दुर्गोत्सव 2025: विजयदशमी पर करें शस्त्र पूजा, रावण दहन, प्रतिमा विसर्जन व सिंदूर खेला जानें संपूर्ण जानकारी

आश्विन (शारदीय) नवरात्रि 22 सितंबर, 2025 (सोमवार) से शुरू होकर 2 अक्टूबर, 2025 (गुरुवार) तक मनाया जाएगा। यह सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा नौ दिनों तक की जाती है। 

शारदीय नवरात्र के अंतिम दिन, जिसे विजय दशमी या दशहरा कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा, मां दुर्गा की प्रतिमा विसर्जन और महिलाओं द्वारा सिंदूर खेला की जाती है।

What to do on Vijayadashami

01. रावण दहन: रामलीला का मंचन होता है, जिसमें भगवान राम द्वारा रावण का वध किया जाता है। इसके प्रतीक स्वरूप बड़े पुतलों (रावण, मेघनाद, और कुंभकर्ण) का दहन किया जाता है।

02. दुर्गा विसर्जन: देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है, जो नवरात्रि के दौरान उनकी स्थापना के बाद होता है। इसे बुराई के अंत और देवी के अपने लोक लौटने के रूप में देखा जाता है।

03. अस्त्र और शस्त्र पूजन: विजयदशमी के दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा का विशेष महत्व है। इसे 'शस्त्र पूजा' भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और भगवान राम ने रावण का संहार किया था, इसलिए यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा कर उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

पूजा का विधान:

तैयारी:

*पूजा से पहले सभी अस्त्र-शस्त्र को साफ करके एक स्थान पर रखें।

*पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और वहां रंगोली या स्वास्तिक बनाएं।

*एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर अस्त्र-शस्त्र रखें।
पूजा विधि:

*सबसे पहले कलश की स्थापना करें और गणेश जी का आह्वान करें।

*अस्त्र-शस्त्र पर कुमकुम, हल्दी और चंदन का तिलक लगाएं।
उन पर फूल और माला अर्पित करें। फिर धूप, दीप जलाकर आरती करें।

*हथियारों के सामने कुछ मीठा प्रसाद जैसे लड्डू या बताशा रखें।

*पूजा के दौरान 'ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते' मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।

*पूजा के बाद सभी अस्त्र-शस्त्र को उनके नियत स्थान पर वापस रखें।

यह पूजा सिर्फ युद्ध या शक्ति प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि यह आत्मरक्षा और अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है। यह हमें यह याद दिलाता है कि बुराई से लड़ने के लिए शक्ति और साहस दोनों ही जरूरी हैं।

वर्तमान समय में शास्त्र की पूजन हर सनातनी धर्मियों को करनी चाहिए। कारण आपके चारों पहले असुरी शक्ति का बोलबाला है। ऐसी शक्तियों से लड़ने के लिए अस्त की जरूरत पड़ती है। धर्म की रक्षा के लिए भी शस्त्र की जरूरत पड़ती है। इस दिन शास्त्रों की पूजा करने का विधान है।

अखंड ज्योति और कलश विसर्जन: जो मां के भक्त नवरात्रि के दौरान अखंड ज्योति जलाते हैं और कलश स्थापना करते हैं, वे इस दिन इसका विसर्जन करते हैं।

05. संपूर्ण नवरात्रि के व्रत का समापन: विजय दशमी के दिन नवरात्रि के उपवास और साधना का समापन होता है, और लोग माता के आशीर्वाद के साथ उपवास तोड़ते हैं।

सिंदूर खेला शारदीय नवरात्र के अंतिम दिन, यानी विजय दशमी पर मनाया जाता है। 2025 में यह उत्सव 02 अक्टूबर दिन गुरुवार को  मनेगा।

विजयदशमी के दिन 'सिंदूर खेला' की परंपरा विशेष रूप से बंगाली समुदाय में मनाई जाती है। यह दुर्गा पूजा के समापन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस दिन विवाहित महिलाएं मां दुर्गा की प्रतिमा को विदाई देने से पहले एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली खेलती हैं।

कैसे मनाई जाती है यह परंपरा?

सिंदूर खेला की रस्म दुर्गा विसर्जन के दिन होती है। महिलाएं सबसे पहले मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर अर्पित करती हैं। वे मां की मांग, माथे और पैरों पर सिंदूर लगाती हैं और उन्हें मिठाई खिलाकर विदाई देती हैं। इसके बाद, सभी विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, एक-दूसरे के गालों पर भी सिंदूर मलती हैं और गले मिलकर एक-दूसरे को दशहरा की शुभकामनाएं देती हैं। यह परंपरा विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य और सुखद वैवाहिक जीवन का प्रतीक मानी जाती है।

यह माना जाता है कि दुर्गा मां साल में एक बार अपने मायके आती हैं और 10 दिनों तक यहां रहने के बाद वापस अपने ससुराल लौट जाती हैं। सिंदूर खेला की रस्म मां को एक बेटी की तरह विदाई देने का एक तरीका है, जिसमें महिलाएं उनके वापस आने का इंतजार करती हैं। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सद्भाव का भी प्रतीक है, जहां महिलाएं एक साथ मिलकर खुशियां मनाती हैं।

डिस्क्लेमर

शारदीय नवरात्र का यह लेख पूरी तरह सनातन धर्म पर आधारित है। लेख के संबंध में जानकारी विद्वान पंडितों, आचार्यों और ज्योतिषाचार्य से बातचीत कर लिखा गया है। साथ ही इंटरनेट का भी सहयोग लिया गया है। शुभ मुहूर्त और समय आदि की गणना पंचांग से किया गया है। लेख लिखने का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रचार करना और सनातनियों को अपने त्यौहार के प्रति रूझान बढ़ाना है। हमने पूरी निष्ठा से इस लेख को लिखा है, अगर लेख में किसी प्रकार की गड़बड़ी या त्रुटि होगी तो उसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है।








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