"2026, 13 मई, दिन बुधवार, जेष्ठ कृष्ण पक्ष को मनाई जाएगी। जानें इसकी तिथि, व्रत की विधि, पौराणिक कथा, शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन सामग्री की पूरी जानकारी।"
"अपरा एकादशी 2026, अचला एकादशी, अपरा एकादशी व्रत कथा, अपरा एकादशी तिथि, अपरा एकादशी पूजा विधि, अपरा एकादशी का महत्व, अपरा एकादशी पौराणिक कथा, Achala Ekadashi 2026, Apara Ekadashi Vrat"
📸"भगवान त्रिविक्रम श्रीहरि विष्णु के चरणों में अपरा/अचला एकादशी 2026 का मंगल संदेश — पापों से मुक्ति और परम आनंद की ओर।"
"अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, गौहत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा करने से उपजे हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, न्यायालय या पंचायत में झूठी गवाही देना, किसी से भी झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या लिखना, झूठे ज्योतिषी बनना तथा झूठे वैद्य बनकर मरीजों को ठगना आदि सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं।पंचांग के अनुसार जानें एकादशी के दिन कैसा रहेगा"
"13 मई 2026, दिन गुरुवार को ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को अचला एकादशी है। सूर्य वृषभ राशि में और चंद्रमा मीन राशि में रात12:39 बजे तक इसके बाद मेष राशि में प्रवेश कर जायेंगे। सूर्य का नक्षत्र रोहिणी है।"
"सूर्योदय 5:00 बज के 1 मिनट पर और सूर्यास्त 6:24 बजे पर चंद्रोदय देर रात 2:52 बजे पर और चंद्रास्त दूसरे दिन के 2:52 बजे पर होगा। दिनमान 13 घंटे 22 मिनट का रहेगा और रात्रि मान 10 घंटे 37 मिनट का होगा।"
"अचला एकादशी के दिन आनंदादी योग मित्र रात के 12:39 बजे तक इसके बाद मानस हो जाएगा। होमाहुति राहु देर रात 12:39 बजे तक, इसके बाद केतु हो जाएगा। चन्द्र वास उत्तर, दिशाशूल दक्षिण, राहु वास दक्षिण, अग्निवास पृथ्वी सुबह के 10:54 तक इसके बाद आकाश हो जाएगा।"
"अब जानें कौन मुहूर्त में करें पूजन"
"अचला एकादशी के दिन अभिजीत मुहूर्त नहीं है"।
"काशी पंचांग के अनुसार पूजा करने का शुभ मुहूर्त"
"पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त दोपहर 01:54 बजे से लेकर 02:47 बजे तक विजया मुहूर्त के रूप में है। उसी प्रकार गोधूलि मुहूर्त शाम 06:17 बजे से लेकर 06:38 बजे तक, संध्या मुहूर्त 06:18 बजे से लेकर 07:23 बजे तक, मध्य रात्रि का निशिता मुहूर्त 11:20 बजे से लेकर 12:03 बजे तक, ब्रह्मा मुहूर्त 03:39 बजे से लेकर 04:23 बजे तक और प्रातः मुहूर्त 04:01 बजे से लेकर 05: 06 बजे तक है। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं।"
"पंचांग के अनुसार अशुभ मुहूर्त"
"पंचांग के अनुसार राहुकाल का आगमन दिन के 11:51 बजे से लेकर 01:21 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार यमगण्ड काल सुबह 06:45 बजे से लेकर 08:24 बजे तक और गुलिकाल सुबह 10:03 बजे से लेकर 11:42 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार दुमुर्हत काल सुबह 11:15 बजे से लेकर 12:08 बजे तक और वज्य काल दिन के 10: 29 बजे से लेकर 12:01 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित है"।
"चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार दिन शुभ मुहूर्त"
"चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है। सुबह 05:06 बजे से लेकर 06:45 बजे तक का लाभ मुहूर्त का संयोग रहेगा। अमृत मुहूर्त का आगमन दोपहर 06:45 बजे से लेकर 08:24 बजे तक रहेगा। उसी प्रकार शुभ मुहूर्त दोपहर 10:03 बजे से लेकर 11:42 बजे तक और चर मुहूर्त सुबह के 03:00 बजे से लेकर दोपहर 04:39 बजे तक रहेगा। शाम के समय एक बात फिर से लाभ मुहूर्त का आगमन हो रहा है जो शाम 04:39 बजे से लेकर 06:18 बजे तक रहेगा। इस दौरान जातक पूजा अर्चना कर सकते हैं"।
"चौघड़िया मुहूर्त दिन का अशुभ मुहूर्त"
"चौघड़िया पंचांग के अनुसार दिन अशुभ मुहूर्त सुबह 08:24 बजे से लेकर 10:03 बजे तक काल मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार सुबह 11:00 बज के 42 मिनट से लेकर 01:00 बज के 21 मिनट तक रोग मुहूर्त रहेगा। उसी प्रकार दिन के 01:21 बजे से लेकर शाम के 03:00 बजे तक तक उद्धेग मुहूर्त का संयोग रहेगा। इस दौरान पूजा अर्चना करना वर्जित रहेगा"।
"रात्रि चौघड़िया शुभ मुहूर्त"
"रात्रि समय का चौघड़िया पंचांग के अनुसार शुभ मुहूर्त रात 07:39 बजे से लेकर 09:00 बजे तक रहेगा। 09:00 बजे से लेकर रात 10:21 बजे तक अमृत मुहूर्त और मध्य रात्रि 10:21 बजे से लेकर 11:42 बजे तक चर मुहूर्त है। देर रात 02:23 बजे से लेकर 03:44 बजे तक लाभ मुहूर्त का संयोग है। एक बार फिर से प्रातः काल 05:05 बजे से लेकर 06:44 बजे तक शुभ मुहूर्त का संजोग रहेगा। इस दौरान दो-पहर की पूजा अर्चना जातकों कर सकते हैं। इस वक़्त पूजा करना काफी लाभप्रद होगा"।
📸"अपरा एकादशी 2026 की शुभ तिथि! यह रंगीन पंचांग 13 मई 2026 के लिए शुभ और अशुभ मुहूर्त दर्शाता है"।
*अपरा एकादशी के शुभ मुहूर्त 2026
*व्रत एवं पूजा विधि
*दशमी के दिन की तैयारी
*व्रत का संकल्प
*भगवान त्रिविक्रम का पूजन क्रम (धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत स्नान, मंत्र जप, सहस्त्रनाम पाठ)
*रात्रि जागरण का महत्व
*द्वादशी पारण की विधि
*दान और ब्राह्मण भोजन
"पूजन सामग्री सूची"
"तांबे या पीतल का लोटा, जल का कलश, दूध, भगवान श्रीहरि को पहनाने के लिए वस्त्र और आभूषण, चावल, कुमकुम, दीपक, जनेऊ, तिल, फूल, अष्टगंध, तुलसी दाल, प्रसादी के लिए गेहूं आटे की पंजीरी, फल, धूप, मिठाई नारियल, मधु, गंगा जल, सूखे मेवे, गुड़ और पान के पत्ते ब्राह्मणों को दक्षिणा देने के लिए रुपए रख लें"।
*व्रत एवं पूजा विधि
*दशमी के दिन की तैयारी
*व्रत का संकल्प
*भगवान त्रिविक्रम का पूजन क्रम (धूप, दीप, नैवेद्य, पंचामृत स्नान, मंत्र जप, सहस्त्रनाम पाठ)
*रात्रि जागरण का महत्व
*द्वादशी पारण की विधि
*दान, ब्राह्मण भोजन और पारण
📸 "पवित्र नदी के किनारे एक भव्य मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति के सामने भारतीय परिधान पहने हुए भक्तगण दीपक जलाकर पूजा अर्चना कर रहे हैं"।
"अपरा एकादशी का महत्व"
*पापों से मुक्ति
*धन और यश की प्राप्ति
*विशेष पुण्य (तीर्थ स्नान, पितृ तर्पण, दान से भी अधिक फल)थ
"अपरा एकादशी महात्म्य — विस्तृत कथा"
"भूमिका"
"सनातन धर्म के अनगिनत व्रतों में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। वर्षभर में आने वाली चौबीस एकादशियों के नाम, स्वरूप और फल भिन्न-भिन्न हैं, किन्तु सभी का उद्देश्य एक ही — भक्त को पापों से मुक्त कर भगवान की शरण में पहुंचाना"।
"ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहते हैं"।
“अपरा” का अर्थ — जिसका फल अपरिमित हो, जिसकी महिमा की सीमा न हो।
"पुराण कहते हैं" —
> अपरा नाम्नि या प्रोक्ता सर्वपापप्रणाशिनी।
कर्तव्या सर्वदा भक्त्या विष्णुलोके महीयते॥
"इस व्रत के महात्म्य को भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया, और युधिष्ठिर ने इसे समस्त जगत के कल्याण हेतु प्रचारित किया"।
"यहां भगवान कृष्ण और महाराज युधिष्ठिर की एक तस्वीर है, जिसमें भगवान कृष्ण उन्हें एकादशी व्रत की कथा सुना रहे हैं"।
"भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का संवाद"
"एक दिन पांडवों के ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिर ने भगवान से निवेदन किया" —
> “हे माधव, हे जनार्दन! आपने व्रतों के विषय में अनेक बार मुझे उपदेश दिया है। कृपा करके अब ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम, विधि और महात्म्य विस्तार से कहें। इसे करने से कौन-सा फल प्राप्त होता है?”
"श्रीकृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा" —
> “हे धर्मराज! ध्यानपूर्वक सुनो। इस एकादशी का नाम ‘अपरा’ है। यह समस्त पापों का नाश करने वाली, पुण्य देने वाली और भक्त को मोक्ष प्रदान करने वाली है। इसका श्रवण मात्र ही मनुष्य के पाप नष्ट कर देता है, फिर जो विधिपूर्वक व्रत करे, उसका तो कहना ही क्या।”
"विदर्भ देश और राजा मही ध्वज"
"पुराने समय में विदर्भ देश नामक राज्य में एक पराक्रमी, धर्मनिष्ठ और दयालु राजा राज्य करते थे — मही ध्वज"।
"उनका हृदय वैराग्य से युक्त और आचरण धर्मशास्त्र के अनुरूप था"।
"राजा प्रतिदिन ब्राह्म मुहूर्त में उठते, स्नान करते, संध्या-वंदन, गायत्री-जप और भगवान विष्णु की पूजा करते, फिर राजकार्य में प्रवृत्त होते"।
"नकि प्रजा उन्हें “पृथ्वी का पिता” मानती थी। राज्य में किसी को अभाव नहीं था" —
*खेतों में सुनहरी फसलें लहलहातीं,
*गौशालाओं में दूध की नदियां बहतीं,
*बाजारों में रौनक और समृद्धि थी।
*वज्रध्वज का चरित्र
*महीध्वज का एक छोटा भाई था — वज्रध्वज।
"यह नाम भले ही वीरता का प्रतीक था, पर स्वभाव में वह ईर्ष्यालु, आलसी और विलासी था"।
*उसे मद्यपान, जुआ और अय्याशी में आनंद आता।
*राजकाज में उसकी रुचि नहीं थी, लेकिन राजगद्दी पाने की लालसा प्रबल थी।
*धीरे-धीरे उसके हृदय में एक ही विचार घर करने लगा —
"अगर बड़ा भाई जीवित रहा, तो मैं राजा कैसे बनूंगा?"।
"षड्यंत्र की अमावस्या"
"एक अमावस्या की रात। आकाश में चंद्रमा का नामोनिशान नहीं, घना अंधकार, केवल दीपक की मंद लौ"।
"महल के भीतर राजा मही ध्वज ध्यानमग्न थे — “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का मंत्र उनके ओठों पर था"।
"तभी वज्रध्वज तलवार लिए दबे पांव कमरे में घुसा। उसकी आँखों में ईर्ष्या की ज्वाला थी।पीछे से वार करते हुए उसने राजा की पीठ में तलवार भोंक दी"।
"यहां राजा की एक तस्वीर है, जो अपने महल के कमरे में ध्यान कर रहा है, जबकि उसका छोटा भाई पीछे से तलवार से हमला कर दिया है"।
"राजा ने आश्चर्य से मुड़कर देखा" —
"भाई…? तुम?"
"और फिर कुछ ही क्षण में वे भूमि पर गिर पड़े"।
"गुप्त दफन और प्रेत योनि"
*वज्रध्वज ने को आधी रात में महल से बाहर निकालकर घने जंगल में पहुंचा दिया।
*एक प्राचीन पीपल वृक्ष के नीचे गड्ढा खोदकर शव को मिट्टी में दबा दिया।
*अंतिम संस्कार न होने के कारण, और हत्या की अकाल मृत्यु के कारण, राजा मही ध्वज की आत्मा प्रेत योनि में बंध गई।
कैप्शन: "पीपल के पेड़ पर लटके प्रेत रूप में राजा और नीचे खड़े धौम्य ऋषि, एक शांत नदी के किनारे एक घने जंगल"।
"वह एक भयानक पिशाच बन गए"
*उनका शरीर विकराल,
*आंखें अंगारों जैसी लाल,
*दात तलवार जैसे नुकीले।
*रात होते ही उनकी करुण चीत्कार गूंजती —
"कोई है… जो मुझे इस बंधन से मुक्त करे?"
*धौम्य ऋषि का आगमन
*समय बीतता गया।
"एक दिन महा प्रतापी धौम्य ऋषि तीर्थयात्रा करते-करते उसी वन में पहुंचे"।
"उनके चरण जैसे ही पीपल के नीचे पड़े, उन्होंने अदृश्य करुण पुकार सुनी"।
"ऋषि ने ध्यान लगाया और दिव्य दृष्टि से देख लिया" —
"अरे! यह तो धर्मात्मा मही ध्वज राजा हैं, जो पिशाच रूप में पीड़ित हैं"।
"राजा की व्यथा"
*धौम्य ऋषि ने कहा —
"हे आत्मा! अपना परिचय दो, यह विकराल रूप क्यों?"
"राजा ने करुण स्वर में उत्तर दिया" —
"मुनिवर, मैं विदर्भ का राजा मही ध्वज हूं। मेरे छोटे भाई ने विश्वासघात कर मेरी हत्या कर दी। अंतिम संस्कार न होने से मैं इस योनि में फँस गया हूँ। हे कृपालु, मुझे इस कष्ट से मुक्त कीजिए।"
"यहां भूत बने राजा और ऋषि की एक तस्वीर है, जो एक शिला पर बैठकर आपस में बात कर रहे हैं और मुक्ति के मार्ग पर चर्चा कर रहे हैं"।
*ऋषि का संकल्प
*धौम्य ऋषि बोले —
"राजन, चिंता मत करो। कुछ ही दिनों में ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी आने वाली है। मैं उस दिन उपवास, पूजन और जागरण करूंगा और व्रत का सारा पुण्य तुझे अर्पित कर दूँगा। यह व्रत महा पापियों का भी उद्धार करता है, तेरे पाप तो तुच्छ हैं।"
*राजा ने आंसुओं से भरे नेत्रों से आभार प्रकट किया।
"व्रत की विधि"
"एकादशी के दिन प्रातःकाल धौम्य ऋषि ने नदी में स्नान किया, श्वेत वस्त्र धारण किए, आसन पर बैठकर भगवान त्रिविक्रम की मूर्ति स्थापित की"।
*पंचामृत से अभिषेक,
*चंदन, फूल, धूप-दीप,
*तुलसी दल अर्पण।
*पूरा दिन निराहार रहकर हरिनाम संकीर्तन।
*रात्रि में भजन-कीर्तन और जागरण।
*द्वादशी को पारण करके व्रत का फल राजा मही ध्वज को समर्पित कर दिया।
"मुक्ति का क्षण"
"ज्यों ही पुण्य अर्पित हुआ, पीपल वृक्ष से तेजोमय प्रकाश निकला"।
"पिशाच का रूप लुप्त हुआ और वहां दिव्य स्वरूपधारी राजा प्रकट हुए — रत्न मुकुट, पीतांबर, करकमलों में शंख-चक्र"।
"राजा बोले" —
"हे मुनिवर! आपके व्रत के पुण्य से मैं प्रेत योनि से मुक्त हुआ। अब मैं विष्णुलोक को जा रहा हूँ।"
"आकाश से पुष्प वृष्टि होने लगी, गंधर्व गान करने लगे"।
राजा पुष्पक विमान में बैठकर “ॐ नमो नारायणाय” जपते हुए विष्णुधाम को प्रस्थान कर गए।
"यहां राजा की आत्मा की एक तस्वीर है, जो पुष्पक विमान पर बैठकर विष्णु लोक की ओर जा रही है"।
"श्रीकृष्ण का उपसंहार"
*भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा —
> “हे धर्मराज! जो अपरा एकादशी का व्रत करता है, वह महापापों से मुक्त होकर मोक्ष पाता है। इस व्रत के पुण्य से ब्राह्मण को गोदान, कन्यादान, गंगा स्नान, हजारों यज्ञों का फल एक साथ मिलता है।
*इसके प्रभाव से चोरी, हत्या, व्यभिचार, झूठ, छल—सब पाप नष्ट हो जाते हैं।”*
"संदेश"
"अपरा एकादशी केवल व्रत नहीं, बल्कि क्षमा, करुणा और धर्म पालन का स्मरण कराती है। जो इसे श्रद्धा से करता है, वह संसार के बंधनों से मुक्त होकर प्रभु के धाम में स्थान पाता है"।
"पौराणिक कथा में क्या पढ़ा"
*मुख्य कथा:
*राजा मही ध्वज और उसके पापी भाई वज्रध्वज की कहानी।
*हत्या और पीपल के नीचे दफनाने की घटना।
*प्रेत योनि और महा पिशाच रूप।
*धौम्य ऋषि का आगमन, पिचाश का उद्धार।
*अचला एकादशी व्रत कर पुण्य समर्पण।
*राजा का दिव्य देह धारण कर विष्णु धाम गमन।
*कथा के संदेश और शिक्षा।
"कथा का संदेश"
"भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा"—
"हे धर्मराज! अपरा एकादशी का व्रत इतना प्रभावी है कि यह महान पापियों तक का उद्धार कर देता है। जो इसे श्रद्धा से करता है, वह सभी सांसारिक और आध्यात्मिक दोषों से मुक्त होकर भगवान के धाम को प्राप्त करता है।"
11. "डिस्क्लेमर"
"इस ब्लॉग में प्रस्तुत सभी जानकारी प्राचीन हिंदू शास्त्रों, पुराणों, धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। हमने अपरा एकादशी से संबंधित कथा, पूजा विधि, महत्व और मान्यताओं को सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि पाठक। गण इससे लाभ उठा सकें और अपनी श्रद्धा को और दृढ़ कर सकें। कृपया ध्यान दें कि यह लेख धार्मिक आस्था और जानकारी साझा करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई सामग्री का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति, संप्रदाय, विचारधारा या मान्यता को आहत करना नहीं है। पूजा-पाठ और व्रत-विधान करने से पूर्व स्थानीय परंपरा, परिवार की मान्यता या किसी विद्वान पंडित की सलाह लेना उचित रहेगा। पाठकों से निवेदन है कि इस ब्लॉग को आस्था और ज्ञानवर्धन की दृष्टि से पढ़ें और इसका उपयोग सकारात्मक दिशा में करें"