"भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का इतिहास, रहस्यमयी पौराणिक कथा, मंदिर निर्माण, दर्शन की पूरी जानकारी, पूजा विधि, और इसके टकसामाजिक, वैज्ञानिक महत्व को जानें। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक इस पावन स्थल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी पढ़ें"
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"भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग: वह स्थान जहां भगवान शिव ने राक्षस भीम का वध कर धारण किया ज्योतिर्लिंग रूप"
*भारत की पवित्र भूमि अनेकों दिव्य तीर्थस्थलों और मंदिरों से सुशोभित है, जिनमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का विशेष स्थान है। इन्हीं में से एक है महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में सह्याद्री पर्वतमाला की घनी हरियाली के बीच स्थित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग। यह ज्योतिर्लिंग न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रकृति का अद्भुत वरदान भी है। इस ब्लॉग में, हम भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की गहन पौराणिक कथा, इसके ऐतिहासिक निर्माण, पूजा-पद्धति, और इसके बहुआयामी महत्व को विस्तार से जानेंगे।
"पौराणिक कथा - दैत्य भीम का अंत और ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति"
*भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का नामकरण कैसे हुआ, इसके पीछे एक रोचक और रोमांचकारी पौराणिक कथा प्रचलित है। यह कथा त्रेतायुग से जुड़ी हुई है और शिवपुराण में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। यह कहानी सिर्फ एक राक्षस के वध की नहीं, बल्कि अहंकार के विनाश और भक्ति की विजय की कहानी है।
"पृष्ठभूमि: कुंभकर्ण का पुत्र भीम"
*कथा का आरंभ लंकापति रावण के भ्राता और महान भक्त कुंभकर्ण से होता है। कहा जाता है कि कुंभकर्ण का विवाह एक राक्षसी कन्या से हुआ था। जब भगवान विष्णु के अवतार श्री राम ने रावण और कुंभकर्ण का वध किया, तब कुंभकर्ण की पत्नी गर्भवती थी। इस घटना के पश्चात, वह भय के कारण दूर जंगलों में छिपकर रहने लगी। समय बीतने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम उसने भीम रखा।
*भीम बचपन से ही अत्यंत बलशाली और तेजस्वी था। जब वह बड़ा हुआ, तो उसने अपने पिता और चाचा के बारे में जिज्ञासा की। उसकी माता ने शोक पूर्वक सारा वृत्तांत सुनाया कि कैसे श्री राम ने रावण और कुंभकर्ण का वध किया था। पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर भीम के हृदय में क्रोध और प्रतिशोध की ज्वाला भड़क उठी। उसने प्रतिज्ञा की कि वह अपने पिता की मृत्यु का बदला लेकर रहेगा और श्री राम (जो अब इस लोक में नहीं थे) के अनुयायियों, यानी देवताओं और मनुष्यों को दंडित करेगा।
"तपस्या और वरदान"
*अपने उद्देश्य में सफल होने के लिए, भीम ने घोर तपस्या आरंभ की। उसने हज़ारों वर्षों तक कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। भीम ने अमरत्व का वरदान मांगा, परंतु ब्रह्मा जी ने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि प्रकृति के नियम के अनुसार जो जन्मा है, उसकी मृत्यु निश्चित है। तब भीम ने अभिमानपूर्वक वरदान मांगा कि उसे केवल एक ऐसा व्यक्ति मार सके, जो कुंभकर्ण का पुत्र हो। उसने सोचा कि चूंकि उसके अलावा कोई दूसरा पुत्र है ही नहीं, इसलिए वह अजेय हो जाएगा। ब्रह्मा जी ने "तथास्तु" कहकर उसे यह वरदान दे दिया और अंतर्ध्यान हो गए।
"अत्याचार का साम्राज्य"
*वरदान पाकर भीम स्वयं को अजेय समझने लगा। उसका अहंकार आसमान छूने लगा। उसने देवलोक पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। पृथ्वी पर उसने एक के बाद एक राज्यों को जीतना शुरू किया। उसने सभी यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ बंद करवा दिए। धर्म का लोप होने लगा और अधर्म का साम्राज्य स्थापित हो गया। देवता, ऋषि-मुनि और साधारण जनता उसके आतंक से त्राहिमाम करने लगे।
*उस समय कामरूपेश्वर नामक एक धर्मपरायण राजा थे, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्होंने भीम के आदेशों की अवहेलना करके शिवलिंग की पूजा जारी रखी। यह देखकर भीम क्रोधित हो गया और उसने राजा को बंदी बना लिया। राजा ने कारागार में भी निरंतर भगवान शिव का स्मरण और ध्यान जारी रखा।
"भगवान शिव का हस्तक्षेप और महायुद्ध"
*राजा की अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और आश्वासन दिया कि वे शीघ्र ही उन्हें इस संकट से मुक्त करेंगे। जब भीम ने देखा कि राजा अभी भी शिव का नाम जप रहा है, तो उसने अपनी तलवार से शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया। उसी क्षण, शिवलिंग से एक तेज प्रकाश फूटा और उसमें से स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए।
*भीम और शिव के बीच एक भीषण युद्ध छिड़ गया। यह युद्ध कई दिनों तक चला। भीम ने अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग किया, परंतु शिव के सामने उसका कोई असर नहीं हुआ। अंततः, भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से भीम का वध कर दिया। यह स्थान वही था जहां आज भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
"ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकटन"
*दैत्य के वध के बाद, सभी देवताओं, ऋषियों और राजा कामरूपेश्वर ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे इस पावन स्थल पर सदैव के लिए निवास करें ताकि भक्तों को उनके दर्शन का लाभ मिल सके। देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भगवान शिव उस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। चूंकि उन्होंने भीम नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम "भीमाशंकर" पड़ा। कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर भीमा नाम की नदी का उद्गम भी हुआ, जिसके कारण भी इसका नाम भीमाशंकर पड़ा
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"मंदिर का इतिहास और स्थापत्य कला" |



