धि के लिए अनिवार्य।
*पीले वस्त्र धारण भगवान विष्णु को पीला रंग प्रिय है।
*तुलसी दल अर्पण तुलसी विष्णु प्रिया हैं, इनके बिना पूजा अधूरी है।
*विष्णु सहस्त्रनाम पाठ 1000 नामों का जाप करने से अनंत पुण्य मिलता है।
*संकीर्तन व ध्यान मन की स्थिरता और प्रभु में ध्यान लगाने के लिए।
*गरीब को दान अन्न, वस्त्र, या धन का दान मोक्ष का मार्ग खोलता है।
*ज़मीन पर सोना सादगी का प्रतीक और भोग-विलास से दूरी। (संदर्भ: किस पर सोना चाहिए)
❌ "क्या न करें" (What Not To Do
*क्रिया निषेध का कारण
*अन्न और चावल का सेवन पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन चावल खाना माँस खाने जैसा है।
*प्याज, लहसुन का सेवन तामसिक भोजन माना जाता है।
*क्रोध, असत्य, निंदा मन और वाणी को दूषित करते हैं।
*हिंसा या आलस्य आत्म-संयम भंग होता है।
*बाल काटना या दाढ़ी बनवाना इस दिन ये कार्य अशुभ माने जाते हैं।
*शारीरिक संबंध बनाना ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है।
*पान खाना, दातुन करना सादगी और शुद्धता के नियम।
*07. मोहिनी एकादशी के दिन क्या खाएं और क्या ना खाएं
*मोहिनी एकादशी का व्रत अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार रखना चाहिए।
✅ "क्या खाएं" (फलाहार विकल्प)
*फल: केला, सेब, अंगूर, संतरा, अनार आदि सभी मौसमी फल।
*दूध और दूध के उत्पाद: दही, पनीर, छाछ (पनीर एकादशी के व्रत में खाया जा सकता है)।
*सब्जियां: आलू, शकरकंद, अरबी, गाजर, कद्दू, लौकी (इनको सेंधा नमक और शुद्ध घी/मूंगफली तेल में बनाया जा सकता है)।
*अनाज/बीज: कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, राजगिरा (अमरनाथ) का आटा।
*तेल: सरसों का तेल, रिफाइंड तेल। (केवल शुद्ध घी या मूंगफली का तेल इस्तेमाल करें)
❓ 08. "मोहिनी एकादशी से संबंधित प्रश्न और उत्तर"
प्रश्न उत्तर
*मोहिनी एकादशी में भगवान विष्णु के किस रूप की पूजा होती है? भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की पूजा की जाती है।
*मोहिनी एकादशी के दिन किस पर सोना चाहिए? इस दिन भोग-विलास से दूर रहकर, ज़मीन पर (चटाई या कंबल बिछाकर) सोना चाहिए।
*क्या मोहिनी एकादशी का व्रत महिलाओं को करना चाहिए? हां, महिलाएं और पुरुष दोनों ही पूर्ण श्रद्धा से यह व्रत कर सकते हैं।
*मोहिनी एकादशी का पारण किस समय करना चाहिए? 17 मई 2027 को प्रातः 05:29 बजे से 08:13 बजे तक। पारण द्वादशी तिथि के भीतर ही होना चाहिए।
*व्रत में नमक खा सकते हैं? हाँ, केवल सेंधा नमक का सेवन किया जा सकता है।
🔮 09. "मोहिनी एकादशी के अचूक टोटके"/उपाय (ध्यान दें: यह उपाय ज्योतिषीय मान्यताओं पर आधारित हैं)
*धन-समृद्धि के लिए: मोहिनी एकादशी के दिन, शाम के समय तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक जलाएं और 11 बार 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करते हुए तुलसी की परिक्रमा करें।
*मनचाहे विवाह के लिए: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को पीले फूल और केसर मिश्रित दूध अर्पित करें। 'पीले' वस्त्रों का दान करें।
*पापों से मुक्ति: व्रत के दिन पीपल के पेड़ को जल चढ़ाएँ और घी का दीपक जलाएं, क्योंकि पीपल में भगवान विष्णु का वास माना जाता है।
*रोग-दोष निवारण: एकादशी की रात्रि में भगवान विष्णु के सामने बैठकर 'विष्णु सहस्त्रनाम' का पाठ करें।
💖 10. "निष्कर्ष": आत्मकल्याण का पर्व
*मोहिनी एकादशी केवल एक व्रत नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, मन की स्थिरता और ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण का महापर्व है। यह हमें सिखाता है कि जीवन का वास्तविक लक्ष्य क्षणभंगुर मोह-माया में नहीं, बल्कि श्री हरि की भक्ति और स्मरण में निहित है। जो भी भक्त श्रद्धा, भक्ति और पूर्ण विधि-विधान से यह व्रत करता है, उसे न केवल सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है, बल्कि वह जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य—वैकुंठ धाम की प्राप्ति—की ओर अग्रसर होता है।
⚖️ 11. "अस्वीकार" ("Disclaimer")
कृपया ध्यान दें कि इस ब्लॉग पोस्ट में मोहिनी एकादशी व्रत से संबंधित जितनी भी जानकारी (तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि, पौराणिक कथाएँ, महत्व, और टोटके) प्रदान की गई है, वह सभी पारंपरिक धार्मिक मान्यताओं, ज्योतिषीय गणनाओं और सामान्य लोक ज्ञान पर आधारित है।
यह जानकारी किसी भी प्रकार की वैज्ञानिक या चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है, और इसे केवल आपके धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञानवर्धन के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है।
स्वास्थ्य संबंधी निर्णय: व्रत या उपवास शुरू करने से पहले, विशेषकर यदि आप गर्भवती हैं, किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, या किसी चिकित्सा स्थिति का सामना कर रहे हैं, तो हम आपको दृढ़तापूर्वक सलाह देते हैं कि आप अपने योग्य चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें। स्वास्थ्य संबंधी किसी भी निर्णय के लिए धार्मिक जानकारी को आधार न बनाएं।
धार्मिक सलाह: व्रत की विधि, मुहूर्त, और नियम स्थानीय पंचांग और विभिन्न धार्मिक समुदायों (स्मार्त/वैष्णव) के अनुसार थोड़े भिन्न हो सकते हैं। सटीक और व्यक्तिगत मार्गदर्शन के लिए, अपने क्षेत्र के धार्मिक विद्वानों, आचार्यों या पंडितों से परामर्श करना उचित है।
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