इस वर्ष 27 अप्रैल 2026, दिन सोमवार को मोहिनी एकादशी मनाई जाएगी। जानें इस व्रत की शुभ और अशुभ मुहूर्त, तिथि और पूजा विधि, पौराणिक कथा और महत्व। यह व्रत पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग माना जाता है।
📷 मोहिनी एकादशी की तस्वीर जिसमें माता एकादशी की सुसज्जित चित्र आपके सामने है।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी माना गया है। वर्ष भर में 24 एकादशी आती हैं, और प्रत्येक का अपना अलग महत्व, व्रत विधि और पौराणिक प्रसंग होता है। इन सभी में मोहिनी एकादशी विशेष स्थान रखती है।
मोहिनी" शब्द का अर्थ है — वो जो मोह या आसक्ति का नाश करे और मोक्ष का मार्ग दिखाए।
पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से न केवल जीवन के पाप समाप्त होते हैं, बल्कि आत्मा को विष्णुलोक की प्राप्ति भी होती है।
नीचे दिए गए विषयों पर विस्तार से पढ़ें
मोहिनी एकादशी का महत्व, नाम का अर्थ और आध्यात्मिक लाभ। मोहिनी एकादशी 2026 की तिथि और दिन – सही तारीख, दिन, और पंचांग विवरण। पंचांग और शुभ मुहूर्त – सूर्योदय, सूर्यास्त, चंद्रोदय, चारों पहर पूजा के समय, चौघड़िया मुहूर्त का विवरण और शुभ-अशुभ काल। मोहिनी एकादशी का महत्व – धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से महत्व।
पुजा विधि – व्रत और पूजा की विस्तृत चरणबद्ध विधि। पूजा सामग्री सूची – आवश्यक वस्तुएं। व्रत के दौरान क्या करें और क्या न करें – निषेध और सावधानियां। पौराणिक कथा युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण संवाद, वशिष्ठ और श्रीराम संवाद, राजा द्युतिमान के वैश्य पुत्र धृष्ट बुद्धि की कथा। व्रत का फल – धार्मिक ग्रंथों में वर्णित फल और व्रत का सार और पाठकों के लिए संवाद का विस्तार से जानकारी इस ब्लॉग में पढ़ें।
शुभ और अशुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार
मोहिनी एकादशी 2026 की तिथि और दिन
तिथि: 27 अप्रैल 2026, दिन सोमवार
पक्ष: वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी
स्थान: भारत में सभी प्रमुख मंदिरों और घरों में उत्साहपूर्वक व्रत और पूजा होगी।
पंचांग और शुभ मुहूर्त (भारत के अनुसार)
सूर्योदय: सुबह 05:46 बजे
सूर्यास्त: शाम 06:11 बजे
चंद्रोदय: दोपहर 02:28 बजे
चंद्रास्त: रात 02:59 बजे
नक्षत्र: पूर्वाफाल्गुनी (सुबह 7:28 बजे तक), फिर उत्तराफाल्गुनी
योग: ध्रुव (शाम 5:49 बजे तक), फिर व्याघात
ऋतु: ग्रीष्म
सूर्य राशि: मेष
चंद्र राशि: सिंह
चारों पहर पूजा समय:
पंचांग के अनुसार
अभिजीत मुहूर्त दिन के 11:23 से लेकर 12:15 तक
विजय मुहूर्त दोपहर 1:58 से लेकर 2:49 तक
गोधूलि मुहूर्त शाम 6:15 से लेकर 6:37 तक
निशिता रात्रि 11:27 से लेकर 12:11 तक
ब्रह्म मुहूर्त 3:54 से लेकर 4:38 तक
चौघड़िया पंचांग के अनुसार शभ मुहूर्त
अमृत मुहूर्त सुबह 5:15 से लेकर 6:12 तक
शुभ मुहूर्त सुबह 8:29 से लेकर 10:06 तक
चर मुहूर्त दोपहर 1:20 से लेकर 2:57 तक
लाभ सुबह 2:57 से लेकर 4:34 तक
अमृत सुबह शाम 4:34 से लेकर 6:15 तक
चर मुहूर्त 6:15 से लेकर 7:38 तक
लाभ मुहूर्त 10:26 से लेकर 11:49 तक
शुभ रात्रि 1:13 से लेकर 2:36 तक
अमृत मुहूर्त 2:36 से लेकर 4:00 बजे तक
चर मुहूर्त 4:00 बजे से लेकर 5:30 तक
📷 "मोहिनी एकादशी 2026 के दिन चारों पहर पूजन के विशेष मुहूर्त और महत्व"
मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व
पौराणिक कथाओं में इसे संसार के मोह से मुक्ति देने वाला व्रत कहा गया है।
विष्णु पुराण के अनुसार, इस व्रत के प्रभाव से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं।
इस व्रत का फल गंगा स्नान और एक हजार गौदान से भी अधिक बताया गया है।
यह व्रत विशेष रूप से मुक्ति, धन-समृद्धि, और मानसिक शांति के लिए किया जाता है।
पूजा करने का विधि
1. व्रत की शुरुआत: प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. संकल्प: भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें।
3. गौरी-गणेश पूजन: सबसे पहले गणेश जी और माता गौरी की पूजा करें। इसके बाद नौ ग्रहों की पूजा करें।
4. भगवान विष्णु का पूजन ऐसे करें:
जल, पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं।
पीले वस्त्र और आभूषण अर्पित करें।
तुलसी दल अर्पित करें।
5. दीप और धूप: घी का दीपक जलाकर आरती करें।
6. भजन-कीर्तन: विष्णु सहस्रनाम या गीता का पाठ करें।
7. दर्शन और परिक्रमा: मंदिर या घर में भगवान विष्णु की परिक्रमा करें।
📷 पूजा की थाली: भक्ति और परंपरा का प्रतीक, जिसमें गंगाजल, पंचामृत, तांबे का लोटा, घी का दीपक, नारियल, फल और घर के बने पकवान हैं।
पूजा सामग्री सूची
तांबे का लोटा और जल कलश
गंगाजल
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
पीले वस्त्र
आभूषण (अगर उपलब्ध हों)
तुलसी पत्ता
घी का दीपक
धूपबत्ती
पुष्पमाला
नारियल, पान का पत्ता
मौसमी फल और घर के बने पकवान
क्या करें और क्या न करें
करें:
श्रद्धा और भक्ति से व्रत करें
विष्णु नाम का जप करें
दान-पुण्य करें
कथा श्रवण करें
न करें:
मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन का सेवन
क्रोध और झूठ
कांसे के बर्तन में भोजन
जुआ, चुगली, और दूसरों की निंदा
विस्तार से पढ़ें पौराणिक कथा
यहां हमने पूरी कहानी विस्तार से लिख रहा हूं— युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण संवाद, श्रीराम और वशिष्ठ संवाद, भद्रावती नगर, धनपाल और धृष्ट बुद्धि, बहेलिया बनने, कौंडिल्य ऋषि से भेंट, व्रत करने और विष्णुलोक की प्राप्ति तक की कहानी। इसे रोचक और साहित्यिक भाषा में प्रस्तुत करने कि कोशिश की है।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत केवल पाप मुक्ति ही नहीं, बल्कि जीवन को सद्मार्ग पर ले जाने वाला माना गया है। शास्त्रों में इसका उल्लेख कई जगह मिलता है—विशेषकर जब धर्मराज युधिष्ठिर ने स्वयं श्रीकृष्ण से इसके विषय में पूछा। श्रीकृष्ण ने यह कथा सुनाने से पहले बताया कि इसे महर्षि वशिष्ठ ने श्रीरामचंद्र जी को सबसे पहले यह कथा सुनाया था, और इसमें छुपा है पाप से पुण्य की ओर परिवर्तन का अद्भुत संदेश।
📷 पावन एकादशी की कथा: घने जंगल के बीच, एक शांत नदी के किनारे, धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से एकादशी की महिमा सुनते हुए, जीवन के गहरे रहस्यों को समझते हुए। यह दृश्य धर्म और ज्ञान के अटूट संबंध को दर्शाता है।
युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण का संवाद
एक दिन इन्द्र प्रस्थ में धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से विनम्रतापूर्वक पूछा—
> "हे माधव! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किस नाम से जाना जाता है? इसकी क्या कथा है? इसकी पूजा-विधि क्या है? कृपा करके विस्तार से बताइए।"
श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले—
> "राजन्! यह कथा अत्यंत पुण्यदायी और पाप-नाशिनी है। इसे मैंने महर्षि वशिष्ठ से सुना था, जब वे इसे स्वयं श्रीरामचंद्र जी को सुना रहे थे।"
राम और वशिष्ठ का संवाद
त्रेतायुग में, लंका विजय के बाद भी श्रीरामचंद्र जी के मन में सीता माता के वियोग का दुःख और रावण युद्ध की स्मृति थीं। एक दिन वे महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचे और बोले—
> "हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए जिससे मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाएं और जीवन में दुःख का अंत हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग और युद्ध के विक्षोभ में अनेक कष्ट सहे हैं।"
महर्षि वशिष्ठ बोले—
> "हे राम! आपने अत्यंत शुभ और लोक हितकारी प्रश्न किया है। आपके नाम का स्मरण ही मनुष्य को पवित्र कर देता है, फिर भी जनकल्याण के लिए मैं आपको वैशाख शुक्ल एकादशी, जिसे मोहिनी एकादशी कहते हैं, की कथा सुनाता हूं।"
कथा का प्रारंभ
प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नामक एक समृद्ध नगरी थी। यहां चंद्रवंश के राजा द्युतिमान का शासन था। उनकी प्रजा सुखी और समृद्ध थी। इसी नगर में धनपाल नामक एक वैश्य रहता था, जो धर्म, दया और दान के लिए प्रसिद्ध था। उसने नगर में धर्मशालाएं, प्याऊ, तालाब, कुएँ, और सड़कों के किनारे फलदार वृक्ष लगवाए थे।
धनपाल के पांच पुत्र थे—
1. सुमना
2. सद्बुद्धि
3. मेधावी
4. सुकृति
5. धृष्ट बुद्धि
इनमें पांचवां पुत्र धृष्ट बुद्धि पिता के विपरीत स्वभाव का था—अधर्मी, दुराचारी और पाप कर्मों में लिप्त।
📷 यह तस्वीर धनपाल को उनके पांचों पुत्रों, सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्ट बुद्धि के साथ दिखाती है, जो घर के आंगन में बैठकर उनसे ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।
धृष्ट बुद्धि का पतन
धृष्ट बुद्धि न तो देव, न पितर, न बड़े-बुजुर्गों का आदर करता था। वह जुआ खेलता, शराब पीता, वेश्याओं के साथ समय बिताता और मांस भक्षण करता। धीरे-धीरे उसने पिता की कमाई और घर की संपत्ति बर्बाद करनी शुरू कर दी।
धनपाल ने अनेक बार उसे समझाया, लेकिन जब सुधार की कोई आशा न रही, तो एक दिन क्रोधित होकर बोला—
> "आज से तू मेरा पुत्र नहीं। इस घर और संपत्ति से तेरा कोई संबंध नहीं। जा, जहां जाना है जा!"
पिता के घर से निकाले जाने के बाद धृष्ट बुद्धि ने कुछ दिनों तक कपड़े-गहने बेचकर गुजारा किया, लेकिन जब वह भी समाप्त हो गया, तो उसके दुराचारी मित्र और वेश्याएं भी उसे छोड़कर चली गईं।
चोरी और कारावास
जीविका चलाने के लिए वह चोरी करने लगा। पहली बार पकड़ा गया तो राजा ने पिता के सम्मान में चेतावनी देकर छोड़ दिया। लेकिन दूसरी बार जब पकड़ा गया, तो उसे कारागार में डाल दिया गया, जहां उसे बहुत कष्ट झेलने पड़े।
कुछ समय बाद राजा ने उसे नगर से निकाल दिया। अब वह बेसहारा और भटकता हुआ जंगल में पहुंच गया और वहां बहेलिया बनकर पशु-पक्षियों का शिकार करने लगा।
मोक्ष की ओर पहला कदम
एक दिन वैशाख मास में, भूख-प्यास से व्याकुल वह शिकार की तलाश में घूम रहा था। तभी उसकी दृष्टि कौंडिल्य ऋषि के आश्रम पर पड़ी। उस समय ऋषि गंगा स्नान करके लौट रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के कुछ छींटे धृष्ट बुद्धि के शरीर पर पड़े। अद्भुत बात यह हुई कि उन छींटों के स्पर्श से उसके मन में पापबोध और सद्बुद्धि का संचार होने लगा।
वह ऋषि के पास गया और विनम्रतापूर्वक बोला—
> "हे मुनिवर! मैंने जीवन भर पाप ही पाप किए हैं। अब मैं मुक्ति चाहता हूं। कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताइए जो सरल हो और जिसके लिए धन की आवश्यकता न हो।"
📷 घने जंगल में ज्ञान का प्रकाश: कौंडिल्य ऋषि अपने आश्रम में, शांत नदी के किनारे, एक बहेलिए को मोहिनी एकादशी व्रत की पवित्र कथा सुना रहे हैं, जबकि वन के जीव-जंतु शांतिपूर्वक विचरण कर रहे हैं। यह दृश्य ज्ञान के प्रवाह और प्रकृति के साथ सद्भाव का प्रतीक है।
कौंडिल्य मुनि ने दिए मोहिनी एकादशी व्रत का उपदेश
> "वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी का व्रत कर। यह व्रत तेरे सारे पाप नष्ट कर देगा। व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान कर, भगवान विष्णु की पूजा कर, दिनभर उपवास रख और रात को जागरण कर। अगले दिन ब्राह्मण को भोजन करा कर, दक्षिणा देकर स्वयं भोजन करना।"
धृष्ट बुद्धि ने पूरे मन से व्रत किया। उसका हृदय निर्मल हो गया और जीवन में पहली बार उसे आंतरिक शांति का अनुभव हुआ।
व्रत का फल
व्रत के प्रभाव से धृष्ट बुद्धि के सभी पाप नष्ट हो गए। मृत्यु के समय विष्णु दूत स्वयं उसे लेने आए और गरुड़ पर बिठाकर विष्णुलोक ले गए।
महर्षि वशिष्ठ ने निष्कर्ष में कहा—
> "हे राम! मोहिनी एकादशी के समान पाप-नाशक और मोक्षदायक कोई दूसरा व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य का पाठ करने से भी हजार गौदान का फल मिलता है।
संदेश
यह कथा केवल धार्मिक अनुष्ठान का विवरण नहीं, बल्कि जीवन का एक गहरा संदेश है—कोई भी कितना ही पापी क्यों न हो, यदि वह सच्चे मन से भगवान का स्मरण करे और व्रत-उपवास जैसे साधन अपनाए, तो उसका कल्याण निश्चित है।
व्रत का फल
पापों का नाश
सांसारिक मोह से मुक्ति
पुण्य की प्राप्ति
विष्णुलोक की प्राप्ति
आत्मा गरुड़ पर बैठकर, बादलों के बीच से होते हुए विष्णुलोक की ओर जा रही है।
निष्कर्ष
मोहिनी एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 27 अप्रैल 2026 को यह व्रत हमें यह अवसर देगा कि हम जीवन के पापों का नाश करें और आत्मा की शुद्धि की ओर अग्रसर हों।
4. डिस्क्लेमर (Disclaimer)
> यह लेख/सामग्री केवल धार्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक जानकारी साझा करने के उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। मोहिनी एकादशी से जुड़ी कथाएं, व्रत-विधि और मान्यताएं पुराणों, धार्मिक ग्रंथों और लोक परंपराओं पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य किसी विशेष मत, पंथ या व्यक्ति पर अपनी राय थोपना नहीं है। पाठकगण अपनी श्रद्धा, सुविधा और स्वास्थ्य के अनुसार व्रत या पूजन करें तथा आवश्यकता पड़ने पर योग्य आचार्य, पंडित या चिकित्सक से परामर्श लें। इस सामग्री में दी गई जानकारी से उत्पन्न किसी भी धार्मिक या व्यक्तिगत निर्णय की पूरी ज़िम्मेदारी पाठक की स्वयं होगी।