पितृपक्ष में गया में पिंडदान क्यों जरूरी है? जानें गयासुर की कथा, सीता कुंड का रहस्य, पूर्ण विधि, वर्जित कार्य और वो गलतियाँ जिनसे पितर हो सकते हैं नाराज। पूरी जानकारी हिंदी में।
सूर्य की स्वर्णिम किरणों के बीच, जीवन की धारा के किनारे, एक महिला और पुरुष भारतीय परिधान में श्राद्ध कर्म कर रहे हैं, जो पूर्वजों के प्रति सम्मान और प्रेम को दर्शा रहा है
पितृ पक्ष गया में पिंडदान का पावन महत्व और संपूर्ण मार्गदर्शिका
सूर्य की स्वर्णिम किरणें जब जीवन की धारा के किनारे खड़े उस दंपति पर पड़ती हैं, जो भारतीय परिधान में अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर्म में लीन हैं, तो यह दृश्य पीढ़ियों से चले आ रहे प्रेम और सम्मान का प्रतीक बन जाता है। यह है पितृ पक्ष – एक ऐसा समय जब सनातन संस्कृति में पितरों की आत्मिक शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।
भाद्रपद की पूर्णिमा से आरंभ होकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाले इन 15 दिनों का विशेष महत्व है। आइए, इस लेख में पितृ पक्ष के लिए गया में पिंडदान के गहन महत्व, मार्मिक पौराणिक कथाओं, सही विधि और आवश्यक सावधानियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गया में पिंडदान क्यों है सबसे विशेष? गयासुर की कथा
गया नाम की उत्पत्ति गयासुर नामक एक दैत्य से हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर ने गया की पंचकोसी भूमि पर घोर तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसे वरदान मांगने को कहा।
गयासुर ने कहा, "प्रभु, जिस शिला पर मेरा प्राण त्याग हो, उस स्थान पर जो कोई भी अपने पितरों के लिए पिंडदान करे, उसके सारे पाप मुक्त हो जाएं और उसके पूर्वज सीधे स्वर्ग को प्राप्त हों।"
भगवान विष्णु ने इस इच्छा को स्वीकार किया और उस शिला पर अपना चरण रखा। आज भी विष्णुपद मंदिर में उनके पदचिह्न की पूजा होती है। इसी वरदान के कारण गया में पिंडदान को मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
गया में पिंडदान की संपूर्ण विधि
*01. तर्पण से आरंभ: सबसे पहले फल्गु नदी में खड़े होकर पितरों का तर्पण (जल अर्पण) किया जाता है। मान्यता है कि फल्गु नदी का उद्गम स्वयं भगवान विष्णु के पैर के अंगूठे से हुआ है।
*02. विभिन्न वेदियों पर पिंडदान: विष्णुपद मंदिर के अलावा गया में लगभग 54 अन्य पिंड वेदियां हैं, जहां पिंडदान किया जाता है। पौराणिक काल में 365 वेदियों का उल्लेख मिलता था।
*03. सीता कुंड का महत्व: ऐसी मान्यता है कि माता सीता ने यहीं फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाकर राजा दशरथ को अर्पित किया था। इसीलिए इस स्थान का विशेष महत्व है।
*04. अंतिम चरण - अक्षय वट: पिंडदान की प्रक्रिया का समापन अक्षय वट वृक्ष के समक्ष की जाती है। आमावस्या के दिन यहाँ पिंडदान करने के बाद गयावाल पंडितों को दान दिया जाता है।
पितृ पक्ष में अवश्य बरतें यह सावधानिया (क्या करें और क्या न करें)
अगर आप चाहते हैं कि आपके श्राद्ध कर्म से पितर प्रसन्न हों और आपको आशीर्वाद दें, तो इन बातों का विशेष ध्यान रखें:
· क्या न करें:
· शुभ कार्य वर्जित: पितृ पक्ष के दौरान कोई भी नया शुभ कार्य (जैसे गृहप्रवेश, विवाह, वाहन खरीदना) न करें।
· तामसिक भोजन से परहेज: लहसुन, प्याज से बने भोजन का सेवन न करें। सात्विक भोजन ग्रहण करें।
· बाल-दाढ़ी न कटवाएं: ऐसा माना जाता है कि इससे धन की हानि होती है।
· लोहे के बर्तन में न पकाएं: श्राद्ध का भोजन पीतल, तांबे या किसी अन्य धातु के बर्तन में बनाएं।
· क्या करें:
· सफेद वस्त्र धारण करें: पिंडदान या श्राद्ध कर्म बिना सिले हुए सफेद कपड़े में ही करना चाहिए।
· कौवे को भोजन अर्पित करें: मान्यता है कि कौवे के माध्यम से ही पितरों को भोजन की प्राप्ति होती है।
· मृत्यु तिथि न पता हो तो: ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि (सर्वपितृ अमावस्या) के दिन श्राद्ध करना सबसे उपयुक्त माना जाता है।
निष्कर्ष
पितृ पक्ष हमें हमारे मूलों और पूर्वजों से जुड़े रहने का स्मरण कराता है। यह उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का एक पावन अवसर है। गया में पिंडदान इस परंपरा का सबसे पवित्र रूप माना जाता है। उम्मीद है कि यह संपूर्ण मार्गदर्शिका पितृ पक्ष 2026 में आपके लिए उपयोगी साबित होगी।
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