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हर साल कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को देशभर में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और गौ सेवा, प्रकृति प्रेम और सामाजिक एकता का प्रतीक है। इस दिन गौ सेवा को अत्यंत फलदायी और पुण्य का कार्य माना जाता है।
यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, कृषि और पशुधन के प्रति सम्मान का भी एक अनुपम उदाहरण है। आइए, इस पवित्र पर्व के महत्व, इसकी पौराणिक कथाओं और इसे मनाने के तरीकों पर विस्तार से चर्चा करें।
गोवर्धन पर्वत को पूजा-अर्चना करते ग्रामवासियों
गोवर्धन पूजा 2025: तिथि, मुहूर्त और पंचांग
सन् 2025 में, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव बुधवार, 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा. यह दिन कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि है।
पंचांग के अनुसार विवरण:
* तिथि: कार्तिक मास, प्रतिपदा
* दिन: बुधवार
* प्रतिपदा तिथि का समय: रात 08 बजकर 16 मिनट तक रहेगा
* नक्षत्र: स्वाति
* योग: प्रीति
* सूर्योदय: सुबह 05 बजकर 45 मिनट पर
* सूर्यास्त: शाम 05 बजकर 14 मिनट पर
* सूर्य की स्थिति: तुला राशि में
* चंद्रमा की स्थिति: तुला राशि में
* आनन्दादि योग: ध्रुव
* होमाहुति: सूर्य
* दिशाशूल: उत्तर
* राहु वास: दक्षिण-पश्चिम
* अग्नि वास: पाताल
* चंद्रमा वास: पश्चिम
पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा में सुबह के समय पूजा करने का विधान है। सुबह के समय अमृत मुहूर्त और शुभ मुहूर्त का अद्वितीय संयोग है। अमृत मुहूर्त सुबह 07:11 बजे से लेकर 08:37 बजे तक है जबकि शुभ मुहूर्त 10:03 बजे से लेकर 11:30 बजे तक है। लोग अपने सुविधा अनुसार इन शुभ मुहूर्त में पूजा करें।
शुभ दिन और शुभ मुहूर्त गौपालकों और भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, जब वे अपनी गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
गोवर्धन पूजा का महत्व: गौ सेवा और प्रकृति संरक्षण
गौ माता हमें दूध, दही, घी जैसे पौष्टिक उत्पाद प्रदान करती हैं और कृषि में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। गोवर्धन पूजा हमें यह सिखाती है कि हमें उन सभी चीजों का सम्मान करना चाहिए जो हमारे जीवन को बनाए रखने में मदद करती हैं, चाहे वे जानवर हों, पहाड़ हों या प्रकृति के अन्य तत्व. यह पर्व पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
गोवर्धन पूजा के दिन गौपालक क्या करें?
गोवर्धन पूजा का दिन गौपालकों के लिए अत्यंत विशेष होता है. इस दिन वे अपने पशुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं और उन्हें सजाते-संवारते हैं.
गौ सेवा के विशेष अनुष्ठान:
* शुद्धिकरण और स्नान: सुबह उठकर गौपालक सबसे पहले अपने जानवरों को शुद्ध जल से स्नान कराते हैं, जिससे वे स्वच्छ और पवित्र हो जाएं.
* घी का लेप: स्नान के बाद, गायों के सिर पर घी का लेप लगाया जाता है, जिसे शुभ और पवित्र माना जाता है.
* रंगोली और चित्रकारी: गौपालक अपने पशुओं के शरीर पर विभिन्न तरह के रंगों से आकर्षक चित्रकारी बनाते हैं. यह उन्हें सजाने और उनके प्रति प्रेम व्यक्त करने का एक तरीका है.
* घुंघरू और सजावट: गायों के पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं और उनके शरीर पर तरह-तरह के सजावटी सामान जैसे झालर, घंटियाँ आदि से सजाया जाता है. इससे वे और भी सुंदर और उत्सवपूर्ण दिखती हैं.
* पौष्टिक आहार: इस दिन गायों को पौष्टिक और स्वादिष्ट आहार खिलाया जाता है, जिसमें हरी घास, गुड़, चोकर और अन्य पौष्टिक पदार्थ शामिल होते हैं. यह उनके अच्छे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है.
* परिक्रमा और आरती: कई स्थानों पर गौपालक अपनी गायों के साथ गोवर्धन पर्वत या गोवर्धन की प्रतीकात्मक आकृति की परिक्रमा करते हैं और उनकी आरती भी करते हैं.
यह सभी अनुष्ठान गौ माता के प्रति सम्मान, प्रेम और कृतज्ञता का प्रतीक हैं, जो हमारी कृषि प्रधान संस्कृति का अभिन्न अंग हैं.
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथाएं: इंद्र का घमंड और कृष्ण की लीला
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव का विस्तार से वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण में किया गया है. यह कथा भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने इंद्र के घमंड को चूर-चूर कर दिया था और ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
इंद्र यज्ञ की तैयारी और श्रीकृष्ण का तर्क:
कथा के अनुसार, एक बार नंद बाबा और सभी ग्वालों ने इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए एक विशाल यज्ञ की तैयारी की। इंद्रदेव वर्षा के देवता माने जाते हैं और कृषि उनके आशीर्वाद पर निर्भर करती है। नंद जी ने कहा कि अब समय आ गया है कि इंद्र को याद कर उन्हें खुश किया जाए।
इस पर भगवान श्रीकृष्ण, जो उस समय एक बालक के रूप में थे, ने अपने पिता और ग्वालों को समझाया कि यह अनुचित है. उन्होंने कहा कि संसार की स्थिति, उत्पत्ति और उसका अंत क्रमशः सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण के कारण है. यह संपूर्ण जगत स्त्री और पुरुष के संयोग से रजोगुण द्वारा उत्पन्न होता है. उसी रजोगुण की प्रेरणा से मेघगण सभी जगहों पर जल बरसाते हैं. जल से अन्न का उत्पादन होता है और उपजे अन्न से ही सभी जीवों की जीविका चलती है. इसमें भला इंद्र का क्या लेना-देना है?
श्रीकृष्ण ने अपने पिता को यह भी समझाया कि: "पिताश्री, न तो हमारे पास किसी देश का राज्य है और ना तो बड़े-बड़े नगर ही हमारे अधीन हैं. हमारे पास गांव या घर भी नहीं है. हम वनवासी हैं, हमारा जीवन गायों और गोवर्धन पर्वत पर निर्भर करता है."
इंद्र की पूजा का विरोध और गिरिराज की उपासना का प्रस्ताव:
भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इंद्र की पूजा करना अनुचित है. इसके बजाय, उन्होंने गौओं, ब्राह्मणों और गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) की पूजा करने का सुझाव दिया।
श्रीकृष्ण ने कहा: "इंद्र यज्ञ के लिए जो सामग्रियां इकट्ठी की गई हैं, उन्हीं से इस यज्ञ का अनुष्ठान होने दें। पूजा के लिए खीर, हलवा, पुआ, पूरी आदि से लेकर मूंग की दाल तक बनाए जाएं. ब्रज का सारा दूध एकत्र कर लिया जाए। वेदवादी ब्राह्मणों के द्वारा भांति-भांति के हवन कराए जाएं तथा उन्हें अनेकों प्रकार के अन्न, गाय और दक्षिणा दी जाए। अंत में, सज-धज कर सभी गोपी और गोपियां गोवर्धन की परिक्रमा करें। यह मेरी इच्छा है। इसे करने से गौ, ब्राह्मण और गिरिराज को भी प्रिय लगेगा और मुझे भी बहुत पसंद आएगा."
श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि इंद्र का घमंड चूर-चूर कर दें। नंद बाबा सहित सभी गोपों ने उनकी बात सुनकर बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार कर ली। श्रीकृष्ण के कहे अनुसार यज्ञ प्रारंभ किया गया।
श्रीकृष्ण ने धारण किया गिरिराज का रूप:
गोप और गोपियों को विश्वास दिलाने और अपनी लीला दिखाने के लिए, श्रीकृष्ण ने गिरिराज पर्वत के ऊपर एक दूसरा विशाल शरीर धारण करके प्रकट हो गए. उन्होंने "मैं हूं गिरिराज!" कहते हुए ब्रजवासियों द्वारा अर्पित सारी सामग्री स्वयं खाने लगे.
* तस्वीर में देखें भगवान विष्णु के दिव्य रूप: पहाड़ की चोटी से प्रकट होते भगवान श्रीहरि विष्णु, उनके विराट रूप के समक्ष नतमस्तक भक्तगण।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गिरिराज बने स्वरूप को दूसरे ब्रजवासियों के साथ स्वयं भी प्रणाम किया और कहने लगे: "देखो, कैसी लीला है! गिरिराज स्वयं प्रकट होकर हम पर कृपा की है। यह चाहे जैसा रूप धारण कर सकते हैं. जो वनवासी जीव पर्वत का निरादर करते हैं, उन्हें यह नष्ट कर देते हैं। आओ, अपना और अपने गौओं का कल्याण एवं रक्षा करने के लिए इस गिरिराज को हम नमस्कार और पूजन करें." इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत की महिमा से परिचित कराया।
क्रोधित इंद्र ने की भीषण वर्षा:
जब इंद्र को यह पता चला कि नंद गांव के लोगों ने उनकी पूजा बंद कर दी है, तब नंद बाबा, गोप और गोपियों पर वे बहुत अधिक क्रोधित हुए. इंद्र को देवताओं के राजा होने पर बड़ा घमंड था. वह समझते थे कि मैं ही त्रिलोक का ईश्वर हूं।
इंद्र ने क्रोध से तिलमिलाकर प्रलय करने वाले मेघों और सांवर्तक नामक गणों को ब्रज पर चढ़ाई करने का आज्ञा दी. इंद्र ने गुस्से में भरकर कहा: "ओह, जंगली इंसानों को इतना घमंड? सचमुच यह धन का नाश है!
भला देखो तो सही, एक साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर उन्होंने मुझे, अर्थात देवराज का अपमान कर डाला. कृष्ण नालायक, बकवादी, अभिमानी, नादान और मूर्ख होने पर भी अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी समझता है. वह स्वयं मृत्यु का ग्रास बनेगा. फिर भी उसी का सहारा लेकर इन अहीरों ने मेरी अवहेलना और घोर बेइज्जती की है!" और फिर, इंद्र के आदेश पर ब्रज में भीषण वर्षा और तूफान शुरू हो गया।
भगवान ने उंगली पर उठाया गोवर्धन पर्वत:
भीषण बारिश और तूफान होते देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्धन को उठाकर अपनी छोटी उंगली पर धारण कर लिया. उन्होंने उस पर्वत को धारण कर लिया. इसके बाद, भगवान ने गोपों से कहा: "माता जी, पिता जी और ब्रजवासियों, तुम लोग अपनी गोधन, सब सामग्रियों के साथ इस पर्वत के गड्ढे में आकर आराम से बैठ जाओ."
* गोवर्धन धारी: जब कान्हा ने अपनी उंगली पर उठाया गोवर्धन, और भक्तों को दी शरण।
भगवान श्रीकृष्ण के आश्वासन देने पर सब के सब ग्वालों ने अपने-अपने गोधन, आश्रितों, पुरोहित और बच्चों, महिलाओं को अपने साथ लेकर गोवर्धन के गड्ढे में आ घुसे. श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक लगातार उस पर्वत को उठा रखा. वे एक पग भी वहां से इधर-उधर नहीं हुए. श्रीकृष्ण की योगमाया का प्रभाव देखकर इंद्र को आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
अंततः, इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने मेघों को वर्षा रोकने का आदेश दिया। भीषण तूफान बंद हो गया और सूर्य दिखने लगे। इससे बाल-गोपाल काफी खुश हो गए। इसके बाद, श्रीकृष्ण ने कहा: "बचे हुए समस्त सामग्रियों को लेकर आप लोग अपने-अपने घर लौट जाएं, क्योंकि सभी नदी-नाले में पानी कम हो गया है."
सात दिनों तक चला अन्नकूट महोत्सव:
जब ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे आश्रय लिए हुए थे, तब उन्होंने अपने साथ लाई गई सामग्रियों का एक जगह इकट्ठा कर भोजन बनाया और आपस में मिल बांट कर स्त्री, पुरुष और बच्चे सब खाने लगे. यह अन्नकूट महामहोत्सव सात दिनों तक चलता रहा, जब तक कि इंद्र ने अपनी हार स्वीकार नहीं कर ली और वर्षा बंद नहीं हो गई.
यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार का अंत निश्चित है और भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. यह गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव के पीछे का मुख्य आधार है, जो हमें नम्रता, विश्वास और प्रकृति के प्रति सम्मान का पाठ पढ़ाता है.
अन्नकूट महोत्सव: सामाजिक समरसता और सहभोज का प्रतीक
गोवर्धन पूजा के साथ ही अन्नकूट महोत्सव भी मनाया जाता है. "अन्नकूट" का शाब्दिक अर्थ है "अन्न का ढेर". इस दिन विभिन्न प्रकार की सब्जियां, अनाज और मिठाइयां मिलाकर एक विशाल भोग तैयार किया जाता है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है. यह भोग इतना विशाल होता है कि यह एक पर्वत के समान दिखता है, जो गोवर्धन पर्वत का प्रतीक है.
अन्नकूट की विशेषताएं:
* विभिन्न प्रकार के व्यंजन: अन्नकूट में आमतौर पर कम से कम 56 प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) शामिल होते हैं, जिनमें दाल, चावल, सब्जियां, कढ़ी, पूड़ी, मिठाई, पकवान और अन्य पारंपरिक भारतीय व्यंजन शामिल होते हैं.
* सामूहिक तैयारी: इसे मंदिरों और घरों में भक्तजन मिलकर तैयार करते हैं, जो सामुदायिक भावना और सहयोग को दर्शाता है.
* प्रसाद वितरण: भगवान को अर्पित करने के बाद, यह भोग सभी भक्तों और आगंतुकों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। यह सामूहिक सहभोज का एक सुंदर उदाहरण है, जहां सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ भोजन करते हैं।
अन्नकूट महोत्सव सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक है. यह हमें सिखाता है कि सभी को एक साथ मिलकर रहना चाहिए और सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ देना चाहिए। यह प्रकृति द्वारा दिए गए अन्न के प्रति आभार व्यक्त करने का भी एक तरीका है।
अन्नपूर्णा महोत्सव में भाग लेते ग्वाला और ग्वालिन सहित गांववासी।
भगवन गोवर्धन पूजा कैसे मनाएं?
गोवर्धन पूजा को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन कुछ सामान्य अनुष्ठान और परंपराएं हैं जो इस पर्व को खास बनाती हैं:
* गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाना: इस दिन लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत की एक आकृति बनाते हैं. इस आकृति को फूलों, दीयों और अन्य सजावटी सामानों से सजाया जाता है.
* पूजा और परिक्रमा: गोबर के गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है. महिलाएं और बच्चे इसकी परिक्रमा करते हैं और अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं.
* छप्पन भोग तैयार करना: घरों और मंदिरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) तैयार किए जाते हैं और उन्हें गोवर्धन पर्वत की आकृति के सामने रखा जाता है.
*यह तस्वीर गोवर्धन पूजा की है: जिसमें एक किसान धोती-कुर्ता पहने अपनी प्यारी गाय को सजाते हुए, भारतीय ग्रामीण जीवन का एक सुंदर दृश्य।
* गौ पूजा: गायों को स्नान कराकर, उन्हें सजाकर और उन्हें पौष्टिक भोजन खिलाकर उनकी पूजा की जाती है.
* सामूहिक भोजन: अन्नकूट का प्रसाद सभी भक्तों और आगंतुकों के बीच वितरित किया जाता है, और लोग एक साथ बैठकर सहभोज का आनंद लेते हैं.
* भजन-कीर्तन: मंदिरों और घरों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान किया जाता है.
यह पर्व हमें प्रकृति, पशुधन और भगवान के प्रति हमारी जिम्मेदारी का एहसास दिलाता है.
गोवर्धन पूजा का संदेश
गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह जीवन के महत्वपूर्ण संदेशों को अपने में समेटे हुए है:
* अहंकार का त्याग: यह कथा इंद्र के अहंकार को दर्शाती है और बताती है कि कैसे अहंकार का अंत होता है. हमें कभी भी अपनी शक्ति या स्थिति पर घमंड नहीं करना चाहिए.
* प्रकृति का सम्मान: गोवर्धन पूजा हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का पाठ पढ़ाती है. हमें पहाड़ों, नदियों, पेड़ों और जानवरों का संरक्षण करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे जीवन का आधार हैं.
* गौ सेवा का महत्व: गायों को पूजनीय माना गया है और उनकी सेवा को पुण्य का कार्य बताया गया है. हमें पशुधन का ध्यान रखना चाहिए.
* सामाजिक एकता: अन्नकूट महोत्सव हमें एकजुटता और सामुदायिक भावना का महत्व सिखाता है. हमें मिलकर रहना चाहिए और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए.
* भगवान में विश्वास: यह पर्व हमें भगवान में अटूट विश्वास रखने और उनकी शरण में जाने की प्रेरणा देता है, क्योंकि वे ही हमें सभी संकटों से बचाते हैं.
गोवर्धन पूजा का क्या है निष्कर्ष
गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव एक ऐसा पर्व है जो हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है. यह हमें प्रकृति, पशुधन और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का स्मरण कराता है. भगवान श्रीकृष्ण की यह अद्भुत लीला हमें सिखाती है कि सच्ची शक्ति अहंकार में नहीं, बल्कि नम्रता, सेवा और विश्वास में निहित है.
आइए, इस गोवर्धन पूजा पर हम सभी अपनी गायों की सेवा करें, प्रकृति का सम्मान करें और एकजुट होकर इस पवित्र त्योहार को मनाएं. यह सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि जीवन भर के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
अस्वीकरण (Disclaimer)
यह ब्लॉग पोस्ट गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव के बारे में सामान्य जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक कथाओं और प्रचलित मान्यताओं पर आधारित है।
हमारा उद्देश्य पाठकों को इस पवित्र पर्व के महत्व और इतिहास से अवगत कराना है। यद्यपि हमने जानकारी को सटीक और विश्वसनीय बनाने का हर संभव प्रयास किया है, फिर भी यह सलाह दी जाती है कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या व्यक्तिगत विश्वास के संबंध में अपने परिवार के बड़ों, पंडितों या धार्मिक विशेषज्ञों से परामर्श करें।
इस ब्लॉग पोस्ट में व्यक्त विचार और जानकारी केवल सामान्य मार्गदर्शन के लिए हैं और इन्हें किसी भी धार्मिक या व्यक्तिगत निर्णय का एकमात्र आधार नहीं माना जाना चाहिए। इस जानकारी के उपयोग से होने वाले किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नुकसान के लिए ब्लॉग या लेखक जिम्मेदार नहीं होंगे।