क्या है गोधन की परंपरा" और "यम-यमी क्यों कूटते हैं, जानें विस्तार से

 ** जानिए बिहार, झारखंड, UP के आदिवासी सहित अन्य जातियों के गांवों में भैया दूज पर गोबर से यम-यमी बनाकर मूसल से क्यों कूटा जाता है? गोधन कूटने की अनूठी प्रथा और महत्व। 

विषयानुसार अलग-अलग सुर्खियों (जैसे "गोधन कूटना - मूसल से प्रहार", "क्यों कुटते हैं यम-यमी?") में बांटा गया है, जिससे पढाने और समझने में मदद मिलेगी। और ग्रामीण संस्कृति में इसकी गहरी जड़ों के बारे में पढ़ें। भाई की दीर्घायु की मंगल कामना का यह लोक संस्कृति है।

 * ग्रामीण भारत की परंपरा: गोधन और कला का संगम की मनमोहक तस्वीर।

 (ग्रामीण महिलाएं बड़े ही लगन से गोबर से बनी कलाकृतियों को मूसल से कूट रही हैं, जो यम-यमी और रेगनी के कांटे के पारंपरिक चित्रों को जीवंत करती हैं। यह दृश्य भारतीय गांवों की समृद्ध संस्कृति और सामुदायिक भावना को दर्शाता है।)

नीचे दिए गए विषय पर विस्तार से जानकारी पाएं इस ब्लॉग में 

* भैया दूज गोधन की परंपरा

    * गोबर से यम यमी की पूजा

    * गोधन कूटना क्यों?

    * गोधन बिहार और झारखंड

    * यम द्वितीया ग्रामीण रीति

    * गोधन का विशेष परंपरा

    * मूसल से यम की कुटाई

    * रेगनी का कांटा गोधन 

* ग्रामीण परिवेश अन्य प्रदेश

    * भाई बहन अनूठा त्योहार

    * लोक संस्कृति गोधन

    * यमराज यमुना पूजा विधि

    * गोबर पूजा गोधन

    * बहन भाई दीर्घायु व्रत

## भैया दूज की अनूठी गोधन परंपरा: बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों का हृदयस्पर्शी उत्सव

"भैया दूज" – यह नाम सुनते ही मन में भाई-बहन के अटूट प्रेम, टीका-फोता और मिठाई की मिठास की तस्वीर उभर आती है। लेकिन बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में इस त्योहार की धड़कन एक अलग ही लय में बजती है। यहां इसे **"गोधन कूटना"** या **"यम-यमी पूजा"** की अनूठी प्रथा के नाम से भी जाना जाता है, जो इस उत्सव को एक विशिष्ट पहचान देती है।

**क्या है भैया दूज का मूल सार?**

भैया दूज, जिसे भ्रातृ द्वितीया, भाई फोटा या यम द्वितीया भी कहते हैं, दिवाली के दो दिन बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। यह त्योहार **भाई-बहन के पवित्र रिश्ते, प्रेम और सुरक्षा की कामना** को समर्पित है। बहनें अपने भाइयों के दीर्घायु, स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना करती हुई व्रत रखती हैं, उन्हें तेल मालिश कर यमुना के पवित्र जल के प्रतीकात्मक स्नान का आशीर्वाद देती हैं, और अपने हाथों से विभिन्न स्वादिष्ट पकवान खिलाकर उनके जीवन की मंगलकामना करती हैं। भाई का बहन के घर भोजन करना इस दिन का विशेष महत्व रखता है।

**ग्रामीण हृदय की धड़कन: गोधन कूटना और यम-यमी पूजा**

लेकिन बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों में भैया दूज की सुबह एक विशेष गतिविधि से शुरू होती है:

1. **गोबर से यम-यमी का निर्माण:** सुबह-सुबह, बहनें (अक्सर अन्य महिलाओं के साथ मिलकर) गाय के ताजे गोबर से **यमराज (मृत्यु के देवता)** और उनकी बहन **यमुना (यमी)** की प्रतिमाएं जमीन पर बनाती हैं। ये प्रतिमाएं सादगीपूर्ण लेकिन पूर्ण आस्था से सजाई जाती हैं।

यमराज और यमुना: गोबर कला का अद्भुत रूप की तस्वीर 

2. **प्रतीकों की सजावट:** इन गोबर की मूर्तियों की छाती पर विभिन्न प्रतीकात्मक वस्तुएं रखी जाती हैं:

    * **सुपारी:** समृद्धि और आयु का प्रतीक।

    * **ईंट/पत्थर:** दृढ़ता और स्थिरता का प्रतीक। कभी-कभी बुरी नजर से बचाव के लिए।

    * **रेगनी का कांटा (एक कंटीली झाड़ी का कांटा):** यह सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है, जिसका अंत में विशेष उपयोग होता है।

3. **गोधन कूटना - मूसल से प्रहार:** अब आती है वह अनूठी और दृश्यात्मक परंपरा जिसे **"गोधन कूटना"** कहा जाता है। बहनें लकड़ी के **मूसल** (मूसली, एक मोटा डंडा जिससे अनाज कूटा जाता है) उठाती हैं और पूरी श्रद्धा के साथ, परंपरागत गीत गाते हुए, यम-यमी की गोबर से बनी इन मूर्तियों पर प्रहार करती हैं, उन्हें कुटती हैं और तोड़ देती हैं। यह क्रिया सामूहिक रूप से, अक्सर हर्षोल्लास के साथ की जाती है।

4. **क्यों कुटते हैं यम-यमी? प्रतीकात्मक अर्थ:**

    * **भाई की लंबी उम्र की मांग:** यमराज मृत्यु के देवता हैं। उनकी प्रतिमा को कुटकर तोड़ना, **मृत्यु पर विजय पाने** और अपने भाई को **यमराज के प्रभाव से मुक्त करने** की प्रतीकात्मक क्रिया है। यह भाई की **दीर्घायु और अखंड मंगल कामना** का सबसे मजबूत और साकार रूप है। बहनें इस दौरान गीत गाती हैं: *"भैया मोर सुखी रहे, दुख ना देखे कोय..."* (मेरा भाई सुखी रहे, उसे कोई दुख ना देखे)।

    * **बुराई पर अच्छाई:** गोबर को पवित्र और शुद्ध माना जाता है। गोबर की मूर्ति को तोड़ना बुराई, नकारात्मकता और संकटों को तोड़ने का प्रतीक भी है।

    * **यमुना का स्मरण:** यमी (यमुना) का प्रतीक भी कुटा जाता है, जो शायद यमराज के प्रभाव से भाई को मुक्ति दिलाने में उनकी भूमिका के प्रति सम्मान और फिर उस बंधन को तोड़ने का संकेत हो सकता है।

5. **प्रायश्चित और अंतिम क्रिया - रेगनी का कांटा:** गोधन कूटने के बाद की क्रिया अत्यंत महत्वपूर्ण है। बहनें वहां रखे **रेगनी के कांटे** को उठाती हैं और उसे अपनी **जीभ (जिव्हा)** पर हल्का सा छूभाती हैं (चुभोती नहीं, बल्कि स्पर्श करती हैं)। यह एक प्रकार का **प्रायश्चित** है। इसका अर्थ यह माना जाता है कि यमराज जैसे शक्तिशाली देवता की प्रतिमा को तोड़ने के लिए उनसे क्षमा याचना की जा रही है। यह क्रिया त्योहार की आध्यात्मिक गहराई और श्रद्धा-भय के मिश्रण को दर्शाती है।

**गोधन कूटने का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:**

* **सामुदायिक बंधन:** यह क्रिया अक्सर गांव की महिलाएं और बहनें सामूहिक रूप से करती हैं, जिससे सामुदायिक भावना मजबूत होती है।

* **लोक संस्कृति का प्रतीक:** यह परंपरा ग्रामीण जीवन, प्रकृति (गोबर) और स्थानीय विश्वासों से गहराई से जुड़ी हुई है।

* **भावनात्मक अभिव्यक्ति:** मूसल से कुटाई भाई के लिए बहन के प्रेम और उसकी चिंता को एक शारीरिक अभिव्यक्ति देती है – जैसे वह मूर्त रूप में ही भाई के सभी कष्टों को दूर कर रही हो।

तस्वीर में यमुना अपने भाई यमराज को भोजन करवाती हुई दिख रही है।

* **पौराणिक आधार:** यह सीधे यमराज और यमुना की कथा से जुड़ी है, जहां यमुना के आग्रह पर यमराज ने उनके घर भोजन किया और यह वरदान दिया कि इस दिन जो बहन भाई को टीका लगाएगी और भाई बहन के घर भोजन करेगा, उसकी आयु लंबी होगी। गोधन कूटना इसी कथा का एक सशक्त लोक रूपांतरण है।

**निष्कर्ष: एक जीवंत परंपरा का संदेश**

भैया दूज की यह "गोधन कूटना" परंपरा सिर्फ एक रस्म नहीं; यह बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण हृदय की वह स्पंदन है जो भाई-बहन के प्रेम को सदियों पुराने प्रतीकों और ऊर्जावान क्रियाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करती है। 

यह हमें याद दिलाती है कि त्योहारों का सच्चा सार उनकी रूढ़ियों में नहीं, बल्कि उन भावनाओं और संदेशों में छिपा होता है जो वे हमारे दिलों तक पहुंचाते हैं – प्रेम, सुरक्षा, दीर्घायु और बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश। 

आज के तेजी से बदलते शहरीकरण के दौर में, ऐसी अनूठी ग्रामीण परंपराओं को संजोकर रखना हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

**आइए, इस भैया दूज पर हम भाई-बहन के इस पवित्र बंधन को याद करें और गोधन कूटने जैसी अनूठी परंपराओं के माध्यम से प्रदत्त दीर्घायु और मंगल के संदेश को आत्मसात करने की आग्रह रंजीत सिंह कर रहा है।**

### **डिस्क्लेमर**  

इस ब्लॉग का उद्देश्य भैया दूज पर **बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों** में प्रचलित "गोधन कूटना" की अनूठी परंपरा के बारे में सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करना है। कृपया ध्यान दें:  
01. यह सामग्री **स्थानीय लोक परंपराओं** पर आधारित है। अन्य क्षेत्रों में रीति-रिवाज़ भिन्न हो सकते हैं।  
02. गोबर से यम-यमी बनाने, मूसल से कुटाई या रेगनी के कांटे के उपयोग जैसी प्रथाएं **मौखिक विरासत व सामुदायिक मान्यताओं** से जुड़ी हैं। इनका धार्मिक ग्रंथों में प्रत्यक्ष उल्लेख न होना संभव है।  
03. यह ब्लॉग **किसी धार्मिक अनुष्ठान का मार्गदर्शन नहीं है**। व्यवहारिक पालन हेतु स्थानीय विद्वानों से परामर्श लें।  
04. गांवों में प्रतीकों के स्वरूप या प्रक्रिया की बारीकियां **स्थानीय परंपरानुसार बदल सकती हैं**।  
05. सभी सामग्री **शोध व प्रामाणिक स्रोतों** पर आधारित है। © 2025 [आपकी वेबसाइट का नाम]। बिना अनुमति उपयोग प्रतिबंधित।  
06. यह लेख **किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है**। त्रुटियां होने पर कृपया हमें सूचित करें।  

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