गुरु नानक जयंती 2025: जीवन कथा, शिक्षाएं, रोचक घटनाएं और कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

गुरु नानक जयंती 2025 में जानें सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की प्रेरणादायक जीवन कथा, शिक्षाएं, चार उदासियां, रोचक घटनाएं और कार्तिक पूर्णिमा का पौराणिक महत्व। एक विस्तृत व आध्यात्मिक ब्लॉग।

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गुरु नानक जयंती 2025: गुरु नानक देव जी की जीवनी, शिक्षाएं और प्रेरक घटनाएं

गुरु पर्व का महत्व और तिथि

गुरु नानक जयंती, जिसे गुरु पर्व या प्रकाश पर्व के नाम से जाना जाता है, सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक पूर्णिमा को आता है, जो सनातन परंपरा में भी अत्यंत पावन मानी जाती है।

2025 में गुरु नानक जयंती 5 नवंबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह दिन आध्यात्मिक चेतना, सेवा, और समर्पण का प्रतीक बन चुका है।

कार्तिक पूर्णिमा का पौराणिक महत्व

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक तीन राक्षसों का संहार कर सृष्टि में संतुलन स्थापित किया था। यह दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और भक्ति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।

शिव पुराण में बताया गया है कि त्रिपुरासुर ने तीन नगरी बनाई थीं जो आकाश, पाताल और पृथ्वी पर स्थित थीं। शिव ने एक ही बाण से इनका विनाश किया। यह कार्य कार्तिक पूर्णिमा को हुआ था। इसलिए यह दिन शक्ति और धर्म की विजय का प्रतीक भी माना जाता है।

गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय

गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को वर्तमान पाकिस्तान के ननकाना साहिब (तब का तलवंडी) में हुआ था। उनके पिता का नाम कालू मेहता और माता का नाम तृप्ता देवी था।

बाल्यकाल से ही वे साधारण बच्चों से अलग थे – वे गहरे चिंतनशील, करुणामय और ईश्वर के प्रति समर्पित थे। उनके भीतर बचपन से ही ईश्वर की एकता और मानवता की सेवा की भावना प्रबल थी।

बाल्यकाल की असाधारण घटनाएं

01. ज्ञान की सच्ची परिभाषा

बालक नानक ने एक बार अपने गुरु को ज्ञान की वास्तविक व्याख्या करते हुए कहा – "सच्चा ज्ञान वह है जो हमें ईश्वर की पहचान कराए और मानवता की सेवा सिखाए।"

02. अद्वितीय बचपन

कई बार वे अकेले बैठकर ध्यान करते पाए जाते थे। माता-पिता को चिंता होती, लेकिन नानक जी आत्म मग्न रहते।

गुरु नानक देव जी की चार उदासियां (महा यात्राएं)

गुरु नानक देव जी ने अपने जीवनकाल में चार प्रमुख यात्राएं कीं जिन्हें उदासियां कहा गया। इन यात्राओं में उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, तिब्बत, अरब, श्रीलंका और अनेक स्थानों की यात्रा की और सत्य, एकता, और प्रेम का संदेश दिया।

प्रथम उदासी (पूर्व दिशा)

भारत के पूर्वी भाग – बिहार, बंगाल, असम तक की यात्रा।

द्वितीय उदासी (दक्षिण दिशा)

श्रीलंका तक पहुंचे और वहां के राजा को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

तृतीय उदासी (उत्तर दिशा)

कश्मीर, तिब्बत और हिमालयी क्षेत्र की यात्रा।

चतुर्थ उदासी (पश्चिम दिशा)

मक्का, मदीना, बगदाद और अरब देशों की यात्रा – जहाँ उन्होंने धार्मिक एकता और ईश्वर की सर्वव्यापकता का संदेश दिया।

गुरु नानक जी की प्रमुख शिक्षाएं और सिद्धांत

गुरु नानक जी की शिक्षाएं मानव जाति के लिए दीपस्तंभ समान हैं। उनकी प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:

01. एक ओंकार – ईश्वर एक है

ईश्वर न तो किसी एक जाति का है और न ही एक धर्म का। वह सर्वत्र है, सर्वशक्तिमान और दयालु है।

02. नाम जपो

सदैव ईश्वर के नाम का स्मरण करें। यही सच्ची साधना है।

03. किरत करो

ईमानदारी और मेहनत से जीवन यापन करना ही धर्म है।

04. वंड छको

अपनी कमाई का एक भाग जरूरतमंदों को दान करें।

05. स्त्री और पुरुष में समानता

उन्होंने स्त्रियों को समाज में सम्मान और समान अधिकार दिए, जो उस युग में क्रांतिकारी विचार था।

गुरु नानक जी के जीवन की प्रेरणादायक घटनाएं

01. सच्चा सौदा

उनके पिता ने उन्हें व्यापार के लिए पैसे दिए। उन्होंने उन पैसों से भूखों को भोजन कराया और कहा – "यही सच्चा सौदा है।"

02. हरिद्वार की घटना

हरिद्वार में जब सब पूर्व दिशा में जल अर्पित कर रहे थे, गुरु नानक जी ने पश्चिम दिशा में जल चढ़ाया। उन्होंने बताया कि अंधविश्वास को तोड़ना आवश्यक है।

03. मक्का की घटना

गुरु नानक जी काबा की ओर पैर करके लेटे थे। मौलवी ने आपत्ति की, तो उन्होंने कहा – "पैर उस दिशा में कर दो जहाँ ईश्वर न हो।" यह देखकर मौलवी स्तब्ध रह गया कि हर दिशा में काबा ही है।

 * "आध्यात्मिक संवाद: मक्का की पवित्र भूमि पर गुरु नानक देव जी।"

समाज सुधारक के रूप में योगदान

गुरु नानक देव जी ने जातिवाद, मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और धार्मिक द्वेष का विरोध किया। उन्होंने लंगर प्रणाली, संगत-पंगत की परंपरा, और समूहिक भक्ति की शुरुआत की – जिससे समाज में समता का भाव जागृत हुआ।

गुरु नानक जी का अंतिम समय और उत्तराधिकारी

गुरु नानक जी ने भाई लहणा को अपना उत्तराधिकारी बनाया, जो आगे चलकर गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरु नानक देव जी का निधन 22 सितंबर 1539 को करतारपुर साहिब में हुआ।

मृत्यु के बाद हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने उन्हें अपने-अपने तरीके से सम्मान दिया। कहा जाता है कि उनके शरीर की जगह एक चादर मिली, जिसे दोनों समुदायों ने अपने-अपने अनुसार विभाजित किया।

गुरु नानक जी की विचारधारा: आज के संदर्भ में

आज के समय में जब समाज अनेक प्रकार के भेदभाव, धार्मिक संघर्ष और अशांति से जूझ रहा है, गुरु नानक जी की शिक्षाएं और जीवन मार्गदर्शक बन सकते हैं। उनका दर्शन संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा है:

सत्य बोलो। सबका भला सोचो। आडंबर से बचो। सेवा करो, दिखावा नहीं। गुरु नानक जयंती पर कैसे मनाएं पर्व। प्रभात फेरियां। गुरुद्वारों में कीर्तन दरबार। लंगर सेवा। गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ। जरूरतमंदों की सहायता

निष्कर्ष क्या है 

गुरु नानक देव जी का जीवन सत्य, करुणा और समानता का आदर्श है। उन्होंने समाज में ऐसी क्रांति लाई, जो धर्म और मानवता के मूल्यों पर आधारित थी। गुरु नानक जयंती 2025 एक अवसर है जब हम उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने भीतर सेवा, विनम्रता और भक्ति का दीप जलाएं।

डिस्क्लेमर:

इस ब्लॉग में प्रस्तुत सभी जानकारियां गुरु नानक देव जी के जीवन, शिक्षाओं और उनके सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो विभिन्न धार्मिक ग्रंथों, इतिहास पुस्तकों, विद्वानों के विचारों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्रोतों के अध्ययन के आधार पर संकलित की गई हैं। इस लेख का उद्देश्य केवल धर्म, इतिहास और संस्कृति के प्रति जागरूकता फैलाना है। किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना या किसी मत, संप्रदाय अथवा व्यक्ति विशेष की आलोचना करना इस लेख का उद्देश्य नहीं है। यदि इसमें कोई त्रुटि रह गई हो तो वह अनजाने में हुई है, उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।




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